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तीन कंप्यूटर इंजीनियर, दो विप्रो में अच्छे पैकेज पर, एक डेल में अच्छे पद पर, लेकिन सोच अपना कुछ करने की। एक ही इंडस्ट्री में होने के कारण तीनों एक दूसरे को जानते थे। एक बार एक साथ घूमने के दौरान तीनों के बीच बात हुई कि हम अपना कुछ खड़ा करेंगे। तीनों कई साल से कंप्यूटर इंडस्ट्री में काम करने के बाद सिर्फ एक सकारात्मक सोच लेकर ऐसे क्षेत्र में आए जिसका किसी के पास कोई अनुभव नहीं था। आज उनका डेयरी व्यवसाय चल निकला है और बिनसर फार्म नाम से उनका दूध दिल्ली-एनसीआर में गुणवत्ता वाले दूध का पर्याय बन चुका है। तीनों दोस्तों ने सोनीपत के पास एक गांव झांटी खुर्द में बिनसर फार्म से स्टार्टअप शुरू किया। आज उनका पांच हजार लीटर दूध दिल्ली में बिक रहा है।
बिनसर फार्म के सीईओ पंकज नवानी बताते हैं कि डेयरी व्यवसाय में आने से पहले वह 20 वर्षों तक कंप्यूटर इंडस्ट्री में सक्रिय थे। एमसीए करने के बाद वह डेल में अच्छे पैकेज पर नौकरी करते थे। 2009 में एक बार घूमने के दौरान उन्होंने अपने मित्रों सुखविंदर और दीपकराज से डेयरी उद्योग में हाथ आजमाने की बात की। फैसला कठिन था, क्योंकि सभी अच्छे पैकेज पर नौकरी कर रहे थे। ऐसे में नौकरी छोड़कर दूध के व्यवसाय में जोखिम उठाना बड़ा कठिन काम था, लेकिन सभी ने ऐसा करने का फैसला किया।
नवानी कहते हैं कि उनके पास कई देशों में जाने का अनुभव था। डेयरी उद्योग में बड़े नाम अल राट्रे से उनकी न्यूजीलैंड में पहले मुलाकात हुई थी। उन्होंने अल राट्रे से इस बारे में बात की। वह उन्हें शुरुआती तौर पर फाइनेंस करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद तीनों मित्रों ने मिलकर सोनीपत के पास झांटी खुर्द गांव में 2012 में काम शुरू किया। शुरुआत में वह 50 बछिया लेकर आए। अपनी जमा-पूंजी में से बचाए पैसों से तीनों ने तकरीबन 50 लाख रुपए से डेयरी उद्योग में किस्मत आजमाने का फैसला किया। नवानी कहते हैं कि काम शुरू किए एक सप्ताह भी नहीं हुआ था कि तीन बछियां मर गईं। इस बीच उन्हें वहां के स्थानीय लोगों से भी मदद नहीं मिली। इसके बाद सभी ने डेयरी उद्योग के बारे में पढ़ना शुरू किया और कई डेयरी फार्मों में जाकर देखा। डेयरी फार्म खोलने के लिए किसानों से 10 एकड़ जमीन किराए पर ली। इसके अलावा 120 एकड़ पर गायों के चारे के लिए खेती भी करवानी शुरू की। शुरुआती कुछ महीनों की दिक्कत के बाद काम चलना शुरू हो गया।
आज फार्म में 325 गाय हैं। पूरी तरह आधुनिक तरीके से फार्म में गायों का दूध निकाला जाता है। इसके बाद दूध को कांच की बोलतों में भरकर दिल्ली और एनसीआर में लोगों के घरों तक पहुंचाया जाता है। डेयरी के माध्यम से करीब 150 लोगों को रोजगार मिला हुआ है। वार्षिक टर्नओवर तकरीबन आठ से नौ करोड़ रुपए का है। धीरे-धीरे काम बढ़ रहा है। वह बताते हैं कि हमने अपने फार्म को एक रिसोर्स सेंटर की तरह विकसित किया है। किसान अब उनके पास आते हैं, व्यवसाय के बारे में जानकारी एकत्रित करते हैं। उन्होंने पिछले पांच साल में शोध करके दूध व्यवसाय से संबंधित 15 लाख डेटा प्वांइट जुटाए हैं। जिनका इस्तेमाल वे किसानों को समझाने और दूध की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए करते हैं। इसी के साथ वे कृषि को लेकर भी काम कर रहे हैं। जिस जमीन पर चारा उगाया जाता है वह किसानों से लीज पर ली हुई है। नवानी बिनसर फार्म के सीईओ हैं जबकि सुखविंदर सर्राफ सेल्स निदेशक और दीपक राज उपाध्यक्ष, आॅपरेशन हैं।
नवानी कहते हैं कि वे आधुनिक तरीके से बेहतर दूध लोगों को मुहैया कराने का काम कर रहे हैं। गायों का दूध मशीनों से निकाला जाता है। इसके बाद मशीनों के माध्यम से ही उसे बोतल में बंद किया जाता है। इस बीच दूध जरा भी बाहरी वातावरण के संपर्क में नहीं आता है। इस कारण दूध की गुणवत्ता बनी रहती है। हमारा उद्देश्य डेयरी उद्योग को आगे बढ़ाने के साथ-साथ क्षेत्र के किसानों की दशा सुधारना भी है। इसके लिए हम किसानों को प्रोत्साहित भी करते हैं और इच्छुक किसानों को डेयरी उद्योग का प्रशिक्षण भी देते हैं।
लाखों की नौकरी छोड़ शुरू किया आॅनलाइन केक का काम
उदयपुर के रहने वाले गौरव मीणा चाहते तो आईआईएम से एमबीए करने के बाद लाखों रुपए के पैकेज पर नौकरी करके अच्छी जिंदगी गुजार सकते थे लेकिन उन्होंने कुछ हटकर करने की सोची। उन्होंने अपने चार अन्य दोस्तों के साथ मिलकर उदयरपुर में तेरा-मेरा केक नाम से अपनी बेकरी की शुरुआत की। खास बात यह है कि पांचों दोस्त इंजीनियर हैं। केक बेचने का काम शुरू करने से पहले सभी बड़ी कंपनियों में नौकरी करते थे। आज तीन वर्षों में उनकी महीने की बिक्री आठ लाख रुपए को पार कर गई है। सालाना टर्नओवर एक करोड़ रुपए को पार कर गया है। पांच दोस्तों के साझा प्रयास से काम चल निकला है। उनकी योजना पूरे राजस्थान में अपने आउटलेट खोलने
की है।
गौरव के साझीदार सुनील टांक ने बीटेक किया है। वह बताते हैं, ‘बीटेक करने के बाद मैं अमदाबाद में एक कंपनी में काम करता था। गौरव मेरे पुराने मित्र हैं। 2014 में हम सभी मित्र उदयपुर में एक दोस्त के जन्मदिन पर मिले। आॅर्डर देने के बाद भी समय पर केक नहीं मिला तो बड़ी कोफ्त हुई। तब मन में विचार आया कि क्यों न आॅनलाइन केक का काम शुरू किया जाए जिसमें हम लोगों के घरों तक खुद केक पहुंचाएं। अन्य तीन मित्र रवि औदिच्य, जयदीप शर्मा और विमल भी इस विचार से सहमत थे। सभी से मिलकर एक वेबसाइट बनाई, जिसका नाम रखा ँ३३स्र://६६६.३ी१ेंी१ंूं‘ी.ूङ्मे. सभी के जिम्मे काम बांटे गए। हम आॅनलाइन आॅर्डर के हिसाब से केक बनवाते और लोगों के घरों पर खुद बारी-बारी से पहुंचाने जाते। जब धीरे-धीरे काम चल निकला तो हमने डिलीवरी करने के लिए युवाओं को काम देना शुरू किया। कॉलेज में पढ़ने वाले लगभग दर्जनभर युवा अपना खर्चा निकालने के लिए हमारे यहां पार्टटाइम काम करते हैं जिन्हें हम घंटे के हिसाब से केक डिलीवर करने के पैसे देते हैं। इससे उनका खर्च चल जाता है और हमें इस बात की भी चिंता नहीं रहती कि कोई काम छोड़कर चला जाएगा।’ सुनील बताते हैं, ‘अभी हमने अपना प्रोडक्शन भी शुरू कर दिया है। बिना गुणवत्ता से समझौता किए हम केक बनाते हैं। हमने केक बनाने के लिए छह शेफ रखे हैं। हम रात 12 बजे तक केक की डिलीवरी करते हैं। दो घंटे पहले आॅर्डर देना होता है। उदयपुर में बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। केक के काफी आॅर्डर आॅनलाइन मिलते हैं। काम बढ़ता है तो उदयपुर से बाहर भी कारोबार बढ़ाने का विचार है।’ ल्ल
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