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गीता कालजयी ग्रंथ है। वह भक्ति के साथ कर्म की ओर प्रवृत्त करती है। कुरुक्षेत्र में युद्ध के मौके पर कर्तव्य पथ से भटक रहे अर्जुन को श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान देकर ही कर्मपथ पर प्रवृत्त किया। इसलिए हमारे जीवन में गीता का बहुत व्यावहारिक उपयोग है। लेखक आचार्य मायाराम पतंग ने 'विद्यार्थियों के लिए गीता' पुस्तक को विशेषरूप से छात्रों को ध्यान में रखकर तैयार किया है। पुस्तक लिखने की पृष्ठभूमि बताते हुए वे अपना अनुभव बताते हैं, ''मैं न तो संत हूं, न महात्मा परंतु मैंने गीता को बचपन से जिया है। सत्संग में सुना और स्वाध्याय किया। साप्ताहिक सत्यंग आयोजित करके मुझे श्रोताओं के समक्ष व्याख्या करने का अवसर मिला। सत्संग में प्रौढ़ जन और महिलाएं ही अधिक होती थीं। न विद्यार्थी आते थे, न माता-पिता उन्हें साथ लाते थे। इसलिए उन तक पहुंचाने के लिए सरल भाषा में एक संक्षिप्त गीता लिखने की आवश्यकता थी।'' पुस्तक का पहला अध्याय है- 'श्रीमद्भगवद्गीता की पृष्ठभूमि'। इसमें लेखक ने श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीमद्भागवत पुराण के अंतर को बताते हुए गीता की पृष्ठभूमि बताई है। पुस्तकें तो बाजार में बहुत हैं। विद्यार्थी भी उन्हें पढ़ सकते हैं। कमी थी तो प्रेरणा की तथा पुस्तक प्रकाशन में आकर्षक स्वरूप की। इस आवश्यकता को लेखक ने पूरा किया है।
वे कहते हैं कि यदि छात्र विद्यार्थी काल में ही गीता का भाव समझ गए तो यह जीवन में हर कदम पर काम आएगा। आपत्तियों और कष्टकर परिस्थितियों में निराशा नहीं घेरेगी। अक्सर लोग बुजुर्ग होकर गीता पढ़ते हैं। जब सारा जीवन बीत चुका होता है। जीवन का ताप सह लिया, तिल-तिल कर मरते रहे, फिर गीता पढ़ी तो क्या लाभ हुआ।
वे गीता का मर्म बताते हुए स्पष्ट करते हैं, युवाओं के आदर्श स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि गीता को समझने के लिए पूजाघर नहीं चाहिए वरन् फुटबॉल का मैदान चाहिए। जब तक शारीरिक परिश्रम से पसीना नहीं निकले तब तक गीता रहस्य को समझना कठिन है। वास्तव में स्वामी जी का अभिप्राय था जय-पराजय का विचार न करके टीम-भावना से खेलकर गीता का कर्मयोग समझने में सरलता होगी। निष्काम कार्य और खेल भावना अनुभव किए बिना मात्र शब्द रह जाते हैं। खेल खेलने के बाद यह अनुभव स्वयं में समझ आ जाता है।
उल्लेखनीय है कि लेखक ने छात्रों के लिए विशेष तौर पर यह गीता तैयार की है। अच्छी बात यह है कि वे पहले ही स्पष्ट कर देते हैं कि यह गीता पर भाष्य नहीं है। यह छात्रों में गीता में दिलचस्पी जगाने के लिए लिखी गई है। इस पुस्तक में गीता के हर अध्याय में जो महत्वपूर्ण श्लोक हैं, जिन्हें याद किया जा सके, गाया जा सके, उन्हें संकलित किया गया है। इस उद्देश्य से गीता के हर अध्याय के महत्वपूर्ण श्लोक देने के अलावा हर अध्याय की महत्वपूर्ण शिक्षाएं अलग से बताई गई हैं। जैसे-अधर्म और अन्याय व्यक्ति को डरपोक बना देते हैं, जहां विद्या का संबंध होता है, वहां पक्षपात नहीं होता, अधर्म अधर्मी को खा जाता है, होनी को रोकना मनुष्य के वश में नहीं है, लेकिन अपने कर्तव्य का पालन करके मनुष्य अपना उद्धार कर सकता है और कर्तव्य से डिग कर अपना पतन कर सकता है। एक और शिक्षा देखिए—लोभ की आदत के कारण विवेक शक्ति का नाश होता है। व्यक्ति तब बड़ा दु:खी होता है, जब वह अपने-पराए में भेद करता है और चीजों तथा लोगों को निजी और पराए में विभक्त कर देता है।
हर अध्याय के दार्शनिक शब्दों की सरल व्याख्या भी दी गई है ताकि छात्र उन्हें आसानी से समझ सकें। इससे उनकी गीता में दिलचस्पी जागेगी और वे लोकमान्य तिलक, जयदयाल गोयंदका और संत ज्ञानेश्वर जैसे महापुरुषों द्वारा लिखे गए भाष्यों को पढ़ने को प्रवृत्त होंगे। इस दृष्टि से यह पुस्तक एक अच्छी कोशिश है। स्पष्ट है कि यह संपूर्ण गीता नहीं, बल्कि मात्र प्रेरणा है। इसे पढ़कर छात्र सन्मति पाएं। आज के भौतिक युग में विषय-वासना से दूर रहकर नैतिक मूल्यों का पालन करते हुए जीवन में सफलता के शिखर पर पहुंचें, यही इस पुस्तक का उद्देश्य है। कहाना न होगा कि अपने इस महती उद्देश्य में लेखक को सफलता मिली है। ल्ल स.ग.प.
पुस्तक का नाम : विद्यार्थियों के
लिए गीता
लेखक : आचार्य मायाराम पतंग
मूल्य : 250 रु.
पृष्ठ : 143
प्रकाशक : ज्ञान विज्ञान एजूकेयर
3699, प्रथम तल
नेताजी सुभाष मार्ग,
दरियागंज
नई दिल्ली- 110002
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