|
गत 3 फरवरी को मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ द्वारा तीन दिवसीय ग्राम विकास सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें देशभर से आए कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने क्षेत्र के प्रभात ग्रामों में चलने वाली गतिविधियों पर विभिन्न सत्रों में विस्तृत चर्चा की। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत उपस्थित थे। उन्होंने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि जहां कृषि, गोपालन, गो संवर्धन होता है, जहां जल, जंगल है और जहां जन, जानवर सुख पूर्वक रहते हैं, वही गांव है। गांव की पांच शक्तियों धार्मिक शक्ति, युवा शक्ति, मातृशक्ति, सज्जन शक्ति और संघ शक्ति के द्वारा सप्त सम्पदा-भू सम्पदा, जल सम्पदा, वन सम्पदा, गो-सम्पदा, जीव सम्पदा, ऊर्जा सम्पदा एवं जन सम्पदा का संरक्षण होना चाहिए तथा जन की शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार, स्वावलम्बन की चिंता होनी चाहिए। वह संघ की भाषा में प्रभात ग्राम है। देशभर में ऐसे 318 ग्राम हैं। श्री भागवत ने कहा कि देश में पौने सात लाख स्थानों में साढ़े पांच लाख ग्राम हैं। हमें कम से कम दस प्रतिशत ग्रामों को प्रभात ग्राम बनाना होगा, तभी देश में अच्छे ग्राम बनाने की लहर पैदा होगी। उन्होंने कहा कि मनुष्य सोचता है कि पढ़- लिखकर क्या करूंगा, कितना बड़ा बनूंगा। परंतु विद्या सिर्फ आजीविका सिखाने वाली चीज नहीं है़ शिक्षा मनुष्य के जीवन में लक्ष्य देती है, जीवन को अर्थपूर्ण बनाते हुए ज्ञान-विज्ञान का विकास करती है। मनुष्यों के विद्यालय-महाविद्यालय सर्वत्र हैं, पशुओं के नहीं हैं क्योंकि पशुओं को सीखने की आवश्यकता नहीं होती। भौतिक जीवन जीने के लिए जो सीखना चाहिए, वो बात स्कूल-कॉलेज में सीखने की नहीं होती है। परंतु मनुष्य जीवन जीना चाहता है और अच्छा बनाना चाहता है। मनुष्य विचार करता है, उसके मन में प्रश्न होते हैं, जिसके वह उत्तर खोजना चाहता है। मनुष्य में जीवन जीने का उद्देश्य होना चाहिए। इसलिए मनुष्य के जीवन में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। (विसंकें, बैतूल)
राष्टÑभक्ति की पाठशाला है रा.स्व.संघ
पिछले दिनों राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ, बरेली की ओर से बरेली कॉलेज परिसर में शिव शक्ति संगम का आयोजन किया गया। समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में महामंडलेश्वर जूना अखाड़ा स्वामी यतींद्रानंद गिरि जी महाराज एवं मुख्य वक्ता के रूप में राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ संयुक्त उत्तर प्रदेश क्षेत्र के प्रचार प्रमुख श्री कृपाशंकर उपस्थित थे।
स्वामी यतींद्रानंद गिरि जी महाराज ने इस अवसर पर कहा कि बरेली आला हजरत की नगरी नहीं अपितु यह पांचाल की नायिका का नगर है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्रभक्ति की पाठशाला है। यहां से तैयार हुआ स्वयंसेवक जीवनभर राष्ट्र के लिए ही कार्य करता है। वहीं मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित श्री कृपाशंकर ने कहा कि 1925 में आद्य सरसंघचालक प़ पू़ ड़ॉ. हेडगेवार ने जो एक पौधा राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के रूप में लगाया था, वह आज स्वयंसेवकों के सेवा भाव, देश के प्रति निष्ठा और समर्पण से एक वट वृक्ष का रूप ले चुका है। प्रतिनिधि
‘‘हमारी निष्ठा राष्टÑ के प्रति होनी चाहिए’’
‘‘मनुष्य का निर्माण ही वास्तव में राष्टÑ का निर्माण है। हमारी निष्ठा राष्टÑ के प्रति होनी चाहिए, जो हमारे देश को आगे बढ़ाएगी। हमारा देश तब शक्तिशाली होगा, जब अंतिम व्यक्ति मजबूत होगा। इसके लिए हमें संगठित होकर प्रयास करने चाहिए।’’ उक्त बात राष्टÑीय स्वंयसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र कायर्वाह प्रो़ सीताराम व्यास ने कही। वे पिछले दिनों हरियाणा के दीनबंधु छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मुरथल में कर्तव्य बोध दिवस पर मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हम अपनी इच्छा शक्ति के आधार पर देश को विकास के पथ पर ले जा सकते हैं। लेकिन इसके लिए हमारे अंदर राष्टÑीय चरित्र होना चाहिए। हमारा व्यक्तिगत चरित्र होगा, तभी हमारा राष्टÑीय चरित्र होगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान और जर्मनी दोनों देशों को पराजय मिली थी। लेकिन जापान की जनता की इच्छाशक्ति ने उसे पुन: सक्षम बना दिया। जापान इस्पात का सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया। जर्मनी का मजदूर द्वितीय युद्ध के बाद 4 घंटे अपने देश के लिए मुफ्त में मजदूरी करता था। जर्मनी भी विकसित राष्टÑों की श्रेणी में आ गया। उन्होंने कहा कि जब तक हमारा देश महान नहीं होगा, तब तक हमारा अस्तित्व नहीं है। पश्चिम के देशों में मिलकर कार्य करने की वृत्ति है, तभी वे आगे बढ़ते हैं। भाव ही कर्म को प्रेरणा देता है। विचार से कर्तव्यबोध की ऊर्जा जाग्रत होती है और उसी से समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है। इस मौके पर विवि. के कुलपति प्रो़ राजेंद्र कुमार अनायत ने कहा कि मानव को कर्म करने का ही अधिकार है। कर्मों में निष्काम होने के लिए साधक में विवेक भी होना चाहिए और सेवाभाव होना चाहिए। मानव को आसक्ति का त्याग करके सम होकर कर्म करना चाहिए। वह जो भी कार्य कर रहा है, वह भगवान की इच्छा के अनुसार कर रहा है, यह भाव मन में
रहना चाहिए। (विसंकें, सोनीपत)
टिप्पणियाँ