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मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को गीता जयंती के नाम से जाना जाता है। इसी तिथि को लगभग 5,000 वर्ष पूर्व गीता का प्रादुर्भाव हुआ था। यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से भी विख्यात है। गीता युद्ध के मैदान में दो विरोधी सेनाओं के बीच खड़े होकर दिया गया दिव्य संदेश है। गीता का प्रारंभ 'धर्म' शब्द से हुआ है। राजा का धर्म क्या है, प्रजा का धर्म क्या है, मानव धर्म क्या है, गृहस्थ धर्म क्या है, समाज का धर्म क्या है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य का धर्म क्या है, संन्यासी का धर्म क्या है? गीता ज्ञान का वह समुद्र है जिसमें जितने भी गोते लगाओ, उसकी थाह नहीं मिलती। 700 श्लोकों तथा 18 अध्यायों पर आधारित यह गीता ज्ञान वेद की वाणी है जो श्रीकृष्ण के श्रीमुख से सीधी निकली है। गीता ज्ञान सार्वकालिक तथा सार्वभौमिक है। गीता अनुपम ग्रंथ है, जिसका एक श्लोक क्या, एक-एक शब्द सदुपदेश से भरा है। गीता कर्तव्य-बोधक है। अर्जुन को जब अन्याय के विरुद्ध शस्त्र उठाना था, तब उसे प्रमाद हो गया। अपने विपक्ष में खड़े गुरु द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म और अन्य संबंधियों को देख वह कर्तव्यविहीन हो गया और कहने लगा, ''देवकीनन्दन! मैं युद्ध नहीं करूंगा।'' जिस प्रकार श्मशान में लोगों को वैराग्य उत्पन्न होता है, इसी प्रकार अर्जुन को युद्ध भूमि में त्याग, वैराग्य का रोग लगा और वह युद्ध से पलायन की बात करने लगा। तब श्रीकृष्ण ने कर्तव्य बोध कराने के लिए गीता सुनाई। युद्ध का गीत ही गीता बना और कर्म पर ही बल दिया, कर्मयोग की शिक्षा दी।
हमारे जीवन को परमानंद से भर देने एवं सत्कर्म की शिक्षा देने के लिए ही गीता का अवतरण हुआ है। हमारे जीवन में ज्ञान, भक्ति और धर्म तीनों का समन्वय कर देने वाली भगवान की वाणी मानव जीवन का सर्वांगीण विकास करती है। हमारा ज्ञान भी शुद्ध, हमारी भावना भी शुद्ध और हमारे कर्म भी शुद्ध। इसके प्रत्येक श्लोक में ज्ञान रूपी प्रकाश है जिसके प्रस्फुटित होते ही अज्ञान का अंधकार नष्ट हो जाता है। गीता जीवन के यथार्थ का साक्षात्कार करवा कर जीने की कला सिखाती है। जैसे मक्खन, दूध का सार है, इसी प्रकार गीता सब उपनिषदों का निचोड़ है। भ्रमित मानव को सद्मार्ग पर लाने के लिए गीता रामबाण औषधि है। गीता का संदेश चुनौतियों से भागना नहीं, बल्कि जूझना जरूरी है। गीता ज्ञान अमृत केवल अर्जुन के लिए ही नहीं है, इस की धारा अमृत्व के हरेक पिपासु के लिए बह रही है। हर व्यक्ति में परम तत्व को जानने की उत्कट इच्छा होनी चाहिए। धृतराष्ट्र जिज्ञासा कर रहा है, पर वह ज्ञान की जिज्ञासा नहीं है। वह केवल युद्ध की बात जानना चाहता है। धृतराष्ट्र राष्ट्र को पकड़े रहने की कोशिश कर रहा है, धरण कर रहा है, पकड़ रहा है। जो भी इस दुनिया को पकड़ने की कोशिश करता है उसकी पकड़ में कुछ भी नहीं आता, सब यहीं छूट जाता है। यही गीता का संदेश है। गीता का अनुवाद विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में लगभग 59 भाषाओं में हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी योग की तरह गीता को भी प्रचारित करने में लगे हैं। वे अपी विदेश यात्राओं में गीता ले जाते हैं और कई राष्ट्रध्यक्षों को भेंट कर चुके हैं। गीता को दुनिया के कोने-कोने तक ले जाने में इस्कॉन का भी बहुत बड़ा योगदान है। गीता का अध्ययन करने के बाद ही अनेक विदेशी सनातनी बन रहे हैं, यह कोई साधारण बात नहीं है। कई देशों में गीता का अध्ययन-अध्यापन भी हो रहा है, लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे ही देश में गीता पढ़ाने का विरोध होता है। आज पूरा विश्व कुरुक्षेत्र बन गया है। विषम परिस्थितियों में युवकों के हाथों से धनुष छूट रहा है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को धनुर्धारी अर्जुन होना होगा।
(लेखक श्री सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा
दिल्ली के अध्यक्ष हैं) – भूषणलाल पाराशर
गीता का संदेश
ल्ल संसार में रहते हुए सुखों को भोगों, पर संसार को अपने भीतर न रहने दो। जैसे नाव पानी में रहे तो ठीक, पर यदि पानी नाव में आ गया तो नाव डूब जाएगी।
ल्ल परिवर्तन को स्वीकार करो। बालक जन्मा है, तो बड़ा होगा, जवान होगा, वृद्ध होगा तथा शरीर के मरने पर उसकी आत्मा नए शरीर को धारण करेगी। अत: मृत्यु का दूसरा नाम आत्मा द्वारा शरीर परिवर्तन है।
ल्ल तुम शरीर नहीं हो, तुम आत्मा हो। शरीर मरता है, आत्मा कभी नहीं मरती। आत्मा अमर तथा अविनाशी है। डरो नहीं, तुम्हें कोई नहीं मार सकता, भय मुक्त रहो।
ल्ल संसार में रहो पर आसक्त न बनो, मोह त्यागो। कर्म करो फल की इच्छा मत करो। परमात्मा सब देख रहा है, फल वही देगा।
ल्ल काम से भागो नहीं, डट कर काम करो, कायरता को भगाओ-जीवन जियो। सार्थक जीवन यात्रा धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होता है, इसी को मोक्ष कहते हैं।
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