श्रद्धाञ्जलि/स्टीफन हॉकिंग - ब्रह्मांड का अनूठा ज्ञाता
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श्रद्धाञ्जलि/स्टीफन हॉकिंग – ब्रह्मांड का अनूठा ज्ञाता

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Mar 19, 2018, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 19 Mar 2018 12:45:15

महान वैज्ञानिक और ब्रह्मांडवेत्ता स्टीफन हॉकिंग नहीं रहे। 8 जनवरी, 1942 को इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड में जन्मे हॉकिंग 1963 में मोटर न्यूरॉन नामक बीमारी के शिकार हुए। बीमारी के कारण दिमाग को छोड़कर उनके शरीर के बाकी अंगों ने काम करना बंद कर दिया तो डॉक्टरों ने कहा कि वे केवल दो साल ही जीवित रहेंगे। लेकिन शारीरिक अक्षमताओं के बावजूद उन्होंने साबित किया कि इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। अपनी असाधारण जिजीविषा के लिए विख्यात हॉकिंग ने न केवल कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी की, बल्कि अपने शोधों की बदौलत अल्बर्ट आइन्स्टिन के बाद दुनिया के महानतम भौतिक विज्ञानी कहलाए।
अपनी खोज के बारे में हॉकिंग ने कहा था, ''मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मैंने ब्रह्मांड को समझने में भूमिका निभाई। लोगों के समक्ष इसके रहस्य खोले और इस पर शोध कर अपना योगदान दिया। जब लोग मेरे काम के बारे में जानना चाहते हैं, तो मुझे गर्व होता है।'' 59 की उम्र में 2001 में वे 16 दिन के लिए भारत आए थे और दिल्ली-मुंबई में कई व्याख्यान दिए थे। तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन से अपनी मुलाकात के दौरान हॉकिंग ने भारतीयों की तारीफ करते हुए कहा था, ''भौतिकी और गणित में भारतीय काफी अच्छे हैं।''
1974 में हॉकिंग 'ब्लैक होल' का सिद्धांत लेकर आए, जिसे बाद में हॉकिंग रेडिएशन के नाम से जाना गया। उन्होंने बिग बैंग थ्योरी, सापेक्षता (रिलेटिविटी) और ब्लैक होल को समझाने में अहम भूमिका निभाई। इस ब्रिटिश वैज्ञानिक ने विज्ञान से जुड़ी कई किताबें लिखीं, लेकिन 1988 में पहली किताब 'अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम: फ्रॉम बिग बैंग टू ब्लैक होल्स' से वे चर्चा में आए। यह दुनियाभर में विज्ञान से जुड़ी सर्वाधिक बिकने वाली किताब है।
1959 में 17 वर्ष की उम्र में प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई के लिए हॉकिंग ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय गए। वे गणित पढ़ना चाहते थे, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वे मेडिकल की पढ़ाई करें। जब वे गणित नहीं पढ़ सके तो उन्होंने भौतिकी को चुना। लेकिन कॉलेज में उनका अधिकांश समय खेलने में ही बीता। वे बहुत कम पढ़ते थे। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि तीन साल में उन्होंने महज 1,000 घंटे की पढ़ाई की। यानी रोजाना लगभग एक घंटा। इसके बावजूद उनकी गिनती मेधावी छात्रों में होती थी। जब उन्होंने अपनी आखिरी थीसिस जमा किया तो उन्हें प्रथम श्रेणी ऑनर्स और द्वितीय श्रेणी ऑनर्स के बीच रखा गया। पता चला कि दोनों में से कोई एक डिग्री पाने के लिए उन्हें मौखिक परीक्षा देनी होगी, तब उन्होंने परीक्षकों से कहा, ''अगर आपने मुझे प्रथम श्रेणी ऑनर्स दिया तो कैम्ब्रिज पढ़ने जाऊंगा और द्वितीय श्रेणी ऑनर्स दिया तो ऑक्सफोर्ड में ही रहूंगा। उम्मीद करता हूं कि आप मुझे प्रथम श्रेणी ही देंगे।'' उन्हें प्रथम श्रेणी की डिग्री मिली और कॉस्मोलॉजी में परास्नातक की पढ़ाई के लिए 1962 में उन्होंने कैम्ब्रिज में दाखिला ले लिया। 1968 में कॉस्मोलॉजी में पीएच.डी के बाद हॉकिंग कैम्ब्रिज में ही ब्रह्मांड से जुड़े मूल सवालों की खोज में जुट गए। एक दशक बाद कॉस्मोलॉजी और थ्योरेटिकल फिजिक्स पर उनकी खास रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिससे वे दुनियाभर में विख्यात हुए।
अपने इलाज के दिनों को याद करते हुए हॉकिंग ने कहा था, ''जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाई क्यों न हो, हमेशा कुछ करते हुए आप सफल भी हो सकते हैं। बशर्ते आप हार न मानें।'' उनके पास कुल 12 मानद डिग्रियां थीं। सर्वोच्च अमेरिकी नागरिक सम्मान से नवाजे गए हॉकिंग के जीवन पर 2014 में 'द थ्योरी ऑफ एवरीथिंग' नाम से फिल्म भी बन चुकी है। अपनी किताब 'द ग्रांड डिजाइन' में उन्होंने किसी पारलौकिक शक्ति के अस्तित्व को नकारते हुए सृष्टि के निर्माण का श्रेय गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को दिया। कम्प्यूटर और कई तरह के उन्नत उपकरणों के जरिए संवाद करने वाले इस वैज्ञानिक ने काफी शोध किए, लेकिन उल्लेखनीय काम 'ब्लैक होल' के क्षेत्र में है। स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही वैज्ञानिकों ने उनके 'ब्लैक होल' के सिद्धांत को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था। 'थ्योरी ऑफ एवरीथिंग' से उन्होंने सुझाया था कि ब्रह्मांड का निर्माण स्पष्ट रूप से परिभाषित सिद्धांतों के आधार पर हुआ है। इस महान वैज्ञानिक का निधन 14 मार्च, 2018 को हुआ।     -पाञ्चजन्य ब्यूरो

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