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गुजरात चुनाव से पहले मणिशंकर अय्यर के घर पर ‘गुप्त बैठक’ का क्या मतलब है? इस रहस्यपूर्ण बैठक में पूर्व सेना प्रमुख को जाने की क्या जरूरत थी? केंद्र सरकार को तत्काल अय्यर और अन्य लोगों के ठिकानों पर छापामारी कर संदिग्ध सूत्रों को ढूंढना और पूछताछ करनी चाहिए।
मणिशंकर अय्यर का तो जन्म ही लाहौर में हुआ था। वे पाकिस्तान के समर्थक हैं। उन्होंने पेट्रोलियम मंत्री रहते हुए पाकिस्तान को फायदा पहुंचाने के लिए ईरान-पाकिस्तान-भारत पेट्रोलियम तेल पाइपलाइन बिछाने की घोषणा की थी, इसके लिए प्रतिवर्ष सैकड़ों करोड़ डॉलर पाकिस्तान को देने का प्रावधान था। वहीं, पाकिस्तान से होकर गुजरने वाली पाइपलाइन से लाखों गैलन तेल की चोरी होता और आतंकी इस पाइपलाइन को बार-बार विस्फोटकों से उड़ाते। फिर पाइपलाइन की मरम्मत के नाम पर पाकिस्तान अनंतकाल तक भारत से मोटी रकम वसूलता। इस समझौते के विरुद्ध मैंने कई हिंदी-अंग्रेजी अखबारों में खुलकर लिखा था। इस षड्यंत्र के विरुद्ध प्रधानमंत्री कार्यालय को भी पत्र लिखा था। अंतत: योजना रद्द हुई और मणिशंकर अय्यर पद से भी हटाए गए।
6 दिसंबर को मणिशंकर अय्यर के घर पर पाकिस्तानी उच्चायुक्त व पूर्व विदेश मंत्री के साथ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व उच्चायुक्त चिन्मय गरे खान इकट्ठे हुए और सबसे खतरनाक उपस्थिति पूर्व सेनाध्यक्ष दीपक कपूर की थी! गुजरात चुनाव से पहले इस गोपनीय बैठक का क्या ताल्लुक है? भारत सरकार ऐसे दर्जनों मौकों पर कार्रवाई करने से बचती रही है! परंतु यह निश्चित है कि अंसारी, मणिशंकर व मनमोहन सिंह पाकिस्तान के आंखों के तारे रहे हैं! मनमोहन सिंह ने शर्म अल शेख में यह कर पाकिस्तान की बहुत बड़ी मदद की थी कि ‘‘पाकिस्तान खुद आतंकवाद का शिकार है!’’ अंसारी खुद को मुसलमानों का बहुत बड़ा खैरख्वाह मानते हैं व मुस्लिम जगत में इन्हें मुस्लिम नेता के रूप में जाना जाता है! दीपक कपूर कांग्रेस द्वारा कई सीनियर कमांडरों को सुपरसीड कर सेनाध्यक्ष बनाए गए थे। उन पर आदर्श घोटाला सहित भ्रष्टाचार में शामिल रहने के आरोप थे! कश्मीर में जनरल कपूर बल प्रयोग से बचते रहे थे। इस तरह आतंकियों की परोक्ष मदद हुई थी!
प्रश्न यह है कि इतनी रहस्यपूर्ण बैठक में उन्हें जाने की क्या जरूरत थी?अब केंद्र सरकार को तुरंत अय्यर व अन्य संदिग्ध लोगों के ठिकानों पर छापामारी कर संदिग्ध सूत्रों को ढूंढना चाहिए और पूछताछ करनी चाहिए। बेशक चुनाव में फायदा उठाने में कोई हर्ज नहीं! मगर इस बैठक का उद्देश्य और निष्कर्ष अवश्य निकाला जाना चाहिए। यदि कुछ गिरफ्तारी जरूरी हो तो वह भी की जाए, क्योंकि बैठक में शामिल सभी हस्तियां भारत की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार पदों पर थीं। अब खाली बातें नहीं, देशद्रोहियों को जेल में डालिए पीएम साहेब!!
(पवन सक्सेना की फेसबुक वॉल से)
झूठे हैं मणिशंकर अय्यर
प्रधानमंत्री को ‘नीच’ कहकर संबोधित करने वाले मणिशंकर अय्यर जब सफाई देते हैं कि हिंदी कम जानता हूं, मैंने तो ’ङ्म६ यानी निचले स्तर के लिए ‘नीच’ शब्द का प्रयोग किया था, तो बात जमती नहीं। भारतीय विदेश सेवा के इस पूर्व अधिकारी का यह सफेद झूठ था। दरअसल, वे 76 वर्ष पूर्व लाहौर में पैदा हुए थे और विभाजन के समय परिवार के साथ भारत आए थे। वे पाकिस्तान में 1978-82 तक भारतीय उच्चायोग में अधिकारी भी रहे।
बात 1982-83 की है। मैं जब क्रिकेट सीरिज कवर करने पाकिस्तान गया था, तब ये सज्जन कराची स्थित भारतीय वाणिज्यदूतावास में प्रमुख थे। भारतीय टीम मुल्तान में तीन दिवसीय अभ्यास मैच और एक दिनी मुकाबला खेलकर कराची आई थी। दूतावास में अय्यर ने भारतीय टीम और मीडिया को चाय पर बुलाया था। वहां मेहमान टीम के मैनेजर व पूर्व बड़ौदा नरेश फतेहसिंह राव गायकवाड़ (जो कुछ दिनों के लिए स्वदेश चले गए थे) ने मुझसे पूछा, ‘‘मुल्तान वाले मैच में तुम्हें कोई पाकिस्तानी टैलेंट नजर आया?’’ मैंने नाईजीरियाई मूल के बल्लेबाज कासिम उमर और मध्यम गति के गेंदबाज अजीम हफीज का नाम लिया तो अय्यर महाशय ने मेरी बात बीच में ही लपकते हुए गायकवाड़ को बताया कि उमर कद-काठी में सनी की तरह ठिगना और जबरदस्त बल्लेबाज है। हफीज के एक हाथ में तीन उंगलियां नहीं हैं। उन्होंने खांटी हिंदुस्तानी में यह बात की थी। वहां मौजूद गावस्कर ने भी इससे सहमति जताई थी। इस बात का उल्लेख इसलिए करना पड़ा कि अय्यर हिंदी ही नहीं, उर्दू भी जानते हैं। 1978 में भी उनसे मेरा पाला पड़ा था। तब मैं नहीं जानता था कि यह इनसान इतना अहंकारी और ओछा होगा। (पदमपति शर्मा की फेसबुक वॉल से)
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