मंदिर आंदोलन को बनाया जनांदोलन
श्रीराम जन्मभूमि के लिए चले आंदोलनों की चर्चा तब तक अधूरी रहेगी जब तक उसमें वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के नाम को शामिल नहीं किया जाता है। उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को विस्तार देने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई।
सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा के दौरान रथ पर सवार श्री लालकृष्ण आडवाणी एवं उनका अभिनंदन करते रामभक्त
श्रीराम जन्मभूमि के लिए चले आंदोलनों की चर्चा तब तक अधूरी रहेगी जब तक उसमें वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के नाम को शामिल नहीं किया जाता है। उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को विस्तार देने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। वे ही इस आंदोलन को राजनीति की धुरी में लाए।
उनके नेतृत्व में भाजपा ने इस आंदोलन को धार देने का काम किया। इस कारण केवल पांच वर्ष में ही लोकसभा में भाजपा की सीटें दो से 86 तक पहुंच गई थीं। 1984 में मात्र दो सीटें जीतने वाली भाजपा 1989 के आम चुनाव में 86 सीटें जीतने में सफल हुई थी। उस समय आडवाणी भाजपा के अध्यक्ष थे। भाजपा के समर्थन से ही जनता दल के नेता वीपी सिंह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। आडवाणी ने 1990 में गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अयोध्या के लिए रथयात्रा शुरू की।
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रास्ते में उन्हें सुनने के लिए लाखों लोग आते थे। इससे देश में भाजपा की लोकप्रियता के साथ राम मंदिर आंदोलन की व्यापकता बढ़ रही थी। देखते ही देखते आडवाणी की रथयात्रा गुजरात से बिहार तक पहुंच गई। इसके बाद उनकी यात्रा को राकेने की रणनीति बनी। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री वीपी सिंह और बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव आडवाणी की रथयात्रा से सबसे ज्यादा परेशान हुए। अत: दोनों ने आडवाणी को गिरफ्तार करने करने का विचार किया।
इसके बाद लालू यादव गिरफ्तारी से पूर्व की प्रक्रिया को पूरा कराने में जुट गए और अंतत: आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में 23 अक्तूबर, 1990 को सुबह-सुबह होटल के कमरे से गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार गिर गई। दरअसल, इस गिरफ्तारी के जरिए लालू यादव अपने को घोर सेकुलर घोषित करना चाहते थे। इसमें उन्हें बहुत हद तक सफलता भी मिली। वे मुसलमानों और अन्य सेकुलरों के पसंदीदा नेता हो गए। यही कारण है कि बिहार में उनका लगातार 15 वर्ष तक राज रहा।
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