पाञ्चजन्य के लेखक

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दिंनाक: 23 Jan 2018 17:01:55

किसी भी पत्र-पत्रिका के लेखक वह स्तंभ होते हैं जो न सिर्फ अपने विचारों से पत्रिका का कलेवर पुष्ट करते हैं, बल्कि उसके यश का संवर्द्धन भी करते हैं। पाञ्चजन्य के साथ बतौर लेखक अनेक राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, अपने -अपने क्षेत्रों के विद्वान और पत्रकार आदि जुड़े रहे हैं। यहां प्रस्तुत है ऐसे ही कुछ स्वनामधन्य लेखकों का संक्षिप्त परिचय

डॉ. संपूर्णानंद शिक्षक, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी , साहित्यकार और राजनेता के रूप में केंद्रीय भूमिका को प्रतिबद्धता से निबाहते हुए भी उस दायरे से बाहर निकलकर आए। क्रांतिकारी तरीके से सोचना और नवीन विचार को निर्भीकता से सामने रखने का गुण उन्हें तत्कालीन विभूतियों में अलग महत्व का स्थान देता है।
समाजवाद का विद्वान साम्यवाद की त्रुटियों और छलावे को उजागर करे, गांधीवाद का अध्येता ‘शांति के लिए युद्ध’ की बात करे और आजन्म कांग्रेस कार्यकर्ता-नेता रहा व्यक्ति यह सब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सामने करे और करता रहे, यह सरल तो छोड़िए, संभव भी हो सकता था? किन्तु संपूर्णानंद जी का जीवन असंभव को सरलता से संभव बनाने की यात्रा रही है।
चीनी उकसावे और हमले के संदर्भ में उन्होंने लिखा-‘‘हम शंकर के अनुयायी हैं, धर्म पथ से डिगना नहीं चाहते। कृतज्ञता का अर्थ जानते हैं, सौहार्द के नाम पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर सकते हैं, परंतु यदि कोई हमारे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है, हमारे साथ विश्वासघात करता है, तो उस रौद्री शक्ति का भी आह्वान करते हैं जिसका आसन हिमालय के शिखरों पर स्थित है।’’ संपूर्णानंद जी ने उस समय सही बात कहने के लिए पाञ्चजन्य (हिमालय रक्षा अंक) को चुना!

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श्री मनोहरलाल सोंधी इंडियन फॉरेन सर्विसेज के पहले बैच में अफसर बने, वह भी यूपीएससी परीक्षा में देशभर में पहला स्थान हासिल करके। छह साल बाद 1962 में आईएफएस छोड़ कर जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक हो गए। राजनीति में रहे और 1967-71 के बीच नई दिल्ली से लोकसभा सदस्य बने।
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विद्यानिवास मिश्र हिन्दी साहित्यकार और सफल संपादक (नवभारत टाइम्स) थे। साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित विद्यानिवास जी ललित निबंध परम्परा में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और कुबेरनाथ राय के साथ मिलकर एक त्रयी रचते हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के बाद हिन्दी जगत में अगर कोई साहित्यकार ललित निबंधों को ऊंचाइयों पर ले गया, तो वह डॉ. विद्यानिवास मिश्र ही थे।  
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रामबहादुर राय हिन्दी के जाने-माने पत्रकार हैं, जिनका पूरा जीवन सृजन और संघर्ष की मिसाल है। उनकी छवि एक अध्येता, लेखक, मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध पत्रकार की है। इन दिनों वे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष और हिन्दुस्थान समाचार समूह के मुख्य संपादक हैं। वे दिल्ली से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक प्रथम प्रवक्ता, यथावत के संपादक रहे  हैं। जनसत्ता के संपादक समाचार भी रह चुके हैं। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सहयोगी रह चुके श्री राय ने बिहार में 1974 के छात्र आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। 1974 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद संगठन सचिव थे।
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अमृतलाल नागर हिन्दी के विशिष्ट लेखकों में से एक हैं। उनकी रचनाएं अपनी जमीन, अपनी परंपरा में गहराई तक हैं। वह प्रेमचंद के बाद की पीढ़ी के एक महत्वपूर्ण लेखक थे। ‘अमृत और विष’ उनका प्रसिद्ध उपन्यास है। उपन्यास शैली में ही उनकी लिखित दो जीवनियां ‘खंजन नयन’ (सूरदास) और ‘मानस का हंस’ (तुलसीदास) हिन्दी साहित्य की अनन्य कृतियां हैं।
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डॉ. गौरीनाथ रस्तोगी जाने-माने लेखक, शिक्षक एवं पत्रकार थे। उन्होंने प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्ति के बाद अपने आप को पूरी तरह लेखन कार्य में झोंक दिया था। वे अपने लेखन के माध्यम से पाञ्चजन्य से भी हमेशा जुड़े रहे। ‘विश्व-वार्ता’ स्तम्भ के माध्यम से उन्होंने पाञ्चजन्य के पाठकों के बीच एक अलग स्थान बना लिया था।  श्री रस्तोगी ने अनेक पत्रिकाओं का भी संपादन किया। उन्होंने 21 पुस्तकों का लेखन एवं संपादन भी किया।
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मृदुला सिन्हा जी वर्तमान में गोवा की राज्यपाल और हिन्दी की जानी-मानी लेखिका हैं। भारतीय जनता पार्टी की केन्द्रीय कार्यसमिति की सदस्य भी रहीं । इससे पूर्व वे पांचवां स्तम्भ के नाम से एक सामाजिक पत्रिका निकालती रही हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार  में वह केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं।  पाञ्चजन्य में उनके लेख और कहानियां निरंतर
छपती रहीं।
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प्रो. सतीश चंद्र मित्तल प्रसिद्ध इतिहासकार तथा कुरुक्षेत्र विश्व-विद्यालय में इतिहास के वरिष्ठ प्रोफेसर रहे हैं। वे तीन दर्जन से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं। पाञ्चजन्य में इतिहास और राजनीतिक विषयों पर लिखते रहे हैं।
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मुजफ्फर हुसैन इस्लाम और मुस्लिम विषयों के गहन अध्येता और जाने-माने स्वतंत्र पत्रकार हैं। हिन्दी, मराठी और गुजराती के विभिन्न अखबारों में उनके लेख छपते हैं। औरंगाबाद के दैनिक ‘देवगिरी समाचार’ में सलाहकार संपादक के पद पर काम किया। हिन्दी, मराठी, गुजराती में उनकी अब तक नौ पुस्तकें प्रकाशित। राष्ट्रीय स्तर के चौदह पुरस्कारों व राष्ट्रपति द्वारा ‘पद्मश्री’ सम्मान से सम्मानित। ‘खतरे अल्पसंख्यकवाद के’, ‘इस्लाम और शाकाहार’ तथा ‘मुस्लिम मानस’ पुस्तकों के लेखक हैं।
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पुरुषोत्तम दास टंडन स्वतन्त्रता सेनानी, हिन्दीसेवी, पत्रकार, वक्ता और समाज सुधारक थे। अपने निजी जीवन में सादगी अपनाने के कारण उन्हें राजर्षि उपनाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुई। हिन्दी को देश की राजभाषा का स्थान दिलाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने 1910 में ‘नागरी प्रचारिणी सभा’, वाराणसी, में ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ की स्थापना की। टंडन जी को 1961 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित
किया गया।
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दत्तोपंत ठेंगड़ी देश के सबसे बड़े मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ के संस्थापक थे। इन संगठनों के माध्यम से आर्थिक साम्राज्यवाद से उपजी आर्थिक गुलामी के विरोध में राष्ट्रव्यापी आंदोलन का आह्वान किया। 22 नवम्बर, 1991 को नागपुर में स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना की। डॉ. हेडगेवार, श्री गुरुजी तथा पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे महापुरुषों की विचारधारा  को  परिभाषित करने वाला प्रतिभाशाली भाष्यकार और व्यासंगी विद्वानों की समझबूझ बढ़ाने वाला दूरदर्शी तत्वचिंतक।
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नरेंद्र कोहली जी ने साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं  उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी और आलोचनात्मक साहित्य में अपनी लेखनी चलाई। हिन्दी साहित्य में  ‘महाकाव्यात्मक उपन्यास’ की विधा को जन्म देने का श्रेय नरेंद्र कोहली को ही जाता है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए उनके माध्यम से आधुनिक सामाज की समस्याओं को प्रस्तुत करना कोहली की रचनाओं की खूबी रही है। पाञ्चजन्य में नरम कोना और आख्यान स्तंभ लिखते रहे।
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जैनेंद्र कुमार ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य में प्रेमचंद के साहित्य की सामाजिकता के बाद व्यक्ति के ‘निजत्व’ की कमी को पूरा किया। इसलिए उन्हें मनोविश्लेषणात्मक परंपरा का प्रवर्तक माना जाता है। वह हिंदी गद्य में ‘प्रयोगवाद’ के जनक भी थे। वह पहले ऐसे लेखक हुए, जिन्होंने हिंदी कहानियों को मनोवैज्ञानिक गहराइयों से जोड़ा। कहा जा सकता है कि जैनेंद्र हिंदी गद्य को प्रेमचंद युग से आगे ले आए। 1977 के बाद उन्होंने पाञ्चजन्य के लिए काफी लिखा।
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अशोक सिंहल ने राम जन्मभूमि विवाद को अयोध्या आंदोलन में तब्दील करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई। विश्व हिन्दू परिषद् के नेता अशोक सिंहल ने इस आंदोलन से देश की राजनीति की दिशा ही बदल दी थी। वे विश्व हिन्दू परिषद् के संरक्षक और 20 वर्षों तक कार्यवाहक अध्यक्ष रहे। समय समय पर वे पाञ्चजन्य के लिए लेख लिखते रहे। उन्होंने पाञ्चजन्य में धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे स्तंभ भी लिखा।
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गिरिलाल जैन भारत के प्रसिद्ध अंग्रेजी पत्रकार थे। वे टाइम्स आॅफ इंडिया के संपादक थे। उन्हें 1989 में भारत सरकार द्वारा साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। कभी इंदिरा गांधी के समर्थक थे क्योंकि वे देश में सशक्त सरकार चाहते थे। बाद में हिन्दुत्व के समर्थक हो गए। उन्होंने ‘हिन्दू फीनोमिना’ पुस्तक भी लिखी। देश में उभरते हिन्दुत्व की परिघटना पर पाञ्चजन्य में कई विश्लेषणात्मक लेख लिखे।
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जगमोहन दिल्ली तथा गोवा के उपराज्यपाल तथा जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे। वे लोकसभा के सदस्य तथा नगरीय विकास मंत्री तथा पर्यटन मंत्री रहे। वे अक्सर पाञ्चजन्य के लिए लिखते रहे।
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डॉ. मुरली मनोहर जोशी भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के शासनकाल में वे भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री थे। उन्होंने एमएससी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया, जहां प्राध्यापक राजेद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया उनके शिक्षक थे। यहीं से उन्होंने डॉक्टोरेट की उपाधि भी प्राप्त की। बाद में वे राष्ट्रीय राजनीति में आ गये। उन्हें राजनीति में संस्कृति का दूत कहा जाता है। वे उत्तर प्रदेश के कानपुर से सांसद हैं और पद्मविभूषण से सम्मानित हैं।
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आचार्य विष्णुकांत शास्त्री राजनीतिज्ञ के साथ उच्च कोटि के साहित्यकार थे। वे उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी रहे। इसके अलावा शास्त्रीय बंगीय हिन्दी परिषद के उपाध्यक्ष, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्मारक समिति के महामंत्री, भारतीय भाषा परिषद् के मंत्री और भारत भवन भोपाल के ट्रस्टी भी रहे। ‘कुछ चंदन की कुछ कपूर की’, ‘चिंतन मुद्रा’, ‘अनुचिंतन’ (साहित्य समीक्षा), ‘तुलसी के हियहेरि’ (तुलसी केंद्रित निबंध), बांग्लादेश के संदर्भ में, (रिपोताज), ‘स्मरण को पाथेय बनने दो’, ‘सुधियां उस चंदन के वनकी’ (यात्रा वृत्तांत व संस्मरण), ‘अनंत पथ के यात्री’- धर्मवीर भारती (संस्मरण) उनकी प्रमुख कृतियां हैं।
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ए. सूर्यप्रकाश जाने-माने पत्रकार हैं। वे विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के सदस्य और पायनियर अखबार के सलाहकार संपादक रहे हैं। उन्होंने 1988 से 1993 तक इंडियन एक्सप्रेस के ब्यूरो प्रमुख के रूप में कार्य किया। 1994 से 1995 के दौरान राजनीतिक समूह इनाडु और जी न्यूज के संपादक रहे। वर्तमान में प्रसार भारती अध्यक्ष हैं।
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मा. गो. वैद्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभिन्न दायित्वों पर रहते हुए संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख रहे हैं। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य उन्हीं के सुपुत्र हैं। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित और  मा. गो. वैद्य जी द्वारा लिखित पुस्तक ‘मैं संघ में और मुझमें संघ’ काफी चर्चित रही है। वे ‘तरुण भारत’ के संपादक मंडल में रहे। पाञ्चजन्य के विशेषांकों और दिशादर्शन स्तंभ में अक्सर उनके लेख छपते रहे।
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सीताराम गोयल और रामस्वरूप की जोड़ी हिन्दुत्व  के योद्धा बौद्धिकों की जोड़ी थी, जिन्होंने गहरे अनुसंधान के जरिये कम्युनिज्म, इस्लाम और ईसाइयत की कड़वी सचाइयों को बेनकाब किया। सीताराम गोयल की पुस्तकें हिन्दू समाज: संकटों के घेरे में, सप्तशील, हिन्दू टेम्पल्स-व्हाट हैपन्स टू देम, हिस्ट्री आॅफ हिन्दू क्रिश्चियन एन्काउंटर, कलकत्ता कुरान पिटीशन आदि पुस्तकें बहुत चर्चित हैं। रामस्वरूप वैदिक परम्परा के प्रमुख बुद्धिजीवी थे। उनके लेखन ने सीताराम गोयल और अन्य कई लेखकों को प्रभावित किया। हिन्दू व्यू आॅफ क्रिश्चिनिटी एंड इस्लाम, अंडरस्टैंडिंग इस्लाम थ्रू हदीस, वडर््स एज रिवीलेशन,नेमस आफ गॉड उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकें हैं।
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रमेश पतंगे सामाजिक समरसता मंच के संस्थापक और वरिष्ठ पत्रकार, जो मराठी के साप्ताहिक विवेक से संपादक रहे। बचपन से ही वे संघ के संस्कारों में पले-बढ़े और संघ के अनेक उच्च पदों पर रहे।
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मौलाना वहीउद्दीन इस्लाम की उदारवादी व्याख्या के कारण बौद्धिक जगत में जाने जाते हैं। मदरसे में पढ़ाई पूरी करने के बाद आत्म शिक्षण के जरिए उन्होंने आधुनिक ज्ञान को प्राप्त किया। जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी की किताब, ‘वर्ल्ड 500 मोस्ट इंफ्लूएंशियल मुस्लिम्स’ में मौलाना वहीउद्दीन खान को ‘दुनिया के लिए इस्लाम का आध्यात्मिक राजदूत करार दिया था’।
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विनय सहस्रबुद्धे  भाजपा के राष्टÑीय उपाध्यक्ष, रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी, रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर के महानिदेशक जो सांसदों और विधायकों को सघन प्रशिक्षण देने का कार्य करती है। हाल ही में सरकार ने उन्हें आईसीसीआर का अध्यक्ष नियुक्त किया है।
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प्रोफेसर बलराज मधोक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक, जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद के संस्थापक और मंत्री, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक, भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष थे। वे 1960 के दशक के वरिष्ठ राजनेता थे। वे दो बार लोकसभा सदस्य रहे। वे गणमान्य विचारक, इतिहासवेत्ता, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक भी थे। देश और हिन्दू समाज पर मंडराते खतरों से आगाह करने वाले उनके लेख हमेशा पाञ्चजन्य की शोभा बढ़ाते थे।
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प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा प्रख्यात अर्थशास्त्री एवं पैसिफिक विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति हैं और पाञ्चजन्य में आर्थिक मामलों पर लिखते रहे हैं।
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डॉ. सुभाष कश्यप उस संविधान के पारखी हैं, जो इस देश का प्रहरी है। वे 31 दिसंबर, 1953 को लोकसभा में महासचिव बने थे। इसके बाद 37 सालों तक संसद से जुड़े रहे। इन्हें ‘पद्म भूषण’ से भी सम्मानित किया गया है। देश की व्यवस्था को दिशा-निर्देश देने वाले संविधान और संविधान के अनुसार कानूनों का निर्माण करने वाली संसद के अध्ययन के लिए सुभाष कश्यप ने अपना जीवन समर्पित कर दिया है। संविधान से जुड़े मुद्दों पर पाञ्चजन्य में अक्सर उनके लेख छपते रहे।
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गांधीवादी पत्रकार देवदत्त गुजरात संदेश के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख के तौर पर  काम करते थे। मूलत: अंग्रेजी के पत्रकार रहे देवदत्त की ख्याति सकारात्मक हस्तक्षेप और प्रतिरोध की पत्रकारिता वाले कलमकार की थी। मूल्यों की पत्रकारिता के लिए उनका नाम था। देवदत्त जी पत्रकारिता की नैतिक साख को बचाए रखने के तमाम प्रयासों में शामिल रहे। प्रेस इंस्टीट्यूट की पत्रिका ‘विदुर’ हो या ‘ग्रासरूट’ जैसे उपक्रमों के साथ देवदत्त जुटे रहे। श्री अरविंद के विचारों से प्रभावित होकर देवदत्त जी अधिकांशत: पांडिचेरी आश्रम में ही रहने लगे और वहीं से लेखन जारी रखा।
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डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री यायावर प्रकृति के हैं और अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनकी लगभग 15 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पेशे से शिक्षक, कर्म से समाजसेवी और उपक्रम से पत्रकार अग्निहोत्री जी हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में निदेशक भी रहे। भारत-तिब्बत सहयोग मंच के राष्ट्रीय संयोजक के नाते तिब्बत समस्या का गंभीर अध्ययन किया। कुछ समय तक जनसत्ता से भी जुड़े रहे। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के
कुलपति हैं। 
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डॉ. भाई महावीर प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी भाई परमानन्द के पुत्र थे। वे मध्य प्रदेश के राज्यपाल रहे। आप भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। इन्हें भारतीय जनसंघ का प्रथम महासचिव बनने का श्रेय मिला था।
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दया प्रकाश सिन्हा अवकाश प्राप्त आई.ए.एस. अधिकारी होने के साथ हिन्दी भाषा के प्रतिष्ठित लेखक, नाटककार, नाट्यकर्मी, निर्देशक व चर्चित इतिहासकार हैं। प्राच्य इतिहास, पुरातत्व व संस्कृति में एम.ए. तथा लोक प्रशासन में मास्टर्स डिप्लोमा सिन्हा जी विभिन्न राज्यों की प्रशासनिक सेवाओं में रहे। वे सन् 1993 में भारत भवन, भोपाल के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए। पाञ्चजन्य में हुसैन बेनकाब, चित्रकार हुसैन का कुंठित वासना संसार नामक बहुचर्चित लेख शृंखला और महात्मा गांधी के आंदोलनों पर लेख शृंखला के लेखक हैं।
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शांता कुमार हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत सरकार के पूर्व मंत्री हैं। 1977 में वह पहली बार हिमाचल प्रदेश के गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने।  फरवरी 1990 में इनको पालमपुर और सुलह निर्वाचन क्षेत्रों से जीत मिली। भारतीय जनता पार्टी का नेता चुने गए और पुन: मुख्यमंत्री बने।  शांता जी ने अनेक अवसरों पर पाञ्चजन्य के लिए लिखा है।
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आचार्य किशोरीदास बाजपेयी ने हिन्दी को परिष्कृत रूप प्रदान करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनसे पूर्व खड़ी बोली हिन्दी का प्रचलन तो हो चुका था पर उसका कोई व्यवस्थित व्याकरण नहीं था। आपने अपने अथक प्रयास एवं ईमानदारी से भाषा का परिष्कार करते हुए व्याकरण का एक सुव्यवस्थित रूप निर्धारित कर भाषा का परिष्कार तो किया ही, साथ ही नये मानदंड भी स्थापित किये।
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संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी साधना, समाज सेवा, संस्कृति, साहित्य, स्वाधीनता, शिक्षा आदि के प्रेरणा-स्रोत थे। उनके जीवन के चार मुख्य संकल्प थे- ‘दिल्ली में हनुमान जी की 40 फुट ऊंची प्रतिमा की स्थापना’  ‘राजधानी स्थित पांडवों के किले (इन्द्रप्रस्थ) में भगवान विष्णु की 60 फुट ऊंची प्रतिमा की स्थापना’, ‘गोहत्या पर प्रतिबंध’ व ‘श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति’। प्रभुदत्त ब्रह्मचारी इस सदी के महान संत थे। गोरक्षा, गंगा की पवित्रता, हिन्दी भाषा, भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म की सेवा उनके जीवन के परम लक्ष्य थे। उन्होंने गोरक्षा के मुद्दे पर अनेक अनशन, आन्दोलन तथा यात्राएं की थीं। पाञ्चजन्य में इस मुद्दे पर बहुत लेखन भी किया।
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हो. वे. शेषाद्री बंगलौर विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि लेने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सिद्धांतों से प्रभावित हुए और पूरा जीवन संघ की विचारधारा के संवर्धन हेतु समर्पित कर दिया। शेषाद्री जी ने 1946 में बतौर एक प्रचारक के संघ का कार्य कर्नाटक से प्रारम्भ किया। संघ कार्य विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए वे 1987 में इसके सरकार्यवाह बने। उन्हें उनकी कृति तोरबेरालू को कर्नाटक राज्य साहित्य अकादमी ने 1982 में सम्मानित किया। विभाजन पर लिखी उनकी पुस्तक को बौद्धिक जगत में बहुत सराहा गया। उन्होंने ‘विक्रम’, ‘उत्थान’, ‘आर्गनाइजर’ और पाञ्चजन्य आदि पत्र-पत्रिकाओं में लेख भी लिखे।
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श्री जे. नंदकुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक हैं। प्रज्ञा प्रवाह संघ का वह संगठन है जो देश भर में फैले अलग-अलग राष्ट्रवादी विचारों के ‘थिंक टैंक’ के साथ सामंजस्य स्थापित करता है। वे वैचारिक युद्ध लड़ने के लिए जाने जाते हैं। केरल में मार्क्सवादियों द्वारा संघ के कार्यकतओं की हत्याओं के खिलाफ उन्होंने जोरदार वैचारिक अभियान चलाया था, जिससे सारे देश का ध्यान उसकी तरफ गया और कामरेडों का फासिज्म बेनकाब हुआ।
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वंदना शिवा एक चिंतक, कई पुस्तकों की लेखिका और पर्यावरणविद् हैं। वर्तमान में दिल्ली में रहती हैं। वंदना शिवा ने 1970 के दशक के दौरान अहिंसात्मक चिपको आंदोलन में भाग लिया। इस आंदोलन ने, जिसकी कुछ मुख्य प्रतिभागी महिलाएं थी, पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए पेड़ों के चारों तरफ मानव चक्र तैयार करने की पद्धति को अपनाया। वे वैश्वीकरण के संबंध में अंतरराष्ट्रीय फोरम की नेताओं में से एक हैं।
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मृणाल पाण्डे एक पत्रकार, लेखक एवं भारतीय टेलीविजन की जानी-मानी हस्ती हैं।  वे प्रसार भारती की अध्यक्षा रहीं। अगस्त 2009 तक वे हिन्दी दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ की सम्पादिका थीं। हिंदी की जानी-मानी लेखिका भी हैं।
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डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। वे सांसद के अलावा 1990-91 में वाणिज्य, विधि एवं न्याय मंत्री व बाद में अंतरराष्टÑीय व्यापार आयोग के अध्यक्ष भी रहे। स्वामी राजनीति में भले हों पर असल में वे अर्थशास्त्री हैं। वर्तमान में राज्सभा सांसद डॉ. स्वामी पाञ्चजन्य में आर्थिक मामलों व राजनीति पर लंबे समय तक लिखते रहे।
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के.एम. मुंशी एक प्रसिद्ध वकील और ख्याति प्राप्त गुजराती लेखक हैं, जिन्होंने अपनी भाषा और साहित्य का प्रचार किया। वे कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे। उन्हें अपनी राजनीतिक गतिविधियों के लिए ब्रिटिश शासनकाल में गिरफ्तार किया गया। कांग्रेस द्वारा बंबई में बनाई गई प्रथम सरकार में वे गृह मंत्री थे और बाद में भारत के कृषि मंत्री रहे। उन्होंने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की। वे अपनी लेखनी में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की बात कहते रहते थे। वे गुजराती और अंग्रेजी के अच्छे लेखक थे, लेकिन राष्ट्रीय हित में हमेशा हिंदी के पक्षधर रहे। उन्होंने ‘हंस’ पत्रिका के संपादन में प्रेमचंद का सहयोग किया।
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श्रीपाद दामोदर सातवलेकर वेदों का अध्ययन करने वाले शीर्षस्थ विद्वान थे। राष्ट्रीय विचारों से ओत-प्रोत उनकी ज्ञानोपासना निजाम को अच्छी नहीं लगी, इसीलिए उन्हें शीघ्र हैदराबाद छोड़ना पड़ा। साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए 1968 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया था। हैदराबाद में ही वे स्वतंत्रता संघर्ष से जुड़े। 1936 में पंडितजी सतारा में संघ  से जुड़े व 16 वर्षों तक संघ का काम देखा। औंध रियासत के संघचालक के रूप में उन्होंने नई शाखाएं आरंभ कीं। 1942 के स्वाधीनता आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। 101 वर्ष की आयु में 31 जुलाई, 1968 को इस संसार से विदा हुए। उन्होंने 409 ग्रंथों की रचना की। इनमें सर्वाधिक प्रतिष्ठा उनके वेद-भाष्यों को मिली। पाञ्चजन्य के शुरुआती दस वर्षों में उन्होंने प्राचीन भारत व शास्त्रों पर बहुत लिखा।   

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