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तिब्बत में पिछले दिनों जबरदस्त भूकंप आने से ब्रह्मपुत्र के रास्ते में बनीं तीन कृत्रिम झीलों ने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में बाढ़ का खतरा पैदा कर दिया है। अगर इन झीलों का पानी किनारे तोड़कर भारत की तरफ आया तो अरुणाचल प्रदेश और असम का एक बड़ा भू-भाग बाढ़ की चपेट में होगा। भारत ने चीन को अपनी चिंताओं से अवगत करा दिया है। भारत के विशेषज्ञों ने सरकार को इस ओर अविलंब ध्यान देने और रक्षात्मक उपाय करने का े कहा है
वर्ष 2000 में ब्रह्मपुत्र नदी पर हुए एक हादसे से अरुणाचल प्रदेश में जानो-माल की हुई भयानक तबाही की याद अभी मिटी भी नहीं थी कि भारत एक बार फिर उसी तरह की भीषण आपदा के मुहाने पर खड़ा दिखता है। भारत-चीन के बीच तनाव और रक्षा विशेषज्ञों के सामने पहुंचे उपग्र्रह चित्र इस स्थिति की गंभीरता को और बढ़ा रहे हैं।
गत वर्ष 17 नवंबर को यारलंग त्सांगपो नदी क्षेत्र में रिक्टर स्केल पर 6.4 की तीव्रता से आए भूकंप से नदी के मोड़ पर पर्वत-स्खलन हुआ, जिससे वहां तीन वृहत्त झीलों का निर्माण हो गया है। भू-स्खलन की गाद से नदी का अवरुद्ध जल तीन स्थानों पर अथाह जलराशि के रूप में जमा हुआ है। यारलंग त्सांगपो नदी का यह क्षेत्र नदी के उस मोड़ के समीप है जहां से यह घूमकर भारत के अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र के नाम से प्रविष्ट होती है। चीन के दक्षिणी तिब्बत में सिंक्यांग से लोहित नदी से जुड़ते इस क्षेत्र में आए भूकंप ने ब्रह्मपुत्र में जल प्रवाह के बढ़ने की आशंका से भारत को चिंतित कर दिया है। चीन का यह भूकंप प्रभावित क्षेत्र भारत में असम के तिनसुखिया के महत्वपूर्ण डिब्रूगढ़ शहर से मात्र 261 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
चीन द्वारा पूर्व में नदी जल आंकड़े भारत को समय पर न देने तथा इससे भारत में हुई जानो-माल की क्षति से भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन तथा राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा जारी नवीनतम उपग्रह आंकड़ों ने भारत की इस चिंता को और बढ़ा दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत सरकार को अविलंब इस मसले पर चीन से बात करनी चाहिए ताकि अरुणाचल प्रदेश और असम में किसी संभावित खतरे को दूर करने के लिए समय रहते प्रयास हो सकें।
तीव्र प्रवाह से नुकसान का अंदेशा
नदी के निचले क्षेत्र में तेज जल प्रवाह के साथ भूस्खलन की गाद अरुणाचल प्रदेश और असम के कई शहरों को लील सकती है। चीन में त्सांगपो नाम से प्रचलित ब्रह्मपुत्र उन स्थानों से होकर बहती है जहां विश्व के अत्यंत ऊंचे पर्वत तथा गहरे और संकरे दर्रे हैं। इस क्षेत्र के नामचा-बरवा पर्वत की ऊंचाई 7782 मीटर है। नदी 30 किलोमीटर के छोटे-से सफर में लगभग 2000 मीटर की ढलान तय कर लेती है। भूकंप से अवरुद्ध इन तीनों झीलों के जल प्रवाह और गाद के भारत में घुसने से होने वाली तबाही को एक संभावित राष्ट्रीय आपदा के रूप में देखा जा रहा है। अरुणाचल प्रदेश के ऊंचे इलाकों में स्वच्छ ब्रह्मपुत्र के जल को जब वहां के निवासियों ने काले रंग में बदलते देखा तो इस आशंका ने और बल लिया कि शायद चीनी क्षेत्र में त्सांगपो नदी में भूकंप से निर्मित झीलों का पानी आकर मिल रहा है। ब्रह्मपुत्र नदी चीन के तिब्बत क्षेत्र, भारत तथा बांग्लादेश से होकर बहती है। ब्रह्मपुत्र का उद्गम तिब्बत के दक्षिण में मानसरोवर के निकट चेमायुंग दुंग नामक ग्लेशियर से होता है। बंगाल की खाड़ी तक इसकी लंबाई लगभग 2900 किलोमीटर है। यह नदी बांग्लादेश की सीमा में जमुना के नाम से दक्षिण में बहती हुई गंगा की मूल शाखा पद्मा के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में मिलती है। सुवनश्री, तिस्ता, तोर्सा, लोहित, बराक आदि ब्रह्मपुत्र की उपनदियां हैं। ब्रह्मपुत्र के किनारे स्थित शहरों में डिब्रूगढ़, तेजपुर एंव गुवाहाटी प्रमुख हैं।
पूर्वोत्तर राज्यों की जीवन-रेखा
असम में यह नदी काफी चौड़ी हो जाती है। कहीं-कहीं तो इसकी चौड़ाई10 किलोमीटर तक है। डिब्रूगढ़ तथा लखीमपुर जिले के बीच नदी दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है। असम में ही नदी की दोनों शाखाएं मिल कर माजुली द्वीप बनाती हैं जो दुनिया का सबसे बड़ा नदी-द्वीप है। असम में इस नदी को प्राय: ब्रह्मपुत्र नाम से ही बुलाते हैं, पर बोड़ो लोग इसे भुल्लम-बुथुर भी कहते हैं जिसका अर्थ है-कल-कल की आवाज। ब्रह्मपुत्र को आदिकाल से ही भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की जीवन रेखा कहा जाता है।
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण के उद्देश्य से 1954 के बाद इस नदी पर तटबंधों का निर्माण प्रारम्भ किया गया था, बांग्लादेश में यमुना नदी के पश्चिम में दक्षिण तक बना ब्रह्मपुत्र तटबंध बाढ़ को नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध होता है। तीस्ता बराज परियोजना, सिंचाई और बाढ़, दोनों की सुरक्षा योजना है। ब्रह्मपुत्र या असम घाटी से बहुत थोड़ी विद्युत पैदा की जाती हैै। असम में कुछ जलविद्युत केन्द्र बनाए गए हैं, जिनमें से सबसे उल्लेखनीय ‘कोपली हाइडल प्रोजेक्ट’ है। अन्य कई परियोजनाओं पर निर्माण कार्य जारी है।
तिब्बत में ला—त्जू (ल्हात्से दजोंग) के पास त्सांग्पो (ब्रह्मपुत्र) नदी लगभग 644 किलोमीटर के एक नौकायन योग्य जलमार्ग से मिलती है। इसमें पशु—चर्म और बांस से बनी नौकाएं और बड़ी नौकाएं समुद्र तल से 3,962 मीटर की ऊंचाई पर चलती हैं।
असम और बांग्लादेश के बड़ी आबादी वाले क्षेत्रों में बहने के कारण ब्रह्मपुत्र सिंचाई से ज्यादा अंत:स्थलीय नौ—संचालन के लिए महत्वपूर्ण है। नदी ने पश्चिम बंगाल और असम के बीच पुराने समय से एक जलमार्ग बना रखा है। ब्रह्मपुत्र बंगाल के मैदान और असम से 1,126 किलोमीटर की दूरी पर डिब्रगढ़ तक नौकायन योग्य है। सभी प्रकार के स्थानीय जलयानों के साथ ही यंत्रचालित स्टीमर भारी-भरकम कच्चा माल, इमारती लकड़ी और कच्चे तेल को ढोते हुए आसानी से नदी मार्ग में ऊपर और नीचे चलते हैं। 1962 में असम में गुवाहाटी के पास सड़क और रेल, दोनों के लिए सराईघाट पुल बनने से पहले तक ब्रह्मपुत्र नदी मैदानों में अपने पूरे मार्ग पर बिना पुल के थी। 1987 में तेजपुर के निकट एक दूसरा कालिया भोमौरा सड़क पुल आरम्भ हुआ। भारत और बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र को पार करने का सबसे महत्वपूर्ण और सस्ता साधन नौकाएं ही हैं। सादिया, डिब्रूगढ़, जोरहाट, तेजपुर, गुवाहाटी, गोलपाड़ा और धुबुरी असम में मुख्य शहर और नदी पार करने के स्थान हैं।
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से चीन की भारत विरोधी नीतियों ने भारत के रक्षा विशेषज्ञों को सचेत किया हुआ है। इधर डोकलाम विवाद के बाद चीन द्वारा दक्षिण तिब्बत में सैन्य-अभ्यास और भारत से लगे सुदूर क्षेत्रों में सैनिक रसद का भंडारण दोनों देशों के परस्पर विश्वास में अनचाहा तनाव उत्पन्न कर रहा है। कुछ रक्षा विशेषज्ञ चीन द्वारा ‘वाटर बम’ को भविष्य में एक हकीकत के रूप में देख रहे हैं। दरअसल, चीन भौगोलिक स्थिति के लिहाज से भारत से ऊंचाई पर बसा है और उसके कब्जे वाले तिब्बत से निकलने वाली कई नदियां भारत से होकर बहती हैं। ऐसे में अंदेशा है कि चीन भारत में प्रविष्ट होने वाली नदियों में अचानक पानी की निकासी बढ़ाकर भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों में भीषण तबाही मचा सकता है। कुछ भारतीय रक्षा विशेषज्ञ चीन की तरफ से इस आशंकित कार्रवाई को ‘वाटर बम’ की संज्ञा देते हैं। हालांकि, अब तक इस बात के कोई संकेत या सबूत तो नहीं मिले हैं कि चीन भारत के विरुद्ध ऐसी कोई साजिश रच रहा है। चीन से भारत की ओर बहने वाली तीन नदियां हैं। पहली नदी है भारत में महानद कही जाने वाली ब्रह्मपुत्र, जो तिब्बत से निकलती है। यह अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। चीन से निकलने वाली दूसरी नदी है सतलुज, जो तिब्बत से निकलकर हिमाचल प्रदेश और पंजाब होते हुए पाकिस्तान में जाकर सिंधु नदी की सहयोगी धारा में बदल जाती है। तीसरी नदी है सिंधु, जो तिब्बत से निकलकर कश्मीर के लद्दाख में पहुंचने के बाद जांस्कर नदी में मिल जाती है और पाकिस्तान होते हुए अरब सागर में मिलती है। चीन ने ब्रह्मपुत्र पर कई बांध बनाए हैं। ऐसे में अगर वह इन बांधों के दरवाजे खोल देता है तो अरुणाचल और असम में जबरदस्त तबाही आ सकती है। इस जल प्रलय का नुकसान पूरे पूर्वोत्तर का जलमग्न हो जाना हो सकता है। उधर, सतलुज में चीन ने अगर पानी छोड़ा तो पंजाब का बहुत बड़ा इलाका डूब जाएगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसी स्थिति में चीन पर भरोसा ना करते हुए सरकार को अपनी सारी रणनीति खुली रखनी चाहिए।
चौकस रहने की आवश्यकता
इधर ब्रह्मपुत्र नदी पर बनी कृत्रिम झीलों के मुद्दे पर भारत सजग है। भारत के सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल ने गत 22 दिसंबर को दिल्ली में भारत-चीन सीमा वार्ता की 20वीं बैठक में इस पर चीनी काउंसलर यांग चीजी से भी बात की। साझा बयान में उल्लेख किया गया है कि झीलों के कारण कुछ भारतीय इलाकों में बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो गया है। हालांकि इन झीलों के आकार और इनमें मौजूद पानी के बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है। लेकिन यह चिंता सता रही है कि अगर ये झीलें टूटती हैं तो इनसे निकलने वाले पानी से शियांग (अरुणाचल प्रदेश में) और ब्रह्मपुत्र (असम में) के
किनारे रहने वाले लाखों लोग प्रभावित हो सकते हैं। ल्ल
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