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अमेरिका में वर्षों से योग, वेदान्त, आयुर्वेद और ज्योतिष विज्ञान के प्रचार-प्रसार में रत पद्मभूषण डॉ. डेविड फ्रॉली उपाख्य पं. वामदेव शास्त्री कहते हैं कि दुनियाभर में हिन्दू संस्कृति का व्याप बढ़ रहा है। लेकिन वहीं कुछ कम्युनिस्ट और मार्क्सवादी तत्व ‘प्रगतिशीलता’ के बाने में हिन्दू धर्म के प्रति दुर्भावना फैलाते हैं, इसीलिए कैलिफोर्निया एजुकेशन बोर्ड अपनी किताबों में हिन्दू धर्म को गलत तरीके से प्रस्तुत करने की हिमाकत करता है। प्रस्तुत हैं ऐसे ही कुछ विषयों पर पं. वामदेव शास्त्री से सहयोगी संपादक आलोक गोस्वामी की बातचीत के प्रमुख अंश-
ऐसा क्यों है कि कभी कोई संस्था, संगठन या कुछ लोग, भारत या विदेशों में हिन्दू धर्म को गलत तरीके से पेश करते हैं? क्या इसलिए कि सनातन धर्मी ‘सहिष्णु’ हैं और इस तरह की गतिविधियों या हरकतों को ज्यादा वजन नहीं देते?
आज कई राजनीतिक, सांस्कृतिक और पांथिक क्षेत्रों में निहित स्वार्थी तत्व कार्यरत हैं जो हिन्दू धर्म के खिलाफ लामबंद दिखते हैं। मुस्लिम और ईसाई संगठन हिन्दुओं को कन्वर्ट करने की कोशिशों में सदियों से लगे हुए हैं, जो दुनिया पर हावी होने के उनके प्रयासों के अंतर्गत ही है। वामपंथी-मार्क्सवादी लंबे समय से हिन्दुत्व का विरोध करते आ रहे हैं, उसके प्रति दुर्भावना फैलाते हैं। इसी तरह उन्होंने बौद्ध धर्म पर भी निशाना साधा हुआ है। इसके लिए उन्हें भारत में और विदेशों से पैसा मिलता है। कुछ के तो मीडिया और बौद्धिक क्षेत्रों से बहुत निकट के रिश्ते हैं जो पश्चिमी जगत तक फैले हुए हैं। अब तो वामपंथियों, ईसाई मिशनरियों और इस्लामी ताकतों का, विशेष रूप से दक्षिण भारत में एक नया गठजोड़ दिखता है। ऐसे समूह बहुराष्टÑीय स्तर पर हिन्दू धर्म को नकारात्मक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने का एक सामूहिक प्रयास चलाते हैं और इसके स्थान पर अपने ऐसे विचार और मूल्यों को रोपने में जुटे रहे हैं जो हिन्दुत्व के विपरीत हैं। ये प्रयास अभी खत्म नहीं हुए हैं, भले ही आज ये पहले की तरह बाहरी तौर पर उतने देखने में न आते हों।
आजादी के बाद ऐसे प्रयासों की क्या स्थिति रही?
भारत की आजादी से हिन्दुओं पर नियंत्रण रखने या उन्हें कन्वर्ट करने के खुलेआम चल रहे विदेशी सैन्य प्रयास और राजनीतिक दबाव तो कम हुए, लेकिन मिशनरी गतिविधियां नहीं रुकीं। दुर्भाग्य से मार्क्सवादियों को और ज्यादा ताकत मिल गई, जिनका भारत की प्राचीन परंपराओं को ध्वस्त करने का अपना ही मजबूत तंत्र है। भारत में कांग्रेस और दूसरे तथाकथित सेकुलर दलों ने चुनावी फायदे और भौतिक लाभों के लिए हिन्दू विरोधी ताकतों से हाथ मिला लिए। इसने स्वतंत्र भारत में भी हिन्दुओं को जकड़न में रखा। हिन्दुत्व के विरुद्ध एक सांस्कृतिक युद्ध जारी रहा है, जिसमें गैर धार्मिक समूह हिन्दू धर्म को अपमानित करने की कोशिश कर रहे हैं, वे भले खुद को उदारवादी कहें, पर असल में किसी और विचार को पनपने का अवसर नहीं देते।
लेकिन तब भी हिन्दू आज भी इतने मासूम हैं कि हर किसी को गले लगाना और स्वीकार करना चाहते हैं, जिसमें ऐसे समूह भी हैं जिनकी घोषित विचारधारा, उद्देश्य और इतिहास हिन्दुत्व से जुड़ी किसी भी चीज को न स्वीकरना वैध है। जब तक हिन्दू अपने विरुद्ध लामबंद ताकतों के व्याप और संकल्प के सच, और उन तमाम दिशाओं से परिचित नहीं हो जाते जहां से वे आ रहे हैं, वे इस आघात को आमंत्रित करते रहेंगे।
ऐसे में रास्ता क्या हो?
हिन्दू धर्म की प्रतिरक्षा के लिए सतत विवेकशील रहने की जरूरत है। कारण यह कि कई समूहों, यहां तक कि कुछ धार्मिक समूहों पर भी रजस और तमस, आक्रामकता और प्रभुत्व की ताकतें हावी रहती हैं, जो किसी अन्य उच्च चेतना से सरोकार नहीं रखतीं। ऐसी ताकतों को बिना आलोचना के संचालित होते रहने देना उन्हें और हावी होने की छूट ही देता है। सौभाग्य से नई सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दू स्वर के लिए भी स्थान है और कई हिन्दू आवाज उठा भी रहे हैं। जैसा मैने पहले भी कहा है, इस चलन को नए ‘बौद्धिक क्षत्रिय’ के रूप में मजबूत करने की जरूरत है।
कैलिफोर्निया एजुकेशन बोर्ड की पाठ्यपुस्तकों में हिन्दू धर्म का आपत्तिजनक चित्रण किया गया। इसके विरुद्ध वहां के हिन्दुओं के प्रदर्शन के बाद बोर्ड गलती सुधारने के लिए तैयार हुआ है। इस पर क्या कहेंगे?
हिन्दुत्व के प्रस्तुतिकरण में और निखार लाने के लिए तो बदलाव किए जा सकते हैं और ये गैर हिन्दू देशों में भी स्वीकार्यता पा सकते हैं। इसके लिए सिर्फ इच्छाशक्ति और संकल्प के साथ इस कार्य में लगी प्रक्रियाओं को समझने की जरूरत है। इस संबंध में हिन्दुओं को पहल करते हुए गैर हिन्दुओं को हिन्दू धर्म की व्याख्या करने से रोकना होगा। उन्हें भ्रामक चीजों का विरोध करना होगा और उनके खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठानी होगी जैसा कि उन्होंने अमेरिका में करना शुरू किया है। इसमें शुरुआत में विरोध और असफलता भी देखने को मिल सकती है, लेकिन उद्देश्य आगे बढ़ना चाहिए और मुश्किलों से सीखना चाहिए। ऐसे मुद्दे और पाठ्यपुस्तकों में छेड़छाड़ जैसी चीजें तो बार-बार सामने आती रहेंगी, लेकिन अगर हिन्दू इन भ्रामक चीजों में एक बार भी बदलाव ला सकें तो यह आने वाले समय में भी बना रहेगा। इसी तरह भारत में भी हिन्दुओं को हिन्दू विरोधी गतिविधियों के विरुद्ध जनांदोलन चलाना पड़ेगा, चाहे पाठ्यपुस्तकों में छेड़छाड़ की बात हो, हिन्दू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण और उनके धन को अन्यत्र लगाने की बात हो, या हिन्दू मंदिरों अथवा उत्सवों में अदालत का दखल। इस भावना का राजनीतिक स्तर पर भी प्रकटीकरण हो, जो ऐसे नेताओं का समर्थन करे जो हिन्दुओं और हिन्दू संस्थानों से भेदभाव करने वाले कानूनों और कार्योंं को हटाने के इच्छुक हों। ऐसे आंदोलन शुरू हो चुके हैं लेकिन एक दीर्घकालिक रणनीति बनाने की जरूरत है।
इस सबके बावजूद यह भी सत्य है कि हिन्दू धर्म तत्व की आज सारी दुनिया में मान्यता है। आपकी क्या राय है?
हिन्दू धर्म के कई पक्ष और स्वरूप हैं और उच्च ज्ञान प्राप्त करने की इसमें किसी भी अन्य परंपरा से कहीं प्रखर पद्धतियां हैं। यह युगों युगों तक बने रहने में सक्षम है क्योंकि इसकी जड़ें प्रकृति और पारलौकिक चेतना में समायी हैं, न कि सिर्फ मानव इतिहास और व्यक्तिगत लालसाओं में।
सनातन धर्म के आयाम और इसकी महान शिक्षाएं और गुरु दुनियाभर में पहुंच रहे हैं और विश्व के हर कोने में उनके अनुयायी हैं। योग आसन और इसके अन्य आयाम, जैसे प्राणायाम, मंंत्र और जाप, ध्यान, भक्ति, हिन्दू देवी-देवता और अनुष्ठान भी सम्मान का स्थान पाते जा रहे हैं। इसी तरह शरीर-मन-बुद्धि के आरोग्य पर अपने विशद दृष्टिकोण के चलते, आयुर्वेद की भी मान्यता बढ़ रही है। संस्कृत भाषा, भारत की गीत-नृत्य परंपराओं और प्राकृतिक जगत के वैदिक यशोगान के प्रति सम्मान बढ़ता दिख रहा है। आत्म ज्ञान के वैदिक विचारों, सार्वभौमिक चेतना, अद्वैत और गहन ध्यान महान विचारकों को और ज्यादा प्रभावित कर रहे हैं।
भारत के बाहर आप्रवासी हिन्दू शिक्षा, व्यवसाय, विज्ञान और चिकित्सा क्षेत्रों में असाधारण प्रदर्शन कर रहे हैं जिससे हिन्दू धर्म के प्रति आदर बढ़ रहा है। फिर भी, वैदिक और धार्मिक ज्ञान और परंपराओं में साझा चीजों को और रेखांकित करना होगा, बताना होगा कि योग, वेदान्त, आयुर्वेद, वैदिक विज्ञान और भारत की संस्कृ ति, ये सब आपस में जुड़े हुए हैं।
सनातन धर्म में सहिष्णुता ऐसी विशेषता है जिसे दूसरे, विशेषकर छद्म सेकुलर पूरी तरह नहीं समझ पाते हैं। आपको क्या लगता है?
यह शब्द ‘सहिष्णु’ भ्रामक हो सकता है। पश्चिम में ‘सहिष्णु’ का आमतौर पर अर्थ है किसी चीज को सहना या होने देना, जिसे आप नहीं चाहते कि किसी भी तरह अस्तित्व में रहे, उसे रोकने की कोई कोशिश किए बिना। हिन्दू दृष्टिकोण आध्यात्मिक बहुवाद का है, जिसमें माना जाता है कि जीवन में एक अंतर्निहित सामंजस्य है, लेकिन बाहरी तौर पर अभिव्यक्ति में विविधता है। हिन्दू दृष्टिकोण है, बिना हमारे दखल के हर मनुष्य और जीव को विकसित होने और उसके अपने कर्मों को अनुभव करने का अंतराल देना। इसका यह अर्थ नहीं कि हिन्दू धर्म किसी भी आध्यात्मिक या पांथिक मार्ग को सत्य स्वीकार कर लेता है। इसका अर्थ है कि हर व्यक्ति को सत्य की खोज के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए न कि उसे किसी भी मान्यता या आस्था का अनुगामी बन जाना चाहिए। धर्म का अर्थ अधर्म को सहना नहीं होता। हमें अधर्म को समझना होगा और इसके स्थान पर धर्म को प्रतिष्ठापित करने का प्रयास करना होगा। दुनिया में रजस और तमस, आक्रामकता और अनभिज्ञता की अनेक ताकतें हैं जिन्हें हम यूं ही स्वीकार नहीं कर सकते या सहिष्णु या सेकुलरवाद के बाने में छिपकर चुप नहीं रह सकते।
कहा जाता है और बहुतांश में स्वीकार भी किया जा सकता है कि आज के वैश्विक परिदृश्य में सिर्फ हिन्दू मूल्य ही शांति और प्रगति ला सकते हैं। क्या कहेंगे?
आधुनिक सभ्यता भौतिक वास्तविकता, व्यक्तिगत आनंद और अहं की सर्वोच्चता में विश्वास करती है, जिससे अंतत: संघर्ष और विषाद पैदा होता है। जबकि चराचर जगत में सभी तरह के जीवन में एक ही परमात्मा का वास स्वीकारने का हिन्दू दृष्किोण हमें सत्मार्ग दिखाता है और भौतिकवादी समाज का प्र्रतिरोध करने की प्रेरणा देता है। हमें एक नई सभ्यता का निर्माण करना होगा जो पर्यावरणीय दृष्टि से टिकाऊ हो, जो उच्च चेतना का सम्मान करे, और जीवन को सिर्फ व्यापारिक या राजनीतिक नहीं, बल्कि पवित्र मानकर उसका सम्मान करे। सनातन धर्म में सार्वभौमिक दृष्टिकोण और सार्वभौमिक मूल्य हैं, जो हमें एक नए विश्वव्यापी दौर में ले जा सकते हैं।
वेदान्त और अन्य हिन्दू धर्मशास्त्र हमें जीवन में सत्मार्ग की ओर ले जाते हैं। यह कहां तक सत्य है और कैसे?
वेदान्त और हिन्दू धर्म हमें आत्म-विद्या, या कहें, आत्म-ज्ञान की ओर तथा मोक्ष की ओर ले जाते हैं। इसे ठीक से समझना जरूरी है। सही आत्म-ज्ञान सिर्फ शरीर के स्तर पर या मनोवैज्ञानिक स्तर पर ज्ञान भर नहीं है, जो समय और मृत्यु से बंधा अहं का संसार है। यह हमारे अंतरतम को, हमारी चेतना के सारतत्व को समझने की बात करता है, जो शाश्वत है। जीवन एक साधना होनी चाहिए, न कि बस बाहरी आनंद या भौतिक सुखों की पूर्ति करना। वैदिक आत्म-ज्ञान के मायने व्यक्ति के स्वयं को सशक्त करना या अहं और इसके उन आवेगों को पुष्ट करना नहीं होते जिसकी जड़ें अज्ञानता में होती हैं। इसमें तो शरीर और मन से परे, अपनी वास्तविक प्रकृति को पहचानने की आवश्यकता होती है, जिसके लिए शरीर और मन तो बस अभिव्यक्ति के उपकरण हैं, न कि वे जो हम असल में हैं।
वेदान्त एक विशद् दर्शन प्रस्तुत करता है, जिसमें हमारे भौतिक शरीर से लेकर, समय और अंतराल से परे, परम ज्ञानातीत चेतना तक समाहित रहती है। यह हमारी अपनी चेतना के भीतर ही, पारलौकिक यथार्थ को जानने में हमारी मदद के लिए साधना भी प्रदान करता है। चेतना का वैदिक विज्ञान ज्ञान का सर्वोच्च मार्ग है, क्योंकि यह हमें मृत्यु और पीड़ा के पार ले जाता है। उस वैदिक ज्ञान का सम्मान करना और उसे सबके साथ साझा करना महत्वपूर्ण है। यही सनातन धर्म का चरम केन्द्र-बिन्दु है।
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