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22-29 अक्तूबर, 2017
आवरण कथा ‘शुभ का संकल्प’ से स्पष्ट हुआ कि दया-धर्म मानव के दस लक्षणों में से एक है और मानव जीवन में इसका एक अलग स्थान है। वैसे तो हरेक व्यक्ति कोई कार्य सिर्फ अपने लाभ के लिए ही करता है, लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो अपने लाभ के साथ-साथ समाज का हित भी देखता है। इस संयुक्तांक में जिन लोगों की चर्चा की गई, वे अपने व्यवसाय के साथ परहित भी कर रहे हैं, यह जानकर आनंद हुआ।
—अनूप वर्मा, लाजपत नगर(नई दिल्ली)
संयुक्तांक में सभी विभूतियों के कार्य सराहनीय व प्रेरणास्पद हैं। इनके बारे में पढ़कर लगा कि कोई तो है जो समाज के बेसहारा और उपेक्षितों के लिए आशा की किरण जलाए हुए हैं। वैसे तो एक आम व्यक्ति अपने हित और सुख की चिंता करता है लेकिन सार्थक जीवन उसी का है जो अपने साथ-साथ समाज की भी चिंता करे। तभी उसका जीवन सार्थक है।
—उमेदु लाल ‘उमंग’, टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड)
दीपोत्सव पर प्रकाशित विशेषांक अच्छा लगा। हमें उन विभूतियों के बारे में जानकारी हुई जो समाज में सकारात्मकता और समन्वय का उजाला फैला रही हैं। यह वे लोग हैं जिन्होंने अन्य लोगों से उलट समाज के सुख में ही अपने सुख को खोजा है और रात-दिन उसी कार्य को करते चले आ रहे हैं। ऐसे लोगों से समाज को प्रेरणा लेनी चाहिए।
—बी.एस. शांताबाई, बेंगलुरू (कर्नाटक)
हमारे आस-पास बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो छोटे-छोटे कार्य करके समाज को लाभ देने का काम करते हैं। दरअसल उनके मन में समाज के प्रति कुछ करने की जिजीविषा होती है और वे इसी पथ में चलकर एक दिन मुकाम हासिल करते हैं। वैसे भी सनातन धर्म में सेवा करने से बड़ा पुण्य कोई
नहीं है। सेवा न केवल हमें आत्मिक संतुष्टि देती है बल्कि जीवन को सुधारती है।
—पी.जयाप्रदा, कोठापेट (आं.प्र.)
हम अगर किसी के हित में कुछ करते हैं तो उसका प्रतिफल हमें किसी न किसी रूप में जरूर मिलता है। इस अंक में जिन लोगों के बारे में चर्चा की गई, वह देवतुल्य काम कर रहे हैं। ऐसे लोग सभी को प्रेरणा देते हैं। समाज को इनसे सीखना चाहिए और समाज की प्रसन्नता में अपनी खुशी खोजनी चाहिए।
—रामसहाय जोशी, अंबाला छावनी (हरियाणा)
घातक नीति
पश्चिम बंगाल में हिंदू उत्पीड़न चरम पर है। आएदिन कोई न कोई ऐसी घटना घटती है जिससे शंका उत्पन्न होती है कि कहीं बंगाल भी कश्मीर के रास्ते पर तो नहीं? क्योंकि ममता सरकार ने तुष्टीकरण की नीति की पराकाष्ठा पार करके जो भय और आतंक फैलाया है, वह न केवल राज्य के लिए बल्कि देश के लिए भी एक खतरा बनकर उभरा है।
—मनोहर मंजुल, प.निमाड़ (म.प्र.)
रोहिंग्या मामले में ममता बनर्जी ने जिस तरह उनका खुलकर संरक्षण किया, वह उनकी नीति को दर्शाता है कि वह वोट बैंक के लिए कुछ भी कर सकती हैं। वह उन लोगों को बसाने की बात कर रही हैं जो देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होते हैं। देश की सुरक्षा एजेंसियां बार-बार अपराधी गतिविधियों में उस समुदाय की संलिप्तता की बात कर रही हैं लेकिन एक राज्य की मुख्यमंत्री को अपने ही देश की एजेंसियों पर विश्वास नहीं।
—राममोहन चंद्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
कुतर्क गढ़ते सेकुलर
‘राजनीति की बिसात पर अर्थशास्त्र (15 अक्तूबर, 2017)’ लेख अच्छा लगा। हमारे देश में एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसका सिर्फ एक ही काम है, अच्छे काम को भी सौ बार खराब कहकर समाज को इतना दिग्भ्रमित कर देना कि उसे सही पर भी विश्वास न हो। जीएसटी और नोटबंदी के बारे में इस वर्ग ने यही कार्य किया। अर्थव्यवस्था के मामले में ऐसे लोगों ने तमाम तरह के कुतर्क गढ़कर तस्वीर इतनी धुंधली कर दी कि एक सामान्य व्यक्ति को समझ में ही नहीं आता कि सही क्या है और गलत क्या। —राजेंद्र ठाकुर, झांसी (उ.प्र.)
रहो न इससे दूर!
मोदी की मानें अगर, बचत हुई भरपूर
डिजिटल दुनिया हो रही, रहो न इससे दूर।
रहो न इससे दूर, सीखना इसे पड़ेगा
लगता है इससे ही सारा काम चलेगा।
कह ‘प्रशांत’ है युवा वर्ग इसका दीवाना
मुश्किल है लेकिन बूढ़ों को इसे सिखाना॥
— ‘प्रशांत’
भूल सुधार
3 दिसंबर, 2017 के अंक में पृष्ठ सं. 40 पर ‘गीता जयंती (30 दिसंबर) पर विशेष’ में कृपया तिथि 30 नवम्बर पढ़ें।
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