नई दिल्ली में अशोक रोड स्थित चुनाव आयोग के मुख्य दरवाजे के पास बनी अवैध मजार। फुटपाथ पर बनी यह मजार आज नहीं, तो कल वैध हो जाएगी।
वोट बैंक की राजनीति ने वक्फ बोर्ड को इतनी ताकत दे दी है कि अब वह जमीन हथियाने का एक उपकरण बन चुका है। 2013 में सोनिया-मनमोहन सरकार ने वक्फ कानून-1995 में संशोधन कर उसे ऐसे अधिकार दे दिए, जो भारत को इस्लामीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ा रहे हैं। वक्फ बोर्ड अवैध मस्जिदों और मजारों को वैध कर रहा है और किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने से हिचकता नहीं है
यदि आप हिंदू हैं और आपने सड़क के किनारे या किसी अन्य सरकारी जमीन पर कोई मंदिर, आश्रम या मठ बना लिया है, तो वह कभी भी वैध नहीं हो सकता है। और यदि आप मुसलमान हैं और सड़क के किनारे या सरकारी जमीन पर कहीं कोई मस्जिद या मजार बनाकर बैठे हैं, तो वह वैध हो ही जाएगा। यदि कुछ बरसों में नहीं होगा तो 50 वर्ष में तो हो ही जाएगा। ऐसा वक्फ कानून-1995 के कारण हो रहा है। इसलिए कोई मुसलमान कहीं भी अवैध मजार या मस्जिद बना लेता है और एक अर्जी वक्फ बोर्ड में लगा देता है। बाकी काम वक्फ बोर्ड करता है। यही कारण है कि पूरे भारत में अवैध मस्जिदों और मजारों का निर्माण बेरोकटोक हो रहा है। कई मामलों में वक्फ बोर्ड को बेनकाब करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दिग्विजयनाथ तिवारी कहते हैं, ‘‘अवैध मजार और मस्जिदों का निर्माण मजहबी कार्य के लिए नहीं, बल्कि एक षड्यंत्र को सफल करने के लिए हो रहा है और वह षड्यंत्र है अधिक से अधिक जमीन पर कब्जा करना।’’
जमीन कब्जाने का यह खेल 2013 के बाद तो और तेज हो गया है। उल्लेखनीय है कि 2013 में सोनिया-मनमोहन सरकार ने वक्फ बोर्ड को अपार शक्तियां दे दी हैं। सोनिया-मनमोहन सरकार ने वक्फ कानून-1995 में संशोधन कर उसे इतना घातक बना दिया है कि वह किसी भी संपत्ति पर दावा करने लगा है। वक्फ कानून-1995 के अनुसार वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है, चाहे वह अवैध ही क्यों न हो। भले ही इस कानून को संसद ने बनाया हो, पर विधि विशेषज्ञ इसे गलत मानते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. बलराम सिंह कहते हैं, ‘‘वक्फ कानून-1995 संविधान की मूल भावना के विपरीत है। यह असंवैधानिक शक्ति है। ऐसा कानून संसद भी नहीं बना सकती है। यदि बन जाए तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और मुझे पूरा विश्वास है कि न्यायालय उसे निरस्त कर देगा।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘अवैध तो अवैध ही रहेगा। उसे कोई वैध नहीं कर सकता है। जो विधि अवैध कार्य को वैध बनाए, वह कभी भी संवैधानिक नहीं हो सकती।’’
खैर, यह तो कानून की बात हुई, लेकिन यह भी सही है कि वक्फ बोर्ड को तो कानूनन ही कई ऐसे अधिकार मिले हैं, जिनका वह जमकर उपयोग भी कर रहा है। पिछले कुछ बरसों में ही वक्फ बोर्ड ने अनेक स्थानों पर सरकारी या हिंदुओं की जमीन या मकान पर कब्जा कर लिया है। इसलिए वक्फ बोर्ड के विरुद्ध आवाज उठने लगी है। इसी कड़ी में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर हुई है। इसमें वक्फ कानून-1995 के प्रावधानों को चुनौती देते हुए कहा गया है कि ये प्रावधान गैर-मुस्लिमों के साथ भेदभाव करते हैं। इसलिए इन प्रावधानों को खत्म कर देना चाहिए।
समाजसेवी जितेंद्र सिंह और 5 अन्य लोगों ने यह याचिका (951 / 2020) वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन के माध्यम से दायर की है। याचिका में मांग की गई है कि न्यायालय यह बात घोषित करे कि संसद को वक्फ और वक्फ संपत्ति के लिए वक्फ कानून-1995 बनाने का अधिकार नहीं है। संसद सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची के अनुच्छेद 10 और 28 से बाहर जाकर किसी न्यास, न्यास संपत्ति, मजहबी संस्था के लिए कोई कानून नहीं बना सकती।
वक्फ कानून-1995 के अनुसार वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है, चाहे वह अवैध ही क्यों न हो। यही कारण है कि किसी भी अवैध मजार या मस्जिद को वैध बनाने में दिक्कत नहीं होती है। पिछले कुछ बरसों में ही वक्फ बोर्ड ने अनेक स्थानों पर सरकारी या हिंदुओं की जमीन या मकान पर कब्जा कर लिया है। इसलिए वक्फ बोर्ड के विरुद्ध आवाज उठने लगी है।
मुसलमानों की मजहबी संपत्ति (मस्जिद, मजार, कब्रिस्तान आदि) की देखरेख के लिए पहली बार 7 मार्च,1913 को एक कानून बनाया गया। इसके बाद 5 अगस्त,1923 को इसमें कुछ सुधार किया गया। यहां तक तो इनमें ऐसी कोई बात नहीं थी, जिससे किसी को कोई आपत्ति हो। इसके बाद 25 जुलाई, 1930 को इसमें और कुछ प्रावधान जोड़े गए। 7 अक्तूबर, 1937 को भी इसमें कुछ जोड़-घटाव किया गया। 21 मई, 1954 को इसमें और थोड़ा बदलाव किया गया। 1984 में भी इसमें कुछ परिवर्तन किए गए। 22 नवंबर, 1995 को इसे ज्यादा ताकतवर बनाया गया। इसके बाद 20 सितंबर, 2013 को इसमें कुछ संशोधन किए गए और बोर्ड को अपार शक्तियां दे दी गर्इं। इन शक्तियों का इस्तेमाल जमीन कब्जाने के लिए किया जाने लगा है।
वक्फ कानून-1995 के अनुसार वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है, चाहे वह अवैध ही क्यों न हो। यही कारण है कि किसी भी अवैध मजार या मस्जिद को वैध बनाने में दिक्कत नहीं होती है। पिछले कुछ बरसों में ही वक्फ बोर्ड ने अनेक स्थानों पर सरकारी या हिंदुओं की जमीन या मकान पर कब्जा कर लिया है। इसलिए वक्फ बोर्ड के विरुद्ध आवाज उठने लगी है।
याचिका में वक्फ बोर्ड की शक्ति को इस तर्क के साथ चुनौती दी गई है कि वक्फ कानून-1995 के अंतर्गत वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने की असीमित शक्ति दी गई है। इसमें गैर-मुसलमानों को अपनी निजी और धार्मिक संपत्तियों को सरकार या वक्फ बोर्ड द्वारा जारी वक्फ सूची में शामिल होने से बचाने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। यह गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है। वक्फ कानून की धारा-40 वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति के वक्फ संपत्ति होने या नहीं होने की जांच करने का विशेष अधिकार देती है। अगर वक्फ बोर्ड को यह विश्वास होता है कि किसी न्यास या समिति की संपत्ति वक्फ संपत्ति है तो बोर्ड उस न्यास और समिति को कारण बताओ नोटिस जारी कर सकता है कि क्यों न इस संपत्ति को वक्फ संपत्ति मान ली जाए।
यदि वक्फ बोर्ड की संपत्ति पर कोई कब्जा कर लेता है तो बोर्ड उसे वापस लेने के लिए कभी भी कार्रवाई शुरू कर सकता है। उसे समय-सीमा में नहीं बांधा गया है। इस संबंध में याचिकाकर्ता का कहना है कि वक्फ बोर्ड को अपनी संपत्तियों से अवैध कब्जे हटाने का विशेष अधिकार है। उसके लिए कोई समय-सीमा भी नहीं है। यानी वक्फ बोर्ड जब चाहे अपनी संपत्ति को वापस करने की कार्रवाई शुरू कर सकता है। लेकिन ऐसी छूट किसी हिंदू न्यास, मठ, मंदिर, अखाड़ा आदि धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधकों या सेवादारों को नहीं दी गई है।
वक्फ बोर्ड दिल्ली में जमकर बदमाशी कर रहा है। किसी भी जमीन या मकान पर दावा करने लगा है। इसके अनेक उदाहरण हैं। लेकिन एक-दो मामले से ही बोर्ड की बदमाशी का अंदाजा लग जाएगा। महारौली के वार्ड नं. 1 में मनमोहन मलिक नामक एक व्यक्ति का पुराना घर था। करीब दो साल पहले उन्होंने उस घर को तोड़कर नया मकान बनाना शुरू किया। एक दिन मोहम्मद इकराम करके एक कथित मौलाना उनके घर पहुंचा और कहा कि जिस जगह आप मकान बना रहे हैं, वह वक्फ बोर्ड की है। इसके बाद उसने पुलिस को भी बुला लिया और इस तरह वह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय तक पहुंच गया। वह कथित मौलाना अपने दावे के अनुसार अदालत के सामने कोई कागज प्रस्तुत नहीं कर पाया। न्यायालय ने पाया कि मौलाना का दावा झूठा है। इसके लिए न्यायालय ने उस मौलाना पर 10,000 रु. का जुर्माना लगाया और फैसला मनमोहन मलिक के पक्ष में दिया। दूसरा मामला भी महरौली का ही है। यहां के वार्ड नं. 8 में एक भूखंड (891-सी) किन्हीं भार्गव का है, जिसकी कीमत करोड़ों रु. में है। इसका क्षेत्रफल 3,500 गज है। उन्होंने 1987-88 में इस भूखंड को एक मुसलमान से खरीदा था। शायद यह सौदा वक्फ बोर्ड को पसंद नहीं था। इसलिए उसने उस भूखंड के बीच में मौजूद एक पुराने ढांचे को मजहबी स्थल बताना शुरू किया और कई बार जबरन उस पर कब्जा करने का भी प्रयास किया। कुछ समय पहले भूखंड की घेराबंदी की जाने लगी तो दिल्ली वक्फ बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष और आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान ने मुसलमानों की भीड़ के साथ खूब हंगामा किया। अभी यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है। केवल दिल्ली ही नहीं, पूरे भारत में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं।
कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें वक्फ बोर्ड ने किसी जमीन पर इस आधार पर दावा किया है कि यहां मानव हड्डियां मिली हैं, इसलिए यह भूमि उसकी है। बोर्ड का कहना है कि इस्लाम में किसी मृत को दफनाने की परंपरा है और इसलिए जहां भी मानव हड्डियां मिल रही हैं, वह वक्फ संपत्ति है। ऐसे लोगों को मालूम होना चाहिए कि हिंदू संन्यासियों को भूसमाधि दी जाती है। यही नहीं, वनवासी, जो हिंदू ही हैं, भी अपने मृत परिजनों को भूसमाधि देते हैं। मृत छोटे बच्चों को जलाया नहीं, बल्कि दफनाया जाता है। सांप के काटने से मरे लोगों को भी दफनाने की परंपरा रही है।
कुछ लोग वक्फ बोर्ड की बढ़ती संपत्ति को लेकर भी अनेक सवाल उठाते हैं। वक्फ बोर्ड की संपत्ति पर आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय भी टिप्पणी कर चुका है। एपी सज्जादा नसीन बनाम भारत सरकार के मामले में 2009 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘देशभर में वक्फ की करीब 3,00000 संपत्तियां दर्ज हैं, जो लगभग 4,00000 एकड़ जमीन है। इस तरह वक्फ बोर्ड के पास रेलवे और रक्षा विभाग के बाद सबसे अधिक जमीन है।’’
वक्फ बोर्ड पर शोध करने वालों का मानना है कि यदि जल्दी ही वक्फ बोर्ड के अधिकारों को कम नहीं किया गया तो आने वाले कुछ बरसों में भारत के एक बहुत बड़े हिस्से पर वक्फ बोर्ड का कब्जा हो जाएगा। देर से ही सही, पर अब मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया है। उम्मीद है कि सर्वोच्च न्यायालय इस मामले पर जल्दी सुनवाई शुरू करेगा और वक्फ बोर्ड पर अंकुश लगाने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जाएगा।
(20 सितम्बर, 2020 पाञ्चजन्य आवरण स्टोरी से)
Leave a Comment