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पाकिस्तान कर्ज के दलदल में बुरी तरह फंस चुका है, जिससे निकलने का रास्ता उसे सूझ नहीं रहा। उसका बजट घाटा भी बढ़ता जा रहा है। आयात पर निर्भरता बढ़ी है, जबकि निर्यात गिरता जा रहा है
संतोष वर्मा
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। बीते कुछ समय से विभिन्न अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं के सर्वेक्षणों में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट को अवश्यंभावी बताया जा रहा था। अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट की सबसे बड़ी वजह पाकिस्तान पर बढ़ता कर्ज है। उसकी सबसे प्रिय परियोजना चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा है, जिसके कारण वह कर्ज के बोझ तले दब गया है। सकल घरेलू उत्पाद के 20 प्रतिशत से अधिक आकार वाली इस परियोजना के कारण पाकिस्तान आर्थिक दुष्चक्र में फंस गया है, जिससे बाहर निकलना उसके लिए लगभग असंभव है।
कर्ज पर चल रहा देश
पाकिस्तान कर्ज के दलदल में बुरी तरह फंस गया है और उससे निकलने की बजाय नया कर्ज लेने में जुटा है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में उसने 1.4 अरब डॉलर का नए कर्ज लिया, जिनमें से करीब दो-तिहाई बजट घाटे के अंतर को पाटने और विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के लिए है। कर्ज के सबसे बड़े स्रोत विदेशी वाणिज्यिक बैंक हैं, जिनसे उसने 4,580 लाख डॉलर कर्ज लिया है। कर्ज देने के मामले में इस्लामी विकास बैंक दूसरे स्थान पर है, जिसने 3,920 लाख डॉलर दिए, जबकि चीन ने 2,400 लाख डॉलर दिए। यानी पाकिस्तान पर कुल कर्ज का 80 प्रतिशत इन्हीं तीनों का है। अब वह और अधिक ऋण जुटाने के लिए सुकुक और यूरोबॉण्ड जारी करने की तैयारी में है। उल्लेखनीय है कि चार साल के शासन में सत्तारूढ़ पार्टी की नीतियों के कारण बाहरी कर्ज व देनदारियों में घातक इजाफा हुआ और इन कर्जो का परिमाण 83 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। स्टेट बैंक आॅफ पाकिस्तान ने 26 अक्तूबर को अपनी रिपोर्ट में बताया कि 2017-18 की पहली तिमाही में विदेशी निवेश पर लाभ और लाभ का बहिर्वाह 25 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गया है।
चीन पर निर्भर विकास
समीक्षाधीन अवधि में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से प्रत्यावर्तन में 26 प्रतिशत व पोर्टफोलियो निवेश से लाभ एवं लाभांश के प्रत्यावर्तन में 49 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। पहली तिमाही के दौरान एफडीआई में महत्वपूर्ण वृद्धि मुख्य रूप से चीनी निवेश के कारण थी जो कुल प्रवाह का लगभग 65 प्रतिशत था। इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान का तथाकथित विकास पूर्णत: चीन पर निर्भर है। अपनी वार्षिक रिपोर्ट में एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने कहा कि राजकोषीय व राजस्व घाटा ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान की चरमराती अर्थव्यवस्था का मूल कारण है। चालू वित्त वर्ष में इनके और बदतर होने की संभावना है। चालू खाता घाटा 14.5 अरब डॉलर तक जा सकता है। एडीबी के अनुसार पाकिस्तान का घाटा वित्त मंत्रालय के अनुमान से 5.5 अरब डॉलर अधिक रहने की संभावना है जो बीते साल के मुकाबले 2.5 अरब डॉलर अधिक है। साथ ही, एडीबी ने कहा कि अस्थिर राजनीतिक माहौल के कारण 1.4 खरब रुपये के बजट घाटे को पाटना बेहद मुश्किल है। बैंक ने पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर को 6 से घटाकर 5.5 प्रतिशत कर दिया है।
घाटे से उबरने के दो रास्ते
एडीबी की रिपोर्ट के मुताबिक, बढ़ते चालू खाता घाटे से उबरने के लिए पाकिस्तान के समक्ष दो ही रास्ते हैं। वह बड़े पैमाने पर मुद्रा अवमूल्यन करे या बड़ी मात्रा में विदेशी कर्ज ले। फिलहाल हताश पाकिस्तान इन्हीं दो उपायों को अपनाने में जुटा है। अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाने के लिए सरकार मुद्रा अवमूल्यन करने की तैयारी में है। हाल ही में पाकिस्तान व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रतिनिधिमंडल ने अर्थव्यवस्था पर चर्चा के पहले दौर में यह निष्कर्ष निकाला था।
स्टेट बैंक आॅफ पाकिस्तान द्वारा मुद्रा विनिमय दर को बाजार की स्थितियों में समायोजित करने के ये प्रयास लंबे समय से अपेक्षित थे। एडीबी ने पूवार्नुमान जताते हुए कहा कि बढ़ते आयात, विदेशी निवेश में गिरावट व स्थिर निर्यात के कारण चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 4.2 प्रतिशत तक हो जाएगा। स्पष्ट है कि बढ़ते व्यापार घाटे का वित्तपोषण पाकिस्तान के लिए बेहद कठिन हो जाएगा, क्योंकि गिरती तेल कीमतों के कारण सऊदी अरब व अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाएं मंदी से जूझ रही हैं। इस कारण पाकिस्तान में निवेश लगातार घट रहा है। पाकिस्तान के साथ एक अत्यंत गंभीर समस्या भी जुड़ रही है। एक ओर उस पर विदेशी कर्ज बढ़ रहा है, जिसे वह तय समयसीमा में चुका नहीं पा रहा है। वह अभी कड़ी ब्याज दरों वाले ऋणों को कम ब्याज दरों वाले ऋणों से बदलने के सफल-असफल प्रयासों में उलझा हुआ है। लेकिन इससे कर्ज का बोझ घट नहीं रहा है और वह दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में खराब प्रदर्शन
अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी पाकिस्तान का खराब प्रदर्शन जारी है। वित्त वर्ष 2016-17 के अंत तक देश के सकल घरेलू उत्पाद में निर्यात की भागीदारी 13 प्रतिशत से घटकर 7.1 प्रतिशत पर पहुंच गई। वहीं, 2013 से 2017 के बीच निर्यात 2.5 प्रतिशत की वार्षिक औसत दर से गिरा है। अब इस बात की पूरी संभावना है कि चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के कारण पाकिस्तान चीनी वस्तुओं का गोदाम बनकर रह जाएगा। लाहौर और कराची के औद्योगिक क्षेत्रों में इसकी झलक दिखने भी लगी है। साथ ही, स्थानीय जरूरतों की पूर्ति के लिए आयात पर भी पाकिस्तान की निर्भरता बढ़ रही है, जिससे व्यापार घाटे के साथ चालू खाता घाटा भी बढ़ रहा है। इस घाटे को विदेशी मुद्रा भंडार से समायोजित किया जाता रहा है, जिसका परिणाम है कि अगस्त के अंत तक यह घाटा 1.5 अरब डॉलर से घटकर 14.6 अरब डॉलर हो गया।
पाकिस्तान का बजट घाटा भी विकराल रूप धारण कर रहा है। वित्त वर्ष 2016-17 के अंत में 1.86 खरब के बजट घाटे के मुकाबले सरकार ने चालू वित्त वर्ष के अंत तक बजट घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.1 प्रतिशत या 1.4 ट्रिलियन रुपये का लक्ष्य रखा है जो मौजूदा हालात के लिहाज से दूर की कौड़ी है। हालांकि बुनियादी ढांचे और ऊर्जा क्षेत्र में निवेश के कारण जीडीपी में वृद्धि की संभावनाएं हैं, फिर भी पाकिस्तान आशंकाओं से मुक्त नहीं है। इन दोनों क्षेत्रों में निवेश चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के जरिये हो रहा है और इसके लिए चीन के कई वित्तीय संस्थान उसे कर्ज मुहैया करा रहे हैं, जिसकी ब्याज दरें वाणिज्यिक कर्ज की ब्याज दरों के समान हैं।
ऐसी स्थिति में परियोजना पर बढ़ती लागत पाकिस्तान के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है। दूसरी ओर यह उसकी की संप्रभुता के लिए भी एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है। जैसा कि हमने देखा कि श्रीलंका में वर्तमान सरकार की तमाम अनिच्छाओं के बावजूद हम्बनटोटा का बंदरगाह चीन को देने के लिए विवश होना ही पड़ा। यह चीन की खतरनाक योजनाओं का हिस्सा है। चीन कर्ज को हिस्सेदारी में परिवर्तित करने में सिद्धहस्त है और ऐसी स्थिति ग्वादर में भी देखी जा सकती है। कुल मिलाकर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में चीन का बढ़ता दखल उसकी सेहत के लिए फायदेमंद कम, नुकसानदेह अधिक है। फिलहाल पाकिस्तान के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने की है।
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