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सोशल मीडिया पर कथित बुद्धिजीवियों का एक बड़ा सिंडिकेट सक्रिय है, जो सोची-समझी रणनीति के तहत देश का माहौल बिगाड़ने के लिए चालाकी से जहरीले संदेश फैला रहा है। इनका मकसद समाज और देश की संस्कृति को भीतर से खोखला करना है। आखिर इतना पालगलपन क्यों? यह कैसी सोच है?
शंकर सिंह
पिछले काफी समय से मैं सोशल मीडिया पर कई मूर्खतापूर्ण और जहरीले संदेश लगातार देख रहा हूं। कभी प्रतिकार करना उचित नहीं समझा, क्योंकि मैं हमेशा इनमें उलझना बेवकूफी ही मानता रहा, लेकिन यह तो एक सोची-समझी रणनीति के तहत चल रहा एक बहुत बड़ा सिंडिकेट है! इसमें बड़े-बड़े कथित बुद्धिजीवियों से लेकर ‘लंपट’ टाइप के लोग बाकायदा एक गुट बनाए हुए हैं। ये लोग पूरे सोशल मीडिया में अपना जाल ऐसे बिछाए हुए हैं, जैसे एक विषधारी नाग शिकार की तलाश में कुंडली मारे बैठा रहता है।
इस गुट के लोग हत्याओं को अलग-अलग नजरिये से देखते हैं। समुदाय विशेष का शख्स हो तो उसकी हत्या या स्वाभाविक मौत पर भी ये बवाल काट देते हैं। ये मुठ्ठी भर लोग पूरे सोशल मीडिया पर विषवमन कर सारे माहौल में गंदगी घोल देते हैं। लेकिन यदि मरने वाला हिंदू हो तो फिर इनका नजरिया बिल्कुल बदल जाता है। इस सिंडिकेट के लोग उसे जायज ठहराने या फिर उस हत्या को जरूरी बताने तक के कुतर्क देने लगते हैं। अरे भइया! हत्या हमेशा हत्या ही कहलाएगी, चाहे मरने वाला हिंदू हो या मुसलमान। यह कैसी सोच है? एक समुदाय के लोग मरें तो वह हत्या कही जाएगी और दूसरे समुदाय के लोग मरें तो ‘वध’ कहा ँजाएगा! इतनी बेशर्मी क्यों? वह भी खुलेआम और सीना तानकर… वैसे, ऐसी तुच्छ मानसिकता रखने वाले लोग मुट्ठी भर ही हैं। इनका एक ही राग रहता है कि हम और हमारी विचारधारा, सोच-समझ ही ठीक है। बाकी सब मूर्ख हैं। ये लोग जिस पाले में खड़े हैं, उस पाले में आप खड़े हैं तो ठीक हैं, वरना आपको गलत ठहराने के तमाम कुतर्क गढ़ने में ये लोग चंद सेकेंड भी नहीं लगाते। ये सोशल मीडिया पर खुलकर ओछी भाषा, छिछले कुतर्क, अमर्यादित बातें करने से भी गुरेज नहीं करते और डंके की चोट पर बरगलाने वाली चीजों को परोसकर माहौल को खराब करने का काम बड़ी चालाकी से करते हैं। इन्हें पता ही नहीं चलता कि इनका कथित विरोध या किसी एक पक्ष में खड़े होने की ‘सनक’ कब देशद्रोह में तब्दील हो जाती है। ऐसे लोग सिर्फ एक विचार के साथ चलते हैं। वह यह कि हमारा झूठ भी सच है और दूसरे का सच तो बिल्कुल ही झूठ है। जो इनके पक्ष में खड़ा है, उसका महिमामंडन और जो नहीं खड़ा है, उसका मानमर्दन करने में यह सिंडिकेट अपनी एड़ी-चोटी का जोर लगा देता है। यह साजिश पूरे योजनाबद्ध तरीके से चल रही है। ये लोग समाज और इस देश की संस्कृति को भीतर से खोखला करने पर तुले हैं।
आज देश को इतना खतरा पाकिस्तान या चीन से नहीं है, जितना देश के भीतर बैठे इन ‘जयचंदों’ से है। अपने कुतर्कों और कुकर्मों को सही ठहराने के लिए ये किसी भी हद तक उतरने के लिए आमादा हैं। अपनी कलुषित और कथित विचारधारा में ये लोग इतने मदमस्त हैं कि देश की प्रतिष्ठा और परंपरा को भी दांव पर लगाने से नहीं चूक रहे हैं। आखिर इतना पागलपन क्यों? (शंकर सिंह की फेसबुक वॉल से)
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