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डिया जब सकारात्मक भूमिका में होता है तो लोकतंत्र का सबसे जरूरी स्तंभ होता है, पर उसका नकारात्मक रूप उतना ही घातक साबित हो सकता है। एनडीटीवी चैनल पर अक्सर इसी भूमिका में होने के आरोप लगते रहते हैं। उत्तर प्रदेश के बलिया में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यक्रम में आई एक मुस्लिम महिला से बुर्का हटाने को कहा गया। महिला पुलिसकर्मियों ने सम्मानजनक तरीके से यह बात कही और महिला ने भी बिना आपत्ति के बुर्का हटा दिया। मुख्यमंत्री पर खतरे को देखते हुए इसका कारण समझना मुश्किल नहीं है, किंतु एनडीटीवी के मुताबिक यह मुस्लिम महिला की मजहबी आजादी का हनन था। जिस देश में एक महिला के जरिए पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या हो चुकी हो, वहां सुरक्षा एजेंसियों के काम पर चैनल की ऐसी रिपोर्टिंग समझ से परे है। प्रश्न है कि हमले के दौरान आतंकियों तक सूचनाएं पहुंचाने का आरोपी रहा चैनल अब कहीं बड़े नेताओं के सुरक्षा तंत्र को प्रभावित करने की कोशिश तो नहीं कर रहा?
जब मंदिर मामले से जुड़ा कोई विवाद होता है तो चैनल-अखबार उसे खूब दिखाते हैं, पर आपसी सद्भाव से रास्ता निकालने की कोशिश होती है तो मीडिया मुंह फेर लेता है। शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मंदिर निर्माण का समर्थन किया तो अधिकांश चैनलों ने उसकी खबर दिखाना जरूरी नहीं समझा। वसीम रिजवी ने बताया कि मंदिर के मुकदमे में अब तक शिया बोर्ड की ओर एक फर्जी वकील खड़ा किया जा रहा था। यह फर्जीवाड़ा कौन कर रहा था, यह जानने में भी मीडिया को कोई दिलचस्पी नहीं है। इन बातों से शक होता है कि देश में मीडिया का बड़ा हिस्सा किसी पार्टी या विचारधारा के इशारे पर काम कर रहा है।
उधर, फिल्म पद्मावती को लेकर मीडिया में एकतरफा रिपोर्टिंग जारी है। निर्माता ने कुछ संपादकों को फिल्म दिखाई व सभी ने विरोध के मुद्दों को बिना जाने-समझे फिल्म को 'क्लीनचिट' दे डाली। मीडिया लगातार इस बहस को भटकाने में लगा हुआ है। उसकी मंशा है कि इसी बहाने हिंदू समाज को असहिष्णु साबित किया जा सके।
दूसरी तरफ, जब शशि थरूर जैसे कांग्रेसी नेता गौरवशाली राजपूत परंपरा को अपमानित करने की कोशिश करते हैं तो उनके लिए नरमी साफ दिखती है। गुजरात चुनाव से पहले वहां से जुड़ी फर्जी खबरों की बाढ़-सी आई हुई है, ताकि भाजपा को नुकसान पहुंचाया जा सके। उदाहरण के तौर पर कांग्रेस ने सोशल मीडिया के जरिए खबर उड़ाई कि सरकार ने बुलेट ट्रेन पर जापान के साथ कोई समझौता किया ही नहीं है। फेसबुक, ट्विटर से यह खबर मुख्यधारा मीडिया में पहुंच गई और वहां पर इसे कांग्रेस पार्टी के आरोप की तरह बताया गया। पर किसी चैनल या अखबार ने एक बार भी यह जांचने की कोशिश नहीं की कि इन दावों में क्या वाकई दम है।
इसी तरह राफेल लड़ाकू विमान समझौते को लेकर मीडिया कांग्रेस के दुष्प्रचार का जरिया बना हुआ है। कांग्रेस बिना तथ्य के आरोप लगा रही है व मीडिया उसे बिना जांचे दिखाता है ताकि लोगों के मन में शक पैदा किया जा सके। एक और खबर कुछ दिन पहले सभी चैनलों व अखबारों में आई थी कि प्रधानमंत्री गुजरात चुनाव में 50 रैलियां करने वाले हैं। बाद में पता चला कि यह खबर कांग्रेस के लिए प्रचार करने वाले कुछ पत्रकारों की कल्पना से पैदा हुई है।
बीते हफ्ते मुंबई में एक पूर्व मॉडल के साथ लव जिहाद का मामला सामने आया। सभी चैनलों ने इस खबर को थोड़ा-बहुत दिखाया, लेकिन वह हिस्सा नहीं दिखाया जिससे इस पूरे खेल की सच्चाई सामने आ पाती। उस मॉडल ने बताया कि कैसे उसका मुसलमान पति दूसरी हिंदू लड़की से शादी कर चुका है और कह रहा है कि वह भी इस्लाम कबूल कर ले। उसने यह भी बताया कि एक संगठित गिरोह की तरह से हिंदू लड़कियों का जबरन कन्वर्जन कराया जा रहा है। खबर के साथ सभी चैनलों ने इतने मौलवियों के बयान सुनाए मानो वे इस मामले के कानूनी जानकार हों। एबीपी न्यूज ने पीडि़त महिला का चेहरा दिखाया, पर उसके आरोपी पति का नाम तक नहीं बताया। सवाल यह है कि अब जब लव जिहाद की सचाई सामने आ चुकी है, मीडिया इतना डरा क्यों हुआ है?
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