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श्रीराम मंदिर मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। एक ओर उच्चतम न्यायालय नियमित सुनवाई करने जा रहा है, दूसरी तरफ शिया वक्फ बोर्ड राम मंदिर के पक्ष में आकर खड़ा हो गया है
अमित त्यागी
उच्चतम न्यायालय ने 5 दिसंबर, 2017 को श्रीराम जन्मभूमि मामले पर अंतिम सुनवाई की तिथि निर्धारित की थी। इस घोषणा के बाद संबंधित पक्षों के साथ ही आमजन में इस विवाद के जल्दी हल होने की एक उम्मीद जगी थी। लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से न्यायालय ने सुनवाई 8 फरवरी से शुरू करने का निर्णय लिया है। हालांकि न्यायालय ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की सलाह दी थी और उसके बाद शिया वक्फ बोर्ड खुलकर श्रीराम मंदिर के पक्ष में आया है। पर अब सब 8 फरवरी के इंतजार में हैं। यह विवाद इनता लंबा खिंचा है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में कुछ बदलाव देखने में आए हैं। राज्य की राजनीति क्षेत्रीय दलों के चंगुल में फंसी हुई है। ढांचा गिरने के पहले सूबे में स्थायी सरकारें बनती थीं। लेकिन ढांचा गिरने के बाद प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस हाशिये पर सरकती गई और क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ता गया।
मंदिर निर्माण के पक्ष में याचिका
दरअसल, अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 30 सितंबर, 2010 को अपने फैसले में विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांटने का निर्देश दिया था। सात साल बाद जैसा ऊपर बताया, उच्चतम न्यायालय अब इस पर 8 फरवरी से नियमित सुनवाई शुरू करेगा। शिया वक्फ बोर्ड ने तो हलफनामा तक दाखिल किया है, जिससे राम मंदिर के निर्माण का रास्ता प्रशस्त होता दिख रहा है।
उच्चतम न्यायालय में दायर हलफनामे में शिया वक्फ बोर्ड का कहना है कि विवादित भूमि पर राम मंदिर निर्माण से उसे कोई आपत्ति नहीं है। हालांकि इस विवाद में तीन पक्षकारों में शिया बोर्ड नहीं है, लेकिन 1944 तक बाबरी ढांचे में इंतजाम का जिम्मा शिया समुदाय के पास ही था। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने यह कहकर उस पर कब्जा कर लिया था कि वह ढांचा बाबर ने बनवाया था, जो सुन्नी था। उस समय सुन्नी वक्फ बोर्ड अपनी खराब नीयत छिपाने में सफल रहा। उसकी निगाह में सुन्नी-शिया मसला कभी रहा ही नहीं, उसकी नीयत तो इस मुद्दे को सुलझाने की बजाए और उलझाने की थी। सुन्नी और शिया समुदाय की मस्जिदें अलग-अलग होती हैं और अपने-अपने बोर्ड में दर्ज होती हैं। शिया बोर्ड ने 1944 के पहले की स्थिति बरकरार रखने संबंधी याचिका दाखिल की है। साथ ही, उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने कहा है कि विवादित स्थल राम मंदिर के लिए देने और मस्जिद दूसरी जगह बनाने संबंधी याचिका भी जल्द ही दायर की जाएगी। अयोध्या में राम मंदिर ही बनना चाहिए।
मजिस्द दूर बनाने का प्रस्ताव
शिया बोर्ड मस्जिद का नाम न तो बाबर और न ही उसके सेनापति मीर बाकी के नाम पर रखना चाहता है। बोर्ड ने सहमति से बनने वाली इस मस्जिद का नाम ‘मस्जिद-ए-अमन’ रखने का प्रस्ताव भी रखा है। इस तरह शिया वक्फ बोर्ड ने लखनऊ में मस्जिद बनाने की बात कह कर आपसी सहमति से अयोध्या विवाद निपटाने का रास्ता दे दिया है। उसका कहना है कि विवादित भूमि पर मस्जिद निर्माण जायज नहीं है, क्योंकि बल प्रयोग कर मस्जिद बनाना इस्लाम के खिलाफ है। मस्जिद वहीं तामीर होनी चाहिए जहां मुस्लिम आबादी होती है। बाबर हिंदुस्थान में आया था, यहां पैदा नहीं हुआ था। ये लोग देश को लूटने आए थे। इनमें और अंग्रेजों में कोई अंतर नहीं। पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, अयोध्या में मंदिर के मग्नावशेष मिले थे।
राजनीतिक पक्ष अधिक अहम
राम जन्मभूमि विवाद में न्यायिक पक्ष से ज्यादा राजनीतिक पक्ष महत्वपूर्ण है। राम मंदिर और तीन तलाक का पुराना रिश्ता है। केंद्र में जब राजीव गांधी की सरकार थी तब एक अधेड़ उम्र महिला शाहबानो को पति ने तलाक दे दिया था। पांच बच्चों की मां शाहबानो ने पति से गुजारा भत्ता की मांग के लिए न्यायालय में दावा ठोका। मामला निचली अदालतों से उच्चतम न्यायालय में पहुंचा तब शीर्ष न्यायालय ने 125 सीआरपीसी के तहत शाहबानो के पक्ष में फैसला दिया। लेकिन कठमुल्लाओं ने इस फैसले का विरोध किया और इसके विरुद्ध कानून बनाने के लिए राजीव गांधी पर दवाब डाला। मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए राजीव गांधी ने आरिफ मोहम्म्द खान जैसे तरक्कीपसंद मुसलमानों की सलाह को भी दरकिनार कर दिया और मुल्लाओं के दवाब में आकर कानून बना दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि मुस्लिम समाज सुधार से वंचित रह गया।
इसके बाद सलाहकारों ने राजीव गांधी को सुझाव दिया कि अगर राम मंदिर के ताले खुलवा दिए जाएं तो हिंदू समाज भी उनके साथ आ जाएगा। एक बार अगर हिंदू-मुसलमान साथ आ गए तो चुनाव में कांग्रेस को कोई हरा नहीं पाएगा। लिहाजा राम जन्मभूमि परिसर के ताले खोले गए और सुप्त अवस्था में पड़ा यह विवाद जाग्रत हो गया। उस समय वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा निकाल कर भाजपा को दृढ़ता से स्थापित कर दिया।
इस बार भी उच्चतम न्यायालय द्वारा एक बार में तीन तलाक को असंवैधानिक करार देने के बाद राम मंदिर मुद्दा चर्चा में आया है। तीन तलाक के संदर्भ में एक बात जानना जरूरी है कि शिया और सुन्नी तबके में तीन तलाक का तरीका अलग है। शिया परंपरा के अनुसार, निकाह के समय किसी गवाह की जरूरत नहीं होती, लेकिन तलाक के समय दो गवाह आवश्यक होते हैं। इसके विपरीत सुन्नी परंपरा में निकाह के समय दो गवाह जरूरी होता है, लेकिन तलाक के समय किसी गवाह की जरूरत नहीं होती।
तीन तलाक की जिस परंपरा को उच्चतम न्यायालय ने असंवैधानिक माना है वह फैसला सुन्नी समुदाय को प्रभावित कर रहा है, जबकि शिया समुदाय इस निर्णय से खुश है। तीन तलाक मामले में शुरू से ही शिया समुदाय का झुकाव भाजपा की तरफ होने लगा था। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में यह झुकाव दिखा भी था। भाजपा और शिया समुदाय की नजदीकी ही अब शिया बोर्ड के हलफनामे के रूप में सामने आई है।
क्रमबद्ध चला विवाद
राम मंदिर विवाद 150 साल पुराना है। सबसे पहले 1853 में हिंदुओं ने आरोप लगाया कि अयोध्या में भगवान राम के मंदिर को तोड़कर एक ढांचे का निर्माण किया गया। इसके बाद 1859 में ब्रिटिश सरकार ने विवादित भूमि की घेराबंदी करवा दी। साथ ही, अस्थायी समाधान निकालते हुए विवादित भूमि के अंदरूनी और बाहरी परिसर में मुसलमानों एवं हिंदुओं को अलग-अलग प्रार्थना करने की इजाजत दे दी। 1885 में पहली बार यह मामला न्यायालय के समक्ष आया। यह वाद महंत रघुवर दास द्वारा दायर किया गया था। 1944 में शिया बोर्ड ने अपनी जिम्मेदारी सुन्नी बोर्ड को हस्तांतरित कर दी। 1944 का यह हस्तांतरण अब इस वाद का प्रमुख बिंदु होने जा रहा है। 23 दिसंबर, 1949 को करीब 50 हिंदुओं ने केंद्रीय स्थल में रामलला की प्रतिमा स्थापित की। 16 जनवरी, 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद की अदालत में रामलला की पूजा-अर्चना करने की विशेष इजाजत मांगते हुए मूर्ति हटाने पर न्यायिक रोक लगाने की मांग की। 5 दिसंबर, 1950 को महंत रामचंद्र परमहंस दास ने पूजा-अर्चना जारी रखने और परिसर में मूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर कर दिया। 1 फरवरी, 1986 का दिन मौजूदा विवाद के एक बड़े मोड़ के रूप में माना जाता है, क्योंकि इसी दिन फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की अनुमति देते हुए ताला खोलने का आदेश दिया। इस फैसले का राजनीतिक असर पड़ा। नाराज मुस्लिम समाज ने विरोध स्वरूप बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी का गठन किया। ताले खोले गए तो जून 1989 में भाजपा ने मंदिर आंदोलन को गति प्रदान की। उसी साल नवंबर में राजीव गांधी ने विवादित स्थल के पास शिलान्यास की इजाजत भी दे दी। इसके बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक भूचाल आया और दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचा ढहा दिया गया। इस एक घटना के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति चरमरा गई और हिंदू-मुसलमानों के बीच बढ़ी खाई को मजहबी राजनीति करने वाले दलों ने खूब भुनाया। कई घटनाक्रमों से गुजरते हुए 30 सितंबर, 2010 को उच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया और इसके बाद 21 मार्च, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने इसमें मध्यस्थता की पेशकश की। शिया बोर्ड के हलफनामे ने इस मुद्दे में एक नया आयाम पैदा किया है। ल्ल
‘शीघ्र होगा भव्य मंदिर का निर्माण’
राम मंदिर हमारी आस्था का विषय है। न्यायालय ने तो यह मान ही लिया है कि वहां राम जन्मभूमि है। अब जिस विषय से हमारी आस्था जुड़ी है, उससे कैसे समझौता कर सकते हैं? तीन तलाक का विषय जब न्यायालय के सम्मुख आया, तब मुसलमानों को वह आस्था का विषय लगा। उन्होंने उस पर न्यायालय की सुनवाई का विरोध किया। इतने दिनों से जब हम चीख-चीख कर कह रहे थे कि राम हमारी आस्था से जुड़े है, तब ये लोग खामोश रहते थे। जो लोग रामलला की जमीन पर कब्जा जमाए बैठे हैं, वे क्यों नहीं सद्भाव का परिचय देते हुए हमारा साथ देते हैं। न्यायालय पर भरोसा है या नहीं, यह विषय नहीं है। वहां तो पहले से ही मंदिर था। आतताइयों ने आकर हमारा मंदिर तोड़ दिया और वहां मस्जिद बना दी। मंदिर होने के सबूत के आधार पर ही तो उच्च न्यायालय का फैसला आया था। अब शीघ्र ही अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण होगा।
— स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती
राम मंदिर तो वहीं था
राम जन्म मंदिर जहं, लसत अवध के बीच।
तुलसी रची मसीत तहं, मीर बाकी खल नीच॥
गोस्वामी तुलसीदास के इस दोहे से इतना तो साफ है कि वहां राम मंदिर था जिसे बाबर के सेनापति मीर बाकी ने तोड़कर एक ढांचा खड़ा कर दिया था। तुलसीदास रचित रामचरित मानस हालांकि कानूनी साक्ष्य के रूप में तो ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, किन्तु उस दौर के लोगों की सोच, मानसिकता एवं वास्तविकता का परिचायक अवश्य है। मंदिर तोड़कर नया ढांचा बनवाने वाला मीर बाकी शिया समुदाय का था, इसलिए वहां शिया वक्फ बोर्ड अपना अधिकार जता रहा था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अयोध्या में कह चुके हैं कि सकारात्मक राजनीति से ही अयोध्या में हल निकलेगा। अयोध्या ने देश को एक पहचान दी है। इंडोनेशिया दुनिया का ऐसा देश है जहां की आबादी मुस्लिम बहुल तो है, लेकिन रामलीला पर उनकी आस्था है। थाईलैंड के राजा भगवान राम के वंशजों में से एक माने जाते हैं और दूसरे देश भी भगवान राम को मानते हैं। भारत का हर बच्चा रामलीला के बारे में जानता है और हर मत-पंथ का व्यक्ति भगवान राम के प्रति श्रद्धा दर्शाता है।
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