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गुजरात के गांधी नगर में ‘पाञ्चजन्य’ और ‘आर्गनाइजर’ साप्ताहिकों के विज्ञापन एवं प्रसार प्रतिनिधियों के बीच हुआ विमर्श-मंथन का आयोजन
सुनील राय
गत 31 मार्च और 1 अप्रैल को गुजरात के गांधी नगर में ‘पाञ्चजन्य’ और ‘आर्गनाइजर’ साप्ताहिक के विज्ञापन एवं प्रसार प्रतिनिधियों के बीच विमर्श-मंथन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर एक संगोष्ठी भी हुई जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में गुजरात के राज्यपाल श्री ओम प्रकाश कोहली एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में उप मुख्यमंत्री श्री नितिन भाई पटेल उपस्थित रहे। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए श्री कोहली ने कहा कि हिंदुत्व, स्वदेश और राष्टÑीयता इन दोनों पत्रिकाओं का स्थायी भाव है। यही स्थायी भाव इनकी ताकत है। अटल बिहारी वाजपेयी के संपादकत्व में शुरू हुआ पाञ्चजन्य का शंखनाद अपने शुरुआती दिनों से लेकर अब तक एक ही स्वर और विचार को साधे हुए आगे बढ़ता चला जा रहा है। उससे जुड़े रहे संपादकों की माला बौद्धिक रूप से इतनी समृद्ध रही है कि उसने एक-एक शब्द की महत्ता को समझते हुए सदैव राष्ट्र के स्वर को जीवंत रखा। यकीनन किसी भी पत्रिका को दीर्घजीवी बनाने में उसके संपादक की योग्यता और निष्ठा की बहुत बड़ी ताकत होती है और यह ताकत ‘पाञ्चजन्य’ और ‘आर्गनाइजर’ को अपने शैशवकाल से ही मिली है। उन्होंने कहा कि अमूमन पत्र-पत्रिकाओं में समाचार लिखकर इतिश्री कर दी जाती है लेकिन ये दोनों पत्रिकाएं समाचार के पीछे उस अनछुए और अनदेखे तथ्य को सामने रखती हैं, जो देश-दुनिया की नजरों से ओझल रहते हैं। यही वजह है कि दोनों साप्ताहिक ने 7 दशक की यात्रा तय कर ली है। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि श्री नितिन भाई पटेल ने कहा कि जब इन पत्रिकाओं की शुरुआत हुई, उसी समय देश आजाद हुआ था। ऐसे में चुनौती थी कि देश के लोगों तक राष्ट्रीय विचारों का प्रभाव कैसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए ‘पाञ्चजन्य’ और ‘आर्गनाइजर’ ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई और लोगों तक राष्ट्रीय विचारों को पहुंचाया। इसलिए इन दोनों पत्रिकाओं को अभी बहुत काम करना है। क्योंकि पहले तो सिर्फ प्रिंट मीडिया था, अब इलेक्ट्रानिक मीडिया और सोशल मीडिया है। सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत-सा भ्रम फैलाने की कोशिश की जाती है। ऐसे में ‘पाञ्चजन्य’ और ‘आर्गनाइजर’ की लड़ाई बहुत बड़ी हो गई है।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से उपस्थित ‘पाञ्चजन्य’ के संपादक श्री हितेश शंकर ने कहा कि अंग्रेजों के राज से तो मुक्ति मिल गई थी मगर अंग्रेजी सोच से मुक्ति हासिल करना भी आवश्यक था। ‘पाञ्चजन्य’ ने यह जिम्मा संभाला। जिस तरह भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से ही कंस डर गया था, उसी तरह जब ‘पाञ्चजन्य’ शैशव काल में था तब उस समय की सरकार भी भयग्रस्त हो गई थी और बाद में उस पर प्रतिबन्ध तक लगाया गया। उन्होंने कहा कि आज देश तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारतीय भाव की वृद्धि और भारतीय भाषाओं की शक्ति लगातार बढ़ रही है। गुजरात के लोगों ने ऐसा तंत्र व्यवस्थित किया जिससे उनका अधिकतर काम अपनी गुजराती भाषा में हो रहा है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता में अक्सर निष्पक्ष होने की बात उठती है। क्योंकि सत्य का पक्ष ही पत्रकारिता का पक्ष है। जो सत्य के पक्ष में नहीं खड़ा हो सकता, उसे पत्रकार कहलाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। सत्य का पक्ष, इस देश का पक्ष है, मानवता का पक्ष है। हमने यह तय किया है कि बात भारत की करेंगे और ताल ठोक कर करेंगे।
इस अवसर पर ‘आर्गनाइजर’ के सम्पादक श्री प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि ‘आर्गनाइजर’ ने देश के लिए कई लड़ाइयां लड़ीं। चाहे राम मंदिर का आन्दोलन हो या केरल में स्वयंसेवकों की हत्या का मामला, इन सभी मामलों में उसने जनता के सामने सत्य का पक्ष रखा है। इस अवसर पर प्रमुख रूप से उपस्थित भारत प्रकाशन के प्रबंध निदेशक श्री आलोक कुमार ने कहा कि ‘पाञ्चजन्य’ साप्ताहिक पत्र-पत्रिकाओं की श्रेणी में सबसे बड़ी प्रसार संख्या वाली पत्रिकाओं में शमिल है। धार्मिक पत्रिकाओं को छोड़ दें तो ‘पाञ्चजन्य’ व ‘आॅर्गनाइजर’ जैसा आदर रखने वाला पाठक वर्ग किसी के पास नहीं है। हमने दोनों साप्ताहिकों के विस्तार का लक्ष्य लिया है। इसलिए इस यात्रा को हम और आगे ले जाएंगे। बैठक के बाद 2 और 3 अप्रैल को सभी प्रतिनिधि सोमनाथ और द्वारिका भ्रमण के लिए गए।
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