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गुजरात में 22 साल से सत्तारूढ़ भाजपा को परास्त करने के लिए कांग्रेस ने समाज में जातिवाद का जहर घोलने का पूरा प्रयास किया, लेकिन राज्य के मतदाताओं ने उसे बता दिया कि वे विकास के साथ हैं। अपने विकास कार्यों के कारण ही भाजपा को ऐतिहासिक जीत मिली
जयवंत पंड्या, कर्णावती से
गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को लगातार छठी बार जीत मिली। बेशक सीटें कुछ कम आर्इं, लेकिन यह भाजपा के लिए बहुत बड़ी जीत है। वह देश की अकेली ऐसी पार्टी बन गई है, जो लगातार 22 वर्ष से गुजरात में सरकार चला रही है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो देखने में आता है कि अमूमन पांच साल बाद ही सरकार विरोधी भावनाएं काम करने लगती हैं और मतदाता उस सरकार को सत्ता से हटा देते हैं। लेकिन गुजरात के मतदाता लगभग ढाई दशक से भाजपा को लगातार सत्ता की चाभी सौंप रहे हैं। इसलिए यह जीत उसके लिए असाधारण है। खास बात यह है कि अलग-अलग नेतृत्व में भाजपा ने यह करिश्मा कर दिखाया है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ज्यादातर वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में ही चुनाव जीतती रही थी। तो दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व में चुनाव जीतती थी। पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु के नेतृत्व में वाममोर्चा चुनाव जीतता था, लेकिन जैसे ही नेतृत्व बदला, वहां वाममोर्चे को हार का सामना करना पड़ा था। उल्लेखनीय है कि ज्योति बसु की जगह बुद्धदेव भट्टाचार्य को वाममोर्चा की कमान सौंपी गई थी। 2010 में बुद्धदेव के नेतृत्व में वाममोर्चा तृणमूल कांग्रेस से पराजित हो गया था। लेकिन गुजरात में भाजपा ने पहले दो बार केशुभाई पटेल के नेतृत्व में चुनाव जीता। फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीन बार जीत प्राप्त की। और इस बार विजय रूपाणी और नीतिन पटेल के नेतृत्व में भाजपा जीती है। इस विजय पर स्वयं नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘‘भाजपा की जीत बहुत बड़ी जीत है।’’
सेकुलर मीडिया, तथाकथित बुद्धिजीवी और समाज सेवा के नाम पर पैसा बटोरने वाले कह रहे थे कि इस बार तो भाजपा का जीतना मुश्किल ही है। अगस्त माह तक लोग मान रहे थे कि भाजपा की शानदार जीत निश्चित है, लेकिन इसके बाद जनता का भरोसा थोड़ा डगमगाने लगा था। कांग्रेस ने जातिवाद के सहारे भाजपा को पटखनी देने की रणनीति बनाई और इसी के तहत उसने जाति के सहारे राजनीति करने वालों को अपने साथ जोड़ा।
इस कारण एक समय ऐसा वातावरण भी बनाया गया कि ‘कांग्रेस आवे छे’ (कांग्रेस आ रही है)। लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के प्रबंधन-कौशल के सामने कांग्रेस की रणनीति टिक नहीं पाई। हालांकि सेकुलर मीडिया और कांग्रेस के कुछ नेता इस चुनाव नतीजे को राहुल गांधी की नैतिक जीत बताने पर उतारू हैं। पर जीत तो जीत है और भाजपा आने वाले पांच साल तक गुजरात में शासन चलाएगी।
जब से चुनावी सुगबुगाहट शुरू हुई थी, तब से ही भाजपा विकास के नाम पर चुनाव लड़ने पर जोर देती रही। प्रधानमंत्री मोदी सहित सभी भाजपा नेताओं ने विकास की बात की। प्रधानमंत्री ने कर्णावती की एक चुनावी सभा में कहा भी कि उनकी सरकार द्वारा शौचालय बनाने से क्या किसी अमीर को फायदा हुआ है? इसके बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कहते रहे कि भाजपा ने विकास गरीबों का नहीं, अमीरों का किया है। वे विकास को पागल भी कहते रहे और कांग्रेस को इस नकारात्मक प्रचार का खामियाजा भुगतना पड़ा।
इस बार के चुनाव में कांग्रेस की पूरी कमान राहुल गांधी के हाथ में थी। उम्मीदवार तय करने के लिए उन्होंने सर्वेक्षण करवाया था। प्रशांत किशोर की टीम को भी काम पर लगाया था। उन्होंने पूरी रणनीति बनाई थी। स्थानीय नेताओं के भरोसे उन्होंने कुछ भी नहीं छोड़ा था। उन्होंने प्रत्येक वर्ग, जिसको सरकार विरोधी माना जा रहा था, को अपनी ओर लाने की कोशिश की। हार्दिक पटेल के साथ समझौता किया। अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस में शामिल किया। जिग्नेश मेवाणी के विरुद्ध अपना उम्मीदवार वापस लिया। वनवासी नेता छोटू वसावा के साथ गठबंधन किया। जीएसटी-नोटबंदी से दु:खी माने जाने वाले व्यापारियों को अपनी तरफ लाने की कोशिश की। इसके बावजूद कांग्रेस
हार गई।
इस बार भाजपा का वोट प्रतिशत पहले के मुकाबले 1.3 प्रतिशत बढ़ा है। हालांकि कांग्रेस का भी बढ़ा है, लेकिन भाजपा का बढ़ा वोट प्रतिशत उन लोगों के दावे को निरस्त करता है, जो कहते हैं कि गुजरात में भाजपा का जनाधार कम हो रहा है। कुछ विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि शहरी मतदाताओं ने भाजपा को जिताया है। यह बात पूरी तरह सच नहीं है। भाजपा ग्रामीण इलाकों की कुल 127 सीटों में से 56 सीटों पर जीती है। यानी लगभग आधी सीटों पर भाजपा विजयी रही है।
इस बार भाजपा की जीत में उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं के सामूहिक प्रयास का बड़ा योगदान रहा। एक तरफ मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उप मुख्यमंत्री नीतिन पटेल ने पिछले एक वर्ष में जातिगत आंदोलनों और बाढ़ के बावजूद काफी अच्छे निर्णय लिए। बनासकांठा में जब बाढ़ आई थी उस समय पांच दिन तक राज्य सरकार वहीं से चली थी।
सरकार की इस शैली को जनता ने पसंद किया। जब ओखी तूफान आने वाला था तब विजय रूपाणी राजकोट में अपना चुनावी प्रचार छोड़ कर सूरत गए और वहां उन्होंने आपदा से बचाव के कदमों की समीक्षा की। वहीं नीतिन पटेल ने भी पाटीदार आंदोलन समेत अनेक मुद्दों पर अपने अनुभव और सूझबूझ से काम लिया।
गुजरात की प्रथम महिला मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को भी लोग इस बात के लिए याद करते हैं कि स्वयं पटेल नेता होने के बावजूद उन्होंने पाटीदार आंदोलन की अनुचित मांगों को स्वीकार नहीं किया। हां, ‘मुख्यमंत्री युवा स्वावलंबन योजना’ देकर उन्होंने केवल पटेल हीं नहीं, जो भी जाति आर्थिक रूप से गरीब है, उसे आरक्षण दिया। राष्टÑीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी दिन-रात मेहनत की। उन्होंने 30 से ज्यादा रैलियां कीं। उन्होंने वंचित और पिछड़े वर्ग को साथ लाने के लिए उनके घर जाकर भोजन किया, वहीं कांग्रेस को बेनकाब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इनके अलावा वित्त मंत्री अरुण जेटली, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान, रेल मंत्री पीयूष गोयल, सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति इरानी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहन, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया आदि नेताओं को उतार कर भाजपा ने अनेक मोर्चे खोल दिए थे। उन्हीं दिनों उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में भाजपा को मिली सफलता से गुजरात के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा और वे काम करते रहे।
लेकिन इस चुनाव को जिताने में सबसे बड़ी भूमिका रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की। उन्होंने 15 दिन के अंदर 34 से अधिक रैलियों को संबोधित किया और विकास के साथ-साथ कांग्रेसी नेताओं की हरकतों और बदजबानी को भी मुद्दा बना दिया। अंतिम दौर के मतदान से दो दिन पहले प्रधानमंत्री ने साबरमती रिवरफ्रंट से सी-प्लेन से उड़ान भर कर यह भी बता दिया कि गुजरात में किस प्रकार के विकास कार्य हुए हैं। और सबसे बड़ी बात है गुजरात के लोग प्रधानमंत्री मोदी से अथाह प्रेम करते हैं और उन पर उनका विश्वास भी अटूट है। इन सब कारणों से भाजपा को ऐतिहासिक जीत मिली।
जीएसटी विरोध का नहीं हुआ असर
सूरत की 16 में से 15 सीटें भाजपा की झोली में आई हैं। कांग्रेस को केवल एक सीट पर विजय मिली है। यही सूरत है, जहां पाटीदार आंदोलन के समय भारी भीड़ उमड़ी थी। हार्दिक पटेल की चुनावी सभा में भी जनसागर देखा गया था। जीएसटी के विरोध में यहां के व्यापारियों ने कई दिन तक हड़ताल की थी। कांग्रेस के गुजरात प्रभारी अशोक गहलोत सूरत में कई दिन तक रुक कर व्यापारियों को आंदोलन के लिए उकसाते रहे थे। व्यापारियों का समर्थन हासिल करने के लिए राहुल गांधी ने जीएसटी को ‘गब्बर सिंह टैक्स’ तक कहा था। इसके बावजूद सूरत में कांग्रेस की फजीहत हुई।
ओबीसी समुदाय भी अल्पेश ठाकोर के साथ उस तरह खड़ा नहीं रहा जैसा कि सोचा गया था। उत्तर गुजरात, जहां अल्पेश की ठाकोर सेना मजबूत मानी जा रही थी, में भाजपा की एक सीट बढ़ी और उसे कुल 15 सीटें मिली हैं।
जिग्नेश मेवाणी वंचितों के मुद्दे पर वामपंथी राजनीति करते रहे लेकिन इस वर्ग ने भी भाजपा का साथ नहीं छोड़ा। इस वर्ग के लिए आरक्षित 13 में से सात सीटें भाजपा को मिली हैं। हालांकि पिछली बार से तीन सीटें कम जरूर हुई हैं। ऊना कांड के बाद मेवाणी को जिस तरह आगे किया जा रहा था, उसके हिसाब से तो इस वर्ग की सारी सीटें कांग्रेस को मिलनी चाहिए थीं। इस वर्ग के लिए सरकार ने जो काम किया है, उसका फायदा भाजपा को मिला है।
वनवासी क्षेत्र, जिसे बरसों से कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, उस में भी भाजपा ने अपना दम दिखाया है और धरमपुर की सीट कांग्रेस से छीन ली।
भाजपा को इन मुद्दों पर ध्यान देना होगा
जामजोधपुर के कल्याणपुर जैसे सौराष्टÑ के कुछ गांवों ने पानी की समस्या को लेकर मतदान का बहिष्कार किया। जितनी जल्दी हो, इस समस्या को सुलझाना होगा। साथ ही नर्मदा की उप नहरों का काम भी पूरा करना होगा।
कर्णावती में मेट्रो का काम लंबित है। उसे भी जल्दी पूरा करना होगा। बुलेट ट्रेन का काम भी समय पर पूरा हो, इसकी भी चिंता करनी होगी।
़किसानों की समस्याएं सुलझाने के लिए आवश्यक कदम उठाने होंगे।
सौराष्टÑ के अमरेली, मोरवी, गीर, सोमनाथ जिले भाजपा से दूर न हों इसलिए सौराष्टÑ के विकास के लिए और कदम उठाने होंगे।
गुजरात की नई सरकार को उसी गति से काम करना होगा, जिस गति से नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए होता था।
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