इस योजना के अंतर्गत अब तक 250 से अधिक बेरोजगारों ने मदद लेकर अपना काम शुरू किया है। ऐसे ही एक युवा हैं संजय मुंडा। ये सेवा भारती से सहायता लेकर रांची के कांके में इन दिनों चाट बेचने का काम कर रहे हैं।
वर्तमान महामारी का सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर हुआ है, जो प्रतिदिन कमाते-खाते हैं। दिहाड़ी मजदूर हों या सड़क के किनारे कुछ बेचकर गुजारा करने वाले, इन लोगों का काम-धंधा बंद हो गया। ऐसे लोगों के जीवन को फिर से पटरी पर लाने के लिए गैर-सरकारी संस्था सेवा भारती ने ‘कल्पतरु स्वावलंबन योजना’ की शुरुआत की है। यह योजना उत्तर प्रदेश, झारखंड आदि राज्यों में चल रही है। इसके अंतर्गत बेरोजगारों को ठेला गाड़ी और जरूरत के अनुसार कुछ पूंजी भी दी जाती है। इस योजना के अंतर्गत अब तक 250 से अधिक बेरोजगारों ने मदद लेकर अपना काम शुरू किया है। ऐसे ही एक युवा हैं संजय मुंडा। ये सेवा भारती से सहायता लेकर रांची के कांके में इन दिनों चाट बेचने का काम कर रहे हैं।
संजय कहते हैं, ‘‘लॉकडाउन से पहले भाड़े पर ठेला गाड़ी लेकर चाट बेचने का काम करते थे। लॉकडाउन के दौरान हालत बहुत ही खराब हो गई। तीन महीने तक कोई काम नहीं करने से जेब में एक पैसा भी नहीं रहा। जब लॉकडाउन में कुछ ढील मिली तो काम करने का मन बनाया, लेकिन पूंजी के बिना काम शुरू नहीं कर पाया। इसी बीच किसी से जानकारी मिली कि सेवा भारती हम जैसे बेरोजगारों को रोजगार दिलाने में मदद कर रही है। एक दिन मैं भी सेवा भारती के कार्यालय में गया और वहां के पदाधिकारियों से बात की। इसके कुछ दिन बाद ही मुझे ठेला गाड़ी मिल गई। अब चाट बेचने का काम करता हूं। रोजाना करीब 400 रु. की कमाई हो जाती है। हालांकि यह कम है, पर परिवार का गुजारा हो जाता है।’’
‘‘एक ठेले की कीमत 13,000 रु. पड़ती है। जिनको भी ठेला दिया जाता है उससे कहा जाता है कि जो भी काम करो, संभव हो तो हर सप्ताह सेवा भारती को 250 रु. वापस करो। लोग वापस भी कर रहे हैं। इसलिए सेवा भारती और जरूरतमंदों को मदद कर पा रही है।’’ राष्ट्रीय सेवा भारती के संयोजक श्री गुरशरण प्रसाद कहते हैं, ‘‘कल्पतरु योजना लोगों के सहयोग से चलाई जा रही है। इसका उद्देश्य है बेरोजगारों को रोजगार दिलाना।’’
ऐसे ही कुर्रा उरांव भी सेवा भारती की सहायता से इन दिनों कुछ कमा पा रहे हैं। ये रांची जिले के रहने वाले हैं और कई वर्ष से रांची में रहकर निजी गाड़ी चलाते थे। लॉकडाउन लगते ही इनका काम बंद हो गया। तीन महीने तक इन्हें भी कोई काम नहीं मिला। उरांव कहते हैं, ‘‘कुछ दिन पहले एक जानकार ने सेवा भारती के बारे में बताया और उन्होंने ही मुझे उसका पता भी दिया। एक हफ्ते के अंदर सेवा भारती से ठेला गाड़ी मिली। अब रांची के फिरायालाल चौक पर चाउमीन बेचकर परिवार पाल रहा हूं।’’
सेवा भारती के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने बताया, ‘‘एक ठेले की कीमत 13,000 रु. पड़ती है। जिनको भी ठेला दिया जाता है उससे कहा जाता है कि जो भी काम करो, संभव हो तो हर सप्ताह सेवा भारती को 250 रु. वापस करो। लोग वापस भी कर रहे हैं। इसलिए सेवा भारती और जरूरतमंदों को मदद कर पा रही है।’’ राष्ट्रीय सेवा भारती के संयोजक श्री गुरशरण प्रसाद कहते हैं, ‘‘कल्पतरु योजना लोगों के सहयोग से चलाई जा रही है। इसका उद्देश्य है बेरोजगारों को रोजगार दिलाना।’’
उम्मीद है कि ‘कल्पतरु स्वावलंबन योजना’ का विस्तार पूरे देश में होगा और हर हाथ को कुछ न कुछ काम मिलेगा।
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