पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप में तीन अहमदिए फांसी के फंदे से झूल चुके हैं। हाल के दिनों में उनकी मस्जिदों में नमाज व अजान की अदायगी पर भी रोक लगा दी गई। पुलिस ने कुछ दिनों पहले चार युवाओं को ईशनिंदा में गिरफ्तार किया था। उनमें से तीन को जमानत पर छोड़ दिया गया पर चौथे की पुलिस कस्टडी में गोली मार कर हत्या कर दी गई
पत्रकार महबूब की रिपोर्ट कहती है कि एक बार एक ही झटके में 13 अहमदियों को मौत के घाट उतार दिया गया। पाकिस्तान में एक के बाद एक दो ऐसी घटनाएं सामने आईं, जो बताती हैं कि इस देश में केवल हिंदू ही नहीं अल्पसंख्यक समुदाय की दूसरी कौमें भी खुली हवा में सांस नहीं ले सकती हैं। जिसने ऐसा किया या तो उसे कानूनी जाल में फांस कर उसकी जिंदगी खराब कर दी गई या उसे मौत के घाट उतार दिया गया। ऐसे ही अल्पसंख्यक समुदाय में शुमार है ‘अहमदिया बिरादरी।’ गत दिनों पेशावर के वाजिद खेल इलाके की एक क्लीनिक के अहमदिया कर्मचारी अब्दुल कादिर को कुछ बंदूकधारियों ने इसलिए गोली मारकर हत्या कर दी, क्योंकि उसके इबादत करने का तरीका स्थानीय कट्टरपंथियों को पसंद नहीं था। इस मामले की पुलिस में शिकायत के बाद भी हत्यारोपियों की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। इसी क्रम में अमेरिका में बसे पाकिस्तानी अहमदिया बिरादरियों को पाकिस्तान टेलिकम्युनिकेशन अथॉरिटी (पीटीए) ने नोटिस भेज कर धमकी दी है। पीटीए के नोटिस में कहा गया है कि अहमदियों द्वारा संचालित वेबसाइट से इस्लाम के प्रति भ्रम फैल रहा है। इस लिए ‘ट्रू इस्लाम’ नाम की अपनी वेबसाइट उन्होंने 24 घंटे के भीतर बंद नहीं की तो उन्हें पाकिस्तानी करैंसी के हिसाब से 50 करोड़ रुपये जुर्माना भरना होगा। इसका दिलचस्प पहलू यह है कि अमेरिका से संचालित इस वेबसाइट पर पाकिस्तानी कानून लागू नहीं होता। फिर भी इसके संचालकों को धमकियां दी जा रही हैं।
अमेरिका में अहमदिया मुसलमानों के संगठन के प्रवक्ता हारिस जफर का कहना है कि 24 दिसंबर को इस बारे में ईमेल मिला तो उन्होंने जंक मेल समझकर नजरंदाज कर दिया। मगर अगले दिन देखा कि ईमेल पाकिस्तान टेलिकम्युनिकेशन अथॉरिटी (पीटीए) की ओर से भेजा गया है, जिसमें 24 घंटे के भीतर वेबसाइट बंद करने और जुर्माना भरने की बात कही गई थी। आदेश में कहा गया था, ‘‘इस बात पर ध्यान दिया जाए कि अहमदिया या कादियानी ना ही अपने आप को सीधे या परोक्ष रूप से मुसलमान कह सकते हैं, ना ही अपने मजहब को इस्लाम कह सकते हैं।’’
हालांकि अहमदियों ने पाकिस्तान सरकार के नोटिस को रद्दी की टोकरी में डाल दिया है। साथ ही जवाब लिखकर कहा है,‘‘ना सिर्फ ये नोटिस कानूनी रूप से अवैध है, बेतुका भी है।’’ उन्होंने अपनी वेबसाइट भी नहीं बंद की है। वेबसाइट संचालक हैरानी से कहते हैं कि इसको लेकर अमेरिका में कोई आपत्ति नहीं, पर दूर पाकिस्तानी सरकार को पेट में मरोड़ पैदा हो रही है।
हारिस जफर कहते हैं कि उनकी वेबसाइट पांच साल पुरानी है। सरकार को किसी तरह की आपत्ति थी तो उनकी वेबसाइट के ऐप को पाकिस्तान में प्रतिबंधित कर देना चाहिए। इसकी जगह उन्हें धमकी दिया जाना बेहद दुर्भावनापूर्ण है। यह कमजोर अहमदिया समुदाय की आवाज को दबाने की भी साजिश है।
बता दें कि अमेरिका में अहमदिया समुदाय के 20 से 25 हजार लोग रहे हैं, जबकि पाकिस्तान में उनकी आबादी 40 लाख के करीब है। अल्पसंख्यकों के प्रति सरकार की गलत नीतियों के चलते पाकिस्तान के अहमदिया समुदाय धीरे-धीरे देश छोड़ रहे हैं।
संस्थापकों के खिलाफ ऐलान-ए-जंग
इमरान खान के ‘नया पाकिस्तान’ में अल्पसंख्यकों पर कुछ ज्यादा हो अत्याचार हो रहा है। इसकी शह पर पाकिस्तानपरस्त जिहादी संगठनों ने भारत, अफगानिस्तान, ईरान सहित अन्य पड़ोसी देशों के साथ अब अपने देश के उन तमाम कौमों के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है। कट्टरपंथी ज्यादातर हिंदुओं, ईसाइयों एवं सिखों को प्रताड़ित करते रहे। उनकी बहुु-बेटियों का अपहरण किया, कन्वर्जन कराया, उनके साथ हिंसात्मक ढंग से पेश आते रहे। इसके साथ उन्होंने देश के शिया एवं अहमदिया समुदाय के विरुद्ध भी मोर्चा खोल दिया है। पाकिस्तान को बनवाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना शिया थे, जबकि पाकिस्तान का खाका तैयार करने वाले तथा भारत के बंटवारा से पहले हिंदुस्थान-पाकिस्तान की सीमा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वालों में से एक चौधरी मोहम्मद जफरुल्ला खान अहमदिया मुसलमान। मगर ‘नबूवत’ एवं ‘नमाज’ के तरीकों की आड़ में इन दोनों कौमों के खिलाफ कट्टरपंथियों एवं जिहादियों ने संघर्ष छेड़ रखा है।
शिया-अहमदिया को बता रहे गद्दार
एक षड़यंत्र के तहत पाकिस्तान में शिया एवं अमदिया समुदाय को देश विरोधी बताया जाता है। ताकि उनके खिलाफ आम जनता के मन में क्लेष रहे। नए दौर के जिहादी इस वर्ग को देश का दुश्मन बता रहे हैं। इसे साबित करने को झूठी कहानियां गढ़ी जा रही हैं। माहौल ऐसा बनाया जा रहा कि ताकि देश का बहुसंख्यक आम सुन्नी समुदाय भड़क जाए। इस साजिश के तहत शियाओं के बारे में कहा जा रहा कि सीरिया के लड़ाकों को मात देने के लिए जिस गुप्त सेना जैनबियून ब्रिगेड का गठन किया गया, उसे खड़ा करने में पाकिस्तान के शियाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। देश के हजार से अधिक शिया संगठन को खड़ा करने में आगे-आगे रहें।
अल्पसंख्यकों में अहमदिया गए गुजरे
अहमदियाओं का मामला शिया समुदाय से थोड़ा भिन्न है। उन्हें मुसलमान माना ही नहीं जाता। इस्लामिक नजरिए से हजरत मोहम्मद आखिरी पैगंबर हैं। अहमदिया इस पंथ के जनक मिर्जा गुलाम अहमद को अपना पैगंबर मानते हैं। शियाओं की तरह अहमदिया के नमाज पढ़ने का तरीका भी सुन्नियों से भिन्न है। इस बिना पर अहमदियों को इस्लाम से खारिज कर दिया गया। जबकि भारत सहित विश्व के अन्य देशों में इस बिना पर उनके साथ भेद-भाव का सलूक नहीं किया जाता। सुन्नी उनके मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते, पर पाकिस्तान में ऐसा नहीं है। वहां 1974 में कानून में संशोधन कर उनसे न केवल मुसलमान होने का अधिकार छीन लिया गया, उन्हें हिंदू, सिख, ईसाई की तरह अल्पसंख्यकों की श्रेणी में डाल दिया गया। पाकिस्तान में आज स्थिति है कि कोई अहमदिया किसी को ‘अस्सलाम ओ अलैकुम’ नहीं कह सकता।
इमरान खान की तहरीक इंसाफ सरकार में उनके प्रति अत्याचार बढ़े हैं। उनकी सरकार ने अहमदिया सलाहकार को हटा दिया। इस वर्ष मजहबी नजरिए से राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग गठित किया गया, अहमदिया उससे भी बाहर रखे गए। पाकिस्तान में अहमदियों की आबादी करीब 40 लाख है। अधिकतर यह पंजाब के रबवा जिले में रहते हैं। जबकि बड़ी संख्या में अहमदिया भारत के पंजाब, राजस्थान एवं मुंबई में भी हैं। पुरुष एवं महिलाएं खास तरह की टोपी एवं बुर्के पहनने के कारण दूर से पहचाने जा सकते हैं।
1974 में कानून में संशोधन कर अहमदियों को इस्लाम से खारिज करने के बाद से उनका पाकिस्तान से पलायन जारी है। उनका मजहबी स्थल ‘कादियां’ भी पंजाब से इंग्लैंड स्थानांतरित कर दिया गया। वैज्ञानिक परवेज हुदभाय कहते हैं, उसी दौरान 1980 में इलेक्ट्रोवीक यूनिफिकेशन के लिए भौतिकी का नोबेल सम्मान जीतने वाले इकलौते पाकिस्तानी वैज्ञानिक अब्दुल सलाम देश छोड़कर विदेश जा बसे। 2016 में इस्लामाबाद के कायदे-आजम यूनिवर्सिटी ने उन्हें सम्मानित करने के लिए कार्यक्रम किया गया था, पर जमात-ए-इस्लामी के छात्र संगठन के विरोध के कारण वह इसमें शामिल नहीं हो सके। हालांकि बाद में वह न केवल नवाज शरीफ सरकार में वैज्ञानिक सलाहकार बनें।
भौतिकी से विदेश में पीएचडी करने वाले पांच छात्रों को उनके नाम पर स्कॉलरशिप देने का ऐलान भी किया गया। अब्दुल सलाम को पाकिस्तान का अंतरिक्ष एवं परमाणु कार्यक्रम का जनक माना जाता है। अहमदिया पंथ के अब्दुल सलाम अपवाद हैं। पाकिस्तान का आम अहमदिया बहुत ज्यादा त्रस्त है। यह कौम व्यापार-कारोबार के लिए पहचानी जाती है। कट्टरपंथियों ने उनसे कारोबारी रिश्ता नहीं रखने का ऐलान किया है। भारत के पंजाब के कादियां के 121वें जलसे में भाग लेने पाकिस्तान से आए रसूर अहमद व अशफाक अहमद बताते हैं कि एक बार उनके समुदाय ने झांग जिले में मजहबी गीत ‘नात’ पढ़ने की प्रतियोगिता आयोजित की थी, जिसमें उनके समाज की एक छात्रा को पांचवां स्थान मिला। उसके बाद कट्टरपंथी उनके पीछे पड़ गए। प्रतियोगिता में पांचवें नंबर पर आने वाली छात्रा को जान से मारने की धमकी दी गई।
पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप में तीन अहमदिए फांसी के फंदे से झूल चुके हैं। हाल के दिनों में उनकी मस्जिदों में नमाज व अजान की अदायगी पर भी रोक लगा दी गई। पुलिस ने कुछ दिनों पहले चार युवाओं को ईशनिंदा में गिरफ्तार किया था। उनमें से तीन को जमानत पर छोड़ दिया गया पर चौथे की पुलिस कस्टडी में गोली मार कर हत्या कर दी गई। पत्रकार महबूब की रिपोर्ट कहती है कि एक बार एक ही झटके में 13 अहमदियों को मौत के घाट उतार दिया गया।
फैसलाबाद में अहमदिया की एक मस्जिद जला दी गई। हाल के दिनों में 260 अहमदियों को मौत के घाट उतारा गया है। पाकिस्तान के स्वतंत्र लेखक मिर्जा उस्मान अहमद कहते हैं, अहमदियों को लेकर भ्रम फैला जा रहा कि यह यहूदी समर्थक एवं ‘इस्लाम के दुश्मन’ हैं।
अहमदिया समुदाय के निदेशक कमर सुलेमान ऐसी घटनाओं पर चिंता जताते हुए कहते हैं,‘‘संविधान के अनुसार अहमदिया मुसलमान नहीं, जब कि वे कुरान-हदीस सभी मानते हैं। सिर्फ मिर्जा गुलाम अहमद को पैगंबर मानने की उन्हें सजा मिल रही है। देश का दुश्मन बताकर उनके बच्चे गायब किए जा रहे हैं।’’ 42 वर्षीय शाजिया शमून के तीन बेटे एवं भतीजे कुछ दिनों पहले ऐसे गायब किए गए जिनका आज तक पता नहीं चल पाया है। अहमदियाओं के प्रति बढ़ते अत्याचार से संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञ भी चिंतित हैं। ऐसी घटनाआेंं पर रोक लगाने के लिए पाकिस्तान सरकार से ठोस कदम उठाने की सिफारिश भी कर चुके हैं। हयूमन राइट वॉच ग्रुप के एशिया निदेशक ब्रैड एडम्स ने हिंदू, ईसाइयों एवं सिंखों से भी अधिक पीड़ित अहमदियों को बताया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वॉच और द इंटरनेशनल कमिशन आॅफ जूरिस्ट ने भी एक साझा बयान में कहा है, ‘‘पाकिस्तानी प्रशासन को अल्पसंख्यक अहमदियाओं का उत्पीड़न रोकना चाहिए। ये उत्पीड़न अब सीमाओं को भी पार कर गया है।’’
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