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पार्टी की 38 वर्ष की यात्रा कई कठिन दौर से गुजरी। 1951 जनसंघ की स्थापना के बाद से अब तक की यात्रा में भारतीय जनता पार्टी ने न केवल देशवासियों में राष्ट्रभाव का जागरण किया, बल्कि पूरे विश्व में राष्ट्र का गौरव भी बढ़ाया है
रामलाल
21 अक्तूबर, 1951 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में 11 सदस्यों के साथ जनसंघ की स्थापना हुई। तब से लेकर अब तक की यात्रा जनसंघ, जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के रूप में चली और बढ़ी है। आज भाजपा भारत की संगठनात्मक व चुनावी राजनीति में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। आज सबसे अधिक सांसद, विधायक, मुख्यमंत्री, जिला पंचायत अध्यक्ष, मेयर भाजपा के हैं। केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार है और अमित शाह की अध्यक्षता में सबसे अधिक सदस्यता भी भाजपा की है।
लेकिन यहां तक की यात्रा सहज नहीं रही। कई उतार-चढ़ाव आए। पार्टी के दो राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी औरा पं. दीनदयाल उपाध्याय का बलिदान हुआ, राष्टÑीय आंदलनों में कई कार्यकर्ता शहीद हुए, जेल गए। हार-जीत के भी अवसर आए। 1951 से लगातार बढ़त बनाते हुए 1984 में मात्र दो सांसदों के बावजूद नेतृत्व और कार्यकर्ताओं ने हिम्मत नहीं हारी। सबने मिलकर पार्टी को आगे बढ़ाया और मौजूदा स्थिति तक लेकर आए। 1951 से 1975 तक के कालखंड में जितने भी आंदोलन हुए, उनमें अधिकांश जनसंघ ने ही किए। जम्मू-कश्मीर में प्रवेश, गोवा मुक्ति, कच्छ का आंदोलन, बेरूवाड़ी आंदोलन और शिमला समझौता के विरुद्ध आंदोलन इसके उदाहरण हैं। इन आंदोलनों से पार्टी की राष्ट्रवादी छवि बनी और करोड़ों राष्ट्रवादी मन रखने वालों को लगा कि कोई राजनीतिक दल तो है जो हमारी बात कह रहा है। 1975 में आपातकाल लगने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी सहित कई प्रमुख नेता और हजारों कार्यकर्ता गिरफ्तार कर लिए गए। कई कार्यकर्ताओं ने सत्याग्रह करके खुद को गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत किया। उन्हें और उनके परिवारों को कई तरह की यातनाओं से गुजरना पड़ा। कई कार्यकर्ताओं की जेल में ही मृत्यु हो गई। लोकतंत्र की रक्षा की इस लड़ाई को रा.स्व.संघ और अन्य विपक्षी दलों ने मिलकर लड़ा। आपातकाल के बाद चुनाव में विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई। उस समय बड़ा दल होने के बावजूद जनसंघ ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए जनता पार्टी में अपना विलय स्वीकार किया। तानाशाही को समाप्त कर लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह प्रयास सफल रहा और मार्च 1977 में जनता पार्टी की प्रचंड बहुमत की सरकार बनी। दुर्भाग्य से यह प्रयोग लंबा नहीं चल पाया। दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर जनसंघ के सभी नेता जनता पार्टी से अलग हो गए। 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की स्थापना हुई और मुंबई में उन्होंने घोषणा की ‘अंधेरा छंटेगा-सूरज निकलेगा-कमल खिलेगा।’
इसी बीच, पूज्य संतों के नेतृत्व में राम जन्मभूमि आंदोलन शुरू हुआ। भारत की राजनीति में छद्म पंथनिरपेक्षता के चेहरे को उजगर करने व राष्ट्रीय मान बिंदुओं के प्रति आस्था का निर्माण करने के लिए लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथयात्रा शुरू की। इससे न केवल प्रबल जन जागरण हुआ, बल्कि राजनीति की दिशा भी बदली। इसका नतीजा आगे के चुनाव परिणामों में दिखा। 1989 से आज तक (2009 छोड़कर) भाजपा के सांसदों की संख्या में निरंतर वृद्घि हुई। 1989 के बाद कई प्रदेशों में भाजपा की सरकार बनी और केंद्र में पहले 13 दिन, फिर 13 माह और बाद में पूरे पांच वर्ष की सरकार बनी। डॉ. मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में कन्याकुमारी से श्रीनगर के लाल चौक तक एकता यात्रा राष्टÑभाव के जागरण का अनूठा प्रयास था। पूरा भारत तिरंगा हाथ में लेकर राष्टÑगौरव के भाव के साथ खड़ा हो गया। पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद तो भारत ही नहीं, पूरे विश्व में राष्टÑगौरव का भाव हिलोरें लेने लगा। कई बड़े देशों की आर्थिक पाबंदियों के आगे भी अटल बिहारी वाजपेयी नहीं झुके। कारगिल युद्ध के बाद सरकार ने जिस सम्मान के साथ शहीद सैनिकों के पार्थिव शरीर को उनके घरों तक पहुंचाया उससे भारतीय सेना के शौर्य-पराक्रम के प्रति पूरा देश नत-मस्तक हो गया।
एनडीए-1 के शासनकाल में राजनीति में पारदर्शिता और गुणवत्ता लाने के कई सुधारात्मक उपाय हुए। इनमें राज्यसभा चुनाव में खुला मतदान, सरकार में मंत्रिमंडल की संख्या 15 प्रतिशत करना जैसे कदम शामिल थे। हवाई, रेल, सड़क और मोबाइल से देश को जोड़ने के प्रयास हुए। हालांकि इसके बावजूद 2004 में पार्टी की जीत हासिल नहीं हो सकी। पार्टी ने 2004 से 2014 तक पूरे देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध लंबा संघर्ष किया। इसी दौरान गुजरात सुशासन व विकास की दृष्टि से मॉडल प्रदेश बना तथा गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी की छवि राष्टÑीय स्तर पर उभरी। उनकी अगुवाई में देश की जनता ने स्वच्छ और पारदर्शिता के प्रतीक के रूप में भाजपा को चुना और 30 वर्ष बाद केंद्र में किसी एक दल की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। इन चार वर्षों में संगठन का चहुंमुखी विस्तार हुआ। केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों ने गरीबों को केंद्र में रखकर काम किया। गांव, कस्बा और शहर सहित समाज के सभी वर्गों के लिए योजनाएं बनाई गर्इं। स्मार्ट सिटी योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, फसल बीमा और किसानों को लागत मूल्य का 15 गुना दाम, देश के 10 करोड़ गरीब परिवारों को आयुष्मान योजना के तहत 5 लाख के वार्षिक स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाने सहित कई योजनाएं लाई गर्इं। अगले कुछ वर्षों में देश के सभी गांवों व सभी घरों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य है। इसी तरह स्वच्छता जन अभियान बन गया है और घरों में शौचालय निर्माण तथा गैस चूल्हा पहुंचाने का कार्य तेजी से चल रहा है। आम आदमी के जीवन में खुशहाली लाने के साथ इकट्ठे 100 उपग्रह छोड़ने की उपलब्धि भी इस सरकार के खाते में है। लोगों में यह विश्वास बन रहा है कि देश भ्रष्टाचार से मुक्त होकर सुशासन के साथ विकास के रास्ते पर चल रहा है और सरकार राष्टÑ की रक्षा के प्रति संकल्पित होकर दुनिया में भारत का सम्मान बढ़ाने में भी सफल हो रही है। राजनीतिक दल 2,000 रुपये से अधिक नकद चंदा नहीं ले सकते, यह फैसला स्वच्छ राजनीति की ओर एक कदम है। सरकार ने लोकलुभावन की बजाय नोटबंदी और जीएसटी जैसे कड़े फैसले लिए तथा सेना को सर्जिकल स्ट्राइक की अनुमति देकर देश का मनोबल उठाने का काम किया है। इसी का परिणाम है पार्टी बढ़ रही है तथा चुनावी राजनीति में भी निरंतर अच्छी सफलता मिल रही है। त्रिपुरा की जीत तो ऐतिहासिक है, जहां शून्य से बढ़कर तीन चौथाई बहुमत की सरकार बनी है। कई राज्यों में पार्टी को करीब 50 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिलना भी महत्वपूर्ण है। यह विजय अभियान निरंतर चलता रहे, यही प्रयास सबका है।
( लेखक भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री हैं)
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