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शब्दों में खरापन, व्यवहार में संतुलन ओर प्रशासकीय, वैचारिक विषयों की और गहन समझ… 84 वर्ष की आयु में भी सक्रियता के पर्याय, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक अपने कार्यों की रपट भी प्रकाशित करते हैं। बतौर राज्यपाल उनके अनुभव और कार्यों पर पाञ्चजन्य के लखनऊ ब्यूरो प्रमुख सुनील राय ने उनसे विशेष बातचीत की। उसके प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश-
आपके कुलाधिपति बनने से पहले कई विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह रुके पड़े थे। पठन-पाठन का माहौल ठंडा था। यहां ऊष्मा और सक्रियता दिखती है?
यहां आने के बाद मेरा यही प्रयास रहा कि सभी विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह समय पर हों। अभी 25 में से 23 विश्व विद्यालयों के दीक्षांत समारोह हो चुके हैं। दो नए विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह इस साल नहीं हो सके। फिलहाल स्थिति काफी संतोषजनक है। जहां तक पठन-पाठन के वातावरण का सवाल का है तो उस पर काफी ध्यान दिया गया है। शिक्षकों के रिक्त पद भरने की दिशा में तेजी से कार्य हुआ है। शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। शोध कार्यों को ई-लाइब्रेरी में रखा जाए, अंक तालिका आॅनलाइन हो तथा शिक्षा हर हाल में रोजगारपरक बने, इन सब पर गंभीरता से काम हो रहा है। योगी जी की सरकार आने के बाद प्रदेश में दीनदयाल पीठ की स्थापना हुई है, जिसे शोध कार्यों के लिए 50 लाख से 2 करोड़ रुपये दिए जाएंगे।
सर्व शिक्षा और ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान समाज को बदलने वाली राजनीितक पहल है। आप इन्हें कैसे देखते हैं?
शिक्षा के क्षेत्र में लड़के पिछड़ रहे हैं, जबकि बेटियां बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। 2016-17 में संपन्न दीक्षांत समारोह में 15,60,375 विद्यार्थियों को उपाधियां दी गर्इं, जिनमें 51 प्रतिशत यानी 7,97,646 लड़कियां थीं। उत्कृष्ट प्रदर्शन पर दिए जाने वाले 1,653 पदकों में से 1,085 पदक छात्राओं को मिले। अटल जी के कार्यकाल में सर्व शिक्षा अभियान शुरू होने के बाद साक्षरता के क्षेत्र में बड़ा बदलाव आना शुरू हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान का भी सकारात्मक परिणाम दिख रहा है। एक दीक्षांत समारोह की दिलचस्प बात बताता हूं। मैंने देखा कि जिन छात्र-छात्राओं को उपाधि दी जाती है, वे अंग्रेजों के जमाने का गाउन और हैट पहन कर आते हैं। मैंने कहा कि इसकी जगह भारतीय परिधान पहना जाना चाहिए। इसके बाद कई जगह परिवर्तन आया है। कुछ विश्वविद्यालयों ने स्पर्धा रखी कि किसी छात्र-छात्रा द्वारा तैयार परिधान अच्छा हुआ तो छात्र-छात्राएं उसी को पहन कर दीक्षांत समारोह में शामिल होंगे।
सपा सरकार द्वारा तैयार एम.एल.सी. सूची पर आपने हस्ताक्षर करने
से इनकार कर दिया था। ऐसा कर आपने क्या संदेश देने की
कोशिश की?
सपा के शासनकाल में एम.एल.सी. के लिए जिन लोगों के नाम आए थे, उनके बारे में पता करने पर ज्ञात हुआ कि विज्ञान, समाज या संस्कृति के क्षेत्र में उनका योगदान न के बराबर था। इसके अलावा, कुछ लोगों पर गंभीर धाराओं में मुकदमे भी चल रहे थे। इसलिए बाद में उन्हें विवादित नामों को वापस लेना पड़ा। देश में पहली बार ऐसा हुआ जब राजभवन ने यह एहसास कराया कि सरकार कोई भी गलत नाम भेज कर दस्तखत नहीं करवा सकती। साथ ही, समाजवादी पार्टी की सरकार अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिलाना चाहती थी, जबकि केंद्र और किसी भी राज्य में अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा नहीं दिया गया है। लिहाजा इस बिल पर भी हस्ताक्षर करना उचित नहीं था।
लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर भी काफी विवाद हुआ था। इसके पीछे क्या कारण था?
अपनी जांच में किसी को दोषी पाने पर लोकायुक्त मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को अपनी रिपोर्ट देते हैं। उस रिपोर्ट पर तीन महीने तक कोई कार्रवाई नहीं होने पर लोकायुक्त उस रिपोर्ट को राज्यपाल के पास भेजते हैं। मेरे पास जब लोकायुक्त की रिपोर्ट आई तो मैंने उस पर कार्रवाई की। तब लोगों ने मुझे ‘सक्रिय राज्यपाल’ कहा। इसी तरह एक दूसरा मामला यह था कि उतर प्रदेश में लंबे समय से लोकायुक्त की कार्य अवधि बढ़ाई जा रही थी। इस बीच, सर्वोच्च न्यायालय का आदेश आया कि 6 महीने में लोकायुक्त की नियुक्ति हो जानी चाहिए। लेकिन 6 माह बीतने के बाद भी लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाई। इसका कारण यह था कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के बीच किसी नाम पर सहमति नहीं बन पा रही थी। बाद में सरकार ने बहुमत के बल पर एक नया विधेयक मंजूर करा मुख्य न्यायाधीश को उस व्यवस्था से अलग कर दिया। लेकिन मैंने इस विधेयक को तुरंत स्वीकृति नहीं दी, तब नाम तय करने के लिए तीनों व्यक्तियों ने फिर एक बैठक की। इस बीच, लोकायुक्त की नियुक्ति की मांग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक और जनहित याचिका दायर हो गई। इस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने एक माह की मोहलत दी, लेकिन फिर भी कुछ नहीं हुआ। अंत में सर्वोच्च न्यायालय ने लोकायुक्त के लिए प्रस्तावित सभी नाम मांगे और उनमें से एक का चयन कर लिया। मगर मुख्य न्यायाधीश उस नाम पर सहमत नहीं थे, इसलिए उसकी जगह दूसरे व्यक्ति को लोकायुक्त नियुक्त किया गया।
जब आप प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर अपने विचार व्यक्त करते थे, सपा सरकार बेचैन हो जाया करती थी। वर्तमान में प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर आपकी क्या राय है?
कानून एवं व्यवस्था के मामले पर उस समय जब मैं कहता था कि इसमें सुधार की जरूरत है तो सपा सरकार में मौजूद लोगों को लगता था कि मैं उनकी आलोचना कर रहा हूं। उसकी एक वजह यह भी थी कि उसमें कुछ लोगों की छवि आपराधिक थी। अभी भी मेरा यह कहना है कि कानून एवं व्यवस्था में और सुधार होना चाहिए। अब अंतर यह है कि मेरी इस बात को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सुझाव के तौर पर लेते हैं।
सरकारी योजनाओं में देरी से लागत बढ़ जाती है। आपने इस मुद्दे पर भी कई बार चिंता जताई है। इससे कार्यप्रणाली में कोई बदलाव आया?
बिल्कुल। कई बार तो ऐसा देखने में आया कि भूमि पूजन तो हो गया, मगर काम शुरू नहीं हुआ। कुछ माह बाद दोबारा भूमि पूजन हुआ। दरअसल, सरकारी काम समय पर पूरा होता ही नहीं। इसकी वजह से परियोजना पर लागत भी ज्यादा आती है। जब मैं भाजपा में था तब मुझे विभिन्न दायित्व सौंपे गए थे। 2011 से 2014 तक भाजपा को सुशासन प्रकोष्ठ का दायित्व मेरे पास था। मैं मंत्रियों के साथ बैठकें करता था और उनका मार्गदर्शन करता था। मैं कहता था कि सरकारी योजनाओं के शिलान्यास के समय ही हर हाल में उद्घाटन की तारीख तय हो जाए। इन सब प्रयासों से धीरे-धीरे सुधार होने लगा है।
आप रेल मंत्री भी रहे। रेलवे को विश्व स्तरीय कैसे बनाया जा सकता है? लोकल ट्रेनों में और क्या सुविधाएं दी जा सकती हैं?
मैंने मुंबई की लोकल ट्रेनों में सफर किया है। उस समय मैं नौकरी करता था और उपनगरीय क्षेत्र में रहता था। लोकल से ही आना-जाना करता था। 1962 में मैंने यात्रियों के लिए गोरेगांव प्रवासी संघ बनाया और आंदोलन भी किया। 1999 में रेल राज्यमंत्री बनने के कुछ समय बाद पंजाब में एक रेल दुर्घटना हुई थी, जिसके बाद नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया था। इस घटना के बाद मुझे रेल मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार मिला। महिला यात्रियों की समस्याओं को देखते हुए मैंने एक लोकल ट्रेन शुरू की, जो केवल महिलाओं के लिए है। एक महिला लोकल मध्य रेलवे व दूसरी पश्चिम रेलवे द्वारा संचालित होती है। लोकल का पहला और आखिरी डिब्बा सामान के लिए होता है, इसमें एक डिब्बा सुबह 9 से 11 बजे तक मछुआरा समाज की महिलाओं के लिए आरक्षित कराया। प्रत्येक सांसद को निजी विधेयक लाने का अधिकार है। इसी के तहत स्तनपान को प्रोत्साहन देने के लिए मैंने एक बिल तैयार कर इसे सदन में पेश किया। हालांकि मैं विपक्ष में था, पर सरकार ने मामूली संशोधन के बाद उस बिल को मंजूरी दे दी।
आपने अपनी पुस्तक ‘चरैवेति चरैवेति’ में लिखा है कि चुनाव में आपको हराने के लिए दाऊद इब्राहिम की मदद ली गई थी।
दाऊद तो एक कारण था। मेरे चुनाव हारने के कुछ कारण और भी थे। मुंबई में सपा की श्रीमती मृणाल गोरे पानी वाली बाई के नाम से काफी प्रसिद्ध हैं। मैंने उन्हें1989 में हराया था। बाद में वहां से मैं लगातार पांच बार चुनकर आया। मृणाल गोरे ने मेरे विरुद्ध प्रचार किया था। वैसे तो ईसाई लोग मुझे वोट देते थे, मगर जान-बूझकर सोनिया गांधी की बैठक ईसाई बहुल क्षेत्र में रखी गई। उस समय यह अफवाह फैलाई गई कि पोप ने कहा है कि राम नाईक को हराओ। हालांकि लोगों ने गोविंदा को जिता तो दिया, लेकिन बाद में बहुत पछताए।
करीब 25 साल पहले आप दुसाध्य रोग के शिकार हुए। कैंसर नाम सुनकर ही लोगों का मनोबल टूट जाता है, पर आपने उस पर विजय प्राप्त की। यह कैसे संभव हुआ?
1993 में मुझे कैंसर हुआ था। मेरी दो लड़कियां हैं, जिनमें एक कैंसर रिसर्च साइंटिस्ट है। मैंने अपने जीवन में दो लोगों को देखा था कि अगर मन की शक्ति हो तो कैंसर से लड़ा जा सकता है। वे दो लोग थे- गोलवलकर जी और महाराष्ट्र के राम दास कड़सकर, जो संगठन मंत्री थे। ये दोनों लोग कैंसर से लड़कर काफी दिनों तक स्वस्थ रहे।
आप राजभवन में भी काफी सादगी से रहते हैं। ऐसा क्यों?
मुंबई में मेरा संसार दो छोटे कमरों में सिमटा रहता था। राजभवन बहुत बड़ा है। जिस दिन मैं बाहर किसी कार्यक्रम में नहीं जाता, उस दिन दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक लोगों से मिलता हूं। जब मैं विधायक था, तब ‘विधानसभा में राम नाईक’ शीर्षक से रिपोर्ट प्रकाशित करता था। अब जबकि राज्यपाल हूं तो ‘राजभवन में राम नाईक’ शीर्षक से रिपोर्ट प्रकाशित कराता हूं।
उत्तर प्रदेश में आपका अनुभव
कैसा रहा?
मेरा यहां का अनुभव अच्छा रहा। उत्तर प्रदेश के लोग मुझे बहुत चाहते हैं।
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