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मीडिया के मठाधीशों के कारनामे बाहर आने के साथ ही उनके दोहरे चरित्र भी सामने आ रहे हैं
सामयिक मुद्दों पर मीडिया के रुख और रुखाई की परतें ख्ांगालता यह स्तंभ समर्पित है विश्व के पहले पत्रकार कहे जाने वाले देवर्षि नारद के नाम। मीडिया में वरिष्ठ पदों पर बैठे, भीतर तक की खबर रखने वाले पत्रकार इस स्तंभ के लिए अज्ञात रहकर योगदान करते हैं और इसके बदले उन्हें किसी प्रकार का भुगतान नहीं किया जाता।
्रदेश पर किसी संकट के समय में अपनी जान न्योछावर करने की भावना पर भी क्या विवाद पैदा हो सकता है? मुजफ्फरपुर में सरसंघचालक मोहन भागवत के बयान पर कथित मुख्यधारा मीडिया ने अपना यह चेहरा भी दिखा दिया। ऐसा नहीं है कि उनके बयान का मूल वीडियो चैनलों और अखबारों के पास नहीं था। उन्हें यह भी पता था कि उनके उस बयान का मतलब क्या है। लेकिन पूरी सोची-समझी रणनीति के तहत इस बयान को ‘विवादित’ बना दिया गया। इस अभियान की अगुआई मुख्यधारा मीडिया के उन्हीं नामों ने की जो यह काम बीते दशकों से पूरी धूर्तता के साथ करते रहे हैं। आजतक ने मर्यादा की सारी हदें लांघते हुए बताया कि ‘संघ प्रमुख ने सेना की काबिलियत पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।’ राहुल गांधी ने चैनल के वीडियो को आधार बनाते हुए इस झूठ को आगे बढ़ाया। बेशर्मी यह कि संघ की तरफ से स्पष्टीकरण को
भी ‘बयान से पीछे हटने’ की तरह दिखाया गया।
कश्मीर के शोपियां में पत्थरबाजों की भीड़ ने सेना पर हमला किया। आत्मरक्षा में चलाई गई गोली से तीन लोगों की मौत हुई। इसके बाद जिस तरह से महबूबा मुफ्ती सरकार ने सेना के अधिकारी मेजर आदित्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई, पूरा देश उसके खिलाफ उठ खड़ा हुआ। रिपब्लिक, टाइम्स नाऊ और जी न्यूज जैसे चैनलों ने जनता की नाराजगी को स्वर दिया। बीते कुछ समय से बैंकों के डूबे हुए कर्जों पर कांग्रेसी मीडिया प्रायोजित तरीके से झूठ फैलाने की कोशिश कर रहा था। बताया जा रहा था कि उद्योगपतियों के कर्जों को सरकार माफ कर रही है। ऐसा माहौल बनाया गया कि सरकारी बैंकों से लाखों-करोड़ों की लूट चल रही है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को बताया कि कांग्रेस ने इस मुद्दे पर देश को गुमराह किया है। वास्तविकता कहीं अधिक विकट थी। देश की अर्थव्यवस्था चरमरा न जाए इसके लिए सरकार ने सारी आलोचनाएं झेलकर चुप रहना बेहतर समझा। अब जब स्थिति खतरे से बाहर है, प्रधानमंत्री ने संसद के माध्यम से देश को बताया कि सोनिया-मनमोहन की सरकार के खाते में 52 लाख करोड़ का एक ये घोटाला भी है। ज्यादा हैरानी तब हुई जब डूबे कर्जों पर अभियान चला चुके कई अखबारों और चैनलों ने इस बारे में प्रधानमंत्री के बयान का जिक्र तक नहीं किया। भाजपा अध्यक्ष के बेटे के व्यापार को लेकर बिना तथ्य के भ्रम फैलाने वाले पत्रकार राजदीप सरदेसाई बीते दिनों सुर्खियों में रहे। चर्चित वकील प्रशांत पटेल ने उनसे ट्विटर पर बस इतना पूछ लिया कि क्या आपके बेटे ने मेडिकल कॉलेज में बिना योग्यता के जुगाड़ करके प्रवेश पाया है? अच्छा होता कि इस सवाल का जवाब दे दिया जाता। लेकिन इसके बजाय उन्होंने वकील पर 100 करोड़ रुपए की मानहानि का दावा ठोंकने की घोषणा कर डाली। यही पत्रकार अमित शाह के मामले में 100 करोड़ रुपए के दावे को अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ बता रहे थे।
नागालैंड के चुनाव में भी ईसाई मिशनरियों का खेल चालू है। बैप्टिस्ट चर्च ने बाकायदा फतवा जारी करके लोगों से ‘त्रिशूल’ और ‘क्रॉस’ में से कोई एक चुनने की अपील की। सेकुलर मीडिया के लिए यह मामूली खबर है। गुजरात हो या नागालैंड, देश के लगभग सभी राज्यों में होने वाले चुनावों में मिशनरी और मदरसे खुलेआम फतवे जारी कर रहे हैं। क्या मीडिया की यह जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि वह यह बताए कि ऐसे फतवों और कांग्रेस पार्टी के बीच क्या संबंध है?
उधर, तथाकथित समाचार चैनल एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय बहुत परेशान हैं। उनकी परेशानी हवाला और कर चोरी जैसे मामलों में अपने खिलाफ चल रही जांच को लेकर है। इसके लिए उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखी है। पिछली बार जब कंपनी के अवैध लेन-देन के सिलसिले में छापे पड़े थे तो उन्होंने उसे ‘लोकतंत्र पर हमला’ करार दिया था। अब कह रहे हैं कि उनके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय ने कार्रवाई की तो भारत की छवि और विदेशी निवेश पर असर पड़ेगा। सरकारी संसाधनों को लूटकर खड़े किए गए संस्थानों का यह चरित्र भी जनता के सामने है। लोग खूब देख रहे हैं कि मीडिया की आड़ में छिपे इन तथाकथित बड़े पत्रकारों का असली चेहरा क्या है।
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