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पुस्तकों के प्रति बढ़ता आकर्षण

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Feb 26, 2018, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 26 Feb 2018 11:11:12

7 जनवरी, 2018
आवरण कथा ‘पुरानी किताब नई बात’ से जाहिर होता है कि गूगल और ई-बुक के जमाने में भी किताबें खरीदकर पढ़ने का चाव जस का तस बना हुआ है। इस बात को साबित किया दिल्ली में लगने वाले विश्व पुस्तक मेले ने, जहां किताबें खरीदने के लिए हर उम्र के लोग दिखाई दिए।
—बी.एस. शांताबाई, बेंगलुरू (कर्नाटक)

 कुछ वर्ष पहले के हालात पर नजर डालें तो किताबें पढ़ने वाले लोगों में कमी आई थी। उन्हें लगने लगा था कि गूगल यानी सब। पर आज ऐसे लोग यह जान गए हैं कि गूगल सिर्फ प्राथमिक जानकारी के लिए ठीक है। अगर ज्ञान प्राप्त करना है तो अच्छी किताबों का ही सहारा लेना होगा। लेकिन इस भीड़ में कुछ ऐसे अधकचरे लेखक भी शामिल हैं जिन्होंने पुस्तकों के स्तर के साथ उनकी गंभीरता को गिराने का काम किया है। ऐसे लेखकों को सलाह है कि वे किसी भी विषय पर गहन अध्ययन के बिना न लिखें।
—निरंजन सिंह, बिलासपुर (छ.ग.)

आगे बढ़ता भारत
‘समृद्धि के सोपान (31 दिसंबर, 2017)’ मेक इन इंडिया पर केंद्रित रपट रक्षा, तकनीकी एवं सामान्य उत्पाद क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदमों को दर्शाती है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय को समर्पित मेक इन इंडिया का लोगो भारत के जनमानस को राष्टÑ के प्रति उसके कर्तव्यों की ओर अग्रसर करता है, साथ ही यह भी याद दिलाता है कि पूर्व की भांति पंचवर्षीय योजनाओं में जो भूल हुईं, उसकी पुनरावृत्ति न हों। यकीनन आज मेक इंडिया के तहत न केवल बड़े उद्यमियों को बल्कि छोटे-छोटे कामगारों को एक ऐसा मंच मिला है जहां वे अपने उत्पादों को एक नई पहचान दिला रहे हैं।
—डॉ. योगेन्द्र कुमार शर्मा, मेल से

बंद हो तुष्टीकरण!
लेख ‘राजनीति की बिसात तुष्टीकरण के मोहरे’ अच्छा लगा। आंध्र प्रदेश में तुष्टीकरण के नाम पर जिस तरह से राज्य सरकार ने मुसलमानों के लिए खजाना खोला है, वह उसकी मंशा को स्पष्ट करता है। देश का दुर्भाग्य है कि वोट की फसल काटने के लिए ऐसे नेता तमाम नियम-कानून को ताक पर रख देते हैं और अपनी राजनीति चमकाने के लिए कुछ भी कर गुजरते हैं।
—राममोहन चंद्रवंशी, हरदा (म.प्र.)

कायम रहेगी मोदी लहर
‘लहर बरकरार (31 दिसंबर, 2017)’ आवरण कथा में आपने जो शीर्षक दिया है, मैं उससे सहमत नहीं हूं। यदि वास्तव में ही ‘भाजपा’ की या फिर ‘मोदी जी’ की कोई लहर होती तो फिर यह लहर पंजाब, बिहार और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में क्यों बरकरार नहीं रह पाई। तब यह लहर कहां चली गई थी? हां, अगर लोकसभा चुनाव की बात करें तो 2014 में मोदी लहर थी और 2019 के चुनाव में भी यही लहर कायम रहेगी, क्योंकि जिन व्यक्तियों को अपने देश से प्यार है, उनके पास मोदी जी को वोट देने के अलावा और कोई विकल्प है ही नहीं। फिलहाल वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में नरेंद्र मोदी जैसे व्यक्तित्व और अन्तरराष्ट्रीय स्तर का कोई भी नेता नहीं है। और जहां तक राज्यों के विधानसभा चुनावों की बात है तो मेरे विचार से वहां पर यह लहर कोई काम नहीं करती, क्योंकि वहां पर मतदाताओं के पास अपने नेता के चुनाव का विकल्प मौजूद होता है।
—विजय गोयल, मेल से

रहने का नहीं अधिकार
भारत मां की जय नहीं, सुनने को तैयार
कैसे उनको देश से, मिल पाएगा प्यार ?
मिल पाएगा प्यार, चलाते पत्थर गोली
नहीं समझते देशप्रेम की भाषा-बोली।
कह ‘प्रशांत’ जिनको भारत से प्यार नहीं है
उन्हें यहां रहने का भी अधिकार नहीं है॥

    — ‘प्रशांत’
जनहित के मुद्दों को दें प्राथमिकता
आजकल सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक के संपादकीय लेखों में कुछ ऐसे विषय उठाये जा रहे हैं जिनका कोई सिर-पैर नहीं होता। इन लेखों को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि भारत का विकास केवल और केवल राजनीतिक, सामाजिक धार्मिक ध्रुवीकरण तक सीमित है जबकि मूल समस्याओं की चर्चा न होने के कारण सरकार पर कोई दबाब नहीं बन पाता। सो प्रमुख धारा मीडिया एवं सोशल मीडिया को चाहिए कि वह जिम्मेदारी पूर्वक जनहित से जुड़े मुद्दों को उठाएं और सरकार पर दवाब बनाने का काम करें।    —रचना दुबलिश, मेल से

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