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भारत में हास्य आज एक नई ऊंचाई को छू रहा है। अब सिर्फ फिल्में या टेलीविजन ही गुदगुदाहट का एहसास नहीं करा रहे हैं, बल्कि इंटरनेट पर अनेक स्टैंडअप कलाकार भी भरपूर मानोरंजन कर रहे हैं
सतीश पेडणेकर
इन दिनों देश में हास्य का विस्फोट हो रहा है। टीवी हो या कोई और साधन, हास्य कार्यक्रमों की बाढ़ आई हुई है। हास्य संक्रामक बन गया है। ऐसा होना लाजिमी था। कारण, जिंदगी में तनाव बढ़ता जा रहा है, जिससे केवल हास्य ही निजात दिला सकता है। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार चार्ली चैप्लिन कहा था, ‘‘जिस दिन हम ठहाके नहीं लगाते, वह दिन बेकार चला जाता है। कॉमेडी ही वह सुरक्षातंत्र है जिसकी वजह से मैं आज तक जिंदा हूं।’’ यह बात केवल चार्ली चैप्लिन ही नहीं, दुनिया के करोड़ों लोग मानते हैं इसलिए आज की तेज रफ्तार जिंदगी में भी लोग हंसने के लिए समय निकाल ही लेते हैं। इसलिए अधिकांश लोग हास्य कार्यक्रम, फिल्मों एवं धारावाहिक के दीवाने हैं। मगर हास्य का सबसे नया शगल है ‘स्टैंडअप कॉमेडी’ यानि उसके लिए दिनोदिन बढ़ता जायका। इसलिए आज ‘स्टैंडअप’ हास्य कलाकारों की बाढ़-सी आई हुई है। ऐसे कलाकार दर्शकों की नब्ज पकड़ लेते हैं और उसी हिसाब से चुटकुले या हास्य के पुट जोड़ते हैं।
हास्य कैसे संक्रामक हो गया, इसका नमूना पिछले दिनों देखने में आया जब टीवी पर कपिल शर्मा के कॉमेडी शो में योगगुरु स्वामी रामदेव नमूदार हुए। स्वामी रामदेव और हास्य कार्यक्रम? उनके साथ कोई कैसे कॉमेडी शो कर सकता है? मगर जब लोगों ने कार्यक्रम देखा तो उनके अचरज का ठिकाना नहीं रहा। पूरे समय हास्ययोग चलता रहा, हंसी के फव्वारे फूटते रहे। आखिर में बाबा ने योग नृत्य भी किया। जब देश में साधु-संन्यासी भी बहुत उम्दा तरीके से हास्य कार्यक्रमों में भाग लेने लगे तो मानना पड़ेगा कि देश में हास्य का विस्फोट हो रहा है।
हम हिन्दुस्थानियों के बारे में कहा जाता कि हममें हास्य भावना नहीं है। मगर ऐसा कहने वालों को शायद हमारी परंपराओं के बारे में पता ही नहीं है। कभी हमारे संस्कृत नाटकों में हंसाने के लिए विदूषक हुआ करता था। फिल्में आर्इं तो वह हास्य कलाकार बन गया। यूं तो सिनेमा के शुरुआती दौर से ही कहानी में हास्य कलाकार मौजूद रहे हैं, पर 1950 के दशक के बाद उसकी मौजूदगी नायक, नायिका, खलनायक और खलनायिका की तरह अनिवार्य हो गई। दर्शकों में उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि ऐसे कलाकारों के नाम पोस्टरों पर प्रमुखता से छपने लगे। भगवान दादा, जॉनी वॉकर, राजेंद्रनाथ, मनोरमा, टुनटुन, केश्टो मुखर्जी, शोभा खोटे आदि को स्टार की हैसियत मिली हुई थी और फिल्म में इनका होना सफलता की गारंटी थी। उस दौर के हास्य कलाकारों में भगवान दादा की जगह बेमिसाल है। हिंदी सिनेमा में वे पहले अभिनेता थे, जिनमें हास्य और नृत्य का अद्भुत संगम था।
गुरुदत्त की लगभग हर फिल्म में जॉनी वॉकर खास भूमिका में होते थे और उनके हिस्से में गाने भी आते थे। इन हास्य कलाकारों की खासियत यह थी कि उनके किरदार कहानी में खाली जगह को भरने और दर्शकों को राहत भर देने के लिए नहीं आते थे, बल्कि वे कहानी का खास हिस्सा होते थे और उनकी मौजूदगी के बिना कहानी अपनी गति को प्राप्त नहीं कर सकती थी। कुछ हास्य कलाकार तो इतने लोकप्रिय थे कि उन्हें हीरो बनाकर फिल्में बनने लगीं। इनमें सर्वप्रमुख थे जॉनी वाकर ‘‘गरीब जान के हमको न तुम भुला देंगे’’ गाना याद कीजिए। उसी तरह महमूद की बतौर हीरो कई फिल्में आर्इं। फिर ऐसा वक्त भी आया जब हीरो खुद हास्य भूमिकाएं करने लगे। लोगों को मानना ही पड़ा कि उनके पास भी हास्य बोध है। बॉलीवुड के जाने-माने हास्य अभिनेता असरानी का कहना है कि अब फिल्मों में हास्य कलाकार के किरदार नहीं रखे जा रहे हैं। अब मुख्य अभिनेता ही कॉमेडी करने लगे हैं। वैसे असरानी का भी हास्य की दुनिया में महत्वपूर्ण नाम है। उनकी फिल्म ‘शोले’ की ‘अंग्रेजों के जमाने के जेलर’ की भूमिका आज भी याद की जाती है। असरानी जहां अपने खास अंदाज से हास्य पैदा करते थे, वहीं जगदीप बिना कुछ बोले सिर्फ आंखों और चेहरे के हाव-भाव से दर्शकों को लोटपोट कर देते थे। बाद के सालों में कादर खान, शक्ति कपूर, जॉनी लीवर जैसे कलाकार आये और परदे पर अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे। बीते कुछ सालों में बोमन ईरानी, राजपाल यादव, परेश रावल, अरशद वारसी आदि के अभिनय ने एक बार फिर हास्य कलाकारों की प्रतिष्ठा को वापस पाने में सफलता पायी है।
हास्य फिल्में आज कितनी लोकप्रिय हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ‘गोलमाल अगेन’ पिछले साल की सुपरहिट फिल्म थी। ‘गोलमाल अगेन’ रोहित शेट्टी के निर्देशन में बनी ‘गोलमाल’ कड़ी की चौथी फिल्म है। फिल्म की पिछली कड़ियां दर्शकों द्वारा काफी पसंद की गई थीं। इस नई कड़ी में भी रोहित शेट्टी ‘गोलमाल’ का जादू दर्शकों पर चलाने में कामयाब हुए हैं। इसकी सफलता के बाद रोहित शेट्टी और ‘गोलमाल अगेन’ की टीम ने फिल्म की पांचवीं कड़ी के आने के संकेत दे दिए हैं।
इस बीच मनोरंजन की दुनिया में एक और क्रांति हुई। पहले लोग सिनेमाघरों में जाकर टिकट खरीद कर तीन घंटे की फिल्म देखते थे, मगर टीवी मनोरंजन को घर-घर ले आया। फिल्में तीन घंटे मनोरंजन करती थीं। टीवी चौबीसों घंटे मनोरंजन करने लगा। एक जमाने में मनोरंजन पर फिल्मों की ‘मॉनोपोली’ थी अब टेलीविजन और इंटरनेट के प्रसार ने हास्य के क्षेत्र का भी अच्छा-खासा विस्तार किया है। कुछ सालों तक छोटा परदा सिर्फ सास, बहू और साजिशों के ही इर्द-गिर्द सिमटा था। इस सिलसिले को तोड़ा हल्के-फुल्के हास्य धारावाहिकों ने। अब लगभग हर चैनल प्राइम टाइम पर एक-दो हास्य आधारित कार्यक्रम जरूर प्रसारित करता है। कुछ चैनल तो हास्य धारावाहिकों के बलबूते ही टीआरपी का मैदान मार रहे हैं। टीवी पर आए पहले के कई हास्य कार्यक्रम आज भी याद आते हैं। टीवी में दिखाए जाने वाले कई कार्यक्रम हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन जाते हैं। सास, बहू की कहानी शुरू होने से लेकर अब तक कई ऐसे बेहतरीन कार्यक्रम आए हैं जिन्होंने हमें भरपूर हंसाया और उनके खत्म होने के बाद हमने उनकी कमी भी महसूस की। ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’ दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाला ऐसा कार्यक्रम था जो काफी हद तक जिंदगी की वास्तविकता को दिखाता था। मुंगेरी का किरदार निभाया था रघुवीर यादव ने जो घर पर अपनी बीवी के तानों से परेशान रहते हैं और आॅफिस में बॉस की डांट से, इस सबके बीच वह कैसे अपने सपनों की दुनिया में खो जाते थे, यह देखना बहुत मजेदार होता था।
जीटीवी पर प्रसारित होने वाला ‘हम पांच’(1995) हर किसी के घर पर पसंद किया जाता था। इसमें एक ऐसे मध्यवर्गीय आदमी को दिखाया गया था जो हमेशा अपनी पांच बेटियों की वजह से परेशानी में फंस जाता था। ‘देख भाई देख’ दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाला एक और बेहतरीन कॉमेडी शो था। संयुक्त परिवार के प्यार और तकरार की कहानियों से भरा ये कार्यक्रम अपनी ‘कॉमिक टाइमिंग’ के लिए बहुत पसंद किया जाता था। साइरस बरुचा और उनकी टीम कुछ लोगों और घटनाक्रमों के बारे में कैसे चुटीले अंदाज में बखान करती थी, वह देखना बहुत मजेदार होता था। आधुनिक समाज की युवा पीढ़ी को कॉमेडी के जरिए दिखाता ‘नुक्कड़’ धारावाहिक अपने समय खूब देखा जाता था। हर कड़ी में नुक्कड़ पर बैठकर चाय पर हर समस्या का समाधान कैसे मिल जाता था, यही इस धारावाहिक का बेहतरीन हिस्सा था। अगर अंगूरी भाभी पर डोरे डालते विभूति जी को देखना आपको बहुत पसंद है तो यकीन मानिए, इस धारावाहिक को अगर आपने देखा है तो यह आपका सबसे पसंदीदा कार्यक्रम होगा। ‘तू-तू मैं-मैं’ जैसा नाम वैसा ही धारावाहिक था। दूरदर्शन पर ’80 के दौर में प्रसारित होने वाला धारावाहिक ‘ये जो जिंदगी है’ पहला ऐसा कॉमेडी शो था जिसे खूब पसंद किया गया था। शो का सबसे अच्छा हिस्सा था सतीश शाह को हर बार नए और हंसोड़ किरदार में देखना। पंकज कपूर की अदाकारी का लोहा तो हर कोई मानता है और उनके टीवी के बेहतरीन शो में से एक है ‘जबान संभाल के’। डीडी मैट्रो पर प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम में भाषाओं को सिखाने और सीखने के बीच की मस्ती दर्शकों को बांधे रखने के लिए काफी थी। ‘साराभाई वर्सेस साराभाई’ धारावाहिक में हर तरह का ड्रामा और कॉमेडी का मिला-जुला संगम था जिसे दर्शकों ने चोटी के शो में से एक बना दिया था। ‘आॅफिस-आॅफिस’-सब टीवी पर आने वाले इस शो ने दर्शकों को खूब हंसाया और सरकारी दफ्तरों में कैसे काम होता है, इस बात को भी बखूबी दिखाया।
स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला धारावाहिक ‘खिचड़ी’ आज भी लोगों के चेहरों पर हंसी लाने के लिए काफी है। जसपाल भट्टी का ‘फ्लॉप शो’ आम आदमी की रोजाना की परेशानियों को हंसगुल्लों के जरिए दिखाता था जो एक थके-हारे इंसान की सारी परेशानी दूर कर देता था। लेकिन टीवी की दुनिया का सबसे सफल रहा कार्यक्रम ‘कॉमेडी नाइट्स विद कपिल’ को दर्शकों का जो प्यार मिला है, वैसा शायद ही किसी अन्य कार्यक्रम को मिला हो। कपिल शर्मा कुछ कहें और हंसी ना आए, ऐसा कम ही होता है। कई मौकों पर उनका यह मजाकिया अंदाज गजब ढा जाता है। मुंबई की मायानगरी में ‘लाफ्टर चैलेंज’ में मिले मौके ने उन्हें ‘कॉमेडी किंग’ बना दिया। तब से कपिल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कामयाबी के शिखर पर पहुंचे कपिल बॉलीवुड के सितारों में अपनी पहचान बना चुके हैं।
कपिल की टीआरपी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बताते हैं, वे एक शो के लिए 60 से 70 लाख रुपये लेते हैं। एक दशक में कपिल सफलता के पर्याय बन चुके हैं। लेकिन खुद कपिल ही इन सारे रंगों को एक झटके में फीका भी बना जाते हैं।
एक नया आयाम
वैसे तो टीवी चैनलों पर हास्य धारावाहिक काफी अर्से से आ रहे हैं, पर स्टैंड-अप कॉमेडी ने हास्य की प्रस्तुति को एक नया आयाम दे दिया है। इसमें बगैर किसी खास तामझाम के एक ही सेट पर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया जाता है।
पहले एक चैनल ने प्रयोग के तौर पर इसे शुरू किया था, लेकिन इसकी लोकप्रियता को देखते हुए उसे स्थायी रूप दे दिया गया। असल में बाजार के दबाव में कहानियों और चरित्रों की तोड़मरोड़ ने धारावाहिकों को बेजान और यांत्रिक बना दिया है जिस कारण दर्शक उनसे ऊबने लगे हैं। अब चलन रिएलिटी शो और स्टैंड-अप कॉमेडी की तरफ मुड़ गया है। अब तो न्यूज चैनलों पर भी हास्य कार्यक्रम आने लगे हैं। इसका एक बड़ा कारण शायद यह है कि आज की जिंदगी में सहजता कम हो गई है। हंसने-हंसाने के अवसर दुर्लभ होते जा रहे हैं। इस कारण कॉमेडी का एक अच्छा-खासा बाजार तैयार हो गया है। हास्य का अपना बाजार है। यह बात लगातार साफ हुई है।
वेब टीवी की दुनिया
इस बीच मनोरंजन की दुनिया में एक और धमाका हुआ। अब वेब या आॅनलाइन टीवी आ गया है, जिसने मनोरंजन की दुनिया ही बदल दी है। मोबाइल अब हर हाथ में पहुंच चुका है। उसके पीछे-पीछे मनोरंजन भी जा पहुंचा है और हास्य भी।
‘जय हिंद’ टेलीविजन पर आने वाला पहला आॅनलाइन शो बना। मार्च, 2012 में इसे कलर्स चैनल पर देर रात में दिखाया जाने लगा, लेकिन इसकी तीखी राजनैतिक विषयवस्तु के कारण इसका प्रसारण बंद कर दिया गया। इससे विचलित हुए बगैर ‘जय हिंद’ के निमार्ताओं ने अपने विचारों और तीखे अंदाज को सेंसर किए बिना अपना आॅनलाइन शो जारी रखा। इस चैनल को भुगतान करके देखने वाले लोग करीब 50,000 हैं और रोजाना करीब दो लाख लोग इसे देखते हैं। उधर आॅनलाइन वीडियो में अभिनय करने वालों को एक बड़ा दर्शक वर्ग भी मिल रहा है।
ईस्ट इंडिया कॉमेडी (ईआइसी) के संस्थापक 32 वर्षीय सौरभ पंत कहते हैं, ‘अगर आप यू ट्यूब पर वीडियो नहीं करते तो पब्लिसिटी और मार्केटिंग में पिछड़ जाते हैं।’ उनके यू ट्यूब पर आए एक हास्य वीडियो के करीब 46,000 ग्राहक हैं। बंगलुरू के 24 वर्षीय कनन गिल और विश्व कल्याणरथ को भी लगता है कि यू ट्यूब पर मौजूदगी ने उनके मंचीय प्रदर्शन की मांग बढ़ा दी है। एक और बेहद लोकप्रिय आॅनलाइन चैनल ‘द वायरल फीवर’ है। वायरल फीवर आईआईटी से पढ़कर निकले 32 वर्षीय अरुणाभ कुमार के दिमाग की उपज है। उन्होंने 2010 में एक चैनल को ‘इंजीनियरिंग डायरीज’ बनाने का आइडिया दिया था। अरुणाभ कहते हैं, ‘‘उन्होंने इसे मंजूर तो किया पर सास-बहू वाले निर्देशकों से इसका निर्देशन कराने लगे।’ अरुणाभ कहते हैं, ‘‘हम अपने कंटेंट पर काफी ध्यान देते हैं और अभिनय पर भी। स्टैंड-अप यानी हास्य कलाकार खड़ा होता है और अपनी राम कहानी या ‘वनलाइनर’ कहना शुरू करता है। ज्यादातर स्टैंड-अप कलाकारों के पास एक या दो स्थाई कार्यक्रम होते हैं और वह ताजा परिस्थितियों पर इसे विकसित करते हैं। स्टैंड-अप कॉमेडी नई पीढ़ी में बहुत लोकप्रिय है।
पचास साल से ऊपर वालों को शायद पता न हो कि जाकिर खान नई पीढ़ी के लिए स्टार का दर्जा रखते हैं, जो देश के शीर्ष स्टैंड-अप कलाकारों में से एक हैं। इस आॅनलाइन टीवी कॉमेडी शो के भी कई स्टार हैं। इनमें से एक नाम है अमित टंडन। उनकी कॉमेडी अधिक शांतिपूर्ण होती है। एक थका हुआ इंसान जब उनकी कॉमेडी देखता है तो हंसते-हंसते लोट-पोट हो जाता है। उनकी भाषा सरल होती है। एक अन्य राहुल सुब्रमण्यम का अपना यूट्यूब चैनल है और वे अपने वीडियो में परिवार, पिता, बच्चों आदि के बारे में बोलते हैं। राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता, गीतकार वरुण ग्रोवर जब मंच पर होते हैं तो उन्हें सुनकर एक अलग ही तरह की अहसास आता है। वह जो भी बोलते हैं, दिल से बोलते हैं। वह कोई विशेष यूट्यूब चैनल पर नहीं है बल्कि हर जगह हैं।
कुल मिलाकर आज के दौर में हास्य ने लोगों पर अपना जादू बिखेरा हुआ है। और होली के अवसर पर इन हास्य कार्यक्रमों, धारावाहिकों, फिल्मों, स्टैंडअप प्रस्तुतियों से आपकी मस्ती दूनी हो जाए तो आश्चर्य कैसा।
फगुआ
आंखें अनियारी पिचकारी न्यारी छुटी रही।
नीर भीर भरयो उमगते अति हियो है
विरह विलाप मुख हो हो करतारी गारी
सोच की बीच लिपटाइ तन लियो हैं
वृंद कहें मुख की ललाई से गुलाल सम
धीरज अबीर उड़ाए सब दियो है।
-वृंद
रंगभरी रागभरी राग सू भरी री।
होली खेलया स्याय संग रंग सू भरी री।
उड़त गुलाल बादल से रंग लाल पिचका उड़ावाँ
रूप रंग की मारी की।
-मीरा
फागु की भीर अभीरन में गहि,
गोविंदै लै गई भीतर गोरी।
भाई करी मन की पद्माकर,
ऊपर नाइ अबीर की झोरी॥
छीन पितंबर कम्मर तें,
सु बिदा कै दई मीड़ि कपोलन रोरी।
नैन नचाइ, कह्यौ मुसक्याइ,
लला! फिर आइयो खेलन होरी॥
एकै संग हाल नंदलाल औ गुलाल दोऊ,
दृगन गये ते भरी आनंद मढ़ै नहीं।
धोय धोय हारी पदमाकर तिहारी सौंह,
अब तो उपाय एकौ चित्त में चढ़ै नहीं।
कैसी करूँ कहाँ जाउं कासे कहौं कौन सुनै,
कोऊ तो निकारो जासों दरद बढ़ै नहीं।
एरी! मेरी बीर जैसे तैसे इन आँखिन सों,
कढिगो अबीर पै अहीर को कढ़ै नहीं।
-पद्माकर
ब्रज में हरि होरी मचाई।
इततें आई सुघर राधिका,
उततें कुंवर कन्हाई।
खेलत फाग परसपर हिलमिल,
शोभा बरनि न जाई॥
नंद घर बजत बधाई ॥
बाजत ताल मृदंग, बाँसुरी,
वीणा, ढफ, शहनाई।
उडत अबीर गुलाल कुंकुमा,
रह्यो सकल ब्रज छाई॥
मानो मघवा झर लाई॥ -सूरदास
छिरकल रंग
लेले रंग कनक पिचकाई सनमुख सबे चलाई।
छिरकत रंग अंग सब भीजे
झुक झुक चाचर गाई॥
परस्पर लोग लुगाई॥
राधा ने सेन दई सखियन कों,
झुंड झुंड घिर आईं।
लपट झपट गई श्यामसुंदर
सों बरबस पकर ले आईं॥
लाल जू को नाच नचाई॥
छीन लए मुरली पीतांबर सिरतें चुनर उढ़ाई।
बेंदी भाल नयन बिच काजर
नकबेसर पहराई॥
मानो नई नार बनाई॥
मुस्कत है मुख मोड़ मोड़ कर
कहाँ गई चतुराई।
कहाँ गये तेरे तात नंद जी कहाँ जसोदा माई॥
तुम्हं अब लें ना छुडाई॥
फगुवा दिये बिन जान न पावो
कोटिक करो उपाई।
लेहौं काढ़ कसर सब दिन
की तुम चित-चोर सबाई॥
बहुत दधि माखन खाई॥
रास विलास करत वृंदावन जहाँ तहाँ यदुराई।
राधा श्याम की जुगल जोरि पर
सूरदास बलि जाई॥
प्रीत उर रहि न समाई॥
-सूरदास
फगुआ
फागुन लाग्यौ सखि जब तें,
तब तें ब्रजमंडल धूम मच्यौ है।
नारि नवेली बचै नहीं एक,
विसेष इहैं सबै प्रेम अँच्यौ है॥
साँझ-सकारे कही रसखान
सुरंग गुलाल लै खेल रच्यौ है।
को सजनी निलजी न भई,
अरु कौन भटू जिहिं मान बच्यौ है॥
गोरी बाल थोरी वैस, लाल पै गुलाल मूठि –
तानि कै चपल चली आनँद-उठान सों।
वाँए पानि घूँघट की गहनि चहनि ओट,
चोटन करति अति तीखे नैन-बान सों॥
कोटि दामिनीन के दलन दलि-मलि पाँय,
दाय जीत आई, झुंड मिली है सयान सों।
मीड़िवे के लेखे कर-मीडिवौई हाथ लग्यौ,
सो न लगी हाथ, रहे सकुचि सुखान सों॥
-रसखान
कहां एतौ पानिप बिचारी पिचकारी धरै,
आंसू नदी नैनन उमँगिऐ रहति है।
कहां ऐसी राँचनि हरद-केसू-केसर में,
जैसी पियराई गात पगिए रहति है॥
चांचरि-चौपहि हू तौ औसर ही माचति, पै-
चिंता की चहल चित्त लगिऐ रहति है।
तपनि बुझे बिन आनंदघन जान बिन,
होरी सी हमारे हिए लगिऐ रहति है॥
-घनानंद
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