‘एक्टिविस्टों’ के मकड़जाल को समझने के लिए उस साजिश को समझना होगा, जो भारत के टुकड़े करने के इरादे से रची गई है. इस साजिश की जड़ें बहुत गहरी और पुरानी हैं
दरअसल 2014 तक इस देश में ऐसी सरकार थी, जो इनके नियंत्रण में थी. तत्कालीन केंद्र सरकार के ऊपर एक सुपर सरकार थी, जिसका नाम था राष्ट्रीय सलाहकार परिषद. सोनिया गांधी इसकी अध्यक्ष थीं और ‘एक्टिविस्ट गैंग’ उनके नवरत्न. ये दिल्ली में बैठकर अपनी सुविधा के हिसाब से नीतियां बनाते थे. ये टुकड़े—टुकड़े गैंग इस कदर ताकतवर था कि देश का प्रधानमंत्री कार्यालय भी इनका जवाब था. इसका खतरनाक पहलू समझिए. ये ‘एक्टिविस्ट गैंग’ असल में है क्या. ये कट्टरपंथी जिहादियों, कम्युनिस्ट-नक्सली और ईसाई मिशनरी का कॉकटेल है. इसका चौथा पार्टनर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई है. जो पर्दे के पीछे रहकर इन्हें कठपुतली की तरह नचाती है. 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार आई और दिल्ली में विचरने वाला ये ‘एक्टिविस्ट गैंग’ बेरोजगार हो गया. और साथ ही शुरू हो गया इनका बहुमत को सड़क पर हराने का खेल. जेएनयू, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दंगा, शाहीन बाग धरना और अब तथाकथित किसान आंदोलन. इनके खतरनाक मंसूबों को समझने के लिए इन एक्टिविस्ट गैंग की कुंडली खंगालनी जरूरी है. आज फिर मिलिए ऐसे ही चार और खतरनाक चेहरों से.
पादरी स्टेन स्वामीः चर्च और नक्सली गठजोड़ का सुबूत
ये कोई छिपी बात नहीं है कि ईसाई मिशनरी आदिवासी इलाकों में कन्वर्जन का जो अभियान डेढ़ सौ साल से चला रहे हैं, उन्हें अब नक्सलियों का समर्थन हासिल है. नक्सली और चर्च के गठजोड़ का सुबूत है, स्टेन स्वामी. स्टेन स्वामी जेसुइट पादरी है. यह रोमन कैथोलिक चर्च की कट्टरपंथी शाखा है, जिसकी स्थापना संत इग्नेशियस लोयला और संत फ्रांसिस जेवियर ने 1534 में मिशनरी कार्य के लिए की थी. कैथोलिक चर्च पर इनका बड़ा प्रभाव है. स्टेन स्वामी पादरी है, उस शाखा का, जिसका जन्म ही कन्वर्जन कराने के लिए हुआ. इसने वनवासियों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले ‘एक्टिविस्ट’ का भेस धारण कर लिया. इसका असली नाम सिर्फ पादरी स्टेन है. स्वामी इसने हिंदू मान्यताओं के बीच जीते वनवासियों के बीच स्वीकार्यता के लिए स्वयंभू रूप से लगा लिया. ये कन्वर्जन के अपने असली चेहरे को छिपाने का प्रयास तो था ही, साथ ही बतौर ‘एक्टिविस्ट’ उसे पूरे गैंग का समर्थन और संरक्षण भी हासिल हो रहा था. राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनआईए) ने जब इसे गिरफ्तार किया, तो उससे ठीक दो दिन पहले उसने कहा था कि सुरक्षा एजेंसियों हजारों आदिवासी और मूलवासियों को नक्सल का ठप्पा लगाकर अवैध रूप से जेल में ठूंस रखा है. उसने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की कि इन खूंखार नक्सलियों को तुरंत पर्सनल बांड पर रिहा किया जाए. नक्सली अपने प्रभाव वाले इलाकों में स्टेन स्वामी को कन्वर्जन की गतिविधियां चलाने की न सिर्फ छूट देते रहे, बल्कि उसकी गतिविधियों को सुरक्षा भी हासिल है. बदले में स्वामी इन माओवादियों का एजेंडा चलाता है. ये मिशनरी और माओवादी, दोनों ही जनजातिय बहुल इलाकों में विकास और रोजगार की आहट से डरते हैं. स्वामी भी माओवादियों की तरह इस बात का हिमायती है आदिवासी बहुल इलाकों में छोटे और बड़े उद्योग न लगाए जाएं. इसके लिए चर्च और नक्सल मिलकर वनवासियों के बीच में उनकी जमीन छीन लेने का डर फैलाते हैं. ऐसे ही डर को भुनाने के लिए चर्च और नक्सल ने मिलकर पत्थलगड़ी जैसी पुरानी परंपरा को देश के खिलाफ हिंसा का माध्यम बना डाला. एनआईए की काफी दिन से स्टेन पर नजर थी. जब भीमा कोरेगांव मामले की जांच शुरू हुई, तो सामने आया कि सभी अभियुक्तों के संपर्क सीपीआई (माओवादी) से हैं. जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया वह ‘एक्टिविस्ट’ मंडली ही है. इसमें ‘एक्टिविस्ट’ वकील सुधा भारद्वाज, जो कि छत्तीसगढ़ में माओवादियों की हमसफर है. नागपुर निवासी वकील सुरेंद्र गाडगिल, दिल्ली यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर हनी बाबू और कबीर कला मंच (ये भी माओवादियों का मुखौटा संगठन है) के तीन सदस्य शामिल हैं. एनआईए के पूरक आरोपपत्र में जिन सात लोगों के नाम शामिल हैं, उसमें स्टेन भी है.
हर्ष मंदरः ‘एक्टिविस्ट’ के रूप में कांग्रेस की कठपुतली
एक हैं हर्ष मंदर. दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन में भड़काऊ भाषण देने के लिए ये चर्चा में आए थे. ये वैसे तो पूर्व आईएएस हैं, लेकिन फिलहाल कांग्रेस के दुलारे, एनजीओजीवी ‘एक्टिविस्ट’ हैं. हाल ही में इनके एनजीओ के खिलाफ दिल्ली में मुकदमा दर्ज हुआ है. पुलिस के मुताबिक राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार आयोग की शिकायत पर उम्मीद अमन घर और खुशी रेनबॉ होम के खिलाफ मंगलवार को महरौली थाने में मामला दर्ज किया गया. ये दक्षिण दिल्ली में हैं और इनकी स्थापना सेंटर फॉर इक्यूटी स्टडीज (सीएसई) ने की है. सीएसई का संचालन हर्ष मंदर करते हैं. मंदर का नाम दिल्ली दंगों में अभियुक्त के रूप में है. चार्जशीट में उन्हें दंगा भड़काने के आरोप में अभियुक्त बनाया गया है. एक्टिविस्ट गैंग के खास चेहरे मंदर भी अपने बाकी साथियों की तरह कानून, संविधान, सुप्रीम कोर्ट… किसी पर भरोसा नहीं रखते. मूल चरित्र अलगाववादी, प्रत्यक्ष तौर पर हर भारत विरोधी ताकत के साथ. दिल्ली दंगों के दौरान एक वीडियो वायरल हुआ था. मंदर ने जामिया इलाकों में लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि देश का भविष्य तय करने के लिए लोगों को सड़क पर उतरना होगा, क्योंकि एनआरसी, अयोध्या व जम्मू-कश्मीर मामले में सुप्रीम कोर्ट मानवता, समानता और धर्मनिरपेक्षता को बचाने में नाकाम रहा है. मंदर जैसे अर्बन नक्सलों का असली सपना यही है. सिविल वॉर. सोनिया गांधी की सुपर सलाहकार मंडली में रहे हर्ष मंदर ने मुसलमानों को कथित रूप से राजनीतिक हाशिए पर धकेले जाने के मसले पर एक लेख लिखा. जिसे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी शेयर किया. इसमें मंदर लिखते हैं, “मुस्लिम वास्तव में राजनीतिक रूप से आज निष्कासित, बेघर और अनाथ हैं. यह तब है, जबकि दुनिया की मुस्लिम आबादी का दसवां हिस्सा भारत में निवास करता है. तकरीबन 18 करोड़ मुसलमान, ये इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद किसी मुल्क में सबसे अधिक मुस्लिम आबादी है. भारत में एक मुसलमान होना कभी इतना मुश्किल नहीं रहा, कम से कम बंटवारे के उन तूफानी दिनों बाद से आज तक तो नहीं.” मंदर इशरत जहां के जाने-माने पैरोकार रहे हैं. इशरत को गुजरात की क्राइम ब्रांच ने तीन अन्य आतंकवादियों के साथ मार गिराया था. इशरत लश्कर ए तैयबा के लिए काम करती थी. देश गुजरात, के अनुसार मंदर के एनजीओ को विदेशी संगठनों से काफी मोटा चंदा मिलता है. मंदर जैसी सोच का आदमी सोनिया गांधी का विश्वस्त सलाहकार है. क्या इसका मतलब ये नहीं है कि कांग्रेस की नीति-निर्धारक इकाइयों पर अब इस एक्टिविस्ट गैंग का कब्जा हो चुका है. इसी का नतीजा है कि कांग्रेस की सोच भी अब इन अर्बन नक्सलों जैसी ही हो चुकी है. मंदर जैसे ‘एक्टिविस्ट’ सिर्फ कांग्रेस के नहीं, बल्कि अर्बन नक्सलों, जिहादियों के प्रिय हैं. यह भी आरोप है कि इशरत जहां एनकाउंटर मामले में मंदर ने जिस तरीके का प्रोपेगेंडा फैलाया, उसके लिए मोटी फंडिंग हुई थी. मंदर भी उसी गैंग में शामिल है, जिसने मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी रुकवाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया. यह हर देश विरोधी शख्स और गतिविधियों का पैरोकार है.
तीस्ता सीतलवाड़ः धर्मनिरपेक्षता तो जाम में घोलकर पी ली
तीस्ता सीतलवाड़. जी हां, मोदी विरोधी गैंग की आंखों का तारा रही तीस्ता इस समय ढलान पर है. यहां तीस्ता का के बारे में बात करना इसलिए जरूरी है कि कैसे ये गैंग ‘एक्टिविस्ट’ तैयार करता है, उनसे अपना एजेंडा पूरा कराता है और फिर जब उसका राजफाश हो जाता है, तो किनारा कर लेता है. तीस्ता कभी सुप्रीम कोर्ट से नीचे बात नहीं करती थीं. प्रधानमंत्री कार्यालय की फोन लाइन उनके लिए हमेशा खुली रहती थी. कांग्रेस के कार्यकाल में देश के गृह मंत्री से यूं बात करती थीं, मानो पड़ोसन से बात कर रही हों. अब कहां हैं. अपना बोया काट रही हैं. शाहीन बाग धरने में मैडम नजर आई, हमेशा की तरह विवादास्पद बयान भी दिया. लेकिन वो आर्कषण अब खत्म हो चुका है. गुजरात दंगों की आंच पर रोटी सेककर तीस्ता ने खूब पैसा बटोरा. ‘एक्टिविस्ट गैंग’ की सरगना थी तब. जिस कोने से चाहती थी, पैसा आता था. इसलिए कि वह तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को ठिकाने लगा देने का दावा करती थी. कांग्रेस, जिहादियों, माओवादियों ने गुजरात दंगे पर मोदी की कानूनी घेराबंदी की सुपारी तीस्ता को ही दे रखी थी. लेकिन तीस्ता अपने बने जाल में उलझती चली गई. नवंबर 2010 में बेस्ट बेकरी केस की अहम गवाह जाहिरा शेख पर झूठा बयान देने का दबाव बनाने का आरोप लगा. उस समय तीस्ता का सुप्रीम कोर्ट तक चलता था. कमेटी की सुनवाई में बच निकली. लेकिन कब तक. तीस्ता के खास लेफ्टिनेंट रहे रईस पठान ने ही सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करके पोल खोल दी. रईस खान पठान ने आरोप लगाया कि गुजरात दंगे के पांच संवेदनशील मामलों में तीस्ता ने सुबूतों के साथ छेड़खानी की और गवाहों के फर्जी बयान तैयार किए. अप्रैल 2009 में गुजरात दंगे की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया कि तीस्ता ने हिंसा की घटनाओं को फर्जी तरीके से ज्यादा से ज्यादा संगीन बनाने की कोशिश की है. पूर्व सीबीआई निदेशक राघवन की अध्यक्षता वाली एसआईटी ने कहा कि तीस्ता और अन्य एनजीओ ने हिंसा की मनगढंत घटनाएं रचने के लिए फर्जी और पढ़ाए गए गवाह तैयार किए. तीस्ता की दीदा-दिलेरी देखिए. उसने 22 फर्जी गवाहों की फौज तैयार की. इनसे लगभग एक जैसे हलफनामे अलग-अलग अदालतों में दाखिल कराए. एसआईटी ने पूछताछ की, तो पता चला कि इन गवाहों ने कोई भी ऐसी घटना नहीं देखी. उन्हें तोते की तरह रटाया गया था. पहले से तैयार किए गए हलफनामों पर तीस्ता ने ही उनके हस्ताक्षर कराए थे. ये होता है सच्चा ‘एक्टिविस्ट’. तीस्ता और ‘एक्टिविस्ट गैंग’ ने दुनिया भर में गुजरात सरकार की दानवों जैसी छवि बनाने के लिए कौसर बानो मामले को बहुत उछाला था. कांग्रेस, वामपंथी, जिहादी इस मामले को सिर पर उठाए घूमे. तीस्ता का दावा था कि कौसर जहां गर्भवती थी. उसका सामूहिक बलात्कार किया गया. उसका पेट चीरकर भ्रूण निकाल लिया. मामले की निगरानी कर रही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने माना कि ऐसा कोई मामला हुआ ही नहीं था. . ये ‘एक्टिविस्ट गैंग’ ऐसे ही फर्जी नैरेटिव तैयार करता है.
रेहाना फातिमाः मुस्लिम औरत का हिंदू विरोधी एजेंडा
अब चलते हैं केरल. एक महिला ‘एक्टिविस्ट’ हैं रेहाना फातिमा. बोले तो ‘फेमिनिस्ट एक्टिविस्ट’ यानी नारीवादी कार्यकर्ता. ये वही महिला है, जिसने सबरीमाला मंदिर में जाने का अभियान चलाया. अब जरा इनका सलेक्टिविज्म (पसंद के विषय चुनना) देखिए. रेहाना फातिमा ने कभी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ने का अभियान नहीं चलाया. क्यों. इसलिए ‘एक्टिविस्ट’ तो वही है, जो हिंदू भावनाओं, परंपराओं, मान्यताओं और मर्यादाओं को चुनौती दे. उन्हें भंग करे. ‘एक्टिविस्ट’ की परिभाषा तभी पूरी होती है, जब हिंदू आराध्यों का अपमान किया जाए. जैसे मुनव्वर फारूकी. उसकी कॉमेडी मान्यताओं और परंपराओं के पैमाने पर सबसे मजाकिया मजहब के बारे में नहीं होती. उसके स्टार बनने का ख्वाब बहुत आसानी से पूरा होता है हिंदू देवी-देवताओं का मजाक बनाकर. क्योंकि उसे पता है कि तुरंत एक्टिविस्ट गैंग, कांग्रेस, जिहादी, नक्सली और मिशनरी उसकी हिमायत में खड़े हो जाएंगे. सबरीमाला की मर्यादा भंग करने वाली फातिमा पर केरल हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया के जरिये विचारों की अभिव्यक्ति पर रोक लगा रखी है.
(17 फरवरी को पढ़िए चार ऐसे ही अन्य ‘एक्टिविस्टों’ के बारे में )
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