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कुल 11 माह पुरानी योगी आदित्यनाथ सरकार में जहां पुलिस ने 38 कुख्यात अपराधियों को ढेर किया है तो वहीं संगीन धाराओं में वांछित दो हजार से अधिक छोटे-बड़े अपराधियों को गिरफ्तार करने में सफलता पाई है। इससे सामान्य जन भयमुक्त हैं और अपराधियों की हालत यह है कि डर से कांपते अपराधी ‘बेल’ की बजाय ‘जेल’ में रहना पसंद कर रहे हैं
सुनील राय/अश्वनी मिश्र
ँप्रदेश की पूर्ववर्ती खिलेश यादव सरकार में उत्तर प्रदेश पुलिस पर अपराध नियंत्रित न कर पाने और अपराधियों के आगे घुटने टेक देने का ठीकरा फोड़ा जाता था। कई मौके ऐसे भी आए जब सत्ता के दबाव में राज्य पुलिस को न केवल अपराधियों के आगे झुकना पड़ा बल्कि लज्जित होना पड़ा। लेकिन योगी आदित्यनाथ सरकार में वही उत्तर प्रदेश पुलिस अपराधियों के हौसलों को पस्त किए हुए है। थरथर कांपते अपराधी जान बचाने के लिए भागते फिर रहे हैं, लेकिन राज्य से अपराध का खात्मा करने का प्रण ले चुका प्रशासन फिलहाल नरमी बरतने के ख्याल में नहीं दिख रहा। पुलिस के साथ हुई अब तक 1,142 से ज्यादा मुठभेड़ों में 2 हजार से ज्यादा छोटे-बड़े अपराधी गिरफ्तार किए जा चुके हैं, जबकि 38 से ज्यादा अपराधी मारे गए हैं।
राजधानी लखनऊ सहित पश्चिम के जिलों में ताबड़तोड़ हुई मुठभेड़ों में इनामी बदमाशों का खात्मा कर पुलिस ने काफी हद तक अपराध पर अंकुश लगा दिया है।
अपराधियों पर सख्त योगी सरकार
समाजवादी शासन में कानून-व्यवस्था की कमर टूट चुकी थी। प्रदेश में गुंडा, माफियाओं का आतंक कायम था। अपराध का ग्राफ आसमान छू रहा था और सरकार देखकर भी इसे अनदेखा कर रही थी। इस सबसे उकता चुकी जनता ने 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया और भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया। जिस समय योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तब राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति बद से बदतर थी। उनके सामने इसे पटरी पर लाने की बड़ी चुनौती थी। उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और अपराधियों पर नकेल कसने के लिए पुलिस को व्यापक अधिकार दिए। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने एक सभा में कहा,‘‘हमारी सरकार राज्य में और अराजकता का वातावरण नहीं बनने देगी। हमने पर्याप्त चेतावनियां दी हैं, पर अब कार्रवाई करेेंगे। अपराधी या तो जेल भेज दिए जाएंगे या पुलिस मुठभेड़ में मारे जाएंगे। सरकार कानून-व्यवस्था से कोई समझौता नहीं करने वाली।’’ मुख्यमंत्री की तरफ से स्पष्ट संकेत मिलने के बाद प्रशासन ने कमर कसते हुए सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को एक सख्त निर्देश जारी किया। इसमें कहा गया कि अपराधियों पर नकेल कसने के लिए जिले के चुनिंदा अफसरों का एक दल बनाया जाए और उसे अपराधियों की धरपकड़ के लिए लगाएं। प्रशासन को अधिकार मिलते ही अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई तेज हो गई और उसी का परिणाम है कि अब तक राज्य में कुल 2,747 नामी अपराधी गिरफ्तार किए जा चुके हैं, जिनमें 1,728 से अधिक इनामी बदमाश हैं। इसके अलावा, सरकार ने 123 घोषित अपराधियों की 123 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति भी जब्त की है। अकेले बरेली क्षेत्र से ही 33 अपराधियों की संपत्ति जब्त की गई। वहीं, राज्य पुलिस ने 110 अपराधियों के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के अलावा राष्टÑीय सुरक्षा कानून (रासुका) भी लगाया है। जिन अपराधियों पर रासुका लगाया गया है, उनमें 33 बरेली क्षेत्र से हैं।
2009 से बंद थी मुठभेड़!
फर्जी मुठभेड़ के आरोप लगने पर राज्य में 2009 के बाद मुठभेड़ों पर रोक लगा दी गई थी। इससे अपराधियों के मन से पुलिस का खौफ खत्म हो गया था। राज्य के पुलिस महानिदेशक रह चुके बिक्रम सिंह बताते हैं, ‘‘जब मैं पद पर था तब खूब मुठभेड़ हुर्इं लेकिन मेरे हटने के बाद यह सब बंद हो गया, क्योंकि पुलिस को आक्रामक नहीं होने दिया गया। पुलिस के अधिसूचना तंत्र को अपंग बना दिया गया। आज जब मुठभेड़ में पुलिस अपराधियों को ढेर कर रही है तो उन्हें ही आपत्ति है, जो बदमाशों के हमदर्द हैं। मेरा भी मानना है कि गलत मुठभेड़ नहीं होनी चाहिए। लेकिन उनका सफाया भी जरूर होना चाहिए जो पूरे राज्य को अशांत किए हुए हैं।’’
बिक्रम सिंह आगे कहते हैं, ‘‘एक साल पहले के उत्तर प्रदेश और अब के उत्तर प्रदेश को देखें तो जमीन-आसमान का अंतर नजर आता है। एक साल पहले अपराधियों का बोलबाला था, लेकिन आज प्रशासन की तूती बोल रही है। जो गंदगी का ढेर जमा हो गया है, उसे साफ करने में समय तो लगेगा। संतोष की बात है कि सफाई का काम शुरू हो गया है। अगर यह काम इसी तरह चलता रहा तो छह महीने में राज्य में कानून का राज कायम होगा। मैं इसके लिए पुलिस के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को बधाई देता हूं।’’
पश्चिमी उ. प्र. में आतंक का सफाया
राज्य पुलिस द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, सर्वाधिक मुठभेड़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुई हैं। 362 से अधिक मुठभेड़ के साथ मेरठ शीर्ष पर है। इन मुठभेड़ों में 19 बदमाश भी मारे गए। दरअसल मेरठ जोन के अंतर्गत नोएडा, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर, सहारनपुर, मुजफ्फनगर, शामली, बागपत और बिजनौर जिले आते हैं। ये इलाके ऐसे हैं जहां प्रॉपर्टी, रंगदारी और प्लॉट कब्जा करने की घटनाएं आम हैं। अपराधी इनके लिए हत्या तक करने में जरा नहीं हिचकते। गाजियाबाद में तैनात एसटीएफ के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘‘पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपराधियों का बोलबाला रहा है, क्योंकि पूर्वी उत्तर प्रदेश व बुंदेलखंड इलाके में आर्थिक संपन्नता नहीं है, जिसके कारण अपराधी बहुत ज्यादा फल-फूल नहीं पाते। लेकिन संपत्ति से जुड़े अपराध जैसे—फिरौती के लिए अपहरण, ठेके पर हत्या, जबरन धन वसूली, प्लॉटों पर कब्जे आदि की घटनाएं बड़ी संख्या में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होतीं। इन घटनाओं को अंजाम देने वाले शातिर अपराधी बुंदेलखंड या फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही आते हैं, क्योंकि यहां उन्हें बहुत अधिक फायदा दिखता है। इसलिए वे हत्या करने से भी नहीं हिचकते। लेकिन अब ऐसे लोग कहीं जा छुपे हैं।’’
यकीनन अपराधियों के पस्त होते हौसले और कानून-व्यवस्था से समझौता नहीं करने की सरकार की नीति शासन से लेकर प्रशासन तक के कार्य व्यवहार में दिखाई दे रही है। तभी तो राज्य के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने एक सभा में मुख्यमंत्री योगी के बयान में अपनी बात जोड़ते हुए कहा था,‘‘आज अपराधियों को इस बात से डर लगता है कि उन्हें अपराध छोड़ना होगा या यूपी छोड़ना होगा। नहीं तो दुनिया ही न छोड़नी पड़ जाए।’’
दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल और उत्तराखंड की सीमाओं से घिरे और गंगा-यमुना के दोआब के बीच पसरे समृद्धशाली पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दो-ढाई दशक बाद सुरक्षा का माहौल बना है। लोग इसकी वजह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अपराध के नियंत्रण पर दृढ़ इच्छाशक्ति को मानते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 5 नवंबर, 2016 को सहारनपुर में पार्टी की परिवर्तन यात्रा की शुरुआत के अवसर पर मंडलीय रैली में लोगों को यकीन दिलाया था कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने पर बदलाव दिखेगा। अपराधियों के कारण जिन लोगों को पलायन के लिए विवश होना पड़ा, वही पलायन को मजबूर कर दिए जाएंगे। तब कुछ लोगों को लगा था कि यह चुनाव के समय की जाने वाली महज एक बयानबाजी ही होगी। लेकिन अब उसका असर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। ब्रिकम सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हालात पर कहते हैं, ‘‘राजनीतिक संरक्षण के चलते पहले एक खास वर्ग के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाया जाता था। कहा जाता था कि उन पर प्राथमिकी मत दर्ज करो, छापे मत डालो, पुरस्कार की घोषणा मत करो, गिरफ्तार मत करो, कड़ी कार्रवाई करने से बचो। मुठभेड़ तो बड़ी दूर की बात थी। जबकि मेरा मानना है, अपराधी चाहे किसी जाति, मत-पंथ से क्यों न हो, वह अपराधी ही होता है। कानून सबके लिए एक ही होना चाहिए। जो भी लोग कानून के प्रति दोहरा मापदंड अपनाते हैं वे राष्ट्र विरोधी हैं।’’
दरअसल, पिछले कुछ समय से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध को बढ़ावा मिला और राजनीतिक संरक्षण के चलते पूरे इलाके (मेरठ जोन) में अपराध फला-फूला। आए दिन खास वर्ग के अपराधियों द्वारा हिन्दू व्यापारियों से रंगदारी मांगना और रंगदारी न देने पर लूटपाट-अपहरण, उनके प्लॉट-मकानों पर कब्जा करना आम बात थी, यहां तक कि महिलाओं के साथ छेड़खानी, बलात्कार जैसे संगीन वारदातों को अंजाम दिया गया। इस तरह पूरे क्षेत्र में खास वर्ग के अपराधियों का आतंक कायम होता गया। पीड़ित समाजवादी सरकार से अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की उम्मीद लगाए रहे, पर सरकार तुष्टीकरण की राजनीति कर मुस्लिम वोट बैंक की फसल काटने में व्यस्त रही। लेकिन अब हालात बदलते दिख रहे हैं। समाज के हर तबके, व्यापारी से लेकर किसान, छात्र और महिलाओं में सुरक्षा की भावना जागृत हुई है।
बदलते हालात पर पंडित श्याम बिहारी मिश्र की अगुआई वाले उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार मंडल,सहारनपुर के जिलाध्यक्ष शीतल टंडन ने दो टूक कहा ,‘‘इस सरकार के अभी तक के कार्यकाल में सबसे ज्यादा सुधार कानून व्यवस्था के मोर्चे पर आया है। अपराधियों को यह संदेश चला गया है कि अब किसी भी तरह का दबाव पुलिस कार्रवाई से उन्हें बचा नहीं पाएगा।’’ सहारनपुर के प्रमुख सर्राफा कारोबारी राम राजीव सिंघल कहते हैं,‘‘अखिलेश सरकार में मुकीम काला गिरोह आदि ने जिस तरह सर्राफा कारोबारियों को निशाना बनाया, उससे व्यवसायी वर्ग कारोबार समेट कर अन्यत्र ले जाने की योजना बनाने लगा था। लेकिन अब ऐसा नहीं है।’’ विश्व प्रसिद्घ इस्लामी शिक्षण संस्था दारूल उलूम, देवबंद के जाने-माने विद्वान और सामाजिक चिंतक मौलाना अब्दुल्ला जावेद कहते हैं,‘‘आपराधिक घटनाओं में मुसलमानों की संलिप्तता की खबरें पढ़कर सिर शर्म से झुक जाता था। शुक्र है कि अब आपराधिक घटनाओं में संलिप्तता उनकी नहीं, बल्कि धरपकड़ की खबरें आने से उनकी सामाजिक सुधार की सोच को बल मिला है।’’ संयुक्त व्यापार मंडल सहारनपुर के जिलाध्यक्ष असलम सैफी कहते हैं कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से महसूस किया कि अखिलेश और मायावती सरकार के दौरान आम से लेकर दुर्दांत अपराधी तक राजनीतिकों और जनप्रतिनिधियों की गोद में पलते थे। लेकिन पुलिस ने अपराधियों के साथ उन्हें शरण देने वालों की भी कमर तोड़ दी है। कारोबार, बैंकों से रकम लेकर बेखौफ आना-जाना नया एहसास पैदा कर रहा है। योगी सरकार ने सभी वर्गों के मन से अपराधियों का खौफ निकाल दिया है। वास्तव में कारोबारियों के अच्छे दिन आ गए हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी डॉ. अशोक कुमार राघव कहते हैं कि इस क्षेत्र में अपराध के विकसित होने की मुख्य वजह इसकी समृद्धि है। यहां शराब की तस्करी, अवैध खनन कार्य, वृक्षों की कटाई, पशु तस्करी, व्यापारियों से रंगदारी जैसी घटनाएं आम हैं। लेकिन अब जब पुलिस को अधिकार मिल गए हैं तो वह अपना काम कर रही है।
छोटे अपराधियों पर भी कसता शिकंजा
अपराधियों की धरपकड़ में पुलिस छोटे अपराधियों पर भी शिकंजा कसती जा रही है। जिनका अपराध से थोड़ा भी नाता है वे या तो पुलिस गिरफ्त में हैं या फरार हैं। लिहाजा राजनीतिक दबाव के कारण वर्षों से ध्वस्त कानून-व्यवस्था पटरी पर आती दिख रही है। लखनऊ (पश्चिम शहर) में तैनात पुलिस अधीक्षक विकास त्रिपाठी कहते हैं, ‘‘जिस तरीके से पूरे प्रदेश में अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए कड़ी कार्रवाई की जा रही है, उससे अपराध में कमी आ रही है। पेशेवर अपराधियों के मन में यह खौफ पैदा हो गया है कि पकड़े जाने पर पुलिस उन्हें नहीं छोड़ेगी। पूरे राज्य में इसका असर दिख रहा है।’’
सुरक्षित ठिकाने की तलाश
अब तक 38 से अधिक अपराधियों को ठिकाने लगा चुकी पुलिस के कारण खूंखार अपराधियों में खौफ का आलम यह है कि जिनके नाम से ही लोग सहम जाते थे, आज वे जान बचाने के लिए सुरक्षित ठिकाने ढूंढ़ रहे हैं। यहां तक कि जेलों में बंद अपराधी भी बाहर आने के बारे में नहीं सोच रहे। दूसरी ओर, जो इनामी और वांछित अपराधी जेलों से बाहर हैं, वे भी अपने लिए महफूज ठिकाने की तलाश में हैं। फिलहाल इन्हें जेल ही अपने लिए सबसे सुरक्षित जगह नजर आ रही है। हालत यह है कि अपराधी दूसरे राज्यों में जाकर अन्य अपराधों में आत्मसमर्पण कर रहे हैं। राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एवं महानिदेशक (दूरसंचार) प्रमोद कुमार तिवारी कहते हैं, ‘‘बिल्कुल, आज अपराधी पुलिस के डर के कारण ही महफूज ठिकाने ढूंढ़ने को मजबूर हैं। पुलिस निर्भीक होकर अपना काम विधिसम्मत तरीके से कर रही है। शासन-प्रशासन का मानना है कि कानून से बढ़कर कोई नहीं है। दूसरी बात, कुछ लोग कह रहे हैं कि पुलिस पदोन्नति के लिए मुठभेड़ कर रही है, तो मैं उनको बताना चाहूंगा कि राज्य में मुठभेड़ के सहारे प्रमोशन पाने की व्यवस्था कई वर्ष पहले समाप्त हो चुकी है। इसलिए यह कहना उचित नहीं कि मुठभेड़ के पीछे पुलिस की कोई व्यक्तिगत लालसा या स्वार्थ है। अभी तक जितनी भी मुठभेड़ हुई हैं वे सभी आमने-सामने और वास्तविक ढंग से हुई हैं। इनमें कई पुलिसकर्मी घायल और शहीद भी हुए हैं। यह अदम्य साहस और वीरता का प्रतीक है, इसमें बिल्कुल भी संदेह नहीं है।’’
अलग-अलग क्षेत्रों में तैनात वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मानें तो लखनऊ से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक कई जिलों की हालत यह है कि कई अपराधी जो जमानत पर बाहर थे, वे जमानत तुड़वा कर वापस जेल चले गए हैं। वहीं, पहले से जेल में सजा काट रहे अपराधी जमानत मिल जाने के बाद भी ऐसी जुगत लगा रहे हैं कि उन्हें जेल में ही रहना पड़े। कुछ तो ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी पैरोल तक रद्द करा दी। मीडिया रपटों की मानें तो दिसंबर 2017 तक पुलिस के खौफ से 86 अपराधियों ने अदालतों में आत्मसमर्पण किया है, जिनमें 10 से अधिक ऐसे इनामी अपराधी हैं, जो अपनी जमानत रद्द करके जेल चले गए हैं। इनमें अधिकतर पश्चिमी उ.प्र. से संपर्क रखते हैं।
दूसरे राज्यों में कर रहे आत्मसमर्पण
पश्चिमी उ. प्र. में आतंक का पर्याय रहे बिल्लू दुजाना ने कुछ समय पहले दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत में आत्मसमर्पण किया। मेरठ के अमित जाट ने हरियाणा के सोनीपत की अदालत में आत्मसमर्पण किया। वहीं हरियाणा का रहने वाला बिट्टू, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपराध करता रहा, उसने हरियाणा के रोहतक में आत्मसमर्पण किया। ये ऐसे अपराधी हैं जो मार्च 2017 के पहले न केवल पुलिस के लिए सिरदर्द बने हुए थे, बल्कि अपने-अपने इलाकों में आतंक फैला रहे थे। लेकिन आज वे भागते फिर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री और सरकार के अधिकृत प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह इस मामले पर सरकार का पक्ष रखते हुए कहते हैं कि योगी सरकार कानून के मुद्दे पर ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति पर कायम है। पुलिस को खुली छूट है कि वह कानून सम्मत कोई भी कार्रवाई करे।’’
अत्याधुनिक तकनीक जरूरी
बिक्रम सिंह कहते हैं कि आज अपराध जगत में बड़े ही शातिर और शिक्षित अपराधी आ रहे हैं, जो अत्याधुनिक तकनीक से न केवल वाकिफ हैं, बल्कि समय-समय पर उसका प्रयोग करके अपराध को अंजाम देते हैं। अंडरवर्ल्ड, आईएसआईएस व अंतरराष्ट्रीय उग्रवादियों की रिसर्च एंड डेवलपमेंट शाखा है। ऐसे में पुलिस को भी अत्याधुनिक तरीके से लैस होकर इनसे एक कदम आगे होना होगा। वे कहते हैं, ‘‘पुलिस को आज चार क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने की जरूरत है। रोबोटिक्स, बिग डेटा, यूएवी यानी ड्रोन तकनीक और अंतिम ‘आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस’ पर पुलिस को अनुंसधान करना होगा। साथ ही, हमें जर्मनी, जापान, इस्रायल और अमेरिका की पुलिस के पास उपलब्ध उत्कृष्ट तकनीक को भी लाना होगा। इस सबसे हमारी पुलिस ज्यादा मजबूत
होगी और अपराधियों की कमर तोड़ने में सक्षम होगी।’’
बहरहाल, राज्य में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद अपराधियों पर कहर बनकर टूटती पुलिस की मंशा स्पष्ट है। वह राज्य में किसी भी तरह के अपराध और अपराधियों को फलने-फूलने का मौका नहीं देगी। प्रदेश की जनता को इससे तसल्ली मिली है और चाहती है पुलिस की कार्रवाई किसी दबाव में ढीली न पड़ने दी जाए।
साथ में सुरेंद्र सिंघल‘
‘पेशेवर अपराध में आई है कमी’’
उत्तर प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) आनंद कुमार ने राज्य में हो रही मुठभेड़ों और पुलिस की बदली कार्यशैली पर पाञ्चजन्य से बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश-
यही पुलिस पहले भी थी, अब इतनी सक्रियता कैसे? क्या कार्यशैली में कोई बदलाव आया है?
बिल्कुल,पुलिस का चेहरा वही है लेकिन चाल और चरित्र बदल गया है। पुलिस के पास असलहा दिखाने या डराने के लिए नहीं है। अपराधियों से निबटने और आत्मसुरक्षा के लिए है। पुलिस आज यही कार्य कर रही है।
कानून-व्यवस्था के मामले में पहले और अब के उत्तर प्रदेश में क्या अंतर पाते हैं?
जहां तक अंतर की बात है तो पेशेवर अपराधों में कमी आई है। अपराधियों के मन में पुलिस का डर पनपा है।
मीडिया का एक वर्ग आरोप लगाता है कि जो मुठभेड़ें हो रही हैं उसमें बहुत सी संदिग्ध हैं। इस पर क्या कहेंगे?
मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि पुलिस मुठभेड़ करती नहीं है। जब पुलिस अपराधी को पकड़ने जाती है तो पहले उसे आत्मसमर्पण का पूरा मौका देती है। लेकिन अपने को घिरा पाकर अपराधी पुलिस पर गोली चलाता है और पुलिस भी आत्मरक्षा में जवाब देती है। अब तक जितनी भी मुठभेड़ हुईं, उसमें पुलिस के अधिकारी से लेकर पुलिस उप-अधीक्षक तक घायल हुए हैं।
1,142 ,मुठभेड़
38अपराधी ढेर
265 अपराधी घायल
247 पुलिस कर्मी घायल
4 पुलिसकर्मी शहीद
2,747
छोटे-बड़े अपराधी गिरफ्तार
पिछले 11 महीने में ढेर वांछित अपराधी
31 मार्च,2017
गुरमीत – डकैती, हत्या सहित 7 मामलों में वांछित। देवबंद में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया
29 जुलाई,2017
नौशाद-हत्या के प्रयास सहित 17 से अधिक मामले। 75,000 का इनाम। कैराना में मारा गया
2 अगस्त,2017
कासिम- डकैती व दूसरे आपराधिक गतिविधियों में शामिल। मथुरा पुलिस ने सेरगढ़ में मार गिराया
3 अगस्त,2017
जयहिंद यादव- हत्या के प्रयास,डकैती व अन्य मामलों में 15,000 का इनाम। आजमगढ़ में ढेर
11 अगस्त,2017
इकराम टोला- हत्या, लूट के मामलों में 5 ,000 का इनामी। पुलिस ने कैराना में मुठभेड़ में मारा
16 अगस्त,2017
नितिन- हत्या, हत्या का प्रयास, लूट आदि 14 मामले। 50,000 का इनाम। मीरपुर में ढेर
18 अगस्त,2017
सुरजीत- हत्या, लूटपाट सहित 36 से अधिक मामले। 15,000 का इनाम। आजमगढ़ के मुबारकपुर में ढेर
1 सितंबर,2017
सुनील वर्मा-लूट, हत्या, डकैती सहित 12 से अधिक मामले। गोमती नगर, लखनऊ में मुठभेड़ में ढेर
3 सितंबर,2017
शारदा- हत्या, डकैती सहित 12 से अधिक मामले। 12,000 का इनाम। चित्रकूट के मानिकपुर में मारा गया
8 सितंबर,2017
नदीम- अपहरण, हत्या सहित 12 से अधिक मामले। 15,000 का इनाम। ककरौली में पुलिस ने मार गिराया
11 सितंबर, 2017
शमशाद- हत्या, हत्या का प्रयास सहित 36 से अधिक मामले। 12,000 का इनामी। सहारनपुर में मारा गया
12 सितंबर,2017
राजू- हत्या, डकैती सहित 12 से अधिक मामले। 12,000 का इनाम। शामली के झिनझाना में ढेर
14 सितंबर,2017
रामजी- 10 से अधिक संगीन मुकदमे। 50,000 का इनाम। आजमगढ़ के गंभीरपुर में मुठभेड़ में मारा गया
17 सितंबर,2017
जानू जान-हत्या, डकैती सहित 27 मामलों में तलाश। 12,000 का इनाम। मुजफ्फरनगर के खतौली में ढेर
18 सितंबर,2017
आदेश सुंदर- हत्या, अपहरण सहित 12 से अधिक मामले। 15,000 का इनाम। इटावा के भरथना में ढेर
19 सितंबर,2017
बवेंदर- हत्या, लूट और 23 से अधिक वारदात में वांछित। गौतमबुद्ध नगर में पुलिस ने ढेर किया
26 सितंबर,2017
मंसूर- हत्या, रंगदारी सहित 22 से ज्यादा मामले। 25,000 का इनाम। सरदार बाजार, मेरठ में मारा गया
28 सितंबर,2017
वसीम- हत्या, लूट सहित 10 से अधिक मामले। 50,000 का इनाम। पुलिस ने मेरठ में मार गिराया
28 सितंबर,2017
विकास- लूट सहित 12 से अधिक मामले। 50,000 का इनाम। अलीगढ़ में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया
3 अक्तूबर,2017
सुमित गुर्जर- हत्या,डक ैती में शामिल। 50,000 का इनाम। गौतमबुद्ध नगर में मुठभेड़ में मारा गया
22 अक्तूबर,2017
फुरकान- हत्या, डकैती और रंगदारी समेत 23 से अधिक मामले। 50,000 का इनाम। बुढ़ाना में ढेर
8 दिसंबर,2017
रामजानी-उ.प्र., उत्तराखंड में हत्या, डकैती सहित 22 मामले में 75,000 का इनाम। अकराबाद में मारा गया
10 दिसंबर, 2017
असलम अली- 10 से अधिक लूट, डकैती में उ.प्र. व उत्तराखंड में 52,500 का इनाम। दादरी में ढेर
29 दिसंबर,2017
सोनू कुमार- हत्या, डकैती सहित 26 मामले। 50,000 का इनाम। सिंकदराबाद में मारा गया
30 दिसंबर,2017
शमीम-डकैती सहित 29 से ज्यादा मामले। 1 लाख का इनाम। मुजफ्फरनगर में मारा गया
30 दिसंबर,2017
नूर मोहम्मद हसीन मोटा- हत्या, जबरन वसूली मामले में 50,000 का इनाम। परातपुर में ढेर
2 जनवरी,2018
शब्बीर- हत्या, लूटपाट के 30 से अधिक मामले। 1 लाख का इनाम। कैराना में पुलिस ने मुठभेड़ में मारा
3 जनवरी,2018
सतवीर- डकैती, लूट की 9 से अधिक वारदातों में शामिल 50,000 का इनामी। अलीगढ़ में मारा गया
9 जनवरी,2018
चानू सोनकर- 25,000 का इनामी। आजमगढ़ में हत्या सहित 12 से अधिक मामले। मुठभेड़ में ढेर
1 फरवरी,2018
दीपक- कई अपराधों में संलिप्तता। 15,000 का इनाम। मुठभेड़ में घायल हुआ, बाद में मौत
2 फरवरी,2018
इंद्रपाल- तीन दर्जन से अधिक मुकदमे। 25,000 का इनाम। पुलिस मुठभेड़ में मारा गया
3 फरवरी,2018
अकबर-13 से अधिक मुकदमें। 50,000 का इनाम। शामली में ढेर
6 फरवरी,2018
विकास जाट- हत्या सहित 6 से अधिक संगीन मुकदमें। 50,000 का ईनाम। एक मुठभेड़ में ढेर
8 फरवरी,2018
मनोज कुमार सिंह-हत्या सहित 17 से अधिक वारदातों को दिया अंजाम। 25,000 का इनाम। सीतापुर में ढेर
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