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‘‘पत्रकारों का यह दायित्व है कि वह वैचारिक दृष्टि से ऊपर उठकर समाज में शांति बनाए रखने के लिए कार्य करें। आपस में वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, पर जनसरोकारों के साथ मतभेद नहीं होना चाहिए। पत्रकार को संस्थान और स्वयं के विचार के प्रति जवाबदेह न होकर जनता के प्रति समर्पित रहना चाहिए।’’ उक्त बातें प्रज्ञा प्रवाह के राष्टÑीय संयोजक श्री जे़ नंदकुमार ने कहीं। वे पिछले दिनों विश्व संवाद केंद्र, भोपाल की ओर से ‘वर्तमान समय में कलम और विचार का द्वंद्व’ विषयक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कार्यक्रम में ‘अनथक कलमयोद्धा’ विशेषांक का विमोचन भी किया। उन्होंने कहा कि आज कांग्रेस जिस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कर रही है, उस पर पहला प्रतिबंध पं. नेहरू ने ही लगाया था। नेहरू के संविधान संशोधन का ही परिणाम था कि इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया। इस अवसर पर राष्टÑीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष श्री बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि आज की पत्रकारिता में भारतीयता का बोध होना जरूरी है। अगर पत्रकारिता में भारतीयता का बोध नहीं होगा तो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ खतरे में पड़ जाएगा। हमारी आरंभिक पत्रकारिता ने भाषाई पत्रकारिता के माध्यम से राष्टÑीयता का अलख जगाने का कार्य किया है। उन्होंने वर्तमान पत्रकारिता के संदर्भ में कहा कि अधिकतर मीडिया संस्थानों में विदेशी पैसा लगा है। ऐसे में वह भारतीय हितों की रक्षा कैसे करेंगे? (विसंकें, भोपाल)
‘मातृभूमि के लिए कीमत चुकानी पड़ती है’
पिछले 10 दिसंबर को हिमालय परिवार और यूथ फॉर नेशन के संयुक्त तत्वावधान में जयपुर के सिटी पैलेस में धारा 370 की वर्तमान प्रासंगिकता एवं राष्टÑ निर्माण में युवाओं की भूमिका विषय पर प्रबुद्धजन संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य व वरिष्ठ प्रचारक श्री इन्द्रेश कुमार उपस्थित रहे। उन्होंने कहा कि हमें आजादी मिल गई है, हम स्वतंत्र हैं, यह झूठ हमसे 70 वर्षों से बोला जा रहा है।
स्वतंत्रता के नाम पर 1947 में जिस दस्तावेज पर हस्ताक्षर हुए वह स्वतंत्रता का नहीं देश के विभाजन का दस्तावेज था। उन्होंने कहा कि देश चलाने के लिए समझौता नहीं किया जाता है, मातृभूमि के लिए कीमत देनी पड़ती है। जिस प्रकार एक ओर सेना का जवान अपना घर, पत्नी, माता-पिता सब छोड़ कर मातृभूमि के लिए बलिदान हो जाता है। कार्यक्रम में पूज्य संत स्वामी प्रज्ञानंद जी, लोकायुक्त एस़ एस़ कोठारी सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित रहे। ल्ल (विसंके, जयपुर)
‘भारत की संस्कृति का मूल है मानवता’
पिछले दिनों कोलकाता के बड़ाबजार कुमारसभा पुस्तकालय द्वारा डॉ़ अरुण प्रकाश अवस्थी स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उत्तरप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष श्री ह्दय नारायण दीक्षित उपस्थित थे।
उन्होंने कहा कि आधुनिकता सदा प्राचीनता के गर्भ से पैदा होती है। जिस प्रकार गंगा का प्रवाह सतत है वैसे ही हमारी संस्कृति का प्रवाह सतत ही है। हमारी रीति, हमारी प्रीति हमारे भीतर से ही उपजती होनी चाहिए। भारत के राष्टÑ जीवन से रस लेकर ही हम उन्नति कर सकते हैं। हमारे भीतर भारतीय संस्कृति का स्वाभिमान एवं गौरवबोध होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा राष्टÑभाव यूरोपीय देशों से भिन्न है, क्योंकि इसके मूल में वह संस्कृति है जो मानवता को समर्पित है। हमारी संस्कृति वैदिक वांग्मय से आधिनुकता की कड़ी को जोड़ती है। अजर-अमर है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने कहा कि आज के समय में सांस्कृतिक राष्टÑभाव की समझ को विकसित करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम का संचालन साहित्यमंत्री श्री योगेशराज उपाध्याय ने किया। प्रतिनिधि
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