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‘‘संघ विचार के कार्य का प्रभाव सर्वदूर बढ़ रहा है। इस प्रभाव से परिवर्तन दिख रहा है। लेकिन सामाजिक परिवर्तन की गति बढ़ाने की आवश्यकता है।’’ उक्त उद्बोधन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने दिया। वे गत दिनों पुणे की मयूर कॉलोनी, कोथरूड में बाल शिक्षण मंदिर के सभागृह में समविचारी संगठनों तथा संस्थाओं के कार्य की समीक्षा के दौरान बोल रहे थे। उन्होंने समन्वय बैठक में संगठनात्मक विकास, सेवा कार्यों की स्थिति, आगे के संकल्प आदि विषयों पर चर्चा की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि संघ से समाज की अपेक्षा बढ़ रही है। बढ़ी हुई उम्मीदों के कारण राष्टÑीय विचारों के सभी संगठनों की जिम्मेदारी भी बढ़ी है। ऐसी परिस्थिति में गंभीरता और सजगता बनाए रहने की जरूत है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि अपने परिवार और समाज में प्रबोधन द्वारा ऐसे संस्कार रोपित करने होंगे, जिससे मौलिक राष्टÑ भावना की वृद्धि हो। इस अवसर पर बैठक में महाराष्टÑ की संस्थाओं-संगठनों के प्रमुख प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
संघ प्रयासों की यशोगाथा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं संघ विचार से काम करने वाली संस्था और संगठनों के कुल मिलाकर महाराष्टÑ राज्य में तहसील स्तर तक 90,000 से अधिक कार्यकर्ता कार्यरत हैं। जबकि उतने ही कार्यकर्ता ग्राम स्तर और शाखा स्तर तक काम कर रहे हैं। इन कार्यकर्ताओं के बल पर 2,359 गांवों में 4,955 सेवाकार्य चल रहे हैं। नक्सली गतिविधियों को रोकने और विभिन्न समुदायों के कन्वर्जन के विषय पर भी समन्वय बैठक में विस्तार से चर्चा हुई। 47,000 से अधिक घुमंतू विमुक्त लोगों को राशन कार्ड तथा सरकारी योजना से एक हजार परिवारों को घर दिलवाना, कच्ची बस्तियों पर पाठशालाओं का अभिनव प्रयोग, साथ ही राज्य में ग्राम विकास और अकाल स्थिति के निवारण हेतु 175 गांवों में जन सहभागिता से जल सिंचाई और जल संवर्धन के कार्य सफलतापूर्वक चलाए गए। इसके साथ ही राज्य में दो बड़ी नदियों का सफल पुनरुज्जीवन, राज्य में खेती विकास के लिए 50 गांवों में काम जारी है और खुदकुशी करने वाले किसानों के परिवार की लड़कियों की शिक्षा और निवास की सुविधा की गई है। श्री भागवत ने शिक्षा, समरसता, पर्यावरण, ग्राम विकास, परिवार प्रबोधन, कृषि और कृषि उत्पादन के लिए संघ और समविचारी संगठनों द्वारा जारी अनगिनत सफल प्रयासों पर संतोष जताते हुए समाज के आखिरी घटक तक पहुंचने की आवश्यकता बताई। (विसंकें, पुणे)
‘समाज को निरंतर देते रहना ही यज्ञ’
दिल्ली के प्रसिद्ध समाजसेवी और सेवा भारती के संस्थापक सदस्यों में से एक श्री जयनारायण खण्डेवाल का गत दिनों निधन हो गया। 93 वर्षीय स्व. खण्डेवाल की स्मृति में 12 नवंबर को नई दिल्ली स्थित सिविक सेंटर में श्रद्धाञ्जलि सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रमुख रूप से राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ़ कृष्ण गोपाल उपस्थित रहे। उन्होंने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि हमारे पास जो ज्ञान, धन अथवा शरीर की शक्ति है, यह परमात्मा ने दी है और यह परमात्मा की धरोहर है। हम केवल उसके ट्रस्टी हैं। इसलिए परमात्मा-ईश्वर के कार्य के लिए समाज को निरंतर देते रहना ही यज्ञ है। वैदिक ऋषियों ने कहा है कि परमात्मा ने हमें जो दे दिया है, उसमें से दे दो, जो बच रहा है, उसी में अपना निर्वाह करें, यही यज्ञ है। लेकिन उसका शाश्वत-सार्थक अर्थ है कि मेरे पास जो भी कुछ है वो समाज ने दिया, देश ने दिया, पूर्वजों ने दिया और उसमें से एक छोटा सा किंचित मात्र जो शेष-अवशिष्ट है, यज्ञशिष्ट है वह अपने लिए और शेष सबके लिए देते रहना। स्व. जयनारायण जी ने ऐसा ही उदाहरण हम लोगों के सामने प्रस्तुत किया है। ल प्रतिनिधि
विद्या भारती कर रही समाज को शिक्षित
पिछले दिनों हरियाणा के कुरुक्षेत्र में विद्या भारती उत्तर क्षेत्र के प्रकाशन कार्यालय ‘लज्जाराम तोमर भवन’ का शिलान्यास पूज्य स्वामी वेदानन्द जी महाराज एवं विद्या भारती के संरक्षक पद्मश्री ब्रह्मदेव शर्मा (भाईजी) जी के कर-कमलों से संपन्न हुआ। इस अवसर पर हवन-पूजन के साथ लज्जाराम तोमर भवन की नींव रखी गई। कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए विद्या भारती के राष्टÑीय मंत्री श्री हेमचन्द्र ने कहा कि आज की शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। प्रत्येक विद्यार्थी को धर्म के आधारभूत तत्व एवं महान पूर्वजों के जीवन चरित्र पढ़ाए जाने चाहिए। कार्यक्रम में मुख्य रूप से उपस्थित पद्मश्री श्री ब्रह्मदेव शर्मा ने कहा कि विद्या भारती किसी एक विशेष वर्ग की शिक्षा व्यवस्था के स्थान पर समस्त समाज को शिक्षा किस प्रकार से सुलभ हो सके, इस दिशा में वर्षों से काम कर रही है। इस अवसर पर अनेक गणमान्यजन उपस्थित थे। प्रतिनिधि
भारतीय संस्कृति के मूल में परमार्थ
‘‘भारत भूखण्डों का संकलन नहीं है, जैसे कि अन्य देश हैं। इसी प्रकार हिन्दुस्थान की संस्कृति में एकात्म है,जिसका मूल परमार्थ और सर्वकल्याण है। भारतीय संस्कृति बीज की तरह अभिन्न है, जिस तरह बीज के अंदर ही एक पूरा वृक्ष, उसके पत्ते, फूल व टहनियां निहित हैं, उसी प्रकार भारत का समाज एकात्म है।’’ उक्त बातें राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य व वरिष्ठ प्रचारक श्री इंद्रेश कुमार ने कहीं। वे पिछले दिनों हरियाणा के दीनबंधु छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मुरथल में दीनबंधु छोटू राम चेयर द्वारा ‘भारतीय शिक्षा एवं संस्कृति-एकात्म मानववाद’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि देश के किसी भी भाग पर विपदा आने पर पूरा देश उस तरफ चिंतित होकर सहायता के लिए अग्रसर होता है, जिस प्रकार मनुष्य के किसी भी अंग पर चोट लगने पर शरीर के दूसरे अंग उपचार हेतु वहां सहायता करने के लिए पहुंचते हैं। इसी प्रकार भारतीय संस्कृति सर्व समाज की संस्कृति है, जिसमें समाज के हर वर्ग का उत्थान व पोषण निहित है। भारतीय संस्कृति मांग की नहीं, बल्कि प्यार और परमार्थ की संस्कृति है। प्रतिनिधि
डॉ. एस. सुबैय्या अध्यक्ष तो आशीष चौहान महामंत्री चुने गए
देश के अग्रणी छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के क्रमश: राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय महामंत्री के पद पर डॉ. एस.सुबैय्या और श्री आशीष चौहान को सत्र 2017-18 हेतु निर्विरोध निर्वाचित किया गया। उल्लेखनीय है कि डॉ. एस. सुबैय्या मूलत: तमिलनाडु के तुतुकुड़ी जिले से हैं और विद्यार्थी जीवन से ही सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते रहे हैं। वे चिकित्सा क्षेत्र में कैंसर विशेषज्ञ के रूप में ख्यात हैं तथा वर्तमान में किल्पौक मेडिकल कॉलेज चेन्नई में कैंसर चिकित्सा विभाग में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं। वे 1986 में परिषद के विभिन्न दायित्वों पर रहते हुए तमिलनाडु के प्रांत अध्यक्ष, वर्ष 2015 से राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। तो वहीं श्री आशीष चौहान मूलत: हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के रोहडू से हैं। 2003 से अभाविप के संपर्क में आए श्री चौहान की शिक्षा एमबीए तक है। इसके बाद वे जिले के विभिन्न पदों से होते हुए राष्ट्रीय मंत्री रहे हैं। प्रतिनिधि
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