मंच पर विराजमान (मध्य में) स्वामी श्री ज्ञानांनद जी महाराज, डॉ. सुरेंद्र जैन(दाएं से दूसरे) एवं अन्य विशिष्टजन
हरियाणा स्थित गोहाना की त्रिकालदर्शी वाल्मीकि महासभा से श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण निधि समर्पण अभियान का शुभारंभ हुआ। इस दौरान महामंडलेश्वर स्वामी श्री ज्ञानानंद जी महाराज, विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेन्द्र जैन व अभियान के प्रांत प्रमुख श्री राकेश त्यागी उपस्थित थे।
समारोह में पाञ्चजन्य व आर्गेनाइजर के श्रीराममंदिर विशेषांक का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित श्री ज्ञानानंद जी महाराज ने कहा कि भारत की आत्मा में समरसता है। इसी भाव को संजोए यह निधि समर्पण अभियान है। निधि समर्पण अभियान केवल धन संग्रह के लिए नहीं, वरन सम्पूर्ण विश्व को भारत के दर्शन व चिंतन से अवगत कराने का है। यह अभियान गांवों, वनों व नगरों में रहने वाले रामभक्तों तक पुन: पहुंचने का है, जिन्होंने राम मंदिर आन्दोलन के समय प्रत्यक्ष या परोक्ष भूमिका निभाई थी। रामजी का 14 वर्ष का वनवास समरसता के भाव को पुष्ट करने के लिए है। राम सबके हैं, सब राम के हैं।
समारोह में वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ. सुरेन्द्र जैन ने कहा कि भगवान वाल्मीकि व श्रीराम एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों मिलकर पूर्णता के भाव को जाग्रत करते हैं। भगवान राम का सम्पूर्ण जीवन समरसता का साकार रूप है। इसलिए श्रीराम ने केवट व निषादराज को अपना मित्र बनाया। पक्षीराज जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता तुल्य सम्मान दिया। शबरी के झूठे बेर खाकर उन्हें मातातुल्य सम्मान दिया। 14 वर्ष के वनवास में भीलों व वनवासियों के बीच में रहकर उन्हें संगठित करके लंका में भी रामराज्य की स्थापना की। यदि श्री राम को 14 वर्ष का वनवास न होता, यदि वे वनवासियों के बीच न रहे होते तो वह सिर्फ राजाराम ही होते। वनवासियों के साथ रहने के कारण ही भगवान राम बने।
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