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पाञ्चजन्य एवं आर्गनाइजर के 70 वर्ष पूर्ण होने पर नई दिल्ली के
नेहरू मेमोरियल सभागार में वसंत पंचमी पर हुआ विशेषांकों का लोकार्पण
पाञ्चजन्य ब्यूरो
‘‘पाञ्चजन्य एवं आर्गनाइजर में कार्य करने वाले भले ही बदलते रहे हों लेकिन इस 7 दशक की यात्रा में इन्होंने सदैव भारत के स्वर को ही गुंजाया है।’’ उक्त वक्तव्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य ने दिया। वे वंसत पंचमी के शुभ अवसर पर नई दिल्ली के नेहरू मेमोरियल सभागार, तीनमूर्ति भवन में भारत प्रकाशन के तत्वावधान में आयोजित पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर के 70 वर्ष पूर्ण होने पर दोनों साप्ताहिकों के विशेषांकों के लोकार्पण समारोह को मुख्य वक्ता के नाते संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में केन्द्रीय सूचना प्रसारण एवं कपड़ा मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी उपस्थित थीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता रा.स्व.संघ, दिल्ली प्रान्त के सह संघचालक एवं भारत प्रकाशन के प्रबंध निदेशक श्री आलोक कुमार ने की।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ.मनमोहन वैद्य ने कहा कि पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर ने भारत की पहचान को स्वर देने का काम किया है। दोनों पत्रों की यह दीर्घ संकल्पित यात्रा आसान नहीं थी। संसाधनों का अभाव था, लेकिन कार्यकर्ताओं की ध्येयनिष्ठा और विचार के साथ सत्य की ताकत के कारण दोनों पत्र निर्बाध प्रकाशित होते आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज भारत के दो तरह के चित्र समाज में दिखते हैं। एक का केंद्र पश्चिम में है जो अ-भारतीय अवधारणा है, दूसरे की जड़ भारत से ही जुड़ी है। इनके बीच का संघर्ष भी आज दिखाई देता है। अ-भारतीय विचार का केंद्र जेएनयू है, तो भारतीय अवधारणा का बीएचयू है। अब तक का भारत, ‘भारत’ को ही नकार रहा था, पर अब भारत की बात करने वाले शक्तिशाली हुए हैं, इसलिए विश्व में भारत का मान बढ़ रहा है। भारत की अध्यात्म आधारित संस्कृति भारत को जोड़े रखने में सक्षम है। पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर की सफलता का मूल मंत्र भी यही है कि उसने भारत की अध्यात्म परंपरा को नहीं छोड़ा।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित केन्द्रीय मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी ने कहा कि 70 साल पहले किसने सोचा होगा कि नेहरू मेमोरियल सभागार में पाञ्चजन्य, आर्गनाइजर का कार्यक्रम होगा। लेकिन आज समय बदला है। कलम की असली ताकत तमाम प्रहारों और प्रलोभन के बावजूद इन दोनों साप्ताहिकों में आज भी अक्षुण्ण है। उन्होंने कहा कि भारत प्रकाशन ने अपने पुराने सहयोगियों को भुलाया नहीं, उन्हें सम्मान दिया। यह भारतीय विचार की ही महत्ता है। कुछ लोग यह मानते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का वे ही प्रतिनिधित्व करते हैं। पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर के सन्दर्भ में ये लोग पूर्वाग्रह से ग्रसित रहते हैं, जबकि ये दोनों पत्र अपने वैचारिक विरोधियों को भी अपने पृष्ठों में सम्मानपूर्वक स्थान देते हैं। उन्होंने कहा कि आज विज्ञापनों के लिए आपाधापी के माहौल में भी एक विशेष वर्ग से विज्ञापन की लालसा छोड़कर राष्टÑभक्ति और राष्टÑ शक्ति के रूप में बने रहना पाञ्चजन्य, आर्गनाइजर की बहुत बड़ी उपलब्धि है। हिंदी और अंग्रेजी के अलावा प्रांतीय भाषाओं में भी इनके संस्करण निकालने होंगे क्योंकि अंधेरा बहुत है और दीये बहुत कम। इस अवसर पर पाञ्चजन्य के संपादक श्री हितेश शंकर ने कहा कि 70 साल का चित्र इतना बड़ा है कि कोई भी कैनवस और कूची उसे चित्रित करने में छोटी पड़ जाएगी। राष्टÑीय विचारों को स्वर देने में पाञ्चजन्य की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है। भारतीय पत्रकारिता के सभी रंग इसमें समाहित हैं। उन्होंने कहा कि धुरी वही है तो धार भी है। संवेदनशीलता भी है तो प्रहार भी है। संरक्षण है तो साथ में उदारता भी है। यह संतुलन अगर कहीं दिखेगा तो इस सात दशक की पाञ्चजन्य की पत्रकारिता में दिखेगा।
आर्गनाइजर के संपादक श्री प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि भारत एक राष्टÑ था, एक राष्टÑ है, यह विचार बार-बार आर्गनाइजर में प्रतिपादित होता रहा। यह सिर्फ 70 साल का समारोह नहीं है अपितु इतने वर्षों में जनता से इन पत्रों को मिले प्यार का भी उत्सव है। इससे पूर्व श्री आलोक कुमार ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय और पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शुरू किए गए पाञ्चजन्य में सम्पादकीय दायित्व की पवित्र परंपरा को बनाए रखा गया है। इस अवसर पर पाञ्चजन्य के पांचवें संपादक रहे श्री महेंद्र कुलश्रेष्ठ एवं पूर्व प्रबंधक श्री रूपलाल मल्होत्रा की गरिमामय उपस्थित रही। दोनों विशिष्टजन का डॉ. मनमोहन वैद्य, स्मृति ईरानी ने शाल ओढ़ाकर एवं शंख अर्पित कर अभिनंदन किया। समारोह में आए अतिथियों एवं सुधीजनों का धन्यवाद ज्ञापन पाञ्चजन्य एवं आर्गनाइजर के समूह संपादक श्री जगदीश उपासने ने एवं संचालन भारत प्रकाशन के महाप्रबंधक श्री जितेंद्र मेहता ने किया।
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