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पाकअधिक्रांत कश्मीर में बिजली परियोजना शुरू कर पाकिस्तान बुरी तरह फंस गया है। लोगों के विरोध के कारण चीनी कंपनियां भी वहां से निकलने की फिराक में हैं, इसलिए कर्मचारियों की छंटनी भी शुरू कर दी है
सुधेन्दु ओझा
पाकिस्तान एक बार फिर सत्ता के आंतरिक संघर्ष का मैदान बना हुआ है। न्यायालय द्वारा नवाज शरीफ को सत्ता के प्रकरण से बाहर करने में सेना की अति महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह बात भी छिपी नहीं है कि कुछ अपवादों को छोड़ पाकिस्तानी न्याय-व्यवस्था शुरू से ही सेना की पिछलग्गू रही है। न्यायालय की बैसाखी से सत्ता हथियाने के सेना के प्रयासों में वहां की मजहबी कट्टरपंथी पार्टियां भी सेना के साथ आ खड़ी हुई हैं। वहीं, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से भी दोनों देशों के मध्य रस्साकशी की खबरें आ रही हैं। इन सब के बीच पाक अधिक्रांत कश्मीर (पीओके) में जनता द्वारा विरोध का झंडा उठा लेने से स्थिति में दिलचस्प मोड़ आ गया है।
हाल ही में मुजफ्फराबाद में आयोजित एक रैली को संबोधित करते हुए पोओके के स्थानीय नेता तौकीर गिलानी ने पाकिस्तान के विरुद्ध आवाज बुलंद करते हुए कहा, ‘‘कहां लिखा है कि कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा है? कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है, लेकिन यहां के हुक्मरान कश्मीर के प्राकृतिक संसाधनों का पाकिस्तान के हित में उपयोग कर रहे हैं और यहां की आवाम के हितों को नजरअंदाज कर रहे हैं। यहां की पाकिस्तान विरोधी आवाज को कुचल दिया जाता है।
पाक अधिक्रांत कश्मीर का कुल क्षेत्रफल करीब 13,000 वर्ग किलोमीटर (भारतीय कश्मीर से 3 गुना बड़ा) है, जहां करीब 30 लाख लोग रहते हैं। पीओके को पाकिस्तान ने प्रशासनिक तौर पर दो हिस्सों- कश्मीर और गिलगिट-बाल्टिस्तान में बांटा हुआ है। नागरिक स्वतंत्रता एवं मौलिक अधिकारों की दृष्टि से पीओके की स्थिति शेष पाकिस्तान से भी बदतर है। यह भी स्पष्ट है कि पाकिस्तान में मीडिया भी हमेशा सैनिक सत्ता और खुफिया एजेंसियों की जद में रहता है। पाकिस्तानी समाचारपत्रों और टेलीविजन चैनलों को अघोषित हिदायत है कि वे पाकिस्तान के हितों (जिनका निर्धारण सेना करती है) के विरुद्ध समाचार छाप और दिखा नहीं सकते। इसी वजह से पीओके के लोगों की आवाज विश्व समुदाय तक नहीं पहुंच पाती है। तमाम तरह के हथकंडे अपना कर पाकिस्तान वहांं की बहुसंख्यक शिया आबादी को आर्थिक उपेक्षा और कठिनाइयों में डालकर, पूरे क्षेत्र को सुन्नी बहुल बनाने का प्रयास करता रहा है, जिसका यहां की जनता सख्त विरोध
करती है।
पीओके की सम्पदा का दोहन
पीओके में कोयला खनन और जल विद्युत परियोजनाओं की असीम संभावनाएं हैं। इसी कारण से पाकिस्तान ने इस क्षेत्र में कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं की परिकल्पना की थी। इसका मकसद यहां से मिलने वाली बिजली पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में भेजना था। इसके लिए पाकिस्तान सरकार ने नीलम और झेलम नदियों के पानी को इकट्ठा कर नीलम-झेलम जल विद्युत परियोजना शुरू की। इन परियोजनाओं के लिए उसे धन की जरूरत थी। इसके लिए पाकिस्तान पहले विश्व बैंक गया, लेकिन परियोजना के विवादित अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में होने के कारण विश्व बैंक ने कर्ज देने से इनकार कर दिया। इसके बाद उसने एशियाई विकास बैंक के समक्ष प्रस्ताव रखा, लेकिन यहां भी बात नहीं बनी और आखिर में उसने चीन से गुहार लगाई। उसके अनुरोध को चीन ने ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ परियोजना के अंतर्गत स्वीकार कर लिया।
चीन की कई सरकारी कंपनियों के समूह सीजीजी-सीएमईसी (गेजूबा ग्रुप और चाइना नेशनल मशीनरी इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट कॉपोर्रेशन) को वर्ष 2007 में पनबिजली परियोजना का ठेका दे दिया गया था। लेकिन विवादित क्षेत्र होने के कारण चीनी कंपनियां अब यहां से निकलने का रास्ता तलाश रही हैं जिसके चलते अनेकों स्थानीय पाकिस्तानी कर्मचारियों को बिना किसी नोटिस अथवा मुआवजा दिए अभी हाल ही में नौकरी से निकाल दिया गया है।
अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि चीन ने इस परियोजना की लागत इतनी बढ़ा दी है कि यह कर्ज अदायगी पाकिस्तान के लिए सिर दर्द बन गयी और उसने चीन को ही इस परियोजना से बाहर कर दिया।
पाकिस्तान पूरी करेगा परियोजना
सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान अब इस परियोजना को खुद पूरा करने की सोच रहा है। प्राप्त जानकारियों के अनुसार पाकिस्तान सरकार अब इस परियोजना की जिम्मेदारी सरकारी संगठन ‘वाटर एंड पावर डेवलपमेंट अथॉरिटी’ (वापदा) को देना चाहती है, जबकि इस संगठन को न तो इस तरह की परियोजना पर काम करने का अनुभव है और न ही इसने ठेका लेने के लिए प्राथमिक औपचारिकताएं ही पूरी की हैं। समाचारपत्र के अनुसार इस परियोजना पर पाकिस्तान सरकार, वापदा और पीओके सरकार के बीच अभी तक कोई समझौता भी नहीं हुआ है। समाचारपत्र ने वापदा के अध्यक्ष का मजाक उड़ाते हुए लिखा है, ‘‘विगत एक वर्ष से अधिक समय से इस संगठन के प्रमुख होने के बावजूद उन्हें यह तक नहीं पता है कि इस परियोजना के लिए पाकिस्तान सरकार, वापदा और पीओके के बीच किसी समझौते की भी जरूरत पड़ती है।’’ पाकिस्तान के प्रतिष्ठित अंग्रेजी समाचारपत्र में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार खुद सरकारी एजेंसियों को यह भय सताने लगा है कि कहीं इस परियोजना का हाल भी नंदीपुर बिजली परियोजना जैसा न हो जाए जिसमें लागत से कई गुना अधिक धन लगाने के बावजूद बिजली उत्पादन नहीं किया जा सका।
पीओके की राजधानी मुजफ्फराबाद स्थित यह परियोजना करीब 15-20 साल पुरानी है। इसके तहत पाकिस्तान नौसेरी में नीलम नदी में सुरंग बनाकर पानी को करीब 41 किलोमीटर दूर पूर्वी मुजफ्फराबाद में ले जाना चाहता है। मुजफ्फराबाद से 22 किलोमीटर दक्षिण में छत्र कलश है, जहां पन-बिजलीघर बनाकर इस पानी को टर्बाइन से गुजारने के बाद 4 किमी आगे झेलम नदी में छोड़ दिया जाएगा। इस परियोजना से 969 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य है।
संविधान का उल्लंघन
इन सबसे इतर पीओके में कई पाबंदियां भी हैं। पाकिस्तान के संविधान के नियम 74 के तहत, पीओके की शासन व्यवस्था कोई ऐसा काम नहीं कर सकती जो स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र या सरकार या एक प्रांतीय सरकार कर सकती है। मसलन कोयला या खदान लगाने का फैसला लेने का अधिकार भी स्थानीय सरकार को नहीं है। इसके अलावा, किसी पाकिस्तानी नागरिक को पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान में जमीन खरीदने का अधिकार नहीं है। लेकिन पाकिस्तान की सरकार खुद इस नियम का उल्लंघन कर रही है। पीओके में स्थापित अन्य जल-संग्रह के बांधों और बिजली परियोजनाओं के लिए सरकार ने वहां जगह खरीदी है। इन परियोजनाओं का लाभ केवल पाकिस्तान को ही हुआ है।
पाक अधिक्रांत कश्मीर में जमीन खरीदने के लिए वहां का नागरिक होना आवश्यक है। लेकिन इस नियम का पाकिस्तानी तोड़ यह है कि किसी भी स्थानीय व्यक्ति को आगे करके एक सब्सिडियरी कंपनी बना ली जाती है, जैसा कि नीलम-झेलम परियोजना में हुआ। इसके लिए एजेके माइनिंग कंपनी (प्रा.) लिमिटेड बनाई गई जो यूनाइटेड कोल की सौ प्रतिशत सब्सिडियरी कंपनी है। विवादित क्षेत्र की 2230 एकड़ भूमि में कोयला और तापीय ऊर्जा में इसकी दिलचस्पी है। यूनाइटेड कोल ने एक पाकिस्तानी नागरिक मुहम्मद खालिद परवेज को इस परियोजना का प्रबंध निदेशक बनाया है। एक अनुबंध के तहत इस कंपनी को ‘आजाद कश्मीर औद्योगिक विकास निगम’ द्वारा सभी तकनीकी सहयोग प्रदान किया जाएगा। बता दें कि पाकिस्तान का 97 प्रतिशत कोयला भंडार थार मरुस्थल और पाक अधिक्रांत कश्मीर में है जिसका उपयोग पाकिस्तान अपने लिए करना चाहता है।
परियोजनाओं को लेकर विरोध
हाल ही में पाक अधिक्रांत कश्मीर में कई प्रदर्शन हुए। सरकार और सेना से नाराज लोगों ने काला दिवस मनाया। रावलाकोट के पास बानबेहक में एक बड़ी रैली निकाली गई और सार्वजनिक बैठक की गई। इसमें लोगों ने पाकिस्तान विरोधी नारे लगाए और पीओके से तत्काल सेना को हटाने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने पीओके के कोटली और हजीरा शहरों में भी विरोध रैली निकाली। पाकिस्तानी फौज के अत्याचारों के विरोध में मुजफ्फराबाद में नीलम ब्रिज पर भी प्रदर्शन किए गए।
ऐसी ही एक रैली में स्थानीय नेता तौकीर गिलानी ने आरोप लगाया, ‘‘पाकिस्तान की फौज आतंकियों को प्रशिक्षण देती है। उन्हें सुरक्षित ठिकाना भी मुहैया कराती है। वे न तो अपने मुल्क के साथ हैं और न कश्मीरियों के साथ। दुनिया में ऐसा कोई मुल्क नहीं है जो अपने ही लोगों के विरुद्ध काम करता है। पाकिस्तान के हुक्मरान अपने ही लोगों पर 15 साल से बमबारी कर रहे हैं। अत्याचार कर रहे हैं। फौज ही जिहादी तैयार करती है और फिर अपने हिसाब से उनका इस्तेमाल करती है। दहशतगर्त कितने होंगे- 200, 400 या 500? इन्हें खुद सेना ने तैयार किया और इन्हें पनाह दी। इन्हें हथियार दिए। इन्हें जगह-जगह ले जाकर जिहादी के तौर पर इनका इस्तेमाल किया।’’ प्रदर्शनकारियों ने मांगें भी रखीं कि नीलम-झेलम पनबिजली परियोजना का गैरकानूनी निर्माण बंद किया जाए। इसकी वजह से स्थानीय लोगों को काफी दिक्कतों का सामना कर पड़ रहा है।
पीओके में पाकिस्तान अपनी ही नीतियों के जाल में उलझा है। ऊपर से यहां के निवासी अब उसकी हेकड़ी झेलने को तैयार नहीं है। आने वाले दिन क्या हालात पैदा करेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।
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