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‘‘वंदे मातरम् का अर्थ होता है मातृभूमि को नमन करना। मां तुझे सलाम। इसमें क्या समस्या है? अगर मां को सलाम नहीं करेंगे तो क्या भारत मां के दुश्मनों को सलाम करेंगे?’’ उक्त उद्बोधन उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू ने दिया। वे गत दिनों नई दिल्ली के विज्ञान भवन में विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक रहे स्व. अशोक सिंहल पर केंद्रित श्री महेश भागचंदका द्वारा लिखित पुस्तक ‘अशोक सिंहल: स्टॉन्च एंड पर्सीवेरेंट एक्सोपोनेंट आॅफ हिन्दुत्व’ का विमोचन कर रहे थे। समारोह में प्रमुख रूप से स्वामी सत्यमित्रानंद जी महाराज, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी एवं विश्व हिन्दू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय महामंत्री श्री चम्पत राय उपस्थित रहे। इस अवसर पर श्री नायडू ने कहा कि अशोक जी का जीवन किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं अपितु समाज के प्रत्येक वर्ग को प्रभावित करता है। उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले ‘भारत माता की जय’ के बारे में विवाद खड़ा हुआ। ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि जब कोई भारत माता की जय कहता है तो यह तस्वीर के किसी भगवान के बारे में नहीं होता। यह जात-पात, रंग-रूप या मत-पंथ से इतर देश में रह रहे 125 करोड़ लोगों के बारे में होता है। 1995 में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म नहीं, बल्कि जीवन पद्धति है। इसलिए यह भी समझना चाहिए कि हिन्दू धर्म एक संकुचित संकल्पना नहीं है, यह भारत का एक व्यापक सांस्कृतिक अर्थ है। भारत पर हर किसी ने हमला किया, शासन किया, नुकसान पहुंचाया और लूटा, लेकिन भारत ने अपनी संस्कृति के कारण कभी किसी देश पर हमला नहीं किया। हमारी संस्कृति हमें वसुधैव कुटुम्बकम् सिखाती है, जिसका मतलब है कि दुनिया एक परिवार है।
समारोह में उपस्थित सत्यमित्रानंद जी महाराज ने कहा कि अशोक सिंहल जी देश के जन-जन के ह्दय में विराजमान रहने वाली विभूति थे। अपने जीवन के दौरान उन्होंने देश और हिन्दू समाज के लिए सतत संघर्ष किया। उन्हीं में से एक श्रीराममंदिर आन्दोलन आज भी देश के लोगों को प्रभावित करता है। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से उपस्थित श्री भैयाजी जोशी ने कहा कि अशोक सिंहल जी ने अपना संपूर्ण जीवन हिन्दुत्व के मूल्यों को पुनसर््थापित करने में लगाया। और इस सबका परिणाम है कि उन जैसी विभूतियों के प्रयास स्वरूप देश सकारात्मक दिशा में बढ़ता जा रहा है। इस अवसर पर श्री चंपत राय एवं पुस्तक के लेखक श्री महेश भागचंदका ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। प्रतिनिधि
‘महामना ने स्थापित किए मानवीय मूल्य’
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पं़ मदन मोहन मालवीय जी की 156वीं जयन्ती पर मालवीय मिशन की ओर से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मालवीय भवन में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि महामना के आदर्शों में भारतीय संस्कृति के पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का आपस में समन्वय है। महामना ने विश्वविद्यालय में चिकित्सा, कला, विज्ञान, धर्म, दर्शन, प्रौद्योगिकी के साथ-साथ मानवीय मूल्यों को भी स्थापित किया। जबकि पश्चिमी देशों में प्लेटो, सुकरात आदि विचारकों में मानवीय मूल्य का अभाव दिखता है।
इस अवसर पर मुख्य रूप से उपस्थित प्रो. हृदय नारायण शर्मा ने कहा कि महामना के दिव्य आदर्श क्षेत्र वर्ग समाज के कार्य तक ही सीमित नहीं थे। महामना ने छात्रों के व्यक्तित्व निर्माण के लिए संस्कारवान शिक्षा, ब्रह्मचर्य, शिष्टाचार, व्यायाम, शारीरिक-मानसिक चेतना शक्ति की शिक्षा के केन्द्र स्थापित किये। विशिष्ट वक्ता पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो़ राजाराम यादव ने कहा कि भारतीय संस्कृति रिश्तों की संस्कृति है। वास्तव में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का समन्वय ही हिन्दुत्व का मूल मंत्र है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में मानवीय मूल्यों की शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता है। हमारे प्राचीन ग्रन्थों में ही विज्ञान समाहित है, लेकिन आज विज्ञान व संस्कृति की शिक्षा एक साथ नहीं दी जाती है। जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय
के कुलपति प्रो़ हरिकेश सिंह ने कहा कि राष्टÑ निर्माण केवल विराट-चित्त वाले महापुरुष ही कर सकते थे, जैसे मालवीय जी स्वयं थे। (विसंकें, काशी)
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