थी ख़बर गर्म कि ‘ग़ालिब’ के उड़ेंगे पुर्ज़े / देखने हम भी गए थे प तमाशा न हुआ. मिर्जा ग़ालिब का यह शेर आज पूरी तरह मौंजू है. किसानों की आड़ में आन्दोलन चलाने वाले राकेश टिकैत, वामपंथी एंकर रविश कुमार और राजदीप सरदेसाई को 26 जनवरी को काफी निराशा हाथ लगी. ये सभी दम साधे देख रहे थे कि गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले के प्रांगण में गोली चलेगी और फिर तमाशा होगा मगर तमाशा हो नहीं पाया
तिरंगे के अपमान के बाद राकेश टिकैत के मन की बात जुबान पर आ गई. उन्होंने कहा कि “ तिरंगे की सुरक्षा के लिए पुलिस ने गोली क्यों नहीं चलाई ?” तेज गति से ट्रैक्टर चलाने के कारण एक युवक की मृत्यु हुई तो राजदीप सरदेसाई ने टी. वी चैनल पर घोषणा कर दी कि गोली लगने से किसान की मृत्यु हो गई! कुछ समय बाद ही साफ़ हो गया कि ट्रैक्टर की दुर्घटना के कारण मृत्यु हुई थी. 26 जनवरी को रविश कुमार ने ट्वीट किया कि “एक किसान की मृत्यु हो गई किसी भी पुलिस कर्मी की मृत्यु नहीं हुई. जो अराजक होता है वह मरता है या मारता है. समझने की कोशिश कीजिए.” इतने सब कुछ से यह समझा जा सकता है कि यह सभी लोग खून-खराबे के इन्तजार में बेताब थे.
क्या ये लोग चाह रहे थे कि भीड़ जब रूट तोड़कर कर लाल किले की तरफ जाने की कोशिश करेगी तो पुलिस गोली चलाए और उसके बाद राजनीतिक रोटियां सेंकी जाएं, मगर पुलिस ने गोली नहीं चलाई. पुलिस हाथ जोड़ती रही और घायल होती रही. पुलिस ने धैर्य बनाए रखा. उपद्रव करने वाले लोग सभी हदें पार करके लाल किले की प्राचीर पर चढ़ गए और तिरंगे का अपमान किया. जहां पर तिरंगा फहरता है वहां पर निशान साहिब का झंडा लगा दिया गया. राकेश टिकैत का यह सवाल उठाना कि गोली क्यों नहीं चली ? क्या यह इस बात की तरफ इशारा करता है कि वे गोली चलने का इन्तजार कर रहे थे ? अपने आन्दोलन को शांतिपूर्ण बताने वाले राकेश टिकैत, गोली चलाने का सवाल क्यों पूछ रहे हैं ? लाल किले की प्राचीर पर चढ़कर जिस तरीके से तिरंगे का अपमान हुआ. उसकी सफाई में राकेश टिकैत ने कहा कि “यह सब कुछ पुलिस और प्रशासन की वजह से हुआ. अगर वह चाहते तो तिंरगे का अपमान रोक सकते थे ? इसका मतलब साफ़ है कि राकेश टिकैत खून की होली खेलना चाहते थे. उन्हें पूरा विश्वास था कि पुलिस जैसे ही गोली चलाएगी पूरा मामला पलट जाएगा. दर्जनों वीडियो ऐसे हैं जिसमे साफ़ दिख रहा है कि पुलिस के जवान, आन्दोलनकारियों से हाथ जोड़ रहे हैं. उपद्रव करने वाले पुलिस पर हमला कर रहे हैं. उसके बावजूद उन्हें समझाने का प्रयास किया जा रहा है.
उधर, टी.वी एंकर राजदीप सरदेसाई भी गोली चलने के इन्तजार में बैठे थे. जैसे ही ट्रैक्टर से दबकर एक युवक की मृत्यु हुई. राजदीप सरदेसाई ने घोषणा कर दी कि गोली लगने से किसान की मृत्यु हो गई. किसानों के नाम पर चलाए जा रहे इस आन्दोलन को रक्त-रंजित करने की तैयारी थी. मगर यह षड्यंत्र पूरी तरह फेल हो गया. गणतंत्र दिवस की उस घटना के बाद सभी को लग गया कि आन्दोलन गलत दिशा में जा चुका है. राकेश टिकैत के साथ जो लोग भी थे वो अपने घरों को लौट गए. टिकैत को जब लगा कि वह अकेले पड़ गए हैं तब वे कैमरे के सामने आंसू गिरा कर रोने लगे. बेहतर होता कि अनर्गल आरोप लगाने वाले राकेश टिकैत को तिरंगे के अपमान पर रोना आया होता. मगर उन्हें अपना षड्यन्त्र फेल होने पर रोना आया.
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