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आवरण कथा/ कश्मीर-ज्ञान और अध्यात्म की वसुंधरा

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Nov 27, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Nov 2017 11:37:08

कश्मीर जहां अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात है तो वहीं इसका कण-कण अध्यात्म और देव मंदिरों से विभूषित है।

 

सुनील रैना राजानक

चक्रभृद्विजयेशादिकेशावेशानभूषिते ।
तिलांशोऽपि न यत्रास्ति पृथ्व्यास्तीर्थैर्बहिष्कृत: ।।
       ( रा.त. 1/38)।
यानी जिस देश में चक्रधर विष्णु तथा ईशान रूपी शिव का वास है, उस कश्मीर भूमि में तिल मात्र भी ऐसा कोई स्थान नहीं है, जो तीर्थ न हो।’’ कश्मीर के महाकवि कल्हण ने अपनी ‘राजतरंगिनी’ में कश्मीर की पुण्यभूमि का वर्णन कुछ इस तरह किया है।
कश्मीर की पुण्यभूमि प्राचीन काल से ही सतीदेश व विद्या की देवी शारदा के रूप में संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। इस पुण्यधरा में असंख्य तीर्थस्थल हैं, जिनका वर्णन पुराणों में अनेक स्थानों पर आया है जहां समस्त भारत से तीर्थयात्री पुण्यार्जन के लिये आते थे। 13वीं सदी के मध्य कश्मीर में क्रूर मुस्लिम शासन स्थापित होने के बाद से अनेकानेक प्रसिद्ध मंदिर व तीर्थस्थल आततायियों द्वारा नष्ट-भ्रष्ट कर दिए गए। इनमें से कई समय के साथ लोप हो गए या उन पर मस्जिदें खड़ी कर दी गर्इं। लेकिन इसके बाद भी संपूर्ण कश्मीर में अनेकानेक विशाल और पुरातन मंदिर-तीर्थस्थल विद्यमान हैं जो कश्मीरी हिंदू समाज द्वारा पूजित व सेवित हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश के महात्म्य के बारे में भारत के अन्य भागों के लोगों को बहुत ही कम पता है।
इन्हीं पुरातन तीर्थस्थलों की कड़ियों में उत्तरी कश्मीर में विद्या की देवी मां शारदा का पावन धाम स्थित है, जिसके कारण कश्मीर को शारदा देश के नाम से भी जाना जाता है। पर आज यह पुण्यधाम जीर्ण-शीर्ण दशा में पाक अधिक्रांत कश्मीर में स्थित है। इसी क्रम में उत्तर कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के टिक्कर गांव में भगवती महाराज्ञन्या को समर्पित महातीर्थ है। श्रीनगर से 90 किमी. दूर इस तीर्थ के बारे में मान्यता है कि त्रेतायुग में हनुमान जी स्वयं मां राज्ञन्या को भगवान राम के आदेश पर लंका से तुलमुल गांव स्थापित करने से पहले यहां लाये थे। यह धाम भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है। प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भक्तगण यहां पर आकर माता को भेंट अर्पित कर हवन-पूजन करते हैं। ऐसा ही एक देवस्थान उत्तरी कश्मीर के जिला हंदवाड़ा में है। सुंदर देवदारु के वनों से आच्छादित माता भद्रकाली का यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है। पुरातन काल से ही कश्मीरी हिंदू आश्विन मास की शुक्ल नवमी को इस पुण्यधाम की यात्रा कर माता भद्रकाली का दर्शन करते हैं। श्रीनगर से लगभग 100 किमी. की दूरी पर निर्जन स्थान पर स्थित इस मंदिर तक आसानी से सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। चूंकि इलाका संवेदनशील है, इसलिए मंदिर की सुरक्षा में सेना तैनात है, जो यहां की समस्त व्यवस्था को संभालती है। मंदिर के आस-पास का सुरम्य वातावरण यहां आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को कुछ पल में ही मोहित कर लेता है। पौराणिक और लोकमान्यताओं के अनुसार कश्मीर के हिंदुओं का इस मंदिर से विशेष जुड़ाव है और यह समुदाय समय-समय पर माता के दर्शन के लिए आता है।
माता शैलपुत्री कश्मीर के हिंदू समाज की कुल देवी के रूप में पूजित हैं। श्रीनगर-उरी राष्ट्रीय राजमार्ग-1 पर बारामूला स्थित पतितपावनी वितस्ता नदी के तट पर माता शैलपुत्री का पावन धाम है। हर नवरात्र की नवमी पर बड़ी धूमधाम से माता का पूजन करने के लिए सिर्फ कश्मीर का हिंदू समाज ही नहीं बल्कि देश के सुदूर क्षेत्रों से दर्शनार्थी यहां पहुंचकर माता के दर्शन करते हैं। इसी बारामूला में राष्ट्रीय राजमार्ग-1 पर पट्टन नामक स्थान पर उत्पल वंश के राजा शंकरवर्मा द्वारा निर्मित 1100 वर्ष पुराना प्राचीन शंकर-गौरीश्वर मंदिर स्थित है। शिव को समर्पित यह मंदिर कश्मीरी वास्तुकला व स्थापत्य का अनुपम उदाहरण है। मंदिर परिसर में राजा शंकरवर्मा ने अपनी पत्नी की स्मृति में सुगंधेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना की थी। मध्यकाल में क्रूर मुस्लिम शासकों द्वारा इन देवस्थानों को नष्ट करने के प्रयास हुए जिनके कारण यह आज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में विद्यमान है। यह मंदिर कश्मीरी वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है।
जहां का स्थान-स्थान है मंदिर
श्रीनगर यानी लक्ष्मी जी का नगर। वैसे  श्रीनगर को मंदिरों का घर कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। शहर के मध्य स्थित शक्तिपीठ माता चक्रेश्वरी का धाम है। माता चक्रेश्वरी को भगवती शारिका व श्री त्रिपुरसुंदरी के नाम से भी जाना जाता है।  इनके नाम से ही श्रीनगर प्रद्धि हुआ। यहां माता श्रीचक्र के रूप में पूजित हैं। श्री चक्रेश्वरी श्रीनगर की सरंक्षक और यहां के निवासियों की कुलदेवी के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं। माता चक्रेश्वरी तीर्थधाम प्रद्युम्न-पीठ के रूप में भी प्रसिद्ध है। अनेक वैष्णव आगमों की रचना इसी तीर्थ पर की गई थी जिनमें पंचरात्र प्रमुख है। यह तीर्थस्थल अनेक सिद्ध संतों-पुरुषों की तपोभूमी रहा है। इसी पर्वत पर व इसके आसपास अनेक तीर्थ व मंदिर स्थित हैं जिनमें स्वयंभू शिलारूपी महागणेश का मंदिर है। इसके अतिरिक्त देवीकाली मन्दिर, सप्तर्षि स्थान प्रमुख हैं। श्रीपर्वत से ही कुछ दूर में रैनावारी उपनगर में माता महाराज्ञन्या का दिव्यधाम पोखरीबल भी है जिसमें माता प्राकृतिक जलकुंड में जल रूप में विद्यमान है। वर्ष 1990 से पहले यहां के हिंदू प्रात: काल में इस पर्वत पर स्थित सभी तीर्थों की परिक्रमा किया करते थे। लेकिन आतंकवाद के दिनों में इन देवस्थलों को काफी नुकसान पहुंचाया गया जिसका उदाहरण श्रीपर्वत के निकट स्थित हनुमान जी का मंदिर था, जिसे आततायियों ने जमींदोज कर दिया। आज उसके अवशेष भी नहीं मिलते। ऐसी घटना अकेले हनुमान जी के मंदिर के साथ नहीं हुई। आतंकवाद के दिनों में श्रीनगर व आसपास के अधिकतर पुरातन और हिंदू समाज द्वारा पूजित धर्मस्थलों को जमींदोज करके रातोरात हाहाकारी मस्जिदें बनाई गर्इं और नया इतिहास रच-गढ़ दिया गया।
पुरातन मान्यताओं के अनुसार श्रीनगर को अष्टभैरवों का संरक्षण प्राप्त है। ये सभी भैरव श्रीनगर के विभिन्न दिशाओं में स्थित हंै जिनमें श्रीनगर के लाल चौक के पास मैसूमा नामक मुहल्ले में भैरवराज आनंदेश्वर का पुराना व प्रसिद्ध मंदिर  है। इसके प्रांगण में स्वयं महामहेश्वराचार्य अभिनवगुप्त ने तपस्या की थी तथा भैरवस्तोत्र की रचना की थी। इस मंदिर परिसर में भैरव प्राकृतिक रूप से उत्पन्न जलकुंड में विराजित हंै। स्थानीय कश्मीरी हिंदू परिवारों के इष्ट भैरव व कुलदेवता के रूप में आनंदेश्वर पूजित हंै। ऐसे ही प्रसिद्ध डल झील (सुरेश्वरी सर) के तट के पास स्थित निशांत बाग के समीप गुप्त गंगा का प्राचीन व प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। मंदिर के प्रागंण में देवी गंगा गुप्त रूप में प्रकट हुई थीं। जो आज भी जल स्त्रोत के रूप में विद्यमान है।
इसी शृंखला में श्रीनगर शहर राष्ट्रीय राजमार्ग के निकट पांदरेथन में 1100 वर्ष पुराना भगवान विष्णु का मंदिर है, जिसका निर्माण दसवीं शताब्दी में राजमंत्री मेरूवर्धन ने करवाया था। यह कश्मीरी वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। मंदिर पानी के मध्य स्थित है तथा इसका शिखर त्रिकोणीय आकृति का है। मंदिर की दीवारों पर अत्यंत सुन्दर यक्ष-गंधर्वों की मूर्तियां देवी-देवताओं के साथ उत्कीर्ण हैं। यह क्षेत्र कश्मीर की पुरानी राजधानी पुरन्दर स्थान रहा है।
केसरभूमि पांपोर
मध्य कश्मीर का पांपोर (केसरभूमि ) जिला जहां अपनी आभा से हर किसी को आकर्षित कर लेता है, वहीं यह भूमि आस्था और श्रद्धा से भी उतनी ही उर्वरा है। अनेक मठ-मंदिर और आस्था के केंद्र यहां की दिव्य भूमि में विराजित हैं। इसी पावन धरा के ख्रीयू ग्राम में भगवती ज्वाला का धाम है। मान्यता है कि यहां पर माता हिमाचल प्रदेश के ज्वालापीठ की तरह ज्वाला रूप में विद्यमान थीं। यह मंदिर एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है, जिसकी तलहटी पर एक प्राकृतिक जल कुंड है। इसी मंदिर के पास जेवन  नामक ग्राम में पांडवकालीन तक्षक नाग का देवस्थान प्राकृतिक जल कुंड रूप में स्थित है, जिसमें तक्षक नाग जल रूप में विराजमान हैं,ऐसी लोकमान्यता है। ऐसा ही देवस्थल पूर्वी कश्मीर के गांदरबल जिले की कंगन तहसील में सिंधु नदी के तट पर स्थित है।
सम्राट ललितादित्य द्वारा 1300 वर्ष पूर्व निर्मित नारायण नाग (नारानाग) का यह प्रसिद्ध मंदिर समूह शिव को समर्पित है। मध्यकाल में मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा मंदिर को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया था। यह मंदिर अपने विशेष वास्तु के कारण पूरे भारत व विश्व में प्रसिद्ध है। कश्मीर के प्राचीन व प्रसिद्ध पितृतीर्थ हरमुख गंगा की यात्रा का पहला पड़ाव इसी मंदिर क्षेत्र पर स्थित है। हरमुख गंगबल पर भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी  को यात्रा की जाती है तथा पितरों का श्राद्ध-तर्पण किया जाता है। कश्मीर के हिंदू समाज द्वारा यहां पर पूर्वजों  के अस्थिविसर्जन का बड़ा महत्व माना गया है। पश्चिमी कश्मीर के शोपियां जिले में प्रसिद्ध कपालमोचन तीर्थ स्थित है। शिवजी के इस धाम का पितरों की सद्गति के लिए बड़ा ही महात्म्य माना गया है। अकाल मृत्यु को प्राप्त जीवों, मृत,अविवाहितों व बालकों का श्राद्ध पिंडदान यहां उनकी सद्गति के लिए किया जाता है। यह भारत के उन गिने-चुने तीर्थों में से एक है, जहां आत्महत्या या अन्य किसी कारण मृत व प्रेतयोनि को प्राप्त जीवों की सद्गति उनका पिंडार्पण करने से होती है। स्वयं भगवान शिव ने भी ब्रह्महत्या के दोष से यहीं तप कर मुक्ति पाई थी। जिसके फलस्वरूप, ब्रह्मा ने वर दिया था कि जो भी यहां अकाल मृत्यु को प्राप्त जीवों का श्राद्ध तर्पण करेगा, उसके फल से जीव को सद्गति प्राप्त होगी।
शेषनाग का निवासस्थान
दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले को पुराणों में तीर्थ नगरी कहा गया है। पुराणों के अनुसार यह स्थान भगवान विष्णु की शैया शेषनाग का निवासधाम है।  इस जिले में कई पौराणिक मंदिर आज भी स्थित हैं। जिले के मध्य में प्राचीन नागबल तीर्थ स्थित है। इसमें पानी के दो प्राकृतिक कुंड हैं, जिसमें पहला मीठे पानी का है दूसरा खनिज युक्त लवणीय जल है। ऐसी मान्यता है कि इस लवणीय जल से स्नान करने से चर्मरोग दूर हो जाता है।  वेदों में वर्णित व कश्मीर की जीवनरेखा माता वितस्ता का उद्गम स्थान भी जिले के वेरीनाग में स्थित है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग पर जवाहर सुरंग के पास ही है।  माता वितस्ता को पार्वती देवी का साक्षात् स्वरूप माना जाता है। वर्ष 1990 के पहले हर वर्ष यहां पर भाद्रपद मास की अमावस्या को विशाल यात्रा व मेला लगता था। आज भी यह परंपरा चली आ रही है। इन मंदिरों व तीर्थों के अतिरिक्त कश्मीर में अनेक महत्वपूर्ण व प्रसिद्ध धार्मिक यात्राएं प्रचलित हैं जिनमें अमरनाथ यात्रा के साथ हरिश्वर यात्रा, महादेव यात्रा, क्रमसर यात्रा, (कौसरनाग ) आदि यात्राएं वर्षों से चली आ रही हैं। लेकिन घाटी के दिन-प्रतिदिन खराब होते हालातों के चलते कई यात्राओं को बंद कर दिया गया है।    

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