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भारत पूर्वी एशिया, यूरोप और अफ्रीकी देशों के साथ मिलकर बहुत कुछ कर रहा है। छोटे-छोटे टुकड़ों में और अलग-अलग दिखने वाली ये योजनाएं दरअसल एक बड़ी योजना का हिस्सा हैं। अगर यह योजना सफल हुई तो भारत शायद ओबीओआर को भी पीछे छोड़ देगा
सुमंत विद्वास
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) परियोजना का विचार प्रस्तुत किया। इसके अंतर्गत चीन से सड़क मार्ग और समुद्री मार्ग द्वारा एशिया, यूरोप और अफ्रीका के अनेक देशों को जोड़ने का प्रस्ताव है। चीन का दावा है कि इससे इन देशों के बीच माल परिवहन की लागत कम होगी, व्यापार बढ़ेगा और सबको लाभ होगा। कई देश इसमें शामिल हुए हैं और कई परियोजनाओं पर काम भी चल रहा है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपेक) व पाकिस्तान के ग्वादर में चीन द्वारा बनाया जा रहा बंदरगाह इसी का हिस्सा है। ओबीओआर चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना है। पर आज मैं भारत की एक परियोजना के बारे में लिखना चाहता हूं, जो अगर सफल हो गई, तो शायद ओबीओआर को भी पीछे छोड़ देगी।
भारत ओबीओआर में शामिल नहीं हुआ है और उसने सीपेक का भी विरोध किया है, क्योंकि इसका कुछ हिस्सा कश्मीर के उस इलाके से होकर गुजरता है, जिस पर फिलहाल पाकिस्तान का कब्जा है। जापान भी इसमें शामिल नहीं है। लेकिन सिर्फ ओबीओआर में शामिल न होने या सीपेक के विरोध में बोल देने से क्या फर्क पड़ जाएगा? क्या भारत का मौखिक विरोध देख चीन परियोजना रोक देगा? भारत क्या कर रहा है? वह ओबीओआर में शामिल नहीं हुआ है, पर पूर्वी एशिया, यूरोप और कई अफ्रीकी देशों के साथ मिलकर बहुत कुछ कर रहा है। यह वास्तव में एक बहुत बड़ी परियोजना है। लेकिन इस पर छोटे-छोटे टुकड़ों में काम चल रहा है। शायद इसी कारण इस पर बहुत कम लोगों का ध्यान गया है और उनमें से भी बहुत कम ही लोगों ने अनुमान लगाया होगा कि ये छोटे-छोटे निरर्थक प्रयास नहीं, बल्कि कुछ बहुत बड़ा होने जा रहा है। ईरान के चाबहार बंदरगाह और वहां से अफगानिस्तान तक माल भेजने के नए व्यापारिक मार्ग के बारे में आपने सुना ही होगा। मैंने इस विषय पर एक पोस्ट भी लिखी थी, जब भारत के गुजरात से एक जहाज गेहूं लादकर चाबहार बंदरगाह तक गया और वहां से सड़क मार्ग से भारत का माल अफगानिस्तान तक पहुंचाया गया। लेकिन क्या आपको लगता है कि सिर्फ गेहूं बेचने के लिए भारत ईरान में इतना बड़ा बंदरगाह बनवा रहा है? अगर आपको ऐसा लगता है, तो शायद आपने अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे के बारे में अभी तक सुना नहीं है।
भारतीय मीडिया व मोदी विरोधी पार्टियों के नेताओं से आपने केवल यह आरोप सुना होगा कि मुंबई से अहमदाबाद तक बुलेट ट्रेन चलाने वाली परियोजना पर हजारों करोड़ रुपये बर्बाद किए जा रहे हैं। पर क्या आपने एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर के बारे में सुना है? आपने पैसिफिक फ्रीडम कॉरिडोर के बारे में सुना है? क्या आपने भारत और जापान द्वारा साथ मिलकर श्रीलंका, म्यांमार, पूर्वी एशियाई देशों व अफ्रीका में विकसित किए जा रहे बंदरगाहों व रेलमार्गों के बारे में सुना है? क्या आपने भारत-बर्मा-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग के बारे में सुना है? क्या आपने पूर्वोत्तर राज्यों में भारत सरकार द्वारा बनाए जा रहे नए रेलमार्गों व राजमार्गों के बारे में सुना है?
भारत के अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास के लिए हो रहे कामों के बारे में सुना है? आपने सागरमाला परियोजना का नाम सुना है, लेकिन क्या भारतमाला का नाम सुना है? छोटे शहरों तक विमान सुविधाओं को पहुंचाने की उड़ान योजना के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या आपने डेडिकेटिड फ्रेट कॉरिडोर के बारे में सुना है? आपने डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया सुना होगा, लेकिन क्या भारतनेट के बारे में सुना है? एफपीआईसी के बारे में सुना है? आसियान-इंडिया मुक्त व्यापार क्षेत्र के बारे में सुना है?
अगर मैं आपसे कहूं कि अलग-अलग दिखने वाली ये कई सारी योजनाएं एक बड़ी योजना का हिस्सा हैं, तो क्या
आप मानेंगे? इनमें से कुछ तो स्पष्ट रूप से एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, लेकिन मेरा अनुमान है कि अन्य योजनाएं जो अभी बिल्कुल असंबद्ध प्रतीत होती हैं, वे भी वास्तव में एक वृहद योजना का ही भाग हैं। हालांकि मेरा अनुमान गलत भी हो सकता है। मुझे लगता है कि यह विषय अत्यन्त विस्तृत है और इसे एक पोस्ट में समेटना पर्याप्त नहीं होगा। (फेसबुक वॉल से)
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