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‘संघ का स्वयंसेवक स्वयं की प्रेरणा से काम करता है। संगठन किसी के भय, प्रतिक्रिया व प्रतिरोध में काम नहीं करता। भारत की संस्कृति विविधता में एकता की बात नहीं, बल्कि एकता में विविधता की बात करती है।’’ उक्त उद्बोधन राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने दिया। वे गत दिनों पटना के राजेन्द्र नगर स्थित शाखा मैदान में स्वयंसेवकों को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने संघ कार्य का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा कि बाहर के व्यक्ति को लगता है कि संघ का कार्य अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए हो रहा है। लेकिन संघ कार्य को ध्यान में रखकर जो विचार करता है, उसे इस कार्य का रहस्य समझ में आता है।
संपूर्ण विश्व में भारत की जयकार हो और भारत सामर्थ्यवान तथा परम वैभव से पूर्ण हो, इस निमित्त ही संघ का कार्य है। लोग स्वयंसेवकों के व्यवहार से संघ को जानते हैं। संघ का कार्यकर्ता प्रामाणिक रीति से, समर्पण भाव से कोई कार्य करता है। इसलिए आज संघ से समाज की अपेक्षा बढ़ी है। समाज का कोई ऐसा अंग नहीं, जहां स्वयंसेवकों ने कार्य प्रारंभ नहीं किया है और कुछ दशकों में ही वहां प्रभावशाली परिवर्तन खड़ा नहीं किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि महापुरुषों के प्रयास से देश में स्वतंत्रता आई थी, लेकिन उसका परिणाम क्या निकला? ड़ॉ. हेडगेवार ने आजादी की लड़ाई में भाग लिया था। कार्यक्रमों में भाषण देना, स्वदेशी के निमित्त कार्य करना, पत्रक निकालना यह सब कार्य करके उन्होंने समझ लिया था कि इससे स्थायी स्वतंत्रता प्राप्त नहीं होने वाली।
अंत में उन्होंने संघ की स्थापना की। संघ का स्वयंसेवक स्वयं की प्रेरणा से नि:स्वार्थ भाव से कार्य करता है। उसके कार्य का उद्देश्य समाज को स्वस्थ करना है। शाखा में आकर साधना भाव से काम करना और दूसरों को इसके लिए प्रेरित करना ही उसका दैनिक कर्तव्य है और इसी से देश को परम वैभवशाली बनाने वाला समाज निर्मित होगा। उन्होंने कहा कि देश के सामान्य आदमी की उन्नति से ही राष्टÑ की उन्नति संभव है। जब तक किसी देश के सामान्य व्यक्ति की उन्नति नहीं होती, तब तक उस राष्टÑ की उन्नति नहीं हो पाती। विश्व का इतिहास भी इस बात की ओर इशारा करता है। श्री भागवत ने स्वयंसेवकों का आह्वान करते हुए कहा कि वे जन सामान्य की उन्नति के लिए तत्पर हों और घर-घर जाकर राष्टÑप्रेम की भावना को जागृत करें। (विसंकें,पटना)‘‘
‘‘अपनत्व का भाव लेकर करें समाज कार्य’’
गत 8 फरवरी को राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर-पूर्व क्षेत्र (बिहार-झारखंड) के संघ कार्यकर्ताओं की बैठक का आयोजन सदातपुर स्थित सरस्वती विद्या मंदिर, मुजफ्फनगर में किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत उपस्थित थे। उन्होंने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि पूरे विश्व के बुद्धिजीवियों का एक ही मत है कि सद्गुण संपन्न होकर ही प्रगति संभव है। जब तक समाज का सामान्य मनुष्य सद्गुण संपन्न होकर राष्टÑीय चरित्र के साथ व्यवहार नहीं करेगा, तब तक किसी देश की प्रगति संभव नहीं है। हमें देश की प्रगति के लिए ठेका देने की आदत को छोड़ना पड़ेगा। यह सिर्फ किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह का दायित्व नहीं है। सब लोग तन-मन-धन से देशहित में काम करेंगे, तभी देश आगे बढ़ेगा। उन्होंने कार्यकर्ताओं का आह्वान करते हुए कहा कि प्रत्येक कार्यकर्ता स्वयं के जीवन से समय निकालकर समाज का कार्य करे। समाज के बंधुओं के प्रति अपनत्व का भाव लेकर वे गांव-गांव जाकर सबको समाज कार्य के लिए प्रेरित करें। स्वयं के जीवन के उदाहरण से सामाजिक कार्यकर्ताओं को कर्तृत्व, नेतृत्व, व्यक्तित्व, समझदारी और भक्ति इन पांच गुणों से युक्त करें। ऐसा करने से ही समाज में योग्य परिवर्तन आएगा और देश सभी प्रकार से योग्य दिशा में आगे बढ़ेगा। (विसंकें,मुजफ्फरपुर)
‘मिशन साहसी’ का उद्देश्य छात्राओं को साहसी और आत्मनिर्भर बनाना
गत दिनों मुंबई के कांदिवली (पूर्व) स्थित ठाकुर महाविद्यालय में ‘मिशन साहसी’ के प्रथम प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। शिविर में हिन्दी फिल्म अभिनेता हर्ष उपस्थित थे। इस मौके पर उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद छात्राओं को साहसी बनाने हेतु स्वयं रक्षा प्रशिक्षण शिविर का आयोजन कर रही हैं। मैं इस कार्यक्रम का हिस्सा बनकर गौरवान्वित हूं। दूसरे दिन प्रशिक्षण में तीन हजार से अधिक छात्राएं उपस्थित रहीं। इस दौरान विद्यार्थी परिषद के राष्टÑीय संगठन मंत्री सुनील आंबेकर एवं राष्टÑीय महामंत्री आशीष चौहान ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।
(विसंकें, मुम्बई)
‘‘धर्म को सांप्रदायिक
सीमाओं में न बांधें’’
‘‘हिन्दू उदार व सार्वभौम चिंतन है और इसे सांप्रदायिक सीमाओं में बांधना इसके साथ अन्याय होगा।’’ उक्त बात राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री सुरेश भैयाजी जोशी ने कही। वे 7 फरवरी को हरियाणा के पंचकुला स्थित श्रीराम मंदिर में प्रबुद्ध नागरिक विचार गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आदि काल से भारत की पहचान हिन्दू धर्म से ही रही है और यह धर्म प्रत्येक व्यक्ति में तथा जीव में ईश्वरीय तत्व को मानने वाला है। इसलिए जाति के आधार पर मनुष्यों का आपस में भेदभाव करना धर्म के मूल तत्वों के खिलाफ है। जातिवाद ने समाज का बड़ा नुकसान किया है, इसलिए हमें इन संकीर्णताओं से ऊ पर उठ कर देशहित में सोचना चाहिए। हिन्दू धर्म ‘एकं सत् विप्रा बहुदा वदंति’ के सिद्धांत को मानता है। इसका अर्थ यह है कि यहां विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी के साथ-साथ एक दूसरे की भावनाओं, मूल्यों का सम्मान करने की भी परंपरा रही है। भारत हिन्दू राष्टÑ है और इसके उत्थान व पतन के लिए हिन्दू समाज ही जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि असहिष्णुता की शुरुआत विचारों के कट्टरपन से आती है। जब कोई मजहब सिर्फ अपने को श्रेष्ठ और दूसरे को तुच्छ समझने लग जाए तो दिक्कत खड़ी होती है। इस्लाम और ईसाई मजहब के मतावलंबियों ने यही किया है। ये लोग सिर्फ और सिर्फ अपना ही मार्ग श्रेष्ठ समझते हैं, यहीं से असहिष्णुता की शुरुआत होती है। उन्होंने कहा कि भारत की तुलना चीन, अमेरिका, ब्रिटेन आदि से नहीं करनी चाहिए, बल्कि भारत को भारत ही रहने देना चाहिए। गोष्ठी की अध्यक्षता लेफ्टिनेंट जनरल बीएस जायसवाल ने की। इस मौके पर राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र संघचालक प्रो़ बजरंग लाल गुप्त एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित लेफ्टिनेंट जनरल के.जे. सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। (विसंकें,पंचकुला)
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