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समाजवादी युवजन सभा के छात्र नेता की गिरफ्तारी पर परिसर को अशांत करने की घटना हो, प्रश्न पर बेवजह बखेड़ा हो या फिर सितंबर माह के विवाद में कुलपति को अकारण घसीटना, ये सारी घटनाएं बताती हैं कि कड़िया आपस में जुड़ी हैं और विवि. को विद्वेषी राजनीति का अखाड़ा बनाने की कोशिश चल रही है
अश्वनी मिश्र
पहली घटना, मार्च, 2017 की है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी अपने चरम पर था। इसी कड़ी में काशी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रोड शो में जनज्वार उमड़ पड़ा था। उसी समय पत्रकार राजदीप सरदेसाई का एक ट्वीट आया। ट्वीट में उन्होंने लिखा,‘‘हैरानी, बीएचयू के वीसी गिरीश चन्द्र त्रिपाठी प्रधानमंत्री के राजनीतिक रोड शो में शामिल हुए। ये कहां आ गए हम?’’ राजदीप का ट्वीट आते ही सेकुलर मीडिया ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को निशाने पर लेकर भड़ास निकालना शुरू कर दिया। जब इस बात की जानकारी कुलपति गिरीश चन्द्र त्रिपाठी को हुई है तो उन्होंने राजदीप से गलत जानकारी देने पर माफी मांगने को कहा है और ऐसा न करने पर अदालती कार्रवाई की बात कही। 5 मार्च को राजदीप फिर एक ट्वीट कर लिखते हैं,‘‘मोदी के रोड शो में बीएचयू के वीसी की तस्वीरें गलत निकलीं। उनसे माफी मांग रहा हूं और ट्वीट वापस ले रहा हूं।’’
दूसरी घटना, कुलपति गिरीश चन्द्र त्रिपाठी के विदाई समारोह की। अपने विदाई भाषण में उन्होंने जो कुछ कहा सेकुलर मीडिया ने उसे तोड़-मरोड़कर बड़े-बड़े शीर्षकों के साथ छापा। तीसरी घटना, दिसंबर माह की है। स्नातकोत्तर की परीक्षा के दौरान राजनीति विज्ञान व इतिहास के प्रश्न पत्र में दो सवाल पूछे गए थे। पहला, कौटिल्य अर्थशास्त्र में जीएसटी की प्रकृति पर एक निबंध लिखिए। दूसरा, इस्लाम में हलाला क्या है ? इन प्रश्नों पर न केवल आपत्ति उठाई गई बल्कि केन्द्र सरकार तक को निशाने पर लिया गया। जबकि प्रश्न पत्र बनाने वाले प्रोफेसर ने साफ किया कि इन प्रश्नों से छात्रों को पूर्ण तथ्यों से परिचित कराकर सामयिक संदर्भों से जोड़ना हमारा उददेश्य था। फिर भी हर बार की तरह इस बार भी विवि. एक खास वर्ग के निशाने पर रहा।
दरअसल ये तीनों घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि कैसे काशी हिंदू विवि. कुछ समय से सेकुलर मीडिया से लेकर वामपंथी खेमों के निशाने पर रहा है। और जब-जब उन्हें मौका मिला है, तब-तब उन्होंने अपना काम किया। पिछले 22-23 सितंबर के बीच परिसर में छेड़खानी की घटना को अंत में हिंसा का रूप दे देना— इसी साजिश का एक हिस्साभर था। इस बात को विवि. के छात्र और प्रोफेसर मानते हैं और विवि. के खिलाफ की जा रही साजिश को उजागर करते हैं। वे बताते हैं कि कुछ स्वार्थ लोभी और अराजक तत्वों को पता था कि 22-23 सितंबर को प्रधानमंत्री काशी में रहने वाले हैं और विवि. में एक बौद्धिक संगोष्ठी को संबोधित करेंगे। इससे अच्छा मौका उन्हें कब मिलेगा जब विवि. और कुलपति की स्वच्छ छवि को धूमिल किया जा सके।
विश्वस्त सूत्रों की मानें तो विवि. के खिलाफ साजिश की शुरुआत कुछ इस तरह से हुई। छोटा नागपुर वाटिका, अस्सी घाट पर 20 अगस्त, 2017 को एक बैठक बुलाई गई, जिसमें बीएचयू आईआईटी से बर्खास्त प्रोफेसर संदीप पांडेय बीएचयू को अशांत करने की साजिश रचते हैं। वे यहां जमकर कुलपति के खिलाफ जहर उगलते हैं। ये वही संदीप पांडेय हैं जिन्हें बीएचयू आईआईटी में अलगाववादी, देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप में आईआईटी की गवर्निंग काउंसिल ने कॉन्टैÑक्ट विजिटिंग प्रोफेसर पद से 2016 के शुरू में हटा दिया था। संदीप पांडेय तभी से प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी के खिलाफ जहर उगल रहे थे। सूत्र बताते हैं कि 22-23 सितंबर को परिसर में घटी हिंसा की घटना उसी षड्यंत्र का हिस्सा है।
एकता सिंह विधि विभाग की वे छात्रा हैं जिन्होंने न केवल वामपंथी उत्पात को करीब से देखा बल्कि परिसर में छात्राओं के साथ शुरुआती आन्दोलन का नेतृत्व भी किया। लेकिन वामपंथियों ने जिस तरह से अभियान को ‘हाईजैक’ करके इसे अपने एजेंडे में बदला, उसे लेकर वे बेहद आक्रोशित हैं। वह बताती हैं, ‘‘जब से प्रधानमंत्री का चुनाव क्षेत्र काशी हुआ है, तब से काशी और बीएचयू एक खास तबके के निशाने पर हैं। कुछ समय पहले विवि. में छेड़खानी की जो घटना घटी उससे हम सभी बेहद गुस्से में थे। हमने इसकी शिकायत वार्डन से की लेकिन उन्होंने इसे एक तरह से अनसुना कर दिया। हमने तय किया कि सुबह एक मार्च निकालेंगे, जो सिंह द्वार तक जाकर फिर कुलपति आवास तक आएगा, जहां विवि. प्रशासन के सामने अपनी बात रखेंगे। हम सभी तय समय पर त्रिवेणी छात्रावास के द्वार पर पहुंच गए थे। मार्च की शक्ल में कुछ दूर चले ही थे कि कुछ छात्र-छात्राएं विधिवत हाथों में पोस्टर लेकर हमारे साथ हो लिए। मुझे एकबारगी लगा कि ये कौन लोग हैं? लेकिन जब हम सिंह द्वार पर पहुंचे तो अचानक भीड़ जुटने लगी और और बाहरी तत्व शामिल होने लगे। इसे देख मैंने साथ की लड़कियों से वहां से लौटने को कहा पर मेरी आवाज को दबाना शुरू कर दिया गया। मीडिया यहां पहले से तैयार था। इसमें कुछ ऐसे लड़के-लड़कियां मीडिया को बयान दे रहे थे, जो घटनाक्रम के बारे में जानते तक नहीं थे। गलत बयानबाजियों से मामला तूल पकड़ने लगा और हम सभी को हटने पर मजबूर कर दिया गया था।’’ वे कहती हैं, ‘‘इसमें संदीप पांडेय गिरोह, नक्सलियों को पोषित करने वाले लोग जुट चुके थे। यहां तक कि जेएनयू, इलाहाबाद विवि. और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह समेत विभिन्न दलों के लोगों का आना शुरू हो गया था। इन अराजक तत्वों को बखूबी पता था कि प्रधानमंत्री का दौरा काशी में है। इसलिए सरकार और बीएचयू पर हमला करने का इससे अच्छा मौका कहां मिलने वाला। और उन्होंने इसे अपनी राजनीतिक साजिश के रूप में प्रयोग किया। हम मोहरा बनकर रह गए।’’ सामाजिक बहिष्करण एवं समावेशी नीति की छात्रा वैदु्रमी बताती हैं,‘‘अकेले बीएचयू ही नहीं, अन्य विश्वविद्यालयों में अलग-अलग क्षेत्रों सहित विभिन्न देशों के छात्र रहते हैं तो ऐसी घटनाएं होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन ऐसी घटनाएं कहीं भी घटें, निंदनीय ही होती हैं। पर हमारे आन्दोलन में जिस तरह से आइसा समेत अन्य वामपंथी संगठनों के लोगों ने पहुंचकर आजादी के नारे लगाने शुरू किए, वह समझ से परे था। ऐसे लोगों को कौन-सी आजादी चाहिए थी, मैं समझ ही नहीं पा रही थी। हम सभी परिसर में समुचित प्रकाश, सुरक्षा और सीसीटीवी कैमरे लगाने की मांग कर रहे थे लेकिन प्रदर्शन में शामिल बाहरी तत्वों को इससे कोई मतलब नहीं था। और खास बात यह कि जो चेहरे यहां दिख रहे थे, मैंने न उन्हें परिसर में कभी देखा था और न ही इतने दिन बाद उनमें से कोई दिखा।’’
छवि धूमिल करने की साजिश
भारत अध्ययन केंद्र में चेयर प्रोफेसर और संस्कृत के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान कमलेश दत्त त्रिपाठी 1961 से विवि. में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इस समय वे 85 वर्ष के हैं और उन्हें कई कुलपतियों के साथ काम करने का अवसर मिला है। वे हाल में हुए घटनाक्रमों पर दुख व्यक्त करते हुए कहते हैं,‘‘मेरा लंबा अनुभव है। सभी कुलपतियों की अपनी-अपनी विशेषताएं रहीं और उनके सम्मुख विवि. की व्यवस्थाओं का सही तरह से संचालन एवं महामना के आदर्शों के अनुरूप शैक्षणिक स्वरूप को बनाए रखने और आगे बढ़ाए रखने की चुनौती रही। एक समय था 80 के दशक का, जब यहां घोर अराजकता का वातावरण था। उस समय प्रो. रघुनाथ प्रसाद रस्तोगी ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर अराजकता के वातावरण को समाप्त किया। इसी परंपरा में निवर्तमान कुलपति गिरीश चन्द्र त्रिपाठी ने जब तीन वर्ष पूर्व विवि. का कार्यभार संभाला था, तो उस समय भी वातावरण अराजक था और व्यवस्था चरमराई हुई थी। महामना के आदर्श उन्हीं के प्रांगण में बिखरे हुए थे। प्रो. त्रिपाठी ने अत्यंत परिश्रम से व्यवस्थाओं को बहाल किया, परिसर में उनके 34 महीने के कार्यकाल में न केवल पूर्ण शांति और शिक्षा का सुंदर वातावरण विकसित हुआ वरन् महामना के आदर्शों के अनुरूप उन्होंने विवि. की शैक्षिक परंपरा में नए प्रतिमान स्थापित किए। मैंने उन्हें कुलपति रूप में भी देखा, उनके कार्य को देखा और विवि. की महान परंपराओं के अनुरूप जीवन व्यवहार को देखा। आज जो लोग यह कह रहे हैं कि उन्होंने छात्राओं के साथ संवाद नहीं किया, यह गलत है। वे सदैव अपने छात्रों को प्राथमिकता देते थे। उनके कार्यकाल में विवि. में अनेक महत्वपूर्ण काम हुए और भारतीय संस्कृति के अनुरूप सुंदर वातावरण निर्मित हुआ।’’ प्रो. त्रिपाठी के कथनानुसार उनके कार्यकाल के अंतिम महीने में नाटकीय ढंग से परिस्थितियों ने जो रूप लिया, उसे समझना जटिल नहीं है। मैं उसके बारे में अधिक कहना नहीं चाहता, किन्तु इतना जरूर कहूंगा कि काशी के लोग सब समझ रहे हैं।’’
तीन दशक से विवि. से जुड़े प्रो. मंजीत चतुर्वेदी सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन रहे हैं। वे कहते हैं कि हाल में जो घटनाएं घटीं, उनका राजनीतिककरण हुआ है। अगर विवि. के छात्रों को कोई समस्या है तो उसके लिए बाकायदा फोरम बने हुए हैं। उन फोरम में न जाकर, उसे दूसरा रूप दे देना गलत है। अवध विवि. के पूर्व कुलपति प्रो. जी.सी.जायसवाल मानते हैं कि निस्संदेह इस अभियान की कमान ऐसे हाथों में चली गई थी, जिनका उद्देश्य विवि. की छवि को खराब करना था। वे बताते हैं,‘‘किसी भी विवि. में ऐसी घटनाएं घटती हैं तो विवि. प्रशासन उससे सख्ती के साथ निबटता है और कार्रवाई करता है। जो लोग छेड़खानी की घटना में संवादहीनता की बात कर रहे हैं, वह गलत है। कुलपति ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। लेकिन जिन लोगों को जिसे लक्षित करना था, उसमें वे सफल रहे।’’
वामपंथी संगठनों ने दी आन्दोलन को हवा
स्टूडेंट फॉर चेंज, आइसा,अंबेडकर बिग्रेड, संदीप पांडे मंडली, भगत सिंह मोर्चा, ज्वाइंट एक्शन कमेटी। यह वह गुट है, जिन्होंने छेड़खानी की घटना को हिंसा का रूप देने का काम किया। इन संगठनों के बहुत से कार्यकर्ता परिसर में घटना घटित होने के एक दिन पहले से ही देखे गए थे। कृष्ण मोहन पांडेय विधि के छात्र हैं और घटना के प्रत्यक्षदर्शी हैं। वे बताते हैं,‘‘वामपंथियों ने शाम को सिंह द्वार पर ‘अनसेफ बीएचयू’ का बैनर और सिंहद्वार पर लगे माता सरस्वती के ध्वज पर लाल झंडा टांग दिया। विवि. के छात्रों ने इस बात का विरोध किया तो धरना दो फाड़ हो गया। एक तरफ अराजक तत्व थे तो दूसरी ओर विवि. के छात्र। इसमें जेएनयू के दो छात्र मृत्युंजय और वाहिद आलम थे जो धरने पर बैठे छात्र-छात्राओं को बराबर भड़का रह थे। मैंने इस बात का डटकर विरोध किया और लाल झंडा और अनसेफ बीएचयू लिखे बैनर को फाड़ा। यहां तक कि वाहिद आलम नाम के लड़के ने महामना की प्रतिमा पर कालिख फेंकने तक का काम किया। मेरे साथ इसे लेकर मारपीट भी हुई लेकिन मैंने इनकी एक न चलने दी।’’ दिनेश मिश्र संस्कृत विभाग में शोधार्थी हैं। वह कहते हैं कि जिस दिन से विवि. में कुलपति के रूप में गिरीश चन्द्र त्रिपाठी की नियुक्ति हुई थी, उस दिन से एक खास तबका परेशान था।
क्यों बन रहा बीएचयू निशाना
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय हाल के कुछ वर्षों में अराजक और राष्ट्रद्रोही गतिविधियों के कारण न केवल चर्चा में रहा बल्कि देश के लोगों के मन में उसे लेकर एक अलग धारणा बनी है। जबकि बीएचयू इस मामले में बिल्कुल इतर है। वह न केवल आज देश के शीर्ष तीन संस्थानों में शामिल है बल्कि विश्व के 100 शीर्ष विश्वविद्यालयों में बीएचयू के कुछ विभागों का शुमार होने लगा है। संस्कृति परंपरा के मामले में इसका कोई सानी नहीं है, इसलिए वामपंथियों और अराजक तत्वों को यह अखर रहा है। सिद्धिदात्री भारद्वाज न केवल यहां की छात्रा रही हैं बल्कि अब सहायक प्राध्यापक हैं। वे मानती हैं कि कुछ लोग हैं जो बीएचयू को जेएनयू बनाना चाहते हैं। लेकिन वे ऐसा करने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। वे कहती हैं,‘‘इस काम में एक खास वर्ग लगा हुआ है, जो चाहता है कि आज जो संस्कृति जेएनयू की है, वह बीएचयू में भी हो। पर ऐसे लोगों को पता होना चाहिए कि बीएचयू अन्य विश्वविद्यालयों से भिन्न है। यहां शिक्षा को ही प्रधानता मिली है। इसलिए अन्य विवि. इसके सामने खड़े नहीं हो पाते। लेकिन कुछ तथाकथित लोग बीएचयू को आन्दोलनकारी विवि. बनाने का प्रयास कर रहे है और अभी कुछ समय पहले जो घटना घटी, उसमें ऐसे ही बाहरी तत्वों की साजिश थी।’’ बहरहाल काशी हिन्दू विवि. से जुड़े हाल के निरर्थक विवादों की पड़ताल करने पर इस बात की पुष्टि हो जाती है कि ये सभी उत्पात महज निहित स्वार्थी, राष्ट्रविरोधी वामपंथी साजिश का हिस्सा भर हैं।
शिक्षण संस्थानों को
राजनीति का अखाड़ा न बनाया जाए’
बीएचयू में उठे बेवजह के विवादों पर विवि. के निवर्तमान कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी कहते हैं कि विवि. एक लंबे समय से कुछ खास किस्म के लोगों के निशाने पर रहा है। और सितंबर में घटी घटना उसी का एक रूप थी। प्रस्तुत है इसी विषय पर पाञ्चजन्य संवाददाता अश्वनी मिश्र की उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश:-
20 से 23 सितंबर के बीच परिसर में जो घटनाक्रम हुआ, उसे आप कैसे देखते हैं?
गत कुछ वर्षों को देखें तो देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अशांति रही और छात्र आन्दोलित रहे। पर काशी हिन्दू विवि. शांत रहा। लेकिन एक विचार विशेष जिसके मन में यह बात हमेशा से रही कि इस विवि. का चरित्र एक अलग तरह का बना हुआ है। उन लोगों ने डेढ़ वर्ष से विवि. में अलग तरह की बात शुरू की और फैलाया कि विवि. में लैंगिक भेद किया जाता है। देश के सेकुलर मीडिया ने इसे मुद्दा बनाकर विवि. को निशाने पर लिया। मेरा दो महीने का कार्यकाल शेष बचा था। संयोग से 22-23 सितंबर को प्रधानमंत्री वहां आने वाले थे। उनका एक कार्यक्रम परिसर में बौद्धिक संगोष्ठी का था। इस बात को ध्यान में रख करके ऐसे लोगों ने संगठित होकर सुनियोजित साजिश रची और बाहरी तत्वों ने इस हिंसा को तूल देने का काम किया। मेरे पास इसके पूरे प्रमाण है।
कुलपति का कार्यभार संभालने के बाद और विदाई समारोह तक आपके प्रति सेकुलर मीडिया का रुख बेहद एकतरफा रहा। विदाई समारोह में आपने नियुक्तियों के संदर्भ में क्या कहा था और छपा क्या?
मैंने कहा था कि अगर अच्छाई हुई है तो उसका श्रेय आपको। लेकिन कहीं अगर कोई गड़बड़ी हुई तो मैं मनुष्य हूं,हो सकता मुझसे गुलतियां हुई हों। उन्हें मैं स्वीकार करता हूं। फिर मैंने यह कहा कि कई बार हम जैसा योग्य चाहते हैं, वैसा नहीं मिलता। तो जो मिला उन्हीं में से अच्छा खोजकर उसे योग्य कहना पड़ा। इसलिए इसमें 19-20 कुछ किया होगा। पर सेकुलर मीडिया ने नियुक्तियों को लेकर पूरी बात को ही तोड़-मरोड़कर पेश किया और छवि को धूमिल करने का प्रयास किया।
भारतीय शिक्षा का भविष्य आप कैसा देख रहे हैं, खासकर विश्वविद्यालयों के संदर्भ में?
मैं हर बार कहता हूं कि विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों को ‘राजनीति का अखाड़ा’ न बनाया जाए। ये व्यक्ति निर्माण के केन्द्र हैं। दूसरी बात, हर विवि. की अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान है और यह मायने रखता है। इसलिए बिना वजह की बातों को आधार बनाकर किसी की प्रतिष्ठा को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए, क्योंकि शिक्षा मनुष्य का ही समाज और राष्ट्र का निर्माण करती है। यह अपेक्षा है कि संस्थाएं अच्छे लोगों का निर्माण करें लेकिन हम ऐसा तब ही कर पाएंगे जब उनके चरित्र की सुरक्षा हम सुनिश्चित करें।
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