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एक अंग्रेजी पुस्तक में लिखा गया है कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद ‘कल्याण’ में श्रद्धांजलि नहीं छपी थी। यह सफेद झूठ है, जिसे इतिहासकार रामचंद्र गुहा और अरुंधति रॉय जैसे लोग ‘मौलिक कृति और दुर्लभ खजाना’ बता रहे हैं
इस लेख को लिखने की आवश्यकता इसलिए पड़ी, क्योंकि एक अंग्रेजी पुस्तक में यह लिखा गया है कि महात्मा गांधी कि हत्या के बाद गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘कल्याण’ में उन पर कोई श्रद्धांजलि नहीं छपी थी। थोड़ा गहराई से शोध करने पर यह पता चला कि अंग्रेजी पुस्तक में लिखी गई यह बात सरासर झूठ है। इस अंग्रेजी पुस्तक का नाम है ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग आॅफ हिन्दू इंडिया’ (हार्परकॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया 2015, लेखक-अक्षय मुकुल)। इस पुस्तक को लिखने के लिए लेखक को न्यू इंडिया फाउंडेशन की ओर से एक फेलोशिप भी दी गई थी। पुस्तक के आवरण पृष्ठ पर ही इतिहासकार रामचन्द्र गुहा की टिप्पणी छपी है, जिसमें कहा गया है कि यह पुस्तक एक ‘सशक्त और मौलिक कृति है।’ इसी पृष्ठ पर अरुंधति रॉय की टिप्पणी भी छपी है। उन्होंने इस पुस्तक को ‘दुर्लभ खजाना’ बताया है।
महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी, 1948 की शाम को हुई थी। उस समय तक छपाई के बाद ‘कल्याण’ की अधिकांश प्रतियां भेजी जा चुकी थीं। बाकी जो प्रतियां बची थीं, उनके प्रारंभ में ही महात्मा गांधी के बारे में तीन पेज चिपका कर उन्हें पाठकों को भेजा गया था। इन तीन पृष्ठों में से पहले पृष्ठ पर बापू की तस्वीर थी। दूसरे पर उनके अनुयायी बाबा राघवदास (1896-1958) द्वारा लिखी गई श्रद्घांजलि थी। तीसरे पृष्ठ पर ‘कल्याण’ के संपादक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार उपाख्य भाईजी (1892-1971) द्वारा ‘बापू’ शीर्षक से लिखी गई श्रद्घांजलि थी। इतना ही नहीं, ‘कल्याण’ के फरवरी 1948 के अंक में बापू का एक लेख ‘हिन्दू विधवा’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। अप्रैल 1948 के अंक में ‘बापू की अमर वाणी’ शीर्षक से महात्मा गांधी के उपदेश छापे गए थे। इसके अलावा, भाईजी ने अप्रैल अंक में ही महात्मा गांधी के कुछ संस्मरण ‘बापू के भगवन्नाम संबंधी कुछ पवित्र संस्मरण’ भी प्रकाशित किए थे।
जनवरी 1948 में गीता प्रेस में कर्मचारियों की हड़ताल भी हुई थी, जो लंबी चली थी। इससे छपाई की सारी व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई थी और छपाई बहुत विलंब से होने लगी थी। ‘कल्याण’ के मार्च 1948 के अंक में प्रारम्भ में ही एक पर्ची चिपकी हुई है। इसमें लिखा है, ‘‘प्रेस में हड़ताल हो जाने और छपाई मशीनों की कमी के कारण नारी अंक छपने में बहुत देर हुई। मार्च का अंक अभी छप पाया है। अप्रैल-मई के अंकों के प्रकाशन में अभी देर लगेगी। हम चेष्टा कर रहे हैं कि जून-जुलाई तक अंक समय पर निकालने लगेंगे। कृपालु ग्राहक परिस्थिति समझ कर क्षमा करें…’’
यहां संक्षेप में यह बता देना भी आवश्यक है कि बाबा राघवदास कौन थे? बाबा राघवदास मराठा थे। महाराष्टÑ में जन्मे और पूर्वी उत्तर प्रदेश उनकी कर्म भूमि रहा। उन्होंने उस क्षेत्र में कई शिक्षण संस्थाएं भी स्थापित कीं। 1929 के दौरान श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार के साथ उनका नाम भी ‘कल्याण’ के संपादक के तौर पर छपता था। 1948 में उन्होने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर एक उपचुनाव लड़ा था और विपक्ष के प्रतिष्ठित नेता आचार्य नरेंद्र देव को पराजित कर उत्तर प्रदेश में विधायक निर्वाचित हुए थे। आज गोरखपुर में उनके नाम से मेडिकल कॉलेज है।
महात्मा गांधी के साथ श्री पोद्दार का संबंध एक परिवार के जैसा था। 1932 में गांधीजी के पुत्र देवदास गांधी को अंग्रेजी सरकार ने गिरफ्तार करके गोरखपुर जेल में रखा था। गांधीजी के कहने पर श्री पोद्दार ने देवदास गांधी का पूरा ख्याल रखा और नियमित रूप से जेल में उनसे मिलते रहे। रिहाई के फौरन बाद जब देवदास गांधी बीमार पड़े, तब भी श्री पोद्दार ने उनका ख्याल रखा। श्री पोद्दार भारत के विभाजन के प्रखर विरोधी थे। अंग्रेजी सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचने के आरोप में वह जेल में भी रहे। ‘कल्याण’ के अक्तूबर 1946 के अंक पर एक बार ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंध भी लगाया था। जब ‘कल्याण’ का प्रकाशन दोबारा शुरू हुआ तो श्री पोद्दार बापू से आशीर्वाद लेने गए थे। गांधीजी ने तब उनको यह सलाह दी थी कि कल्याण में कभी भी बाहर का कोई विज्ञापन या पुस्तक समीक्षा मत छापना। ‘कल्याण’ पत्रिका आज तक गांधीजी के उस परामर्श का अनुसरण करती आ रही है। गीता प्रेस किसी से कोई दान राशि भी स्वीकार नहीं करती है। कल्याण में लिखने वालों में गांधीजी ही नहीं, बल्कि उस जमाने के कई चोटी के नेता भी शामिल थे। इनमें लाल बहादुर शास्त्री, पं. मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तम दास टंडन आदि प्रमुख नाम थे। ‘कल्याण’ किसी भी लेखक को कोई पारिश्रमिक या मानदेय राशि नहीं देता था और आज भी नहीं देता है। अप्रैल 1955 में तत्कालीन राष्टÑपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद गीता प्रेस देखने गए थे।
गीता प्रेस के संस्थापक ब्रह्मलीन श्री जयदयाल गोयन्दका (1885-1965) और श्री पोद्दार सदैव आत्मप्रचार से कोसों दूर रहते थे। श्री पोद्दार को केंद्र सरकार ने भारतरत्न देने का प्रस्ताव किया था। यह प्रस्ताव लेकर तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत स्वयं उनके पास गए थे। परंतु भाईजी ने बड़ी विनम्रता से उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। श्री गोयन्दका और श्री पोद्दार की नि:स्वार्थ सेवा का ही परिणाम है कि आज गीता प्रेस समूचे विश्व की अग्रणी प्रकाशन संस्था बन चुकी है और गीता प्रेस से छप कर लगभग पचास हजार पुस्तकें प्रति दिन बाजार में आती हैं और यहां से प्रकाशित होने वाला ‘कल्याण’ 90 वर्षों से भी अधिक समय से निरंतर प्रकाशित होने वाली देश की शायद सबसे पुरानी पत्रिका है।
आज गीता प्रेस आध्यात्मिक भारत की रीढ़ बन गया है और कुछ देसी और विदेशी ताकतें इस मेरुदंड पर प्रहार करने का प्रयास कर रही हैं। ‘पाञ्चजन्य’ ने 26 मार्च, 2017 के अंक में इस पर एक आलेख भी प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक था -‘गीता प्रेस को बदनाम करने की कोशिश’। यह लेख भी शोध पर ही आधारित था, जिसमें यह बताने का प्रयास किया गया था कि ‘कल्याण’ के जनवरी 1948 के अंक में महात्मा गांधी पर कोई श्रद्घांजलि क्यों नहीं छपी? लेकिन आगे शोध करने पर पता चला कि ‘कल्याण’ में श्रद्घांजलि छपी थी। प्रस्तुत लेख आगे के शोध का परिणाम है।
(लेखक ने ब्रिटेन के कार्डिफ विश्वविद्यालय से पी.एचडी की है और झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय के जन संचार विभाग से प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।)
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