सांच को आंच दिखाता मीडिया कितना विश्वसनीय!
July 19, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

सांच को आंच दिखाता मीडिया कितना विश्वसनीय!

by
Dec 18, 2017, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 18 Dec 2017 11:11:10


ऐसा लगता है कि 2014 के बाद से पत्रकारिता का बड़ा वर्ग मानो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है

जब बड़े-बड़े पत्रकार खुलेआम झूठ बोलने लगें, तथ्यों से खिलवाड़ करें व पकड़े जाने पर भूल-सुधार या माफी मांगने का न्यूनतम शिष्टाचार निभाने की भी जरूरत न समझें तो जान लीजिए कि मीडिया वह नहीं रहा, जिसे लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा गया था। मीडिया में बुरे लोग हमेशा से रहे हैं, लेकिन निष्पक्ष व सच को उजागर करने वालों की कभी कमी नहीं रही। किंतु परिस्थितियां अब तेजी से बदल रही हैं। 2014 के बाद से पत्रकारिता का बड़ा वर्ग मानो अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। राष्ट्रवादी हिंदू सरकार का एक कार्यकाल किसी तरह से बर्दाश्त कर लिया, पर वह दोबारा जीत न जाए, इसकी चिंता अभी से दिखने लगी है। दरअसल, यह लड़ाई निज स्वार्थ की है। सरकार के कड़े फैसलों से उस कॉरपोरेट मीडिया को सर्वाधिक धक्का लगा है जिसे चुनौती देना बड़े-बड़ों के बस की बात नहीं थी। शायद इसी कारण मीडिया में सरकार को लेकर भारी नकारात्मकता है।
गुजरात चुनाव प्रचार में जब प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ कांग्रेस के बड़े नेताओं की ‘गुप्त बैठक’ का जिक्र किया तो मीडिया की प्रतिक्रिया बेहद विचित्र रही। कांग्रेस के आधिकारिक प्रवक्ताओं की फौज ने पहले बैठक का खंडन किया, पर सच्चाई सामने आ गई। ठीक ऐसा ही चीनी राजदूत से राहुल गांधी की गुप्त मुलाकात के समय भी हुआ था। क्या सवाल नहीं उठना चाहिए कि कांग्रेस के बड़े नेता चीन-पाकिस्तान के राजदूतों से चोरी छिपे क्यों मिल रहे हैं? क्या मीडिया ने यह सवाल किसी विपक्षी नेता से पूछा? इसके बजाय लगभग हर चैनल व अखबार यह बताने में जुट गया कि प्रधानमंत्री ने ‘गुप्त बैठक’ का जिक्र करके अपराध कर दिया। उन्हें सबूत देना होगा कि बैठक में गुजरात चुनाव पर बात हुई। स्पष्ट है कि कोई नहीं बता सकता कि बात क्या हुई, न ही प्रधानमंत्री ने कोई ऐसा दावा किया। मीडिया के बड़े वर्ग ने इस मामले में कांग्रेस की मदद का पुराना   ‘कर्तव्य’ निभाया, जिसे समझना आम लोगों के लिए बहुत जरूरी है। सोशल मीडिया के जरिए इस सवाल को बनाए रखना जरूरी है, वह भी तब जब कांग्रेस का एक बड़ा नेता पाकिस्तान से औपचारिक अपील कर चुका है कि वह इस सरकार को अपदस्थ करने में मदद करे। मीडिया मूल प्रश्न नहीं पूछता, समस्या सिर्फ यही नहीं है। वह इन
प्रश्नों को दबाने के लिए भी पूरी ताकत लगा रहा है।
यह सबने देखा कि इंडिया टुडे चैनल की महिला रिपोर्टर ने मणिशंकर अय्यर से सवाल पूछने पर रिपब्लिक टीवी की पत्रकार को डांटना-फटकारना शुरू कर दिया। ऐसा बर्ताव किया मानो वह अय्यर की सुरक्षा गार्ड हो। वास्तव में दिल्ली में पत्रकारों की एक बड़ी टोली गांधी परिवार के अय्यर जैसे दरबारियों की सुरक्षा कर रही है। यह टोली आम पत्रकारों को प्रश्न पूछने से रोकती है, उन्हें खबरों की दौड़ से बाहर करने की कोशिश करती है। यह एक तरह का एकाधिकारवाद है, जिसे चुनौती मिलनी शुरू हो गई है। हालांकि यह आसान नहीं है, क्योंकि शायद ही कोई बड़ा समाचार समूह हो जहां कांग्रेस व वामपंथी दलों के निष्ठावान कार्यकर्ता बड़े पदों पर सेवाएं न दे रहे हों।
यह सिर्फ संयोग नहीं हो सकता कि दिल्ली के कुछ प्रमुख चैनलों ने प्रधानमंत्री की सभाओं को समाचार एजेंसी एएनआई के भरोसे कवर किया और राहुल के साथ प्रतिबद्ध संवाददाताओं का झुंड लगा रहा। एनडीटीवी की रिपोर्टर ने अमदाबाद की मुस्लिम बस्ती में खड़े होकर बताया कि तीन तलाक पर पाबंदी लगाना इस्लामी मामलों में दखलंदाजी है व इससे मुस्लिम महिलाएं बेहद नाराज हैं। इसी तरह कई रिपोर्टरों ने राहुल गांधी की मंदिर यात्राओं को ‘राजनीतिक श्रद्धा भाव’ के साथ कवर किया। गुजरात चुनाव को प्रभावित करने के उद्देश्य से कुछ अखबारों व चैनलों ने खबर फैलाई कि सरकार कोई विधेयक ला रही है जिससे बैंकों को जमाकर्ता का पैसा जब्त करने का अधिकार मिल जाएगा।
इस खबर का कोई सिर-पैर नहीं था। वास्तव में यह विधेयक इसलिए है ताकि बैंकों में पैसा जमा करने वाले ज्यादा भरोसा कर सकें और कभी बैंक के डूबने की नौबत आए तो आम लोगों का पैसा वापस दिलाया जा सके। चुनाव से ठीक पहले ऐसी शरारतपूर्ण खबरें पहले भी छपवाई गई हैं। आम तौर पर इन्हें जगह देने वाले मीडिया संस्थानों या पत्रकारों को बदले में कुछ ‘पारितोषिक’ भी मिलता है। कल्पना के आधार पर गढ़ी गई इस खबर को फैलाने में कांग्रेस ने अपना पूरा मीडिया तंत्र सक्रिय कर दिया। एनडीटीवी से लेकर इंडिया टुडे तक ने आम लोगों में भ्रम फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इनमें कुछ जाने-माने पत्रकार भी हैं, जिन्हें लोग भरोसे के साथ देखा और सुना करते थे।
बीते हफ्ते रामसेतु तोड़ने की कांग्रेसी कोशिश की याद एक बार फिर से ताजा हो गई। डिस्कवरी के साइंस चैनल ने नए शोधों के आधार पर बताया है कि रामसेतु प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव निर्मित पुल है। एक विदेशी चैनल ने यह बात बताई तो भारतीय मीडिया ने इसे हाथोंहाथ लिया। रामसेतु का मामला जिस तरह से राजनीतिक हो चुका था, उसे देखते हुए कोई भारतीय चैनल भी यह काम कर सकता था। हैरानी तब हुई जब रामसेतु को लेकर कुछ चैनलों पर दिखाई गई खबरों में इसे लगातार ‘माईथोलॉजी’ कहा गया। संभवत: भारतीय मीडिया का एक बड़ा वर्ग अब भी भगवान राम और उनसे जुड़े प्रतीकों को लेकर उतना संवेदनशील नहीं है, जितना उसे होना चाहिए। ‘टाइम्स आॅफ इंडिया’ ने एक छोटी सी खबर छापी कि कश्मीर में एक मौलवी पकड़ा गया है, जिस पर कम से कम 200 महिलाओं से बलात्कार करने का आरोप है। कुछ स्थानीय अखबारों के मुताबिक यह संख्या 500 के पार है। लेकिन हिंदू साधु-संतों के खिलाफ अभियान चलाने वाले तथाकथित मुख्यधारा मीडिया के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। कुछ ने छिटपुट खबर जरूर दिखाई, लेकिन वैसा कोई अभियान देखने को नहीं मिला, जैसा हिंदू साधु-संतों के खिलाफ दिखता है।
कर्नाटक में परेश नामक 21 वर्षीय लड़के को बर्बरता के साथ मौत के घाट उतार दिया गया। इस मामले में 5 मुसलमान लड़के नामजद हैं। पहली नजर में हत्या का कारण भी साम्प्रदायिक विद्वेष ही लगता है। लेकिन मीडिया ने शुरू से ही इसे सामान्य घटना बताया। हफ्ते भर पहले राजसमंद में एक मुस्लिम व्यक्ति की मौत को मजहबी रंग देने वाला मीडिया इस मामले में अलग पैमाना अपना रहा है। यह दोहरा रवैया मीडिया की विश्वसनीयता के लिए बड़ा खतरा है। महिला अधिकार पर हंगामा मचाने वाले चैनल व अखबार तब चुप्पी साध गए जब बरेली में तीन तलाक पर केंद्र सरकार के समर्थन में रैली में हिस्सा लेने वाली मुस्लिम महिला को पति ने मारपीट कर तलाक दे दिया।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में तीन तलाक व हलाला को सामाजिक बुराई के तौर पर पढ़ाने पर मीडिया को ज्यादा ही मिर्ची लगी। कई अखबारों व वेबसाइट पर ऐसे खबर दी गई मानो यह मुसलमानों की मजहबी आजादी पर हमला हो। सवाल है कि दहेज, सतीप्रथा जैसी कुरीतियां यदि पाठ्यक्रम में हो सकती हैं तो तीन तलाक और हलाला क्यों नहीं? इसी तरह अलवर में गोतस्करों द्वारापुलिस पर गोली चलाने के मामले सामने आए। ये वही लोग हैं जिन्हें अखबारों व चैनलों में ‘गोपालक’ बताया जाता रहा है। अब इनकी करतूतों की खबरें मीडिया से गायब हैं। आंध्र प्रदेश में वाई. विजय कुमार नामक ईसाई मिशनरी को भारत माता के लिए अपशब्दों के प्रयोग के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उसका वीडियो देखकर लोगों ने सोशल मीडिया पर अभियान चलाया तो पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी। यह सोशल मीडिया की ताकत है। आम लोगों के लिए यही आखिरी उम्मीद है, क्योंकि अधिकांश अखबारों ने ‘क्राइस्ट गोस्पेल’ टीम के इस निदेशक को खबर में ‘एक आदमी’ कहकर संबोधित किया।
जी मीडिया और भास्कर समूह के अखबार डीएनए ने रिपोर्ट छापी कि ‘बाबरी ढांचे को गिराने वाले कई कारसेवकों ने अपराधबोध में आकर इस्लाम कबूल लिया है।’ यह दावा इंटरनेट पर कई साल से घूम रहे एक वीडियो के आधार पर किया गया। रिपोर्टर ने उन लोगों से बात नहीं की थी। सोशल मीडिया पर लोगों ने जांच की तो पता चला कि यह फर्जी रिपोर्ट थी, जो इस्लाम को महिमामंडित करने के लिए तैयार की गई थी। उसका तथ्यों से कोई वास्ता नहीं था। सवाल है कि इस अखबार के संपादक व संवाददाता कौन से हैं जो हिंदू धर्म के मुकाबले इस्लाम को महान दिखाने के लिए इस हद तक गिरने को तैयार हैं। क्या इनकी पहचान सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए? अखबार प्रबंधन चुप्पी क्यों साधे हुए है?
भारतीय मीडिया के एक वर्ग को अपनी इन हरकतों के लिए आत्ममंथन करना चाहिए। जनता को भी सोचना पड़ेगा कि हमारा मीडिया कैसा है जिसके कथित डर से प्रेम करने वाले एक क्रिकेटर और एक अभिनेत्री को शादी करने के लिए भी देश से दूर जाना पड़ता है। इसके बावजूद बिन बुलाए मेहमानों की तरह पत्रकार वहां भी पहुंच जाते हैं और शादी की ‘एक्सक्लूसिव’ रिपोर्टिंग करने लगते हैं। देश और जनता के हित के सही प्रश्नों को दबाकर एक खास राजनीतिक दल को फायदा पहुंचाने वाली और बेमतलब के मुद्दों पर कोहराम मचा देने वाली इस सुपारी पत्रकारिता पर कैसे और क्यों भरोसा करें?

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Germany deported 81 Afghan

जर्मनी की तालिबान के साथ निर्वासन डील: 81 अफगान काबुल भेजे गए

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Germany deported 81 Afghan

जर्मनी की तालिबान के साथ निर्वासन डील: 81 अफगान काबुल भेजे गए

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

जमानत मिलते ही करने लगा तस्करी : अमृतसर में पाकिस्तानी हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश

Pahalgam terror attack

घुसपैठियों पर जारी रहेगी कार्रवाई, बंगाल में गरजे PM मोदी, बोले- TMC सरकार में अस्पताल तक महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं

अमृतसर में BSF ने पकड़े 6 पाकिस्तानी ड्रोन, 2.34 किलो हेरोइन बरामद

भारतीय वैज्ञानिकों की सफलता : पश्चिमी घाट में लाइकेन की नई प्रजाति ‘Allographa effusosoredica’ की खोज

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies