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स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ''क्या शिवाजी से बड़ा कोई नायक, कोई बड़ा संत, कोई बड़ा भक्त और कोई बड़ा राजा है? हमारे महान ग्रंथों में मनुष्यों के जन्मजात शासक के जो गुण हैं, शिवाजी उन्हीं के अवतार थे। वे भारत के असली पुत्र की तरह थे जो देश की वास्तविक चेतना का प्रतिनिधित्व करते थे। उन्होंने दिखाया था कि भारत का भविष्य अभी या बाद में क्या होने वाला है। एक छतरी के नीचे स्वतंत्र इकाइयों का एक समूह, जो एक सवार्ेच्च अधिराज्य के अधीन हो।'' एक सच्चा राजा जानता है कि कैसे हारे हुए युद्ध को भी जीतना है। एक सच्चा राजा जानता है कि जब उसका जीवन समाप्त हो जाता है, तो भी उसे कैसे जीना चाहिए। शिवाजी महाराज जन-जन के नायक हैं। लेकिन स्वयं शिवाजी का नायक कौन है? शिवाजी महाराज ने न कभी विदुर को देखा-पढ़ा था, न चाणक्य को। न उनके दौर में कोई ऐसा शूरवीर था, जो उन्हें प्रेरित कर सकता होता। लेकिन शिवाजी महाराज ने विदुर, कृष्ण, चाणक्य, शुक्राचार्य हनुमान और राम -सभी को आत्मसात किया हुआ था। उनकी पहली नायक उनकी माता जीजाबाई हैं। जिन्होंने बचपन से ही उनको रामायण और महाभारत की शिक्षा दी। महात्मा विदुर ने कहा था
ते प्रतितिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम।
तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेम।
(महाभारत विदुरनीति)
अर्थात् जो (आपके प्रति) जैसा व्यवहार करे उसके साथ वैसा ही व्यवहार करो। जो तुम पर हिंसा करता है, उसके प्रतिकार में तुम भी उस पर हिंसा करो! मैं इसमें कोई दोष नहीं मानता, क्योंकि शठ के साथ शठता ही करना उचित है।
भगवान श्रीकृष्ण ने भी ऐसा ही कहा है –
ये हि धर्मस्य लोप्तारो वध्यास्ते मम पाण्डव।
धर्म संस्थापनार्थ हि प्रतिज्ञैषा ममाव्यया।
(हे पाण्डव! मेरी निश्चित प्रतिज्ञा है कि धर्म की स्थापना के लिए मैं उन्हें मारता हूं, जो धर्म का लोप (नाश) करने वाले हैं।) ऋग्वेद में आज्ञा दी गई है (1।11। 6।) कि जो मायावी, छली, कपटी अर्थात् धोखेबाज है, उसे छल, कपट अथवा धोखे से मार देना चाहिए।
ह्यमायाभिरिन्द्रमायिनं त्वं शुष्णमवातिर:।
(हे इन्द्र! जो मायावी, पापी, छली तथा जो दूसरों को चूसने वाले हैं, उनको तुम माया से मार दो।) और जब शिवाजी ने अफजल खां का वध किया, तो जाहिर तौर पर उनकी यही शिक्षा उनकी प्रेरणा थी, जबकि उनके अधिकांश मंत्रियों की समझ से यह सारी बातें परे थीं। शिवाजी महाराज ने घुड़सवारी, तलवारबाजी और निशानेबाजी दादोजी कोंडदेव से सीखी थी।
भ्रष्टाचार और शिवाजी
शिवाजी ने राजदरबारों और शासन प्रणाली में निहित भ्रष्टाचार को देख-समझ लिया था। साधारण बुद्धि का राजा होता, तो अपने दरबार में या अपने शासन में निहित भ्रष्टाचार को समाप्त करवा कर ही स्वयं को महान समझ लेता। लेकिन शिवाजी महाराज एक कदम और आगे गए। उन्होंने अपने राज्यक्षेत्र में तो भ्रष्टाचार को समाप्त किया ही, इसी हथियार का प्रयोग अपने राज्य के विस्तार में किया। अनिल माधव दवे ने अपनी पुस्तक 'शिवाजी एंड सुराज' में लिखा है, ''महाराज को राज व्यवहार में भ्रष्टाचार, चाहे वह आचरण में हो या अर्थतंत्र में, बिल्कुल अस्वीकार्य था। उनके सौतेले मामा मोहिते ने रिश्वत ली, यह जानकारी महाराज को मिली तो उन्होंने तत्काल उसे कारागार में डाल दिया और छूटने पर पिता शाह जी के पास भेज दिया।''
पुस्तक के अनुसार, ''इसी प्रकार एक दबंग ने गरीब किसान की भूमि हड़पने की कोशिश की। शिवाजी ने अपने पद एवं शक्ति का गलत प्रयोग करने वाले उस बड़े किसान को न केवल दंडित किया, बल्कि गरीब की भूमि भी सुरक्षित करवा दी।'' अपने अधिकारियों को लिखे 13 मई, 1671 के एक पत्र में शिवाजी लिखते हैं, ''अगर आप जनता को तकलीफ देंगे और कार्य संपादन हेतु रिश्वत मांगेंगे तो लोगों को लगेगा कि इससे तो मुगलों का शासन ही अच्छा था और लोग परेशानी का अनुभव करेंगे।''
दवे लिखते हैं, ''छत्रपति शिवाजी भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ थे। इसमें केवल आर्थिक नहीं, बल्कि चारित्रिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार भी शामिल था। उनकी भ्रष्टाचार की परिभाषा बेहद व्यापक थी, जिसकी हिमायत सभी देशभक्त नागरिक कर रहे हैं।''
छत्रपति शिवाजी ने राज्य स्थापना की शुरुआत पुणे में स्थित तोरण के दुर्ग पर कब्जे से की, जो उस समय बीजापुर सल्तनत के अधीन था। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह बीमार पड़ गए थे और इसी का फायदा उठाकर शिवाजी महाराज ने तोरण के दुर्ग पर अपना अधिकार जमा लिया। शिवाजी महाराज ने आदिलशाह के दरबारियों को पहले ही खरीद लिया और फिर सुल्तान के पास अपना एक दूत भेजकर खबर भिजवाई कि हम आपको आपके किलेदार से ज्यादा पैसा देंगे। अगर आपको किला (वापस) चाहिए तो अच्छी रकम देनी होगी। किले के साथ-साथ उनका क्षेत्र भी उनको सौंप दिया जाएगा। इसके बाद उन्होंने 10 किलोमीटर दूर स्थित एक और किला अपने नियंत्रण में ले लिया। आदिलशाह ने शाहजी राजे को अपने पुत्र को नियंत्रण में रखने के लिए कहा लेकिन शिवाजी महाराज ने इसकी परवाह किए बिना अपने पिता के क्षेत्र का प्रबंध भी अपने हाथों में ले लिया था और लगान भेजना भी बंद कर दिया। 1647 ई़ तक शिवाजी महाराज चाकण से लेकर निरा तक के भू-भाग को अपने नियंत्रण में ले चुके थे। यहां से वे मैदानी इलाकों की ओर बढ़े और तमाम देशी-विदेशी राजाओं को युद्ध में पराजित करते हुए शिवाजी महाराज ने दक्षिण कोंकण सहित कोंकण के 9 दुगोंर् पर अपना अधिकार जमा लिया। कोंडाणा किले पर शिवाजी के हमले के जवाब में बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी महाराज के पिता शाहजी और उनके सौतेले भाई को कर्नाटक राज्य में बंदी बना लिया। सही समय का चयन, समय का उपयोग उनके पिता को इस शर्त पर रिहा किया गया (हालांकि तिथि को लेकर मतभेद हैं) कि शिवाजी महाराज कोंडाणा का महत्वपूर्ण और रणनीतिक महत्व का किला छोड़ देंगे और बीजापुर के किलों पर आक्रमण नहीं करेंगे। उस दौर में सिंहासन के लिए परिजनों की हत्या कर देना भी आम बात होती थी़, लेकिन शिवाजी महाराज ने पिता और सौतेले भाई के लिए कोंडाणा का किला छोड़ दिया और बीजापुर पर पांच वर्ष तक कोई युद्ध नहीं किया। लेकिन इतने समय में अपनी विशाल सेना को मजबूत बना लिया और जावली इलाके और किले पर कब्जा करके बीजापुर की दक्षिण की तरफ से घेरेबंदी कर ली। आदिलशाह ने अपने सबसे बहादुर सेनापति अफजल खां को शिवाजी को मारने के लिए भेजा। अफजल खां के वध के बाद शिवाजी ने 10 नवंबर, 1659 को प्रतापगढ़ के युद्ध में बीजापुर की सेना को हरा दिया।
मनोवैज्ञानिक युद्ध कौशल
औरंगजेब ने शिवाजी की चुनौती का सामना करने के लिए बीजापुर की बड़ी बेगम के आग्रह पर अपने मामा शाइस्ता खान को दक्षिण भारत का सूबेदार बना दिया। शाइस्ता खान ने डेढ़ लाख सेना लेकर पुणे में तीन साल तक लूटपाट की। शिवाजी ने 350 मावलों के साथ उस पर छापामार हमला कर दिया। शाइस्ता खान अपनी जान बचाकर भागा। शाइस्ता खान को इस हमले में अपनी तीन उंगलियां गंवानी पड़ीं। औरंगजेब ने शाइस्ता खान को दक्षिण भारत से हटाकर बंगाल भेज दिया। लेकिन शाइस्ता खान अपने 15,000 सैनिकों के साथ फिर आया और शिवाजी के कई क्षेत्रों में आगजनी करने लगा। जवाब में शिवाजी ने मुगलों के क्षेत्रों में लूटपाट शुरू कर दी। शिवाजी ने 4,000 सैनिकों के साथ सूरत के व्यापारियों को लूटने का आदेश दिया। उस समय हिंदू मुसलमानों के लिए हज पर जाने का द्वार सूरत ही था।
सामाजिक चुनौतियों का सामना
शिवाजी ने अपने धर्म की रक्षा और संवर्धन के लिए ब्राह्मणों, गायों और मंदिरों की रक्षा को अपनी राज्यनीति का लक्ष्य घोषित किया था। लेकिन उस समय प्रचलित छुआछूत एक बड़ी बाधा था। सन् 1674 तक पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिंदू राष्ट्र की स्थापना के बावजूद शिवाजी का राज्याभिषेक नहीं हो सका था। ब्राह्मणों ने उनका घोर विरोध किया था, क्योंकि उनके अनुसार शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे। राज्याभिषेक के लिए उन्हें क्षत्रियता का प्रमाण चाहिए था। बालाजी राव जी ने शिवाजी के मेवाड़ के सिसोदिया वंश से संबंध के प्रमाण भेजे, जिसके बाद रायगढ़ में उन्होंने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया। राज्याभिषेक के बाद भी पुणे के ब्राह्मणों ने शिवाजी को राजा मानने से इनकार कर दिया। स्वयं प्रथम पेशवा ने शिवाजी के क्षत्रिय होने का सार्वजनिक रूप से विरोध किया।
नाना प्रकार से असंतुष्ट ब्राह्मणों को प्रसन्न करने के प्रयास हुए। इसके बावजूद जब ब्राह्मणों ने इसे अपना अपमान घोषित कर दिया, तो शिवाजी ने अष्ट-प्रधान मंडल और प्रशासकीय कायोंर् में मदद के लिए आठ मंत्रियों की अष्ट-प्रधान परिषद की स्थापना की। यह व्यवस्था हर किले पर लागू की गई। मराठा साम्राज्य चार भागों में विभाजित था। हर राज्य में एक सूबेदार होता था जिसको प्रांतपति कहा जाता था। हर सूबेदार के पास भी एक अष्ट-प्रधान समिति होती थीं।
युद्ध नीति
शिवाजी महाराज ने अपना साम्राज्य बाहुबल के साथ-साथ बुद्धिबल से स्थापित किया था। उन्होंने स्थापित साम्राज्यों और सल्तनतों की युद्ध-मशीनरी में एक प्रमुख दोष खोज निकाला। और अपनी मराठा सेना में चेन-ऑफ-कमांड को सवार्ेच्च शक्तियां दीं। चाणक्य की नीति पर चलते हुए उन्होंने अपने अद्धितीय गुप्तचरों और कार्यकर्ताओं का तानाबाना पूरे देश में फैला दिया था। उस दौर में राजा के मर जाने पर सैनिक भी युद्ध से भाग खड़े होते थे, लेकिन शिवाजी के सशक्त योद्धा उनकी मृत्यु के 27 साल बाद भी उनके सपने को जीवित रखने के लिए लड़ते रहे थे। क्योंकि शिवाजी अपनी जागीर बचाने के लिए नहीं लड़े। वे स्वराज्य की स्थापना के लिए लड़े। उनका लक्ष्य एक स्वतंत्र साम्राज्य स्थापित करना था, लेकिन उनके सैनिकों को स्पष्ट आदेश था कि भारत के लिए लड़ो, किसी राजा विशेष के लिए नहीं।
सर्जिकल स्ट्राइक
शिवाजी की अभिनव सैन्य रणनीति विशेषरूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध के तरीकों का आविष्कार किया, जिन्हें शिवा सूत्र या गामिनी कावा कहते हैं। यह भूगोल, फुर्ती और भौंचक कर देने वाले सामरिक कारकों के अनुसार भारी जोखिम लेकर युद्ध में परिस्थिति का लाभ उठाने की रणनीति है। इसमें बड़े और अधिक शक्तिशाली दुश्मनों को हराने के लिए सटीक हमलों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इसमें सर्जिकल स्ट्राइक जितना ही भारी जोखिम है। पुरंदर के किलेदार की मृत्यु होने के बाद किले के उत्तराधिकार के लिए उसके तीनों बेटों में लड़ाई छिड़ गई। दो भाइयों के निमंत्रण पर शिवाजी महाराज पुरंदर पहुंचे और कूटनीति का सहारा लेते हुए उन्होंने तीनों भाइयों को बंदी बना लिया और पुरंदर के किले पर अधिकार कर लिया। शिवाजी महाराज ने शुरुआती तीन किले बिना किसी युद्ध या खूनखराबा के प्राप्त कर लिए थे।
मानसिक दृढ़ता
महिलाओं से बलात्कार या छेड़छाड़ पर शिवाजी कठोर दंड देते थे। क्रूर घटनाओं के लिए वे महाक्रूर थे। दंड अपराध की गंभीरतापर निर्भर करता था। जब शिवाजी मात्र 14 वर्ष के थे, तो उनकी जागीर के एक गांव के रणजी नाम के एक पाटिल (गांव के मुखिया) पर एक विधवा की इज्जत लूटने का आरोप साबित हुआ था। पाटिल को दरबार में बुलाया गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसने जो कुछ किया था वह अपराध भी था। उसे लगा मुखिया होने के चलते उसका दुस्साहस क्षम्य ही नहीं, बल्कि सामान्य है। उसने लाल महल के आंगन में चल रहे न्यायालय में तमाम तरह की बातें कहीं। अपनी माता और दादाजी की उपस्थिति में शिवाजी ने अपना फैसला सुनाया, ''पाटिल रणजी, ताराफ- खेड़ेदेरे, बाबाजी भिकाजी गुजर ने पाटिल के रूप में अपने कार्यालय में नौकरी करते हुए अपराध का कार्य किया है। उसके कायोंर् की सूचना हमारे पास पहुंची है और उसका अपराध संदेह से परे साबित हो गया है। इसके बाद हमारे आदेश के अनुसार, उसके सभी चार अंग (हाथ-पैर) भंग कर दिए जाएं।'' यह एकऐतिहासिक निर्णय था। उस युग में इससे पहले कभी भी किसी भी (गरीब) पुरुष या महिला ने इतना सुरक्षित और इतना प्रसन्न महसूस नहीं किया था। उस दिन से पूरा मावल शिवाजी से प्रेम करने लगा।
घर वापसी
शिवाजी जानते थे भारत के हिंदुओं का धर्मांतरण ही समस्या की सबसे बड़ी जड़ है। उन्होंने हमेशा उन लोगों की मदद की जो हिंदू धर्म में लौटना चाहते थे। यहां तक कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी एक ऐसे हिंदू से कर दी, जो अतीत में मुसलमान बना दिया गया था। उन्होंने प्राचीन हिंदू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। छत्रपति शिवाजी महाराज के निकट साथी, सेनापति नेताजी पालकर जब औरंगजेब के हाथ लगे और उसने उनका जबरन धर्म परिवर्तन कर उसका नाम मोहम्मद कुली खान रख दिया और उनको काबुल में लड़ने के लिए भेज दिया। कुछ समय बाद जब उसे लगा कि अब यह भागकर शिवाजी के पास नहीं जाएगा तो उसने नेताजी पालकर को महाराष्ट्र के सैनिक व्यवस्था में शामिल कर वहां भेज दिया। नेताजी के मन में पुन: हिंदू धर्म में वापस आने की इच्छा जगी तो वे तुरंत शिवाजी के पास पहुंच गए। शिवाजी महाराज ने मुसलमान बने मोहम्मद कुली खान (नेताजी पालकर) को ब्राह्मणों की सहायता से पुन: हिंदू बनाया और उनको अपने परिवार में शामिल कर उनको प्रतिष्ठित किया। शिवाजी के राज्याभिषेक समारोह में हिंदू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिंदू साम्राज्य था। शिवाजी के परिवार में संस्कृत का ज्ञान अच्छा था और संस्कृत भाषा को बढ़ावा दिया गया था। शिवाजी ने इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपने किलों के नाम संस्कृत में रखे जैसे कि सिंधु दुर्ग, प्रचंडगढ़ तथा सुवर्ण दुर्ग। उनके राजपुरोहित केशव पंडित स्वयं एक संस्कृत के कवि तथा शास्त्री थे। उन्होंने दरबार की कई पुरानी विधियों को पुनर्जीवित किया एवं शासकीय कायोंर् में मराठी तथा संस्कृत भाषा के प्रयोग को बढ़ावा दिया। महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी के सार्वजनिक त्योहार की शुरुआत सबसे पहले छत्रपति शिवाजी महाराज ने की थी।
निडरता
शिवाजी महाराज के पिता शाहजी बीजापुर के सुल्तान के सामंत थे। एक बार वे शिवाजी को बीजापुर के सुल्तान के दरबार में ले गए। शाहजी ने तीन बार झुक कर सुल्तान को सलाम किया, और शिवाजी से भी ऐसा ही करने को कहा। लेकिन शिवाजी अपना सिर ऊपर उठाए सीधे खड़े रहे। वह एक विदेशी शासक के सामने किसी कीमत पर अपना सिर झुकाने को तैयार नहीं हुए और सीना तान कर चलते हुए दरबार से बाहर आ गए।
भारतीय नौसेना के जनक छत्रपति शिवाजी
17 वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी के राज्यकाल में एक मजबूत मराठा नौसेना ने भारतीय जल सीमाओं की अनेक विदेशी आक्रमणकारियों से सफलतापूर्वक रक्षा की। छत्रपति शिवाजी की नौसेना भलीभांति प्रशिक्षित थी और उनके पोत तोपों से सुसज्जित थे। शिवाजी ने अंदमान द्वीप समूह पर निगरानी चौकियों का निर्माण कराया जहां से शत्रुओं पर निगाह रखी जाती थी। मराठा नौसेना ने कई बार अंग्रेजी, डच और पुर्तगाली नौसेनाओं पर सफलतापूर्वक हमले किए और जहाजों पर कब्जा किया। सिद्धोजी गुर्जर, कान्होजी आंग्रे, मैनाक भंडारी और मेंढाजी भाटकर कुछ प्रमुख मराठा नौसेनानायक थे जिन्होंने अपनी वीरता और रणनीति से उस समय की बड़ी नौसेनाओं के छक्के छुड़ा दिए। शिवाजी ने अपनी दूरदर्शिता और रणनीति से भारतीय नौसेना के इतिहास में ऐसी छाप छोड़ी कि उन्हें आधुनिक भारतीय नौसेना का जनक कहा जाता है।
अंग्रेजों को सबक सिखाने वाले
राजापुर में ब्रिटिश व्यापारियों का गोदाम था। उन्होंने वहां के व्यापारियों को अपने वश और प्रलोभन में लेकर किसानों से अत्यंत अल्प दाम में वह खोपरा खरीद लिया। तब परिवहन के साधन नहीं थे। किसानों की आर्थिक क्षमता ऐसी नहीं थी कि वे अपना उत्पाद अन्य मंडी में भेजते। उन्हें भारी हानि सहनी पड़ी। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज को पत्र लिखकर इस विषय में सूचित किया। शिवाजी महाराज ने तुरंत अंग्रेजों की ओर से आ रही वस्तुओं पर 200 प्रतिशत दंडात्मक आयात शुल्क लगा दिया। इससे अंग्रेजों की वस्तुओं की बिक्री घट गई। अंग्रेजों ने छत्रपति शिवाजी महाराज को पत्र लिखा, 'हम पर दया करें, सीमा शुल्क कम करें।' छत्रपति शिवाजी महाराज ने तत्काल आज्ञापत्र भेजा, ''मैं शुल्क उठाने के लिए एक ही शर्त पर तैयार हूं। आपने हमारे राजापुर के किसानों की जो कुछ भी हानि की है, उसका भुगतान योग्य प्रकार से करें तथा उस पूर्ति की प्राप्ति सूचना किसानों की ओर से प्राप्त होने के पश्चात् ही मैं दंडात्मक शुल्क निरस्त करूंगा, अन्यथा नहीं।'' दूसरे दिन से अंग्रेजों ने व्यापारियों से मिलकर उनके द्वारा सभी किसानों को उनकी वस्तुओं का उचित मूल्य तथा उसके साथ हानि-पूर्ति की राशि अदा करना आरंभ किया। तदुपरांत किसानों ने छत्रपति शिवाजी महाराज को उनकी हानि की पूर्ति होने और अपनी संतुष्टि के विषय में सूचित किया। तब जाकर शिवाजी महाराज ने सीमा शुल्क निरस्त किया।
धार्मिक सहिष्णुता
1650 के पश्चात् बीजापुर, गोलकुंडा, मुगलों की रियासत से भागे अनेक मुस्लिम, पठान और फारसी सैनिकों को विभिन्न ओहदों पर शिवाजी द्वारा रखा गया था जिनकी धर्म संबंधी आस्थायों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जाता था और कई तो अपनी मृत्यु तक शिवाजी की सेना में ही कार्यरत रहे। कभी शिवाजी के विरोधी रहे सिद्दी संबल ने शिवाजी की अधीनता स्वीकार कर ली थी और उसके पुत्र सिद्दी मिसरी ने शिवाजी के पुत्र शंभा जी की सेना में काम किया था।
शिवाजी की दो टुकडि़यों के सरदारों का नाम इब्राहीम खान और दौलत खान था, जो मुगलों के साथ शिवाजी के युद्ध में भाग लेते थे। काजी हैदर के नाम से शिवाजी के पास एक मुस्लिम था जो की ऊंचे ओहदे पर था। पोंडा के किले पर अधिकार करने के बाद शिवाजी ने उसकी रक्षा की जिम्मेदारी एक मुस्लिम फौजदार को दी थी। बखर्स के अनुसार जब आगरा में शिवाजी को कैद कर लिया गया था तब उनकी सेवा में एक मुस्लिम लड़का भी था जिसे शिवाजी के बच निकलने का पूरा वृत्तांत मालूम था। शिवाजी के बच निकलने के पश्चात् उसने अत्यंत मार खाने के बाद भी स्वामी भक्ति का परिचय देते हुए अपना मुंह कभी नहीं खोला था। शिवाजी की सेना में कार्यरत हर मुस्लिम सिपाही चाहे किसी भी पद पर हों, शिवाजी की न्यायप्रिय नीति के कारण उनके जीवन भर सहयोगी बने रहे।
भगवा ध्वज और गुरु के प्रति असीम श्रद्धा
एक कथा के अनुसार छत्रपति शिवाजी के गुरुदेव समर्थ गुरु रामदास एक दिन गुरु भिक्षा लेने जा रहे थे। उन पर शिवाजी की नजर पड़ते ही प्रणाम कर निवेदन किया, ''हे गुरुदेव! मैं अपना पूरा राज-पाट आपके कटोरे में डाल रहा हूं! अब से मेरा राज्य आपका हुआ!''
तब गुरु रामदास ने कहा, ''सच्चे मन से दे रहे हो! वापस लेने की इच्छा तो नहीं?''
''बिल्कुल नहीं! यह सारा राज्य आपका हुआ!''
''तो ठीक है! यह लो!'' कहते कहते गुरु ने अपना भगवा चोला फाड़ दिया! उसमें से एक टुकड़ा निकाला और शिवाजी के मुकुट पर बांध दिया और कहा, ''लो! मैं अपना राज्य तुम्हें सौंपता हूं। इसे चलाने और देखभाल के लिए। मेरे नाम पर राज्य करो! मेरी धरोहर समझ कर! मेरी तुम्हारे पास अमानत रहेगी।''
''गुरुदेव! आप तो मेरी भेंट लौटा रहे हैं। कहते-कहते शिवाजी की आंखें गीली हो गईं।''
''ऐसा नहीं! कहा न मेरी अमानत है। मेरे नाम पर राज्य करो। इसे धर्म राज्य बनाए रखना, यही मेरी इच्छा है।''
''ठीक है गुरुदेव! इस राज्य का झंडा सदा भगवा रंग का रहेगा! इसे देखकर आपकी तथा आपके आदशोंर् की याद आती रहेगी।''
'सदा सुखी रहो!'' कहकर गुरु रामदास भिक्षा हेतु चले दिए! तब से मराठा साम्राज्य का ध्वज भगवा रंग का रहा।
शिवाजी महाराज जन-जन के नायक हैं, लेकिन स्वयं शिवाजी का नायक कौन है? निश्चित ही भगवा और भगवान में अभेद रचने वाली संस्कृति ही वह अदृश्य नायक है। शिवाजी राजे के रक्त में, हम सब की नस-नस में वही संस्कृति तो है! कोई भय नहीं, कोई भेद नहीं..ज़य शिवराय!
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