#एक्टिविस्ट _गैंग_ बेनकाब: 'एक्टिविस्टों' की फसल में क्यों उग आते हैं देशद्रोही
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#एक्टिविस्ट _गैंग_ बेनकाब: ‘एक्टिविस्टों’ की फसल में क्यों उग आते हैं देशद्रोही

by WEB DESK
Feb 15, 2021, 01:19 pm IST
in तथ्यपत्र
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भारत में एक फसल उगती है ‘एक्टिविस्ट’ की. लेकिन ‘एक्टिविस्ट’ के हर लबादे के अंदर से देश विरोधी, हिंदू विरोधी और अराजकतावादी ही क्यों निकलता है. कौन लगाता है इस फसल को

ये पर्यावरण ‘एक्टिविस्ट’होते हैं, तो देश की हर विकास योजना में रोड़ा लगाते हैं. ये साहित्यिक ‘एक्टिविस्ट’ होते हैं, तो देश के प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचते हैं, या फिर माओवाद की वकालत करते हैं. ये कानूनी ‘एक्टिविस्ट’ होते हैं, तो देश की सर्वोच्च अदालत की मर्यादा भंग करते हैं. ये मानवाधिकार ‘एक्टिविस्ट’ होते हैं, तो हर जगह आतंकवादियों, भारत विरोधियों की ढाल बनकर खड़े हो जाते हैं. कहां से आता है ऐसा बीज, जिसे किसी भी नाम पर बोया जाए, एक्टिविस्टों की फसल देश विरोधी ही उगती है.

नैरेटिव यानी कथानक देखिए कैसे गढ़ा जाता है….

देश के प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचने वाला जेल जाने पर बेचारा 80 साल का बूढ़ा हो जाता है

दिल्ली में दंगे फैलाने में सक्रिय भूमिका निभाने वाली जेल जाते ही बेचारी गर्भवती हो जाती है.

80 करोड़ की संपत्ति वाला कथित किसान नेता चार आंसू बहाते ही बेचारा किसान हो जाता है.

किसान आंदोलन के नाम पर देशभर में हिंसा की ‘टूल किट’ तैयार करने वाली जेल जाते ही 21 साल की बेचारी लड़की हो जाती है.

टुकड़े गैंग जिस तरह के आंदोलन चला रहा है, इसकी चेतावनी संविधान के निर्माता डॉक्टर भीम राव अंबेडकर ने 71 साल पहले ही दे दी थी. उन्होंने 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा की बैठक में ‘ग्रामर ऑफ एनार्की’ (अराजकता का व्याकरण) शीर्षक वाला भाषण दिया था. उन्होंने कहा था कि हमें सामाजिक और आर्थिक उद्देश्य हासिल करने के संवैधानिक तरीकों को मजबूती से थामना होगा. इसका मतलब ये है कि हमें क्रांति के खूनी तरीकों को छोड़ देना चाहिए. हमें सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह की पद्धति छोड़ देनी चाहिए. जब सामाजिक-आर्थिक उद्देश्य को हासिल करने के संवैधानिक तरीकों के लिए कोई रास्ता नहीं बचा था, तब ये असंवैधानिक तरीकों को जायज ठहराने के लिए बड़ा मौका था. उनका कहने का तात्पर्य ये था कि देश लोकतंत्र बन चुका है. हर व्यक्ति के पास मताधिकार है. न्यायपालिका है. उसके पास राहत के तमाम रास्ते हैं. इसी क्रम में उन्होंने आगे कहा कि लेकिन जब संवैधानिक तरीके खुले हैं तो असंवैधानिक तरीकों को जायज नहीं ठहराया जा सकता. असंवैधानिक तरीका कुछ और नहीं बल्कि ये अराजकता का व्याकरण है और इसे जितनी जल्दी छोड़ दिया जाए, उतना ही ये हम सभी के लिए बेहतर होगा. क्या आपको नहीं लगता कि जिस बात की चेतावनी डॉ. अंबेडकर ने 71 साल पहले दी थी, वह हमारे इर्द-गिर्द घट रहा है. क्यों. इसकी पड़ताल में हम आपको ले चलेंगे इन एक्टिविस्टों के राष्ट्र विरोधी मकड़जाल के अंदर.

1. दिशा रवि

पर्यावरण ‘एक्टिविस्ट’, काम देश में अराजकता फैलाना पर्यावरण के नाम पर दुनिया को आंख दिखाने वाली मंदबुद्धि लड़की ग्रेटा थनबर्ग के टूल किट मामले में कथित क्लाइमेट ‘एक्टिविस्ट’ (पर्यावरण कार्यकर्ता) दिशा रवि की कर्नाटक से गिरफ्तारी हुई है. उसके पिता खेल कोच हैं और मां एक गृहणी. खुद दिशा ने एक वेबिनार में कहा था कि उसके माता-पिता नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं, लेकिन मैं नहीं हूं. दिल्ली पुलिस का कहना है कि दिशा रवि ने वॉट्सएप ग्रुप बनाया था और उसके जरिए टूलकिट दस्तावेज एडिट करके वायरल किया. दिशा टूल किट डॉक्यूमेंट का मसौदा तैयार करने वाले षड्यंत्रकारियों के साथ काम कर रही थीं. इसके जरिए इन लोगों ने देश के खिलाफ बड़ी साजिश तैयार की थी. इसमें गणतंत्र दिवस की हिंसा के लिए भड़काने जैसा गंभीर मामला भी है. दिशा रवि बेंगलुरु के एक निजी कॉलेज से बीबीए की पढ़ाई कर चुकी हैं और वह ‘फ्राइडेज फॉर फ्यूचर इंडिया नामक संगठन की संस्थापक सदस्य भी हैं. वह टूलकिट का संपादन करने वालों में से एक हैं और दस्तावेज को बनाने एवं फैलाने के मामले में मुख्य साजिशकर्ता हैं. वह ग्रेटा के सीधे संपर्क में थी. टूल किट जब ग्रेटा की मंद बुद्धि के चलते लीक हो गई, तो उसने ही ग्रेटा से इसे डिलीट करने के लिए कहा था. अब अरविंद केजरीवाल से लेकर इन तमाम बचाव गैंग इस लड़की के 21 साल का होने की दुहाई दे रहा है. उसके गंभीर अपराध को ये गैंग उसकी उम्र के चोले में छिपा देना चाहते हैं. लेकिन उनकी इसी दुहाई से सवाल खड़ा होता है कि महज 21 साल की उम्र में यह लड़की इतने खतरनाक भारत विरोधी मंसूबों तक कैसे पहुंच गई. एक बात और. ये किसान आंदोलन के समर्थन की बात नहीं है. यह उसकी आड़ में खालिस्तानी संगठन के साथ साठ-गांठ करके हिंसा फैलाने और पूरी दुनिया में भारत को बदनाम करने की साजिश का मामला है. इसकी गिरफ्तारी पर रोना धोना मचाने वालों के आप नाम पढ़ेंगे, तो समझ जाएंगे कि ये एक्टिविस्ट कौन तैयार कर रहा है और किसके लिए. केजरीवाल के साथ कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी, पी. चिदंबरम, जयराम रमेश, शशि थरूर, योगेंद्र यादव, तमाम वामपंथी पार्टियां इस लड़की के बचाव के लिए मैदान में उतर पड़ी हैं. 1998 में जन्मी दिशा रवि ने माउंट कार्मेल कॉलेज से स्नातक किया है. मैसूरु में रहने वाले उनके पिता एथलीट कोच हैं, तो वहीं मां गृहणी हैं. दिशा रवि नार्थ बेंगलुरु के सोलादेवना हल्ली इलाके की रहने वाली हैं. दरअसल इस टूलकिट में बताया गया था किसान आंदोलन में सोशल मीडिया पर समर्थन कैसे जुटाए जाए. हैशटैग का इस्तेमाल किस तरह से किया जाए और प्रदर्शन के दौरान क्या किया जाए और क्या नहीं, सब जानकारी इसमें मौजूद थी.

2. मेधा पाटकरः विकास विरोधी कठपुतली

ये मोहतरमा भी पर्यावरण ‘एक्टिविस्ट’ हैं. ये भी हर ‘एक्टिविस्ट’वाले तमाम गुणों की खान हैं. 1954 को मुंबई में पैदा हुई, मेधा पाटकर आदिवासियों के अधिकारों के नाम पर नर्मदा बचाओ आंदोलन चलाती रही. 35 साल तक इन्होंने नर्मदा परियोजना को बंधक रखा. 35 साल तक चले पाटकर के आंदोलन की फंडिंग संदिग्ध है. हर वह परियोजना जो भारत को विकास के मार्ग पर ले जाती हैं, पाटकर उसके खिलाफ हैं. ये जैसे कथित किसान आंदोलन में प्रकट हुईं, ये हर उस प्लेटफार्म पर पाई जाती हैं, जहां पर्दे के पीछे से नक्सली और भारत के टुकड़ों की मंशा पालने वाली ताकतें सक्रिय हों. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेहतर पाटकर को कौन जानता होगा. लगातार सूखे से जूझते रहे गुजरात को नर्मदा के पानी की दरकार थी. सरदार सरोवर योजना ये प्यास बुझा सकती थी, लेकिन उस पर मेधा पाटकर नाम का ग्रहण लगा हुआ था. जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने, तो वह दशकों से लटकी पड़ी सरदार सरोवर योजना को जल्द से जल्द पूरा करना चाहते थे. पाटकर कभी आदिवासियों के साथ अनशन और जल समाधि जैसे नाटक करती, तो कभी अदालतों में याचिकाएं लगाती. लेकिन सरदार सरोवर परियोजना पूरी हुई. इस परियोजना का सबसे ज्यादा लाभ उन आदिवासियों को मिला, जिन्हें भड़काकर पाटकर राजनीति करती रहीं थी. आज आलम ये है कि नर्मदा बचाओ आंदोलन वाले तमाम गांवों में पाटकर घुस तक नहीं सकतीं. पाटकर बेरोजगार ‘एक्टिविस्ट’ हैं. 2014 में आखिरकार उन्होंने अपना ये चोला उतार डाला. वह आम आदमी पार्टी में शामिल हुईं और मुंबई से चुनाव लड़ा. अब आप समझ सकते हैं कि मेधा पाटकर जैसी ‘एक्टिविस्ट’ हों, या आम आदमी पार्टी, इनका जन्म कहां से होता है और किन उद्देश्यों के लिए होता है. और आखिरकार ये एक हो जाते हैं.

3. अरुंधति रायः कलम का नाम, माओवादियों का काम

1961 को शिलांग में अरुंधति राय का जन्म हुआ. मां सीरियाई मुस्लिम, जो केरल में बस गई थी. मां-बाप का अलगाव हुआ. अरुंधति की परवरिश सीरियाई मुस्लिम मां के साथ केरल में हुई. आप समझ सकते हैं कि परवरिश के लिए ये कितना खतरनाक कंबीनेशन (गठजोड़ ) है. अरुंधति असफल किस्म की अभिनेत्री रहीं. नामालूम सी फिल्मों की घटिया कहानी भी लिखी. लेकिन वह अंतरराष्ट्रीय ‘कम्युनिस्ट मंडली’ के लिए शुरू से ‘प्रॉमिसिंग मैटीरियल’ थीं. माओवादियों के साथ शुरू से गलबहियां करती थकी हुई कहानियां लिखने वाली अरुंधति कम से कम अपनी लेखनी के दम पर हस्ती नहीं बन सकती थी. लेकिन वामपंथियों के एजेंडा को पूरा करने वाली सारी खूबियों से वह लैस थीं. मसलन, सशस्त्र क्रांति में अखंड विश्वास, बिखरे बाल, असंतुलित व्यक्तिगत जीवन और तमाम वे खूबियां, जिन्हें यहां लिखा नहीं जा सकता, लेकिन वे वामपंथी कैडर का स्टार होने के लिए निहायत जरूरी हैं. तो एक साहित्यिक रूप से पूर्ण असाहित्यिक किताब पर अरुंधति को बुकर पुरस्कार थमा दिया गया. दुनिया भर में मैग्सेसे से लेकर बुकर के नाम पर ऐसे पुरस्कार चल रहे हैं, जो ग्लोबल कम्युनिस्ट इको-सिस्टम को सींचने वालों को मिलते हैं. भारत की लेखिका को अंग्रेजी में लिखे उपन्यास पर बुकर मिला, तो अरुंधति स्टार बन गई. इसके बाद और इससे पहले कोई साहित्यिक उपलब्धि न उनके पास थी, न हो पाई. हां, बस ये पुरस्कार और इसके दम पर मिली शोहरत से वह माओवादी एजेंडा को पूरा करने में जुट गईं. उन्हें लगा कि बुकर मिल गया है. जो चाहूं बोलूं. नर्मदा आंदोलन के दौरान उन्हें पहला सबक मिला. सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ निहायत अपमानजनक टिप्पणी के कारण एक दिन की सांकेतिक जेल और दो हजार रुपये जुर्माना हो गया. अब मैडम सजायाफ्ता भी हो चुकी थीं. हर कथित गांधीवादी आंदोलन में अरुंधति पहुंचती हैं, लेकिन खुद उनके लफ्जों में- आखिर गांधी एक सुपर स्टार थे. जब वे भूख-हड़ताल करते थे, तो भूख-हड़ताल पर बैठे सुपरस्टार होते थे. लेकिन मैं सुपरस्टार राजनीति में यकीन नहीं करती. माओवादी हिंसा में रमी इस एक्टिविस्ट के कुछ और विचार सुनिए-… ”अहिंसा कारगर नहीं होती. अरुंधति चाहती हैं कि इराक और फिलिस्तीन में जो हो रहा है, भारत में हो. लोग हथियार उठाएं और सरकार से भिड़ जाएं. सेना के बारे में भी महान विचार हैं. उनके मुताबिक आजादी के बाद से सेना का इस्तेमाल जनता के खिलाफ हो रहा है. भारतीय सेना कश्मीर, नागालैंड, मिजोरम और हर कोने में लोगों पर अत्याचार कर रही है.” और हां, बाकी ‘एक्टिविस्ट गैंग’ की तरह ये मोहतरमा भी चाहती थीं कि कश्मीर को आजाद कर दिया जाए. यासीन मलिक के साथ ये हाथों में हाथ डालकर फोटो खिंचवाती हैं. वैसे ही जैसे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह. लेकिन यदि आज कानून के हाथ इन्हें दबोच लें, तो पूरा गैंग साहित्य पर हमले के नाम पर कांव-कांव करने लगेगा.

4.वरवर रावः चोला साहित्य का, इरादा मोदी की हत्या

एक और कवि वेशधारी एक्टिविस्ट है वरवर राव. ये एक्टिविस्ट 81 साल के हैं, मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं. राव नक्सली है. खुद ये इस बात को स्वीकार करते हैं. नक्सली हिंसा की घटनाओं में शामिल रहे हैं. फिलहाल वह अपनी टीम के साथ भीमा कोरेगांव हिंसा में तो सक्रिय थे ही, साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश भी रच रहे थे. इसी आरोप में ये श्रीमान जेल में हैं और इन्हें छुड़वाने के लिए नक्सली-जिहादी-कांग्रेसी लॉबी हर जतन कर चुकी है. इस कथित किसान आंदोलन में भी वरवर राव की रिहाई की मांग को लेकर बैनर लहराए गए. दरअसल एक जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव युद्ध के 200 साल पूरे हो रहे थे. इसी सिलसिले में 31 दिसंबर 2017 को शनिवारवाड़ा में एलगार परिषद की सभा हुई. एलगार का मतलब है, यलगार. यानी आक्रमण, वो भी दूसरे की सीमा में. इसमें हर राष्ट्रद्रोही तत्व था. जिग्नेश मेवाणी, रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला, सोनी सोरी, प्रकाश अंबेडकर, उमर खालिद, बी.जी. खोसले पाटिल. मतलब ‘एक्टिविस्टों’ का मजमा. एक जनवरी को भीमा कोरेगांव में माओवादियों के सौजन्य से हिंसा हुई. कोशिश दलितों और ब्राह्मणों के बीच आग लगाने की थी. जून से अगस्त तक वरवर राव के साथ साजिश में शामिल गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वर्नेन गोंजाल्विज, सुरेंद्र गाडगिल, सुधरी धवले,रोना विल्सन, शोमा सेन और महेश राउत गिरफ्तार हुए. वरवर राव की वकील कौन है, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. ये हैं इंदिरा जयसिंह. ये भी ‘एक्टिविस्ट’ ही हैं. राव ने पूरा जीवन माओवाद के प्रचार में लगाया है.

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