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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पुस्तक ‘एग्जाम वारियर्स’ को यूं तो बच्चों के नाम प्रधानमंत्री के संदेश के रूप में भी देखा जा रहा है, जिसका उद्देश्य बच्चों को यह समझाना है कि वे कैसे परीक्षा के दौरान अपने शरीर और मस्तिष्क को तनावमुक्त रखते हुए शांत मन से परीक्षा दे सकते हैं, परंतु इसे सिर्फ इतने तक सीमित करके देखना ठीक नहीं होगा। जब हम इस पुस्तक का साहित्यिक मूल्यांकन करते हैं, तो यह उपयोगी बाल-साहित्य की विविध कसौटियों पर एकदम खरी सिद्ध होती है। सामग्री से लेकर प्रस्तुति तक प्रत्येक बिंदु पर इसे एक उत्तम बाल-साहित्य की श्रेणी में रखा जा सकता है। इस पुस्तक में 25 मंत्र यानी कि अध्याय हैं, जिनमें न केवल परीक्षा, बल्कि समग्र शिक्षार्जन के दौरान एक विद्यार्थी के समक्ष आने वाली चुनौतियों और समस्याओं को रेखांकित करते हुए उनके समाधान पर बड़े ही रोचक ढंग से बात की गई है। आखिर में प्रधानमंत्री मोदी के प्रिय विषय योग पर भी बात की गई है। अध्यायों की सामग्री बाल-साहित्य की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे कि रोचकता, सरलता, संक्षिप्तता और मधुरता से परिपूर्ण है। अध्यायों के शीर्षक भी बड़े ही रोचक और आकर्षक रखे गए हैं जैसे कि Be a warrior, not a worrier; Aspire, Not to be, but to do; आदि।
पुस्तक का नाम : एग्जाम वारियर्स
लेखक : नरेंद्र मोदी
प्रकाशक : पेंगुइन बुक्स (भारत) सातवीं मंजिल, इंफिनिटी टावर-सी, डीएलएफ साइबर सिटी, गुरुग्राम-122002 (हरियाणा)
पृष्ठ : 208
मूल्य : रु. 100/-
पुस्तक के दूसरे अध्याय में वर्णित पूर्व राष्टÑपति डॉ. एपीजी अब्दुल कलाम के लड़ाकू विमान चालक बनने का अवसर चूक जाने और फिर वैज्ञानिक बनने का किस्सा उल्लेखनीय है। इस किस्से के माध्यम से बच्चों को यह समझाने का प्रयास किया गया है कि परीक्षा केवल उनकी तात्कालिक तैयारी की जांच करती है, न कि उनके समग्र व्यक्तित्व का परीक्षण करती है। पुस्तक के नौवें अध्याय में तकनीक के उपयोग के लिए बच्चों को प्रेरित किया गया है, परंतु उसकी लत का शिकार बनने से बचने की सलाह भी दी गई है। 13वें अध्याय में उपनिषदीय उद्धरण ‘अहं ब्रह्मास्मि’ का उल्लेख करते हुए बच्चों को परीक्षा के दौरान अफवाहों और भ्रामक सूचनाओं पर ध्यान न देते हुए स्वयं पर विश्वास करने की सीख दी गई है। अच्छी बात यह है कि इस पूरे वर्णन में यह कहीं नहीं लगता कि इनमें से कोई सीख-समझ बच्चों पर थोपने की कोशिश हो रही है। खेल-खेल में शिक्षा देना जिसे कहते हैं, वे गुण इस पुस्तक के लगभग सभी अध्यायों में अच्छी तरह से मौजूद हैं, इस कारण यह पुस्तक बाल-साहित्य की दृष्टि से और भी उत्तम हो जाती है।
इन बातों के अलावा एक खास बात यह है कि इस पुस्तक के हर अध्याय के अंत में उससे संबंधित अत्यंत रोचक कार्यकलाप भी दिए गए हैं, जिनके माध्यम से बच्चे उन अध्यायों में कही गई बातों से और अच्छे से जुड़ सकते हैं। इन कार्यकलापों के प्रति बच्चों को और आकर्षित करने के लिए इनके साथ क्यूआर कोड भी दिया गया है, जिसके द्वारा बच्चे अपना कार्य आॅनलाइन प्रधानमंत्री सहित तमाम लोगों से साझा भी कर सकते हैं। स्पष्ट है कि बेहतर ढंग से कार्यकलापों को करने और फिर उन्हें अन्य लोगों से साझा करने के कौतूहल में बच्चे उस अध्याय की बातों को सहज ही समझ सकते हैं। साथ ही, हर अध्याय में मौजूद चित्र भी अत्यंत आकर्षक और संदेशप्रद हैं। बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों और अध्यापकों के लिए भी यह पुस्तक पठनीय है। न केवल इसलिए कि इसमें अभिभावकों और अध्यापकों के नाम प्रधानमंत्री के पत्र हैं, बल्कि इसकी समग्र पठन सामग्री के अध्ययन के द्वारा उन्हें भी अपने बच्चों को सही परवरिश देने में मदद मिल सकती है।
इन सबके अलावा बाल-साहित्य पर कार्य करने वाले साहित्यकारों के लिए भी यह पुस्तक अत्यंत कारगर है। उन्हें इससे प्रेरणा लेनी चाहिए कि कैसे बच्चों के लिए उत्तम प्रकार के उपयोगी बाल-साहित्य का सृजन किया जा सकता है। यह पुस्तक दिखाती है कि बाल-साहित्य का अर्थ सिर्फ कथा-कहानियां ही नहीं होतीं, बल्कि उनसे इतर भी रोचक ढंग से बच्चों तक सही सीख पहुंचाने वाला साहित्य रचा जा सकता है। कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा कि आज जब बच्चों के लिए उत्तम साहित्य न के बराबर ही रचा जा रहा है, तब प्रधानमंत्री मोदी की यह पुस्तक न केवल उस कमी को कुछ हद तक पूरा करती है, बल्कि साहित्यकारों के समक्ष उपयोगी बाल-साहित्य का एक आदर्श स्वरूप भी प्रस्तुत करती है।
ल्ल पीयूष द्विवेदी
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