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पंजाब में बीते दो साल के दौरान संघ सहित विभिन्न हिन्दुत्व संगठनों के सात नेताओं की हत्या हो चुकी है। इसे हिन्दुओं के विरुद्ध साजिश माना जा रहा है, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह का दावा है कि इन हत्याओं में आईएसआई का हाथमनोज सिंह
हिंदुओं के लिए पंजाब के हालात एक बार फिर ’80 के दशक जैसे होते जा रहे हैं, जब बड़ी संख्या में उनकी हत्या हो रही थी। लेकिन इस बार तरीका बदल गया है। अब रा.स्व.संघ के कार्यकर्ताओं सहित उन हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है जिनकी समाज में पैठ है। हालांकि कैप्टन सरकार हत्या को रोकने की बजाय पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को जिम्मेदार ठहराकर इसका राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश में है। कम से कम पंजाब में इस माह जो हुआ, उसका लब्बोलुआब यही है।
अनसुलझी पहेली
14 जनवरी, 2017: श्री हिंदू तख्त के प्रचार प्रबंधक अमित शर्मा की लुधियाना में हत्या।
1 फरवरी, 2017: बठिंडा के मौड मंडी में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के रिश्तेदार हरमिंदर सिंह को निशाना बनाकर दो बम विस्फोट। जस्सी बच गए, लेकिन विस्फोट में छह लोग मारे गए।
27 फरवरी, 2017: डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी पिता-पुत्र की लुधियाना के पास खन्ना में हत्या।
17 अक्तूबर, 2017: संघ स्वयंसेवक रविंदर गोसार्इं की लुधियाना में गोली मारकर हत्या।
30 अक्तूबर, 2017: अमृतसर में हिंदू संघर्ष सेना के जिला प्रमुख विपिन शर्मा की हत्या।
4 अप्रैल, 2016: नामधारी संप्रदाय के पूर्व मुखिया सतगुरु जगजीत सिंह की पत्नी माता चांद कौर की लुधियाना के पास भैणी साहिब में पंथ मुख्यालय के बाहर हत्या।
23 अप्रैल, 2016: खन्ना में शिवसेना नेता दुर्गा प्रसाद गुप्ता की गोली मारकर हत्या।
6 अगस्त, 2016: संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) जगदीश गगनेजा को जालंधर में गोली मारी, 22 सितंबर को निधन।
30 अक्तूबर को हिंदू संघर्ष सेना के जिलाध्यक्ष विपिन शर्मा को अमृतसर में बटाला रोड के निकट भरत नगर इलाके में गोली मार दी गई। कहा जा रहा है कि हमले में कम से कम चार हमलावर शामिल थे। इससे पहले 17 अक्तूबर को लुधियाना में संघ कार्यकर्ता रविंदर गोसार्इं की हत्या कर दी गई थी। पंजाब में दो साल में सात हिंदुओं की हत्या हो चुकी है, जिसमें सीधे तौर पर संघ से जुड़े लोगों को निशाना बनाया गया है। लेकिन पंजाब पुलिस इन हत्या का सुराग नहीं लगा पाई। 8 नवंबर को मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अचानक मीडिया से मुखातिब हुए और दावा किया कि राज्य में हिंदू नेताओं की हत्याओं के पीछे आईएसआई का हाथ था। उन्होंने कहा, ‘‘आईएसआई ने ब्रिटेन में बैठे भारत विरोधी तत्वों के जरिए इन हत्या की साजिश रची।’’ हालांकि इस मामले में चार लोगों की गिरफ्तारी हुई है, लेकिन उन्होंने खुलासा तीन नामों का ही किया। ये हैं- जिम्मी सिंह, जगतार सिंह उर्फ जग्गी और धर्मेंद्र। दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाईअड्डे से गिरफ्तार जिम्मी से मिली जानकारी के बाद अन्य लोग पकड़े गए। लेकिन कैप्टन की बातों से जानकार सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि सरकार अपनी विफलता छिपाने के लिए कहानी गढ़ रही है ताकि लोगों के ध्यान को भटकाया जा सके।
सात हत्याएं, पर सुराग नहीं
पंजाब के पुलिस महानिदेशक सुरेश अरोड़ा ने बताया कि सीबीआई, एसआईटी व एनआईए को इन मामलों की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई है। जांच एजेसियों ने वारदात के आसपास 1,500 सीसीटीवी कैमरे खंगाले। एफएसएल विशेषज्ञों ने जो तथ्य जुटाए इससे प्रथम दृष्टया इन वारदातों में समानता दिखती है। हत्यारे 32 बोर व 9 एमएम पिस्तौल का इस्तेमाल करते हैं। उनके पगड़ी पहनने का तरीका और शारीरिक संरचना भी एक जैसी है। वे पहले लक्ष्य को पास बुलाते हैं, फिर गोली मार कर हवा में हाथ हिलाते हुए जाते हैं। इससे लगता है कि वे नारे लगा रहे हैं। वारदात में तेज रफ्तार वाली चोरी की बाइक का प्रयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि फॉरेंसिक विशेषज्ञों से सीबीआई को मिले सबूतों से लगता है कि ऐसी शारीरिक संरचना बनाई जाती है ताकि हत्यारों को पहचाना न जा सके। संभवत: इसके लिए वे फोम या ऐसा कुछ प्रयोग करते हैं, जिससे उनका डील-डौल अलग दिखे। उन्होंने माना कि गोसार्इं की हत्या के बाद लगा था कि विदेश में बैठे कुछ संगठन इन वारदातों में शामिल हो सकते हैं। लेकिन पूर्व डीजीपी सर्बजीत सिंह विर्क इस दलील से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि राज्य में हिंदुओं के विरुद्ध बड़ी साजिश हो रही है। हत्यारों के निशाने पर केवल एक हिंदू संगठन है। दो साल में सात हत्या, हत्या का तरीका व हत्यारे भी एक जैसे, फिर भी पुलिस की पहुंच से बाहर! जांच ऐसे अधिकारियों के जिम्मे है, जो सक्षम नहीं हैं। जांच में भी एकरूपता नहीं है। अलग-अलग टीम जांच करेगी तो मामला क्या सुलझेगा? जब सारे मामले एक जैसे हैं तो जांच भी एक जैसी होनी चाहिए। डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी पिता-पुत्र सतपाल और रमेश की हत्या की जांच कर रही एसआईटी के सदस्य पुलिस अधिकारी रूपेंद्र पाल सिंह ने बताया, ‘‘हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे थे। पर जो गिरफ्तारी हुई, इससे केस सुलझ गया।’’
जांच से संतुष्ट नहीं परिजन
मृतकों के परिजन भी जांच से संतुष्ट नहीं हैं। सीबीआई संघ से जुड़े ब्रिगेडियर स्व. जगदीश गगनेजा की हत्या की जांच कर रही है।उनकी पत्नी सुदेश ने बताया कि अभी तक तीन अधिकारी बदले जा चुके हैं। लेकिन हर बार एक जैसे सवाल पूछे जाते हैं। इसे देखते हुए नहीं लगता कि परिवार को इंसाफ मिलेगा। उन्होंने बताया, ‘‘वारदात के बाद पूरा परिवार दहशत में है। शाम को घर से निकलने में भी डर लगता है। पता नहीं कब क्या हो जाए।’’ इसी तरह अमित शर्मा की हत्या के बाद उनका पूरा परिवार किसी दूसरी जगह चला गया। इस सबको देखते हुए मृतकों के परिजन न केवल जांच से असंतुष्ट हैं, बल्कि इंसाफ की आस छोड़ने लगे हैं।
फिर हावी होता कट्टरवाद
पंजाब में हिंदू नेताओं की सिलसिलेवार हत्या के कारण एक बार फिर से सूबे में सिख और गैर सिखों के बीच अविश्वास बढ़ रहा है। रा.स्व.संघ, पंजाब प्रांत के प्रांत संघचालक स. श्री बृज भूषण बेदी ने बताया कि हिंदू नेताओं की हत्या से सूबे के हिंदू बेहद डरे हुए हैं। सुनियोजित तरीके से हत्या को अंजाम दिया जा रहा है। एक अन्य हिंदू नेता ने बताया कि यह नया कट्टरवाद है, जिसमें उन लोगों को निशाना बनाया जा रहा है जो धर्म के प्रचारक हैं।
हालांकि सूबे के पत्रकार सुखबीर सिंह बाजवा की राय अलग है। उन्होंने कहा कि करीब एक दशक से सिखों पर हमले हो रहे हैं। राज्य में 20 साल की आयु वर्ग के युवा अपने पंथ को लेकर खासे संवेदनशील हैं। कोई इसमें दखल दे, उन्हें बर्दाश्त नहीं। राज्य में टकराव बढ़ने की एक वजह यह भी है। ऐसे युवाओं को कट्टरपंथी अपने साथ मिला लेते हैं। बाजवा के अनुसार विदेश में बैठे कट्टरपंथी आम आदमी पार्टी को छोड़कर किसी दूसरे के साथ खड़े नहीं दिखते। पंजाब में डेरे और राजनीति पर शोध कर रहे पत्रकार राजकुमार शर्मा ने बताया कि पंजाब में ऐसी बहुत-सी जगह है, जहां वंचितों को लंबे समय तक धार्मिक स्थलों में जाने नहीं दिया गया। अब उन्होंने अलग धार्मिक स्थल बना लिए हैं या डेरा अनुयायी बन गए हैं। राज्य में करीब 1255 डेरे हैं, जिनमें 119 डेरों के अनुयायियों की संख्या लाखों में है। शर्मा के अनुसार सूबे में देश के सर्वाधिक 46 प्रतिशत एससी/बीसी वर्ग के लोग रहते हैं। इनमें 80 प्रतिशत डेरे से जुड़े हुए हैं। ये लोग राजनीतिक तौर पर सक्रिय हैं और किसी एक दल को समर्थन देते हैं, जबकि कुछ-कुछ दबी जुबान में। जब इनके पास राजनीतिक शक्ति आई तो इन्होंने कट्टरवाद का विरोध किया, जिससे यह टकराव बढ़ता जा रहा है।
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