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पिछले दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज में रानी पद्मावती पर एक व्याख्यान आयोजित किया गया। इस अवसर पर उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के संगठन सचिव डॉ़ बाल मुकुंद ने कहा कि आजादी के बाद से ही इतिहास कम्युनिस्टों के हवाले कर दिया गया। कम्युनिस्टों ने तर्क और तथ्य से विहीन रहकर इतिहास लेखन किया है। दो घंटे की फिल्म से हमारी संस्कृति को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कोशिश की जा रही है। कम्युनिस्ट इतिहासकारों का भारतीय संस्कृति और उसकी गौरव गाथाओं से कोई सरोकार नहीं है। क्योंकि उन्होंने भारत के बजाए इंडिया बनाने की कल्पना की है। वहीं मुख्य रूप से उपस्थित सीएसएसडीएस (इग्नू) के निदेशक प्रो. कपिल कुमार ने कहा कि आजादी के बाद के इतिहासकारों ने देश का इतिहास लेखन अंग्रेजों को समर्पित कर दिया है। इन कम्युनिस्टों ने सिर्फ और सिर्फ इतिहास को आधार बनाकर भारतीय संस्कृति का शोषण किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि आज भी महिलाएं जौहर कर रही हैं, लेकिन स्त्री विमर्श के नाटककारों को इससे कोई सरोकार नहीं है। जब बगदादी महिलाओं को खुलेआम बेच रहा था और वे स्वयं आत्मदाह कर रहीं थीं, तब कोई निवेदिता मेमन स्त्री के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए कुछ बोलती नहीं है। कार्यक्रम में उपस्थित यूजीसी के सदस्य इंद्रमोहन कपाही ने कहा कि फिल्म के सहारे हमारे इतिहास से खिलवाड़ किया जाता है। ऐसी साजिशें आजादी के बाद से ही की जा रही हैं। प्रतिनिधि
‘सुसंस्कारित परिवारों से होगा आदर्श समाज का निर्माण’
गत दिनों उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में परिवार प्रबोधन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ, पिथौरागढ़ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में नगर के 186 परिवारों के 654 सदस्यों ने प्रतिभाग किया। इस दौरान विभिन्न प्रतियोगिताएं भी आयोजित की गईं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक श्री युद्धवीर कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आदर्श परिवार भारतीय समाज की रीढ़ है। वर्तमान समय में परिवारों में विखंडन की समस्या देखी जा रही है, जिसका कारण परिवार के सदस्यों के बीच पर्याप्त संवाद का न होना है। परिवार सुसंस्कारित एवं संगठित होंगे तो हम एक आदर्श समाज का निर्माण करने में सक्षम हो पाएंगे। वर्तमान समय में पाश्चात्य संस्कृति हमारे परिवारों को प्रभावित कर रही है। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। परिवारों में बुजुर्गों का महत्व एवं सम्मान कम हो रहा है, जो चिन्ताजनक है। प्रतिनिधि
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