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द हिंदू अमेरिका फाउंडेशन’ की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में, जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं, वहां उन्हें हिंसा, सामाजिक उत्पीड़न और हाशिए पर डाल दिए जाने के हालात का सामना करना पड़ रहा है
लोकेन्द्र सिंह
पाकिस्तान जब बनाया गया था तो कहा गया था कि हिंदू और मुसलमान एक नहीं, दो अलग मुल्कों में ही रह सकते हैं। किंतु, भारत में मुसलमान न केवल सुख से हैं, बल्कि तरक्की भी कर रहे हैं। उनकी आबादी भी बड़ी है। भारत में उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता है। वे अपने हक के लिए आवाज भी बुलंद कर लेते हैं। पर पाकिस्तान में स्थिति ठीक उलट है। इस्लाम के नाम पर बने ‘पाकिस्तान’ में गैर-मुस्लिमों के लिए कोई सम्मान एवं स्थान नहीं है। विभाजन के बाद से वहां हिंदुओं की जनसंख्या बढ़ने की बजाय लगातार कम होती गई है। अपने अधिकारों की बात करना तो दूर, हिंदू वहां अपने अस्तित्व के लिए ही संघर्ष कर रहे हंै। उनके सामने तीन ही विकल्प हैं- एक, पाकिस्तान में रहना है तो अपना धर्म छोड़ कर इस्लाम कबूलो। दो, मुस्लिम नहीं बने तब जबरन कन्वर्जन के लिए तैयार रहो या मरो। तीन, अपने स्वाभिमान को बचाना है तो पाकिस्तान छोड़ दो।
पाकिस्तान से किसी तरह आए डरे-सहमे हिंदू भारत में समाज और सरकार की बेरुखी से वापस जाने को मजबूर हुए। मामला राजस्थान से निष्कासित किए गए लगभग 500 हिंदुओं का है। ये लोग पाकिस्तान के सिंध प्रांत से अपना धर्म और स्वाभिमान बचाकर हिंदुस्थान आए थे। उन्होंने राजस्थान में शरण ली। किंतु, वीजा की अवधि नहीं बढ़ाए जाने के कारण उन्हें वापस पाकिस्तान भेज दिया गया। जब ये लोग पाकिस्तान पहुंचे तो वहां उनके कन्वर्जन की पूरी तैयारी थी। एक बड़े कार्यक्रम में कलमा पढ़वा कर उन्हें इस्लाम में कन्वर्ट कर दिया गया। कन्वर्जन का यह कार्यक्रम पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की पार्टी आॅल पाकिस्तान मुस्लिम लीग ने आयोजित कराया था। कई दिन से इस कन्वर्जन के जलसे की सूचना पर्चों के माध्यम से दी जा रही थी। एसएमएस और व्हाट्सएप पर भी इस आयोजन की जानकारी प्रसारित की गईं। इसलिए यह जानकार आश्चर्य होता है कि बड़े पैमाने पर कराए जाने वाले इस कन्वर्जन को रोकने के लिए कोई आगे नहीं आया। न पाकिस्तान की सरकार ने हस्तक्षेप किया और न ही मानवाधिकारों के लिए कार्य करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने कोई आपत्ति दर्ज कराई।
इस पूरे घटनाक्रम से कुछ प्रश्न खड़े होते हैं। भारत के मीडिया को सीरिया और म्यांमार से विस्थापित मुसलमानों के मानवाधिकारों की चिंता तो है, किंतु पाकिस्तान या बांग्लादेश से आने वाले हिंदुओं की चिंता क्यों नहीं है? हिंदुओं के मानवाधिकार पर न मीडिया ने बहस कराई और न ही कथित बुद्धिजीवियों ने लेख लिखे। हिंदुओं की दुर्दशा पर उनकी आंखों से संवेदना के दो आंसू भी नहीं निकले। दूसरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि देश और राज्य में भाजपानीत सरकार होने के बाद भी पाकिस्तान से आए हिंदुओं को वापस नरक में जाने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा? उनके वीजा की अवधि क्यों नहीं बढ़ाई जा सकी? पाकिस्तान से आने वाले हिंदू भारत में एक विश्वास लेकर आते हैं। वे किसी भी सूरत में वापस लौटने के लिए नहीं आते। जब हमने दिल्ली में रह रहे ऐसे ही कुछ परिवारों से जब हमने बात की तो उनका कहना था कि वे यहां रहकर कुछ भी कर लेंगे, लेकिन वापस पाकिस्तान नहीं जाएंगे। वहां के लोग उन्हें कुछ नहीं मानते। वे हमें अपने धर्म के अनुसार न तो पूजा-पाठ करने देते हैं और न ही जीने देते हैं।
इसलिए होते हैं कन्वर्ट
पाकिस्तान में गैर-मुस्लिमों को कट्टरपंथी मुस्लिम निशाना बनाते हैं। उन पर अत्याचार करते हैं। उनके निशाने पर विशेषकर हिंदू समुदाय रहता है। नौजवान ही नहीं, अपितु शादीशुदा मुस्लिम भी हिंदू लड़कियों को अगवा कर उनके साथ दुष्कर्म करते हैं और उनसे जबरन निकाह कर लेते हैं।
हिंदुओं के उत्पीड़न के संबंध में पिछले वर्ष सर्वोच्च हिंदू अमेरिकी संस्था ‘द हिंदू अमेरिका फाउंडेशन’ की रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में, जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं, वहां उन्हें हिंसा, सामाजिक उत्पीड़न और अलग-थलग किए जाने के हालात का सामना करना पड़ रहा है। हिंदू अल्पसंख्यक विभिन्न स्तरों के वैधानिक और संस्थागत भेदभाव, धार्मिक स्वतंत्रता पर पाबंदी, सामाजिक पूर्वाग्रह, हिंसा, आर्थिक और सियासी रूप से हाशिये वाली स्थिति का सामना करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदू महिलायें खासतौर पर इसकी चपेट में आती हैं और बांग्लादेश तथा पाकिस्तान जैसे देशों में अपहरण और जबरन कन्वर्जन जैसे अपराधों का सामना करती हैं।
सरकार के सराहनीय प्रयास
भाजपानीत केंद्र सरकार ने वर्ष 2016 में पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदुओं को भारत की नागरिकता देने के लिए नागरिकता कानून-1955 में आवश्यक संशोधन किया था। उसी वर्ष दिल्ली के मजनू का टीला नामक स्थान पर रह रहे हिंदुओं को वापस भेजा जा रहा था, तब सरकार के हस्तक्षेप से उस प्रक्रिया को टाला गया। इसी तरह अभी 25 मार्च को पाकिस्तान में कन्वर्ट किए गए 500 हिंदुओं को पहले भारत से वापस भेजने पर राजस्थान उच्च न्यायालय ने स्थगनादेश दिया था। किंतु, जब तक आदेश आया, तब तक उन लोगों की ट्रेन पाकिस्तान पहुंच चुकी थी। पाकिस्तान से भारत आने वाले हिंदुओं के प्रति सरकार के नजरिए के संबंध में विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री चंपत राय ने बताया कि वर्तमान सरकार ऐसे हिंदुओं की यथासंभव चिंता कर रही है। इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी उठाए गए हैं।
विभाजन के समय पाकिस्तान में हिंदुओं की जनसंख्या लगभग 15 प्रतिशत थी, जो वर्तमान में 2 प्रतिशत से भी कम रह गई है। हिंदू जनसंख्या ही नहीं, बल्कि वहां हिंदुओं के पूजा स्थल तोड़ दिए गए हैं या उन पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया है। ऐसे हालात में पाकिस्तान की ही नहीं अन्य देशों में रहने वाले हिंदुओं के हितों की चिंता करना भारत सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। ऐसी व्यवस्था बननी चाहिए कि दुनिया के तमाम देशों में बसे हिंदुओं को भारत अपना सहज-स्वाभाविक वतन लगे।
भारत में ही नहीं, सब जगह यह चर्चा है कि पाकिस्तान में गैर-मुस्लिमों विशेषकर हिंदुओं का उत्पीड़न होता है।
—चंपत राय, अंतरराष्ट्रीय महामंत्री, विश्व हिंदू परिषद
कन्वर्जन जलसे हिंदुओं की लाचारी हैं। अपनी बेटियों को अगवा होने और सामूहिक दुष्कर्म से बचाने के लिए उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है।
—असद चांडियो, संपादक, अवामी आवाज
(असद आजकर अमेरिका में रह रहे हैं। हिंदुओं के पक्ष में लिखने के कारण उन्हें सिंध से भागना पड़ा था)
कोई अपनी मर्जी से कन्वर्ट नहीं हुआ है। मुस्लिम हिंदू लड़कियों का अपहरण करके उनसे दुष्कर्म करते हैं और जबरन कबूलवाते हैं कि कन्वर्जन उनकी मर्जी से हुआ।
—डॉ. रमेश वाकनवानी
संरक्षक, पाकिस्तानी हिंदू परिषद
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