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‘‘हमारे सैनिक देश की आन-बान और शान का प्रतीक हैं। वे विषम परिस्थितियों में सीमा पर सजग प्रहरी बनकर हरदम डटे हैं ताकि देश और देश के लोग सुरक्षित जीवन जी सकें। ऐसे महान सैनिकों पर पूरे देश को गर्व है।’’ उक्त बात उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र रावत ने कही। वे गत दिनों हल्द्वानी में पूर्व सैनिकों के वीरता सम्मान समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं एक सैनिक का बेटा हूं।
मैं और मेरी सरकार हमेशा सैनिकों के कल्याण के लिए तत्पर है। सैनिकों के कल्याण के लिए प्रदेश सरकार द्वारा अनेक योजनाएं संचालित की जा रही हैं। विधायक निधि से हर विकास खण्ड मुख्यालय में सैनिक विश्राम गृह बनवाने के लिए प्रयासरत हैं। श्री रावत ने कुमायूं मण्डल के सैनिक परिवारों के बच्चों के लिए छात्रावास बनाने, बिन्दुखत्ता में शहीद स्मारक के पास रिक्त भूमि पर सैनिक जनमिलन केन्द्र बनाने की घोषणा की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल बीएस सहरावत, विधायक बंशीधर भगत सहित बड़ी संख्या में पूर्व सैनिक एवं उनके परिजन मौजूद रहे। प्रतिनिधि
हौसला हो तो कोई भी काम कठिन नहीं
गत दिनों पुणे स्थिति सतारा के स्व. यशवंतराव चव्हाण सभागार में जनकल्याण समिति, पश्चिम महाराष्टÑ की ओर से पू़ श्री गुरुजी पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में लद्दाख में पर्यावरण क्षेत्र में असाधारण कार्य करने वाले चेवांग नार्मेल सहित महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाली पुणे की ज्योति पठानिया को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी एवं समिति के प्रांत अध्यक्ष डॉ़ रविंद्र सातलकर ने एक लाख रुपये, श्रीफल, मानपत्र भेंटकर सम्मानिता किया।
इस अवसर पर श्री सुरेश सोनी ने कहा कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष काम करने वाले व्यक्तियों को पू़ श्री गुरुजी पुरस्कार से सम्मानित किए जाने से गुरुजी के कार्य के गौरव का स्मरण होता है। आज समाज में प्रत्येक क्षेत्र व्यापक हुआ है। पर्यावरण, महिला सशक्तिकरण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले व्यक्ति महान हैं।
आज हर भी व्यक्ति की समस्या एवं प्रश्न अलग हैं और ये व्यक्त उन्हें उजागर कर रहे हैं। इस अवसर पर श्री चेवांग नार्मेल ने कहा, ‘मैं लद्दाख के प्रत्येक गांव में मार्ग, पुल, बांध और नहर के निर्माण में सक्रिय सहभाग लेते हुए वहां की समस्याएं समझ सका। यह इलाका अत्यंत दुर्गम है। अतीव सर्दी के कारण यहांं खेती करना असंभव था। सर्दियों में जमा बर्फ का पानी गर्मियों में पिघलकर बह जाता था। लेकिन मैं इंजीनियर हूं, इसलिए तंत्रकौशल का प्रयोग कर मैंने हजारों मीटर ऊंचाई पर बांध बनाकर कृत्रिम ग्लेशियर तैयार किया। उसी पानी का प्रयोग अब गर्मियों में खेती के लिए हो रहा है। इसके लिए हमने वहां के स्थानीय लोगों की मदद ली। उनके बिना यह काम असंभव था और हमें इसका अच्छा लाभ हो रहा है। स्थानीय लोग ही बांध की देखभाल कर रहे हैं।’ वहीं ज्योति पठानिया ने कहा, ‘मैंने 1992 से समाज कार्य का प्रारंभ किया। आरंभ में चैतन्य महिला मंडल की स्थापना कर समाज की पीड़ित, विस्थापित महिलाओं के लिए एवं उनके बच्चों के पुनर्वास के काम में जुट गई । इस काम को करते हुए कई मुश्किलें आईं। लेकिन उससे डरे बिना काम करती रही। आज हमारे पास अपना भवन है। संस्था के काम से अब तक सैंकड़ों महिलाओं को न्याय मिला है। (विसंकें,पुणे)
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