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आदिशंकर द्वारा शताब्दियों पूर्व स्थापित श्री कांची कामकोटि पीठ के 69वें शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी भारतीय धर्म-इतिहास के परिवर्तनकारी और युगांतरकारी संन्यासी के नाते जीवन बिताते हुए 82 वर्ष की आयु में हृदयाघात के कारण शुक्ल त्रयोदशी (28 फरवरी) के दिन ब्रह्मलीन हुए। वे कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे।
विश्व हिंदू परिषद के कार्यों को उनका स्नेह और आशीर्वाद सदैव मिला। उन्होंने अपने जीवन में सबको जोड़ने का कार्य किया। सामाजिक विषयों पर उनका चिंतन सबसे अलग था।
—चंपत राय, अंतरराष्ट्रीय महामंत्री, विहिप
जगद्गुरु शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी के महाप्रयाण से गहरा दु:ख हुआ। वे लाखों भक्तों के लिए अनुकरणीय रहेंगे। वे सेवा कार्यों में सबसे आगे थे। उन्होंने कई ऐसे संस्थान शुरू किए जिसके चलते गरीबों का जीवन बदल गया। —नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
उन्हें 22 मार्च, 1954 को परमाचार्य चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती जी ने 69वें शंकराचार्य के रूप में अभिषिक्त किया था। परमाचार्य की महान परंपरा, जिसमें उन्हें जीवंत आदिशंकर कहा जाता था, को निभाते हुए जयेंद्र सरस्वती जी ने सनातन धर्म की ध्वजपताका दिग्-दिगंत में फहराई। वे लीक से हटकर सत्य-सनातन मूल्यों की काल सापेक्ष व्याख्या एवं उसके अनुसार जीवन व्यतीत करने के प्रेरणा केंद्र थे। उनके कारण देश में शंकर नेत्रालय नाम से नेत्र-चिकित्सा के सर्वश्रेष्ठ लेकिन सामान्य व्यक्ति की सहज पहुंच के भीतर संस्थान स्थापित हुए। बहुत बड़ी संख्या में उच्च शिक्षा, शोध, अनुसंधान के केंद्र, आयुर्वेद चिकित्सालय, विज्ञान और टेक्नोलॉजी के शिक्षा केंद्र उन्होंने खुलवाए। विशेषकर उत्तर-पूर्वांचल में उन्होंने चिकित्सालय, विद्यालय और वेद-विद्याध्ययन के बहुमान्य एवं श्रेष्ठ केंद्र स्थापित किए। अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य में आदिशंकर परंपरा का निर्वाह करते हुए उन्होंने प्राचीन भारतीय वैदिक संस्कृति के अध्ययन-अध्यापन का केंद्र स्थापित किया और गुवाहाटी में उनके द्वारा स्थापित श्ांकर नेत्रालय पूरे उत्तर-पूर्वांचल का श्रेष्ठ एवं जनमान्य चिकित्सालय है।
पूज्य जयेंद्र सरस्वती जी ने कालबाह्य रूढ़ियां और मान्यताएं बदलीं एवं वे दक्षिण के ऐसे पहले संन्यासी हुए जिन्होंने अनुसूचित जाति के युवाओं को मंदिरों में अर्चक बनाने के लिए दीक्षित एवं प्रशिक्षित किया। आज दक्षिण के हजारों मंदिरों में ये अर्चक मिलते हैं। गरीब, कमजोर तथा विशेषकर दलित बस्तियों में छोटे से छोटे मंदिर के श्रीगणेश के लिए यदि उन्हें आमंत्रण दिया जाता था तो वे नि:संकोच वहां जाते थे। राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ को वे भारतीय धर्म, संस्कृति और समाज के नवोन्मेष का शक्ति केंद्र मानते थे। नागपुर में राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के विजयादशमी कार्यक्रम में वे मुख्य अतिथि के नाते आए थे तथा पुन: तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह में उनका उद्बोधन हुआ था। राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी पूज्य जयेंद्र सरस्वती जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने कांची पहुंचे।
पाञ्चजन्य के प्रति उनका विशेष स्नेह और आशीर्वाद सदैव रहा और उनके अनेक झकझोरने वाले तथा हिंदू समाज को जागृत करने वाले साक्षात्कार पाञ्चजन्य में प्रकाशित हुए। 1996 में जब सिंधु दर्शन अभियान प्रारंभ हुआ तो उन्होंने इसमें रुचि दिखाई थी और भारत के लिए इसे एक शुभ कार्य कहा था। कुछ वर्ष बाद विश्व मंगल की कामना से जब प्रसिद्ध उद्योगपति श्री बी.के. मोदी ने सभी पंथों के प्रमुखों को सिंधु तट पर एकत्र करने का आयोजन किया था, उस समय अटल जी के सहयोग से पूज्य जयेंद्र सरस्वती जी ने विशेष सिंधु पूजन किया था। उनकी पुण्य स्मृति को शत्-शत् नमन। —तरुण विजय
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