|
गुजरात में चुनावी माहौल पूरी तरह गर्मा गया है। भाजपा और कांग्रेस के नेता लगातार रैलियां कर रहे हैं और कार्यकर्ता घर-घर जाकर मतदाताओं को रिझाने में लगे हैं। वहीं दिल्ली में बैठे मीडिया विश्लेषक अनेक तरह के कयास लगा रहे हैं। गुजरात के चुनावी माहौल प्रकाश डालती विशेष रपट
महेंद्र रावल और जयवंत पंड्या, अमदाबाद से
दिल्ली में सर्दी बढ़ने के साथ-साथ गुजरात में चुनावी माहौल गर्माता जा रहा है। भाजपा को पूरी उम्मीद है कि वह एक बार फिर से सरकार बनाने में सफल रहेगी, तो वहीं राज्य की सत्ता से 22 साल से बेदखल कांग्रेस अपनी जीत के लिए हर वह कदम उठा रही है, जो उसकी राह आसान बना सके। लेकिन उसकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उसके पास स्थानीय कार्यकर्ता नहीं हैं। गुजरात में उसका संगठन भी मजबूत नहीं है। इसलिए वह कुछ अन्य संगठनों और दलों के नेताओं के भरोसे चुनाव मैदान में है। तो उधर भाजपा अपने सुशासन और विकास के साथ मैदान में उतरी है। कांग्रेस की जातिवाद की बैसाखी के साथ चुनाव में उतरने की नीति को पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला ठीक नहीं मानते। उनका कहना है कि कुछ नए लड़कों (हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश) के साथ राहुल गांधी को बैठाकर कांग्रेस के नेता उनके कद को ही छोटा कर रहे हैं। वाघेला यह भी कहते हैं कि चुनाव के बाद ये लड़के गायब हो जाएंगे। वाघेला की इस टिप्पणी से गुजरात के चुनावी माहौल को भलीभांति समझा जा सकता है। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि सोशल मीडिया में कांग्रेस के पक्ष में जो लोग वहां हवा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर लोग अन्य राज्यों से चुनाव में जुटने के लिए भेजे गए हैं। दूसरी बात यह है कि कांग्रेस के पास अपना कोई एजेंडा नहीं है। जामनगर में रहने वाले हितेश भाई कहते हैं, ‘‘कांग्रेस भाजपा के एजेंडे को उधार लिए हथियार के रूप में आजमा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बराबरी करने की जुगत में राहुल गांधी मंदिर-मंदिर जाने का दिखावा कर रहे हैं, जबकि यही राहुल पहले कहते थे, मंदिर जाने वाले लड़की छेड़ते हैं।’’
साफ है, लोग राहुल के मंदिर जाने के पीछे के मंसूबों को समझ रहे हैं। वडोदरा के एक कॉलेज में अंग्रेजी के प्राध्यापक ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘‘लोग यह नहीं भूले हैं कि ‘हिंदू आतंकवाद’ या ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे शब्द किसकी देन हैं।’’ यानी राहुल गांधी की मंदिरों की परिक्रमा करने की नीति मतदाताओं को लुभा नहीं पा रही है। सूरत में रहने वाले रविंद्रभाई प्रजापति बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहते हैं, ‘‘राहुल चाहे कितने भी मंदिरों में चले जाएं, गुजरात में उनकी दाल नहीं गलने वाली है। भाजपा एक बार फिर से गुजरात में सरकार बनाने जा रही है। उम्मीद है कि भाजपा को पहले से ज्यादा सीटें मिलेंगी।’’
कांग्रेस भाजपा के एजेंडे को उधार लिए हथियार के रूप में आजमा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नकल करते हुए राहुल मंदिरोंके चक्कर काट रहे हैं, जबकि यही राहुल हैं जिनकी पार्टी राम-कृष्ण के अस्तित्व को नकारती है।
— हितेश भाई, जामनगर निवासी
गुजरात के लोग अभी कुछ वर्ष और कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखना चाहते हैं। कांग्रेस के पास इस समय न तो राज्य में कोई नेता है और न ही राष्टÑीय स्तर पर, जो मतदाताओं का विश्वास अर्जित कर सके।
— धीरू भाई, सूरत निवासी
हार्दिक ने एक अच्छे आंदोलन की धार खत्म कर दी है। इससे पाटीदार समुदाय के लोग बहुत नाराज हैं। कांग्रेस ने कभी भी पटेलों को अहमियत नहीं दी। यहां तक कि उन्हें आगे बढ़ने से भी रोका है। इसलिए पाटीदार कांग्रेस के साथ नहीं हैं।
— दिलीप पटेल, मेहसाणा निवासी
कांग्रेस ने महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाकर भाजपा के सामने अच्छी चुनौती खड़ी की है। हो सकता है, इस बार भाजपा की कुछ सीटें कम हो जाएं।
— हेमंत रावल, गांधीनगर निवासी
जब मैं सात-आठ साल का था तो गांव में बिजली और सड़कें नहीं थीं। आज हमारे गांव में 24 घंटे बिजली रहती है। गांव की हर गली पक्की है। पीने का पानी आता है। तो फिर मैं विकास को वोट क्यों न दूं?
— अश्विन मेहता, अमरेली निवासी
राहुल चाहे कितनी भी बार मंदिर चले जाएं, गुजरात में उनकी दाल नहीं गलने वाली है। भाजपा एक बार फिर से गुजरात में सरकार बनाने जा रही है। उम्मीद है, पहले से ज्यादा सीटें आएंगी।
— रविंद्रभाई प्रजापति, सूरत निवासी
सबको पता है कि गुजरात का भला भाजपा सरकार ने ही किया है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई जैसे मामलों पर बहुत अच्छा काम हुआ है। आगे भी भाजपा ही काम करेगी, यह भी लोगों को भरोसा है।
— महेश मांडविया, सूरत निवासी
भाजपा ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा दे रही है, वहीं कांग्रेस के साथ खड़े कुछ ईसाई और मुस्लिम संप्रदाय से जुड़े तत्व चुनावी माहौल को सांप्रदायिक रूप देने की कोशिश कर रहे हैं। इन तत्वों ने अपने समुदाय के लोगों से साफ-साफ कहा है कि वे भाजपा को हराने के लिए मतदान करें। गांधीनगर के आर्कबिशप थॉमस मेकवान ने एक पत्र लिखा है, जिसमें राष्टÑवादियों को हराने का अनुरोध किया गया है। थॉमस के अनुसार, ‘‘हमारे देश में लोकशाही खतरे में है। संवैधानिक अधिकारों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है।’’ थॉमस के इन आरोपों से भाजपा ही नहीं, गुजरात के आम लोग भी नाराज हैं। गांधीनगर के हितेश चावड़िया कहते हैं, ‘‘थॉमस जैसे बहुत से ईसाई हैं, जो भाजपा को हराना चाहते हैं। केंद्र सरकार विदेश से चर्च को मिलने वाले चंदों का हिसाब न मांगे, तब यही चर्च वाले कहेंगे कि भारत बहुत सहिष्णु देश है और यहां संविधान के अनुसार काम हो रहा है।’’
चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने में कुछ कट्टरवादी मुस्लिम संगठन भी पीछे नहीं हैं। ‘जागृत लघुमति युवक मंडल’ की ओर से एक पत्र जारी हुआ है, जिस पर सिकंदर खान, यू. पठान और कुछ अन्य लोगों के हस्ताक्षर हैं। इस पत्र में मुसलमानों से कहा गया है कि वे भाजपा को वोट न दें। पत्र में मुसलमानों को भड़काने के लिए भी अनेक बातें लिखी गई हैं। इसी तरह का एक और मामला भी उछाला जा रहा है। पिछले दिनों कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्टÑीय अध्यक्ष खुर्शीद सैयद और गुजरात अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष गुलाब खान की उपस्थिति में हुई एक बैठक के बाद मुसलमानों से कहा गया है कि मतदान के लिए मुसलमान पुरुष दाढ़ी, टोपी से बचें और महिलाएं बुर्का न पहनें। इससे अनेक मुसलमान नाराज हो रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि कांगे्रस मुसलमानों को ज्यादा से ज्यादा टिकट देने के बजाए मजहबी चीजों पर बंदिश लगाने की बात कर रही है। इस मामले पर अमदाबाद के श्याम भाई कहते हैं, ‘‘मुसलमानों को टोपी और बुर्के से बचने के लिए इसलिए कहा जा रहा है कि मतदान केंद्र पर मुसलमानों की भीड़ देखकर ज्यादा से ज्यादा हिंदू भी मतदान करने के लिए निकलेंगे। यानी ये तत्व मतदाताओं का ध्रुवीकरण नहीं होने देना चाहते, लेकिन इन तत्वों की शरारतों से ही इसकी संभावनाएं ज्यादा दिख रही हैं।’’
श्याम जैसी राय रखने वालों की कोई कमी नहीं है। सूरत के महेश मांडविया कहते हैं, ‘‘लोगों को भ्रमित करने के लिए कांग्रेस चाहे कुछ भी कर ले, गुजरात के लोग उसके झांसे में नहीं आने वाले। सभी को पता है कि गुजरात का विकास भाजपा सरकार ने ही किया है। उसने शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई जैसे मामलों पर बहुत अच्छा काम किया है। आगे भी भाजपा ही काम करेगी, यह भी लोगों को भरोसा है।’’
यही भरोसा सौराष्टÑ के राजकोट में भी दिखा। राजकोट के पास जालिया नामक एक गांव है। यहां स्वच्छ भारत मिशन के तहत सभी घरों में शौचालय बन गए हैं। गांव की सड़कें भी पक्की हैं। लोग मानते हैं कि यहां विकास हुआ है। करीब 2,000 की आबादी वाले इस छोटे से-गांव में सोडा की एक दुकान के बाहर कुछ युवक खड़े मिले। इधर-उधर की बातों के बाद चुनाव पर बातचीत होने लगी। उनसे पूछा गया, आप लोग मतदान के लिए जाएंगे? तो उन सभी ने एक स्वर से कहा, ‘‘क्यों नहीं? उस दिन का इंतजार तो बहुत दिनों से हो रहा है।’’ किसको वोट देंगे? इस पर भी उन्होंने एक साथ कहा, ‘‘हम सब तो विकास करने वालों के साथ हैं।’’ क्या पिछले वर्षों में राज्य का विकास हुआ है? इस प्रश्न पर उन्होंने कहा, ‘‘जरूर हुआ है और आगे भी होगा।’’ उन युवाओं में एक का नाम उमेश था। वे कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं और उनका आखिरी साल है। उमेश कहते हैं, ‘‘केंद्र सरकार की स्टार्ट-अप योजना अच्छी है। इसका ठीक से क्रियान्वयन हो जाए तो युवाओं के लिए अच्छा होगा।’’
राजकोट इन दिनों बहुत चर्चा में है, क्योंकि मुख्यमंत्री विजय रूपाणी यहीं से चुनाव लड़ रहे हैं। नरेंद्र मोदी भी पहली बार यहीं से विधानसभा पहुंचे थे। इसलिए इस सीट पर पूरी दुनिया की नजर है।
भौगोलिक दृष्टि से गुजरात को चार हिस्सों में बांटा जाता है—उत्तर गुजरात, मध्य गुजरात, दक्षिण गुजरात और सौराष्टÑ। उत्तर गुजरात में मेहसाणा, हिम्मतनगर, हारिज आदि प्रमुख स्थान हैं। मध्य गुजरात में अमदाबाद, वडोदरा, गोधरा आदि आते हैं। दक्षिण गुजरात में सूरत, वलसाड, भरुच और सौराष्टÑ में राजकोट, जामनगर, भावनगर और भुज जैसे शहर हैं।
अमदाबाद और वडोदरा में कुछ लोगों से बात करने पर पता चला कि उनके मन में जीएसटी को लेकर कुछ शंकाएं थीं। हालांकि प्रधानमंत्री ने चुनावी रैलियों में जो कुछ कहा, उसका असर लोगों पर दिखने लगा है। अमदाबाद के व्यवसायी हरेशभाई कहते हैं, ‘‘जीएसटी से शुरू में कुछ दिक्कत तो हुई, पर प्रधानमंत्री के आश्वासन के बाद उम्मीद जगी है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा।’’
इस तरह की बात करने वाले अनेक व्यवसायी मिले। इन व्यवसायियों की बातों से भाजपा के कार्यकर्ता और समर्थक उत्साहित हैं। उन्हें लगने लगा है कि व्यापारियों में भाजपा के प्रति जो नाराजगी थी, वह कम हो गई है। गांधीनगर के धर्मेंद्र जडेजा कहते हैं, ‘‘गुजरात में भाजपा का संगठन बहुत ही मजबूत है और सरकार ने भी अच्छा काम किया है। वहीं विपक्षी दलों के पास कार्यकर्ताओं का अभाव है। कांग्रेस के पास तो मुख्यमंत्री बनने लायक भी कोई चेहरा नहीं है। इसका फायदा भाजपा को अवश्य मिलेगा।’’ लेकिन कांग्रेस के समर्थक भी जोर-शोर से चुनाव प्रचार में लगे हैं। वे हवा बनाने में लगे हैं कि कांग्रेस की ओर से भाजपा को कड़ी टक्कर मिल रही है। गांधीनगर में रहने वाले हेमंत रावल कहते हैं, ‘‘कांग्रेस ने महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाकर भाजपा के सामने कड़ी चुनौती खड़ी की है। हो सकता है, इस बार भाजपा की सीटें कम हो जाएं।’’ हालांकि हेमंत भी मानते हैं कि राज्य में विकास हुआ है।
उत्तर गुजरात के मेहसाणा को पाटीदार आंदोलन का गढ़ माना जाता है। कांग्रेस का समर्थन मिलने से उसमें और भी ताकत आ गई थी, लेकिन अब उसकी ताकत में काफी कमी आई है। पाटीदार समुदाय हार्दिक पटेल से इस बात पर नाराज है कि उन्होंने एक आंदोलन को राजनीतिक रूप दे दिया। इससे आंदोलन कमजोर हुआ है। मेहसाणा के दिलीप पटेल कहते हैं, ‘‘हार्दिक ने एक अच्छे आंदोलन की धार खत्म कर दी है। इससे पटेल समुदाय के लोग बहुत नाराज हैं। कांग्रेस ने कभी भी पटेलों को अहमियत नहीं दी। यहां तक कि उन्हें आगे बढ़ने से भी रोका है। इसलिए पटेल कांग्रेस के साथ नहीं हैं। न जाने हार्दिक को क्या घुट्टी पिलाई गई कि वे कांग्रेस के साथ हो गए।’’
पटेलों की इस भावना को नरेंद्र मोदी पूरी तरह समझ रहे हैं कि वे हार्दिक से नाराज हैं। मोदी अपनी हर सभा में इस मुद्दे को उठा भी रहे हैं। इससे पटेल समुदाय की भाजपा के प्रति जो नाराजगी है, वह और कम होती जा रही है। ऊपर से भाजपा ने मेहसाणा, विजापुर, उंझा और विसनगर में पाटीदारों को टिकट देकर बहुत हद तक अपनी स्थिति सुधार ली है।
दक्षिण गुजरात के सूरत, भरुच और वलसाड में जनजाति बहुल क्षेत्र के मतदाताओं को रिझाने लिए कांग्रेस ने वनवासी नेता छोटूभाई वसावा को अपने साथ कर लिया है। राहुल गांधी की रैलियों में भी अच्छी संख्या में लोग आ रहे हैं। कहीं वे वनवासियों के साथ नाचते-गाते दिख जाते हैं, तो कहीं वंचित समाज के किसी व्यक्ति के घर भोजन कर लेते हैं। राहुल की यह रणनीति कितनी कारगर होगी, यह तो समय ही बताएगा। फिलहाल सूरत के धीरू भाई की यह टिप्पणी गौर करने लायक है, ‘‘गुजरात के लोग अभी कुछ वर्ष और कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखना चाहते हैं।’’ ऐसा क्यों? इस पर वे कहते हैं, ‘‘कांग्रेस के पास इस समय न तो राज्य में कोई ऐसा नेता है और न ही राष्टÑीय स्तर पर, जो मतदाताओं का विश्वास अर्जित कर सके। कांग्रेस का मतलब हो गया है भ्रष्टाचार करो और समाज को जाति, मजहब के आधार पर बांटो। अब यह सब नहीं चलने वाला।’’
आम गुजराती इस बात से नाराज है कि कुछ नेता विकास को पागल कहते हैं। अमरेली जिले के एक गांव के रहने वाले अश्विन मेहता कहते हैं, ‘‘जब मैं सात-आठ साल का था तो गांव में बिजली और सड़कें नहीं थीं। आज हमारे गांव में 24 घंटे बिजली रहती है। गांव की हर गली पक्की है। पीने का पानी आता है। तो जाहिर है मैं ऐसे विकास के साथ हूं?’’
अश्विन जैसी बातें करने वाले अनेक लोग मिले। बातचीत करने से पता चलता है कि आम गुजराती का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपार भरोसा है। गुजरात की जनता अब विकास की उस डगर पर आगे बढ़ने को आतुर है। इसमें जो रोढ़ा अटकाना चाहेगा, उसे वह सबक सिखा देगी।
राहुल ने माना- वे हिन्दू नहीं
राहुल गांधी 29 नवंबर को सोमनाथ मंदिर दर्शन करने पहुंचे थे। यहां रखे रजिस्टर में ‘गैर हिन्दुओं’ को दर्शन से पहले नाम दर्ज करना होता है, जिसमें राहुल गांधी और अहमद पटेल ने ‘गैर हिन्दू’ के नाते अपना नाम दर्ज किया। यह खबर जैसे ही फैली, चर्चा का विषय बन गई। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने तत्काल इस पर सफाई दी, कहा कि राहुल गांधी ‘जनेऊ-धारी हिन्दू’ हैं। उन्होंने अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी जनेऊ पहना था। लेकिन सोशल मीडिया में यह सवाल पूछा जा रहा है कि राहुल का उपनयन संस्कार कब हुआ था? कांग्रेस के पास इस सवाल का जवाब शायद ही हो।
टिप्पणियाँ