|
बांग्लादेश की सीमा से पश्चिम बंगाल के सीमांत जिलों में रोहिंग्याओं की घुसपैठ राज्य में एक बड़े संकट के रूप में उभर रही है। सरकार से लेकर प्रशासन और इस्लामिक संगठन तक इन घुसपैठियों को बसाने के लिए कर रहे हर संभव मदद
पाञ्चजन्य ब्यूरो
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सितंबर, 2017 में एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने लिखा,‘‘ हम रोहिंग्याओं की मदद के लिए संयुक्त राष्ट्र की अपील का समर्थन करते हैं। हम मानते हैं कि सभी सामान्य व्यक्ति आतंकवादी नहीं हैं। हम वास्तव में चिंतित हैं।’’ ममता बनर्जी का यह ट्वीट न केवल उनकी मंशा को जाहिर कर रहा था बल्कि प्रशासन को एक संदेश था कि राज्य में घुसपैठ कर आ रहे रोहिग्या मुसलमानों को बेरोकटोक आने दिया जाए। इसका असर यह हुआ कि प्रशासन की ढील के चलते राज्य के दक्षिण 24 परगना जिले में ढेरों रोहिंग्या मुसलमान अवैध रूप से रह रहे हैं लेकिन प्रशासन सब देखकर भी इसे अनदेखा कर रहा है। रोहिंग्या मुसलमानों को राज्य में अकेले तृणमूल सरकार ही नहीं बसा रही बल्कि कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ इंडिया (मार्क्सवादी) (सीपीआईएम) इनके लिए जमीन पर कार्य कर रही है। सूत्र बताते हैं कि स्थानीय राजनैतिक कार्यकर्ताओं ने ही बांग्लादेशी घुसपैठियों को पश्चिम बंगाल की सीमा के माध्यम से भारत में आने की तरकीबें सुझार्इं और उन्हें प्रवेश दिलाया। अंदरखाने से आती खबरों पर यकीन करें तो सीपीआईएम का तंत्र अपने वोट बैंक को राज्य में मजबूत करने के लिए इन घुसपैठियों को एक वर्ष की अवधि के भीतर मतदाता पहचान पत्र सहित अन्य जरूरी सरकारी कागजात दिलवाने का बंदोबस्त कर रहा है। इसी बीच कुछ समय पहले एक बांग्लादेशी युवा शकील अहमद के पास से नादिया जिले के करीमगंज के पते का 2007 के वर्ष का मतदाता पहचान पत्र बरामद किया गया। दरअसल करीम नादिया, मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों में जमात-उल-मुजाहिद्दीन बांग्लादेश संगठन के ‘स्लीपर सेल’ का सदस्य था। उसने नादिया जिले की ही रूमी नाम की एक लड़की से शादी कर ली जिसके बाद दोनों संयुक्त रूप से जिहादी गतिविधियों को अंजाम देने लगे। लेकिन 2 अक्तूबर, 2018 को शकील बर्द्धमान जिले में आईईडी निर्माण करते समय हुए विस्फोट में मारा गया। इसी व्यक्ति की खगरागढ़ से कलियाचक एवं राज्य में हुए अन्य आतंकी गतिविधियों के अलावा बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ में भागीदारी रही।
जिस तरह से राज्य सरकार रोहिंग्याओं के समर्थन में आई है, उसके बाद से मुसलमानों के हमदर्द कई अतिवादी संगठन सक्रिय रूप से जुड़कर इस काम को अंजाम देने लगे हैं। ऐसे ही अनेक संगठन आॅल बंगाल माइनॉरिटी यूथ फेडरेशन, बांग्ला इमाम परिषद, विश्व मानव कल्याण इस्लामिक ट्रस्ट, बंदी मुक्ति समिति एक साथ काम कर रहे हैं। आॅल बंगाल माइनॉरिटी यूथ फेडरेशन से जुड़े लोगों ने दक्षिण 24 परगना जिले में देश बचाओ सामाजिक समिति की स्थापना की। एक पार्टी के नेता हुसैन गाजी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। सभी मिलकर कट्टरपंथी तत्वों को सहयोग दे रहे हैं और रोहिंग्याओं को राज्य में ज्यादा से ज्यादा बसाया जा सके, इसके लिए मिलकर काम कर रहे हैं।
सीमा पार से हो रही घुसपैठ
हाल ही में दक्षिण 24 परगना जिले के बारुइपुर पुलिस थाने के कुलारी-घुटियरी शरीफ इलाके में 100 से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों की अवाजाही देखी गई। इनमें से अधिकतर म्यांमार के रखाइन प्रांत के मोंगडो जिले के सेगंबर गांव के हैं। ये सभी पहले बांग्लादेश आए थे, जहां से वे राज्य में दाखिल हुए। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार सीमा पर एक मजबूत रैकेट काम कर रहा है जिसका काम है घुसपैठ कराना। वे नियमित रूप से बीडीआर और सीमा पार करने वाले एजेंटों को साधते हैं जिसके बाद उनका काम बड़ा ही आसान हो जाता हे। फिर इसी रैकेट के सदस्य इन लोगों को टुकड़ों में दिल्ली भेजते हैं, जहां 2-3 दिन इनके ठहरने की व्यवस्था की जाती है। दिल्ली में वे संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त से शरणार्थी प्रमाण पत्र हासिल करते हैं। फिर उन्हें पश्चिम बंगाल के अलग-अलग मुस्लिमबहुल इलाकों में बसाया जाता है। रोहिंग्याओं के रहने के लिए उनके हमदर्द संगठनों ने कई जिलों में बाकायदा दो कमरे के टीननुमा घर भी तैयार किए हैं। इन घुसपैठियों को बसाने में आर्थिक रूप से कोई कमी न हो, इसके लिए अतिवादी संगठन राज्य के हरेक जिले में जलसे का आयोजन कर रहे हैं। जहां से इनके नाम पर मोटा पैसा एकत्र किया जा रहा है। गौरतलब बात यह है कि इन जलसों के आमंत्रण पत्रों में तृणमूल नेताओं और स्थानीय प्रशासन का नाम होता है। इस सबसे समझा जा सकता है कि राज्य में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने के लिए राज्य सरकार से लेकर, स्थानीय प्रशासन और पार्टी सभी कानून को धता बताकर खुलेआम घुसपैठियों को संरक्षण दे रहे हैं।
उठते सवाल
यह सच है कि केन्द्र की राजग सरकार ने घुसपैठ कर भारत आ रहे रोहिंग्याओं को ‘राष्ट्रीय खतरे’ से जोड़कर संदेश दिया था कि भारत ऐसे घुसपैठियों को अपने यहां किसी भी कीमत पर शरण नहीं देगा। केंन्द्र सरकार के स्पष्ट रवैये के बावजूद ‘यूनाइटेड नेशंस हाई कमिशनर फॉर रिफ्यूजी’ (यूएनएचसीआर) लगातार रोहिंग्याओं को शरणार्थी कार्ड जारी कर रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शरणार्थी कार्ड उन्हें भारत में कानूनी तौर पर रहने की अनुमति देता है? इस संबंध में 11 जनवरी, 2018 को दक्षिण 24 परगना जिले के पुलिस अधीक्षक अरिजित सिन्हा ने यूएनएचसीआर को इस बारे में स्पष्ट करने का अनुरोध किया था। लेकिन नई दिल्ली स्थित यूएनएचसीआर कार्यालय से कोई जवाब नहीं दिया गया। लेकिन यह कार्यालय हर सप्ताह रोहिंग्या शरणार्थियों की एक सूची जारी कर देता है। ऐसे में चिंता की बात यह है कि बड़ी संख्या में घुसपैठिये शरणार्थी कार्ड लेकर कश्मीर, हैदराबाद और पश्चिम बंगाल में बस रहे हैं। लेकिन इसके बीच वे कौन लोग और संगठन हैं जो बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में बैठकर पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों को बसाने के लिए हर संभव सहायता उपलब्ध करा रहे हैं।
बहरहाल, राज्य में रोहिंग्याओं की घुसपैठ एक बड़े संकट की ओर इशारा करती है। लेकिन वोट की फसल काटने में व्यस्त नेता और पार्टी इस संकट से अनजान हैं और उन्हें बसाने के लिए हर संभव मदद दे रहे हैं। ऐसे में केंद्र सरकार से ही आशा है कि वह इस पर कोई समय रहते ठोस कदम उठाएगी और घुसपैठियों को राज्य और देश से निकाल बाहर करेगी।
टिप्पणियाँ